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संदेशखाली जैसी घटनाओं का पश्चिम बंगाल की आर्थिक प्रगति पर हो रहा है विपरीत प्रभाव

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किसी भी देश में आर्थिक प्रगति को गति देने के लिए उस देश में सामाजिक शांति बनाए रखना अति आवश्यक है। यही शर्त किसी भी राज्य की आर्थिक प्रगति के सम्बंध में भी लागू होती है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य कुछ वर्ष पूर्व तक भारत में सबसे तेज गति से आर्थिक प्रगति कर रहे राज्यों के बीच अग्रिम पंक्ति में रहता आया है। परंतु, हाल ही के वर्षों में पश्चिम बंगाल में शांति भंग होती दिखाई दे रही है, इसका प्रभाव स्पष्टत: इस राज्य के आर्थिक विकास पर भी विपरीत रूप से पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।     विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों से पश्चिम बंगाल में सामाजिक ताना बाना छिन्न भिन्न होता दिखाई दे रहा है। पूरे राज्य में अराजकता का माहौल बन गया है, विशेष रूप से सनातन संस्कृति का पालन करने वाले बंगाल के शांति प्रिय नागरिकों पर असामाजिक तत्वों द्वारा लगातार हमले किए जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर हाल ही के समय में पश्चिम बंगाल के कई क्षेत्रों जैसे संदेशखाली इलाके में महिलाओं पर अत्याचार आम बात हो गई है।  संदेशखाली, पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले का एक छोटा कस्बा है। यह बांग्लादेश की सीमा से सटा सीमावर्ती क्षेत्र भी है, जहां हिंदू अनुसूचित जातियों की आबादी बहुलता में है। संदेशखाली, पश्चिम बंगाल की उन 14 विधानसभा की सीटों में शामिल हैं जो कि भारत बांग्लादेश सीमा से सटीं हुई हैं। दुर्भाग्य से संदेशखाली सहित यह सभी विधानसभा सीटें अतिवादी संगठनों द्वारा समर्थित सुनियोजित षड्यंत्र का एक हिस्सा बन गई हैं। इन 14 सीमावर्ती विधान सभा क्षेत्रों में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ उल्लेखनीय रूप से बढ़ रही है। यहां  की जनसांख्यिकी बदलने की साजिश का षड्यंत्र भी उच्च स्तर पर हो रहा है। वास्तव में, यह क्षेत्र पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी ISI की आतंकी गतिविधियों के अलावा तमाम आपराधिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में भी विकसित हो रहा है। कुछ समय पहले तक संदेशखाली में मुस्लिम जनसंख्या नहीं के बराबर थी, लेकिन अवैध घुसपैठ के चलते यहां असामाजिक तत्वों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह इलाका जनसांख्यिकी परिवर्तन की चपेट में आ गया है। इसमें सबसे बड़ी आबादी अब रोहिगियाई मुसलमानों की हो गई है।  गौर करने वाली बात है कि विगत चुनावों के दौरान घटित सभी आपराधिक घटनाओं में अधिकतर अपराधी असामाजिक तत्व मुस्लमान ही पाए गए थे। यह मामले गौ-तस्करी से लेकर मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध हथियारों की तस्करी से जुड़े रहे हैं। इस तरह के सभी गैरकानूनी मामलों में मुस्लिम ही अभियुक्त पाए जाते हैं। संदेशखाली में जो कुछ सामने आया है अथवा आ रहा है, यह कोई पहली बार घटित हुई वारदातें नहीं है। हिंदू महिलाओं के साथ गैंग रेप की एक नहीं बल्कि सैकड़ों घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जिसके खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के कार्यकर्ताओं ने जब भी आवाज उठायी हैं तो परिणाम में उन्हें ही निशाना बनाना शुरू कर दिया गया है। न सिर्फ संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है बल्कि उनके घरों को भी जला दिया गया है। इस क्षेत्र में हिंदू अनुसूचित जाति की महिलाओं एवं नाबालिग़ लड़कियों को इस इलाके के दबंग घुसपैठिए अपनी हवस का शिकार बनाने के उद्देश्य से जबरन उठा ले जाते हैं। इस क्षेत्र में तस्करी – मादक पदार्थ, हथियार, गोमांस आदि अपराधों में संलिप्त शेख शहंशाह जैसे मुस्लिम दबंगों का बोलबाला है। हाल ही में शेख शहंशाह के ठिकानों पर छापेमारी के लिए गई प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम पर उसके गुर्गों द्वारा हिंसक हमला भी किया गया था। इस हमले में ED के कई अधिकारी गम्भीर रूप से घायल हुए थे । इस इलाके में नौकरी/रोजगार, विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ देने की आड़ में भी अनेक महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया है।  पश्चिम बंगाल के विशेष इलाके संदेशखाली में घटित उक्त घटनाओं का वर्णन केवल उदाहरण के तौर पर किया गया है। वरना, पूरे पश्चिम बंगाल में ही आज अराजकता का माहौल है जो पश्चिम बंगाल की आर्थिक प्रगति को विपरीत रूप में प्रभावित कर रहा है।  लगभग 1960 के दशक तक पश्चिमी बंगाल की औसत प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय स्तर पर औसत प्रति व्यक्ति आय से अधिक हुआ करती थी। पश्चिम बंगाल, भारत के प्रथम तीन सबसे अधिक धनी राज्यों में शामिल था। पहिले दो राज्य थे – महाराष्ट्र एवं गुजरात। 1980 का दशक आते आते पश्चिम बंगाल की औसत प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय स्तर पर औसत प्रति व्यक्ति आय के लगभग बराबर तक नीचे आ गई थी। 1990 के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर औसत प्रति व्यक्ति आय पश्चिम बंगाल की तुलना में तेज गति से आगे बढ़ने लगी और पश्चिम बंगाल का स्थान देश में 7वें स्थान पर आ गया। वर्ष 2000 में और भी नीचे गिरकर 10वें स्थान पर आ गया एवं वर्ष 2011 में यह 11वें स्थान पर आ गया। यह गिरावट आज भी जारी है और आज पश्चिम बंगाल औसत प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में 14वें स्थान पर आ गया है।   इसी प्रकार, वर्ष 1993-94 एवं 1999-2000 के बीच पश्चिम बंगाल में औसत प्रति व्यक्ति आय में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि अर्जित की गई थी जबकि भारत का राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 4.6 प्रतिशत था। अगली दशाब्दी में पश्चिम बंगाल में औसत प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर गिरकर 4.9 प्रतिशत रह गई जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत बढ़कर 5.5 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2011-12 से लेकर वर्ष 2019-20 के दौरान पश्चिम बंगाल में औसत प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर और भी नीचे गिरकर 4.2 प्रतिशत हो गई जबकि राष्ट्रीय स्तर पर औसत 5.2 प्रतिशत रहा। इस प्रकार पश्चिम बंगाल एवं राष्ट्रीय स्तर पर औसत प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर में यह अंतर और भी बढ़ता ही जा रहा है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि 1990 के दशक में पश्चिम बंगाल में विकास दर राष्ट्रीय स्तर पर औसत विकास दर से अधिक थी। परंतु, वामपंथी दलों के शासनकाल में पश्चिम बंगाल में विकास दर राष्ट्रीय औसत से कम हो गई थी। पश्चिम बंगाल पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लगातार कांग्रेस, वामपंथी दलों और तृणमूल कांग्रेस का शासन रहा है। विशेष रूप से वामपंथी दलों एवं तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल के दौरान पश्चिम बंगाल की आर्थिक प्रगति विपरीत रूप से प्रभावित होती रही है।       वर्ष 2022 में पश्चिम बंगाल में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 157,254 रुपए था जबकि विश्व बैंक द्वारा जारी किए गए अनुमानों के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का राष्ट्रीय औसत 2411 अमेरिकी डॉलर था। यदि 80 रुपए प्रति डॉलर की दर पर अमेरिकी डॉलर को रुपए में बदला जाए तो यह राशि लगभग 164,000 रुपए प्रति व्यक्ति रहती है, जो पश्चिम बंगाल में प्रति व्यक्ति औसत से कहीं अधिक है। जबकि पश्चिम बंगाल किसी समय पर भारत के समस्त राज्यों के बीच सबसे तेज गति से आर्थिक प्रगति करता हुआ राज्य रहा है। यह देश की आर्थिक राजधानी भी माना जाता रहा है। आज आर्थिक प्रगति के मामले में पश्चिम बंगाल की स्थिति दिनोदिन बिगड़ती जा रही है। यह सब पश्चिम बंगाल में छिन्न भिन्न हो रहे सामाजिक ताने बाने के चलते एवं उपरोक्त वर्णित संदेशखाली जैसी घटनाओं में हो रही वृद्धि के चलते हो रहा है।  प्रहलाद सबनानी 

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अब भारत से ब्रेनड्रेन को कम करने का समय आ गया है

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अभी हाल ही में इजराईल ने हमास के साथ छिड़े युद्ध के बाद भारत से एक लाख कामगारों को इजराईल भेजने का आग्रह किया है क्योंकि लगभग इतनी ही संख्या में फिलिस्तीन के नागरिक इजराईल में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे थे। हालांकि, इजराईल द्वारा भारत से मांगे गए एक लाख कामगारों की संख्या में इंजीनियर भी शामिल हैं। इसी प्रकार ताईवान ने भी घोषणा की थी कि उसे लगभग एक लाख भारतीय इंजीनियरों की आवश्यकता है। इसके पूर्व जापान ने भी लगभग 2 वर्ष पूर्व घोषणा की थी कि वह 2 लाख भारतीय इंजीनियरों की भर्ती जापान में विभिन्न कम्पनियों में करेगा। एक अन्य समाचार के अनुसार, माक्रोसोफ्ट के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री सत्या नंडेला एवं गूगल के मुख्य कार्यपालन अधिकार श्री सुंदर पिचाई भी प्रयास कर रहे हैं कि इनकी कम्पनियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किस प्रकार भारतीय इंजीनियरों की भर्ती बढ़ाई जाए। अमेरिका एवं कनाडा आदि देशों में पहिले से ही लगातार कुछ वर्षों से इन देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में लाखों भारतीय इंजीनियरों की भर्ती जारी है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि भारत आज पूरे विश्व में इंजीनियरों की आपूर्ति का बहुत बड़ा केंद्र बन गया है अर्थात एक तरह से भारत पूरे विश्व के लिए इंजीनियर तैयार कर रहा है।  दूसरे, हाल ही में एक रोचक जानकारी सामने आई है कि रूस जैसे कुछ देशों की महिलाएं पति के रूप में भारतीय पुरुषों के प्रति आकर्षित हो रही हैं। क्योंकि, भारतीय पुरुष तलाक जैसी कुरीतियों से मीलों दूर दिखाई देते हैं। भारतीय पुरुष एक बार शादी के बाद पूरे जीवन भर अपनी पत्नी को सुखी जीवन प्रदान करते हैं। यह भारतीय सनातन संस्कृति का प्रभाव है। परंतु, विश्व के कई विकसित देशों में सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो चुका है। इन देशों में तलाक की दर 50 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है एवं अमेरिका में तो लगभग 60 प्रतिशत बच्चों को अपने पिता के बारे में जानकारी ही नहीं रहती है। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच कुल मिलाकर इन देशों में बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है एवं इन देशों में बच्चे गणित एवं विज्ञान जैसे विषयों में गहरी रुचि नहीं ले पा रहे हैं। अतः इन देशों में महिलाएं बहुत अधिक परेशानी में दिखाई दे रही हैं एवं वे भारतीय पुरुषों को अपने पति के रूप में स्वीकार करने को लालायित दिखाई दे रही हैं।  आज 1.40 करोड़ भारतीय मूल के नागरिक विभिन्न देशों में रह रहे हैं, जो इन देशों की नागरिकता प्राप्त करने का इंतजार कर रहे हैं एवं इसके अतिरिक्त 1.80 करोड़ भारतीय मूल के नागरिक इन देशों के स्थायी नागरिक बन चुके हैं। अतः कुल मिलाकर 3.20 करोड़ भारतीय मूल के नागरिक आज विश्व के अन्य देशों में निवास कर रहे हैं। भारतीय मूल के नागरिकों का यह वर्ग न केवल इन देशों में भारतीय सनातन संस्कृति को फैलाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है बल्कि अपनी बचतों को भारत में भेजकर भारत में अपना पूंजी निवेश भी बढ़ा रहा हैं। पिछले वर्ष, भारतीय मूल के इन नागरिकों द्वारा 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि भारत में भेजी गई थी, जो पूरे विश्व में किसी भी देश में भेजी गई राशि में सबसे अधिक है। भारतीय मूल के नागरिक अपने संस्कारों के चलते इन देशों में शीघ्र ही अपना विशेष स्थान बना लेते हैं एवं अपनी मेहनत के बल पर सम्पन्नता भी प्राप्त कर लेते हैं। आज भारतीय मूल के नागरिक कई देशों में राजनैतिक क्षेत्र में भी बहुत आगे आ गए हैं। अमेरिका की उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हेरिस, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री ऋषि सुनक सहित कई देशों के प्रमुख आज भारतीय मूल के नागरिक ही हैं।  जब विशेष रूप से विकसित देशों में भारत से डॉक्टर, इंजीनियर एवं प्रबंधन के क्षेत्र में विशेषज्ञ भारत से बाहर जाते हैं तो इन विशिष्ट श्रेणी में विशेषज्ञों की भारत में कमी होना स्वाभाविक है। अब तो ऐसा आभास होने लगा है कि पूरे विश्व के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ जैसे भारत तैयार कर रहा है। यह विशेषज्ञ विभिन्न देशों में जाकर इन देशों की कम्पनियों को मजबूती प्रदान करते हैं एवं यह कम्पनियां पूरे विश्व में अपने व्यापार को फैलाने में सफल हो रही हैं। अब समय आ गया है कि भारतीय कम्पनियां भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां बनें एवं पूरे विश्व में अपने व्यापार को फैलाएं। इस दृष्टि से भारत की इन कम्पनियों को विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी। यदि भारतीय कम्पनियां विश्व के अन्य देशों में अपने पैर पसरना शुरू करें तो हो सकता है इन क्षेत्रों में पूर्व से ही कार्य कर रही विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से भारतीय कम्पनियों को गला काट प्रतिस्पर्धा करनी पड़े। जबकि विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाने में भारतीय विशेषज्ञों का ही अधिक योगदान रहा है। विदेश में रह रहे भारतीय विशेषज्ञों एवं भारत में रह रहे भारतीय विशेषज्ञों की आपस में प्रतिस्पर्धा होगी। इस प्रतिस्पर्धा में सम्भव है कि भारतीय कम्पनियां विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आगे प्रतिस्पर्धा में टिक ही न सकें। दूसरे, बदले हुए आर्थिक परिदृश्य में आज भारत में आर्थिक विकास की रफ्तार बहुत तेज हो चुकी है, जबकि विश्व के अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों में, आर्थिक विकास की रफ्तार लगातार कम बनी हुई है। भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है एवं अगले लगभग 5 वर्षों के दौरान भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, ऐसी सम्भावना विश्व की वित्तीय एवं आर्थिक संस्थाएं  व्यक्त कर रही हैं। अतः आगे आने वाले समय में भारत में भी विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की अधिक आवश्यकता महसूस होने लगेगी।  इस प्रकार, आज भारत में इस विषय पर गम्भीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है कि भारत से ब्रेन ड्रेन को कम करने के उद्देश्य से क्या उपाय किए जाने चाहिए। यदि भारत से ब्रेन ड्रेन पर अंकुश लगाने में सफलता मिलती है तो सम्भव है कि विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में ही अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित करें, क्योंकि इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इनके अपने देशों में भारतीय विशेषज्ञ इंजीनियरों की कमी महसूस होने लगेगी। भारत में ही विनिर्माण इकाईयों के स्थापित होने से न केवल भारत में रोजगार के अधिक अवसर निर्मित होंगे बल्कि इन कम्पनियों का विदेशी व्यापार भी भारत के माध्यम से होने लगेगा और भारत के कर संग्रहण में भी अपार वृद्धि होगी। कुल मिलाकर, भारत में और अधिक खुशहाली फैलाने का रास्ता साफ होगा।  भारत से ब्रेन ड्रेन को एकदम बंद तो नहीं किया जा सकता है परंतु कुछ क्षेत्रों जिनमें भारत को पूर्व में ही महारत हासिल हैं एवं जिन क्षेत्रों में भारत तेजी से विश्व में अपना स्थान मजबूत कर रहा है तथा जिन क्षेत्रों में भारत को आगे आने वाले समय में विशेषज्ञों की बहुत अधिक आवश्यकता होने जा रही है, ऐसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ इंजीनियरों के ब्रेन ड्रेन को कम करने की जरूर आज आवश्यकता है। जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स एवं मशीन लर्निंग जैसे नए क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभर रहे हैं, इन क्षेत्रों को भारतीय इंजीनियरों द्वारा भारत में ही अधिक विकसित अवस्था में लाया जा सकता है। इससे अन्य विकसित देशों की तुलना में इन क्षेत्रों को भारत में अधिक तेजी से आगे बढ़ाया जा सकेगा। कुल मिलाकर, भारत से किन क्षेत्रों से कितने विशेषज्ञ इंजीनियरों को विदेश जाने की अनुमति दी जानी चाहिए, इस विषय पर अब गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए ताकि आगे आने वाले समय में भारत में इन पूर्व निर्धारित क्षेत्रों में विशेषज्ञ इंजीनियरों की कमी नहीं हो।  प्रहलाद सबनानी

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