व्यंग्य आमरण अनशन के पैरोकार-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 2, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment झंडूलाल झापड़वाले कोई साधारण आदमी नहीं हैं| वह एक खास आदमी हैं और उनकी इसी खासियत ने उन्हें शहर का गणमान्य नागरिक बना दिया है|देश के हित में और देश की गरीब और सरकार की मारी निरीह जनता के हित में जब जब भी आमरण अनशन की बात होती है झंडूलाल झापड़वाले को याद किया […] Read more » आमरण अनशन आमरण अनशन के पेरोकार
व्यंग्य मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की August 20, 2012 / August 20, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की वरना ये मर भी न पाएंगे चैन से भूखे की भूख शांत करना दुनिया का सबसे बड़ा पुण्य है। इसके मुकाबले कोई दूसरा पुण्य हो ही नहीं सकता। यों देखा जाए तो भूख इतना विराट और व्यापक शब्द है जो कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : बातों और वायदों का ओलम्पिक August 19, 2012 / August 20, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार शर्मा जी बचपन से ही खेलकूद में रुचि रखते हैं। यद्यपि उन्होंने आज तक किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया। इसलिए पुरस्कार जीतने का कोई मतलब ही नहीं; पर कबाड़ी बाजार से खरीदे कप, ट्रॉफी और शील्डों से उनका कमरा भरा है, जिसे वे हर आने-जाने वाले को विभिन्न राज्य और राष्ट्र स्तर […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य:अबके पूरे छह हजार! August 19, 2012 / August 18, 2012 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य:अबके पूरे छह हजार! हालांकि उनके आजकल रमजान के रोजे चले हैं। बंदे हैं कि दिनभर पानी भी नहीं लेते तो नहीं लेते। अच्छी बात है, इसी बहाने हमारे मुहल्ले के नलकों का पानी भरी बरसात में तो बच रहा है! नहीं तो भर बरसात में नल के पास होने वाली लड़ार्इ में न चाहते हुए बाल्टी नचाते उन्हें […] Read more »
व्यंग्य ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते August 19, 2012 / August 18, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | 2 Comments on ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते डॉ. दीपक आचार्य कलियुग में ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते वह जमाना अब चला गया जब त्रेता युग में कुत्ते भी मनुष्य की वाणी बोलते थे। वो जमाना भी करीब-करीब चला ही गया है जिसमें चोर-उचक्कों और संदिग्धों को देख-सूंघ कर भौंकते थे कुत्ते। युधिष्ठिर का जमाना भी गुजर गया जब वफादारी दिखाने […] Read more »
व्यंग्य तुम मेरा पीठ खुजाओ, मैं तेरा पीठ खुजाता हूँ ! August 18, 2012 / August 18, 2012 by राजीव पाठक | Leave a Comment राजीव पाठक आपके जीवन में भी एक ऐसा क्षण जरुर आया होगा जब आपके पीठ में बहुत तेज खुजली हो रही हो और उसे खुजाने के लिए आपका अपना हाथ काम न आये, लेकिन भगवन का शुक्र उसी समय कोई दिख जाये और वह आपके पीठ को आपके कहने पर वहीँ-वहीँ खुजा दे | आ..हा.हा…कितना […] Read more » hindi blogging हिंदी ब्लागिंग
व्यंग्य आजादी…क्यों मजाक करते हो भाई… August 17, 2012 / August 16, 2012 by हिमांशु डबराल | Leave a Comment हिमांशु डबराल ‘क्या आज़ादी तीन थके हुए रंगों का नाम है जिन्हें एक पहिया ढोता है? या इसका कोई ख़ास मतलब होता है’ धूमिल की ये पंक्तियाँ आज भी ज़हन में कई सवाल छोड़ जाती….आज़ादी…हम आज़ाद है, ये कहने पर एक बंधू बोल पड़े – क्यों मजाक करते हो भाई? सच में कई बार मजाक […] Read more » आजादी
व्यंग्य देश वासी सुनें प्लीज! August 14, 2012 / August 14, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम विक्रम के कंधे से अचानक कूद बेताल ने देश को संबोधित करना शुरू किया,’ हे मेरे देश के हल्ले वालो! लो आज फिर स्वतंत्रता दिवस आ गया। वैसे स्वंतत्र तो हम हर रोज ही हैं। कुछ भी करने के लिए! यहां किसीको पूछता ही कौन है? सभी को यहां पूरी छूट है। बस, […] Read more »
व्यंग्य राजनीति के अखाड़े में August 9, 2012 by विजय कुमार | 2 Comments on राजनीति के अखाड़े में विजय कुमार आखिर शर्मा जी ने राजनीति के अखाड़े में उतरने का निश्चय कर ही लिया। वैसे तो अनशन पर बैठने से पहले ही वे इसकी योजना बना चुके थे; पर घोषणा के लिए थोड़ा वातावरण बनाना जरूरी था। इसलिए कुछ दिन अनशन भी करना पड़ा। यह अच्छा हुआ कि अनशन तुड़वाने के लिए दो-तीन […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य: गधों ने घास खाना बन्द कर दिया है August 3, 2012 / August 3, 2012 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे शिक्षा ही अवसरवादी हो गर्इ है । मैं अपने घर में बैठा था कि हमारे घर के तथा कथित नीति निर्धारक चाचा चतरू ने दरवाजे पर आकर नोकिगं की । मै उठता उससे पहले ही मेरी बेगम ने उठ कर दरवाजा खोला और आदब की पाजिषन में आते हुए उनका स्वागत सत्कार कर […] Read more »
व्यंग्य उन्होंने तय कर लिया है July 23, 2012 by विजय कुमार | 2 Comments on उन्होंने तय कर लिया है विजय कुमार अभी सुबह ठीक से हुई भी नहीं थी। प्रातःकालीन चाय का तीसरा कप मेरे हाथ में था कि शर्मा जी टपक पड़े। उनके एक हाथ में मिठाई का डिब्बा और दूसरे में बहुत भारी माला थी। कलफदार धुले हुए कपड़े पहने शर्मा जी के चेहरे से प्रसन्नता ऐसे फूट रही थी, मानो बिना […] Read more »
व्यंग्य आह रे आखर मार! July 21, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम अब भार्इ साहब! आप से छुपाना क्या! जबसे सोचने समझने लायक हुए हैं , हर काम नंबर दो का शान से कालर खड़े कर करते आ रहे हैं। खुल कर करते आ रहे हैं । ये छुपन छुपार्इ का खेल हमें शुरू से ही कतर्इ पसंद नहीं! आप तो जानते ही हैं कि […] Read more »