Category: राजनीति

आर्थिकी राजनीति

वर्ष 2023 में आर्थिक क्षेत्र में भारत की कुछ विशेष उपलब्धियां रही हैं

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वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 7 प्रतिशत के आसपास रहने की प्रबल सम्भावनाएं बन रही हैं। इस वर्ष की प्रथम तिमाही, अप्रेल-जून 2023, में आर्थिक विकास दर 7.8 प्रतिशत की रही है, वहीं द्वितीय तिमाही,  जुलाई- सितम्बर 2023 में 7.6 प्रतिशत की रही है। इसी प्रकार, दीपावली त्यौहार पर लगभग 4 लाख करोड़ रुपए के व्यापार के चलते एवं अक्टोबर 2023 माह में विनिर्माण के क्षेत्र में विकास दर के 12 प्रतिशत से ऊपर रहने से इस वर्ष की तृतीय तिमाही, अक्टोबर-दिसम्बर 2023, में भी आर्थिक विकास 7 प्रतिशत रह सकती है। इससे पूरे वित्तीय वर्ष 2023-24 में भी आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत रहने की प्रबल सम्भावनाए बन रही हैं। जबकि, विश्व के कई अन्य विकसित देशों में मंदी की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार भारत वर्ष 2023 में भी लगातार विश्व की सबसे तेज गति से विकास करती अर्थव्यवस्था बना रहा।   भारत के आर्थिक विकास में लगातार गति आने से भारत में विदेशी निवेश की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। इससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। 8 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 60,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर था, जो 15 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में बढ़कर 61,600 करोड़ अमेरकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया एवं 22 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। इस प्रकार, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी का सिलसिला लगातार जारी है। हालांकि, अक्टोबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर 64,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया था, अब शीघ्र ही इस उच्चत्तम स्तर को पार कर जाने की भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है। कोरोना महामारी के दौरान, भारतीय रुपए पर अत्यधिक दबाव आ गया था, अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए को अवमूल्यन से बचाने एवं भारत रुपए के मूल्य को स्थिर बनाए रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को भरपूर मात्रा में बाजार में बेचा था इससे भारत में विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया था। विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश को जरूरत पड़ने पर आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने से केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक को देश के आर्थिक विकास में गिरावट के चलते पैदा हुए किसी भी बाहरी एवं अंदरूनी वित्तीय अथवा आर्थिक संकट से निपटने में मदद मिलती हैं। यह आर्थिक मोर्चे पर संकट के समय देश को आरामदायक स्थिति उपलब्ध कराता है। विश्व बैंक द्वारा जारी की गई एक जानकारी के अनुसार, वर्ष 2023 में अनिवासी भारतीयों ने रिकार्ड 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का प्रेषण भारत में किया है। अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में भेजी गई यह राशि पूरे विश्व में किसी भी देश को भेजी गई राशि में सर्वाधिक है। यह आर्थिक क्षेत्र में भारत की आंतरिक मजबूती को दर्शाता है। विदेशी निवेशकों के साथ ही अनिवासी भारतीयों का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास लगातार बढ़ रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर एवं खाड़ी के देशों में अनिवासी भारतीयों की भारी संख्या निवास करती है और केवल इन 4 देशों से ही 54 प्रतिशत प्रेषण भारत को प्राप्त हुआ है। वर्ष 2022 में अनिवासी भारतीयों द्वारा 11,110 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में प्रेषित की गई थी।  भारत आज विश्वभर के निवेशकों के लिए एक आकर्षक केंद्र के रूप विकसित हो गया है। विशेष रूप से केंद्र सरकार एवं कुछ राज्यों द्वारा की जा रही पहल विदेशी पूंजी को भारत में आकर्षित करती नजर आ रही है।  प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भारत आज इमर्जिंग अर्थव्यवस्थाओं के बीच स्वीट स्पॉट के रूप में दिखाई दे रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और फार्मा जैसे 14 प्रमुख क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी उत्पादन प्रोत्साहन योजना ने विदेशी निवेशकों की भारत में रुचि बढ़ा दी है। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में श्रम, कराधान, और व्यापार परमिट जैसे क्षेत्रों में नियामक सुधारों से व्यापार करने में आसानी बढ़ी है। अच्छी तरह से विकसित बुनियादी ढांचा और कुशल श्रम की उपलब्धता देश को निवेश के अन्य देशों के विकल्प के मामले में एक तरह की बढ़त देते हैं, जो विदेशी निवेशकों के निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहायता करते नजर आ रहे हैं।   हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक अनुपालन प्रतिवेदन में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितंबर 2023, में भारत का चालू खाता घाटा 830 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि से कम होकर सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत रह गया है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितम्बर 2022, में 3000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहते हुए सकल घरेलू उत्पाद का 3.8 प्रतिशत था। भारत के विदेशी व्यापार के मामले में यह एक अतुलनीय सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। चालू खाता घाटा किसी भी देश के वस्तुओं और सेवाओं के आयात एवं निर्यात के मूल्य के साथ साथ वित्तीय हस्तांतरण के बीच के अंतर को मापता है। चालू खाता घाटे का कम होना किसी भी देश के लिए अच्छी स्थिति कही जाती है क्योंकि इससे मजबूत हो रहे निर्यात एवं कम हो रहे आयात की स्थिति का पता चलता है। वर्ष 2023 में भारतीय बैंकों विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र के बैंकों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों का स्तर लगभग न्यूनतम स्तर पर आ गया है और पूंजी पर्याप्तता अनुपात लगभग उच्चत्तम स्तर पर आ गया है। कई बैंकों में तो यह स्तर अमेरिकी बैकों के पूजीं पर्याप्तता अनुपात से भी अधिक है। कुछ वर्ष पूर्व तक सरकारी क्षेत्र के बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों पर बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को इन बैंकों में पूंजी डालनी होती थी परंतु आज सरकारी क्षेत्र के बैंक केंद्र सरकार को भारी भरकम लाभांश की राशि का भुगतान कर रहे हैं। बैंकिंग के क्षेत्र में तो जैसे टर्न अराउंड ही दिखाई देता है।   भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी एक अन्य प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के विभिन्न राज्यों की बजटीय स्थिति एवं इनके राजकोषीय स्वास्थ्य में लगातार मजबूती दिखाई दे रही है। विभिन्न राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2021-22 एवं 2022-23 में किए गए सुधारों को जारी रखा है, जिसके चलते राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा नियंत्रण में रहते हुए कम हुआ है। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्यों के राजकोषीय घाटे पर, कोविड महामारी के बाद अत्यधिक दबाव पैदा हो गया था परंतु इसके बाद से लगातार स्थिति में सुधार हुआ है। मुख्य रूप से कर संग्रहण के अनुपालन में सुधार करते हुए कर संग्रहण में पर्याप्त वृद्धि हुई है एवं कुछ राज्यों द्वारा खर्चों पर नियंत्रण भी किया जा सका है, हालांकि पूंजीगत व्ययों को प्रभावित नहीं होने दिया गया है, जिसके कारण राजकोषीय घाटे की स्थिति में सुधार दिखाई देने लगा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने उक्त प्रतिवेदन में वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए विभिन्न राज्यों के बजट, राजकोषीय संकेतक एवं व्यय के पैटर्न का विश्लेषण किया है। मुख्य बिंदु जिन पर सुधार बताया गया है उनमें शामिल हैं, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार हो रहा सुधार, राजस्व घाटे में आ रही कमी, पूंजीगत व्यय में लगातार हो रही वृद्धि और बकाया ऋण स्तर में कमी होना, बताया गया है। राज्य स्तर पर आगे आने वाले समय में मजबूत आर्थिक विकास और राजकोषीय सुधारों द्वारा राज्यों की समग्र बजटीय स्थिति सकारात्मक होने का अनुमान इस प्रतिवेदन में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगाया गया है। इस स्थिति को भारत के लिए राहत देने वाली माना जा सकता है। राज्यों का राजस्व घाटा कम होने के कारण राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा लगातार दूसरे वर्ष लक्ष्य के मुकाबले सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत पर सीमित रहा है। पूंजी निवेश समर्थन के लिए केंद्रीय योजना के नेतृत्व में वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में पूंजीगत व्यय में 52.6 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर्ज हुई है।  राजस्व व्यय वृद्धि में कमी आई है और व्यय की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में बकाया देनदारियां वित्तीय वर्ष 2011 में 31 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2024 में 27.6 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। 

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राजनीति

भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के बारे में आई एम एफ की चिंता उचित नहीं

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हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के सम्बंध में चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत का ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात वर्ष 2028 तक यदि 100 प्रतिशत के स्तर को पार कर जाता है तो सम्भव है कि भारत की विकास दर पर इसका विपरीत प्रभाव होने लगे। हालांकि  भारत का ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात वर्ष 2020 में 88.53 प्रतिशत तक पहुंच गया था, क्योंकि पूरे विश्व में ही कोरोना महामारी के चलते आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी परंतु, इसके बाद के वर्षों में भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है और यह वर्ष 2021 में 83.75 प्रतिशत एवं वर्ष 2022 में 81.02 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आ गया है। साथ ही, भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के वर्ष 2028 में 80.5 प्रतिशत के निचले स्तर पर आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। यदि अन्य देशों के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात की तुलना भारत के ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के साथ की जाय तो इसमें भारत की स्थिति बहुत सुदृढ़ दिखाई दे रही है। पूरे विश्व में सबसे अधिक ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात जापान में है और यह 255 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया है। इसी प्रकार यह अनुपात सिंगापुर में 168 प्रतिशत है, इटली में 144 प्रतिशत, अमेरिका में 123 प्रतिशत, फ्रान्स में 110 प्रतिशत, कनाडा में 106 प्रतिशत, ब्रिटेन में 104 प्रतिशत एवं चीन में भी भारी भरकम 250 प्रतिशत के स्तर के आसपास बताया जा रहा है। अर्थात, विश्व के लगभग समस्त विकसित देशों में ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 100 प्रतिशत के ऊपर ही है। भारत में इस अनुपात का 81 प्रतिशत के आसपास रहना संतोष का विषय माना जा सकता है।  वैसे, जैसे जैसे किसी भी देश का आर्थिक विकास जब तेज गति से होने लगता है तो उस देश में, उत्पादों का निर्माण बढ़ाने के उद्देश्य से, अधिक पूंजी की आवश्यकता पड़ती है। जब देश में बचत की दर उच्च स्तर पर नहीं हो तो उस देश में ऋण के द्वारा ही पूंजी की आपूर्ति सुनिश्चित की जाती है। इस प्रकार आर्थिक विकास के साथ साथ ऋण: सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात भी बढ़ता चला जाता है। यहां यह बात भी ध्यान रखने लायक है कि यदि ऋण का उपयोग उत्पादक कार्यों के लिए किया जाता है एवं इस ऋण से यदि पर्याप्त मात्रा में आय अर्जित की जा रही है तो ऋण के उच्च स्तर पर होने के बावजूद भी इसे बुरा नहीं माना जा सकता है क्योंकि कोई भी देश यदि ऋण की राशि से ऋण पर अदा किये जाने वाल ब्याज एवं किश्त की राशि से अधिक आय का अर्जन करने में सक्षम है तो ऋण के किसी भी स्तर को बुरा नहीं माना जा सकता है। परंतु,  यदि ऋण का उपयोग अनुत्पादक कार्यों जैसे नागरिकों को मुफ्त की सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया जाता है तो निश्चित ही इस प्रकार के ऋण पर आय का अर्जन सम्भव नहीं होगा अतः वह देश ऋण के जाल में फंसता चला जाएगा। भारत में केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों द्वारा लिए जा रहे ऋण की राशि का उपयोग उत्पादक कार्यों जैसे आधारभूत ढांचा विकसित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है, इन गतिविधियों से केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के लिए आय के नए स्त्रोत विकसित हो रहे हैं। वर्ष 2023-24 के बजट में केंद्र सरकार ने 10 लाख करोड़ रुपए की राशि को पूंजीगत मद पर व्यय करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसी प्रकार वर्ष 2022-23 में भी 7.50 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर व्यय की गई थी।  भारत आज दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है और भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गई है। वैश्विक स्तर के विभिन्न वित्तीय संस्थानों द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रतिवर्ष 7 प्रतिशत के आसपास विकास करने की भरपूर सम्भावनाएं व्यक्त की जा रही है, यह विकास दर विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वृद्धि दर की तुलना में लगभग दुगुनी है। भारत का लगभग आधा कार्यबल कृषि क्षेत्र में कार्यरत है जिसकी औसत आय तुलनात्मक रूप से कम है और इस कार्यबल की आय में वृद्धि किया जाना आज मुख्य लक्ष्य है। परंतु, सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र में कार्यरत कार्यबल की आय में तुलनतमक रूप से वृद्धि दर काफी अच्छी है जिसके चलते इस वर्ग की आय कर एवं अन्य करों में भागीदारी लगातार बढ़ रही है जिसके कारण केंद्र सरकार की आय में अतुलनीय वृद्धि हो रही है एवं आज केंद्र सरकार के बजट में वित्तीय संतुलन स्थापित होता दिखाई दे रहा है तथा बजटीय घाटा की राशि में भी लगातार कमी आ रही है। बजटीय घाटा के कमी के चलते केंद्र एवं राज्य सरकारों की ऋण की आवश्यकता भी कम हो रही है।  भारत में हाल ही के वर्षों में वित्तीय क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम भी लागू किए गए हैं। वस्तु एवं सेवा कर पद्धति के लागू किए जाने के बाद से तो देश में कर संग्रहण में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। आज केंद्र सरकार द्वारा केवल वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से ही प्रति माह औसतन 1.60 लाख करोड़ रुपए की राशि का कर संग्रहण किया जा रहा है, जो पूरे वर्ष में 20 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को छू सकता है। वहीं दूसरी ओर प्रत्यक्ष कर संग्रहण में भी 25 प्रतिशत के आसपास वृद्धि दर अर्जित की जा रही है। कर क्षेत्र में अनुपालन की स्थिति में लगातार हो रहे सुधार के चलते वित्तीय संतुलन में भी सुधार दिखाई देने लगा है। जिसके चलते आगे आने वाले समय में केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों का बजटीय घाटा और अधिक कम होने लगेगा जिसके कारण इन विभिन्न सरकारों को ऋण लेने की आवश्यकता भी कम होगी।  दूसरे, आगे आने वाले समय में कृषि क्षेत्र पर निर्भर कार्यबल भी सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र की ओर आकर्षित होगा एवं इन क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर प्राप्त करेगा इससे उनकी आय में भी भारी वृद्धि होगी एवं यह वर्ग भी देश के कर संग्रहण में अपना योगदान देना प्रारम्भ करेगा। साथ ही, कृषि क्षेत्र में भी लगातार सुधार कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं, इसके चलते कृषि क्षेत्र में कार्यरत नागरिकों की आय में भी वृद्धि हो रही है एवं उनके जीवन स्तर में लगातार सुधार हो रहा है एवं इस वर्ग की आय भी बढ़ेगी। इस प्रकार, कर अनुपालन के साथ केंद्र एवं राज्य सरकारों की आय में और अधिक वृद्धि दृष्टिगोचर होगी, जिससे इनकी ऋण की आवश्यकता भी और अधिक कम होगी। अतः अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के सम्बंध में व्यक्त की गई चिंता केवल एक संभावनात्मक पहलू की ओर संकेत है यह चिंता वास्तविक धरातल से कहीं दूर दिखाई देती है। 

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आर्थिकी राजनीति

अब भारतीय कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं

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हाल ही के समय में कई भारतीय कम्पनियां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वरूप ग्रहण करती नजर आ रही हैं। कुछ भारतीय कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों में न केवल अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही हैं बल्कि कुछ कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों का अधिग्रहण भी कर रही हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि भारत कई ऐसे देशों, जो आपस में शायद मित्र देश की भूमिका में नहीं हैं इसके बावजूद भारत दोनों देशों, के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को बढ़ाता नजर आ रहा है। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड अरब अमीरात, कतर एवं सऊदी अरब आदि देश मिडल ईस्ट में भारत के महत्वपूर्ण व्यापार भागीदार हैं एवं ये देश भारत में भारी राशि का निवेश कर रहे हैं। सऊदी अरब तो भारत में 10,000 करोड़ अमेरिक डॉलर का निवेश करने जा रहा है। परंतु, हाल ही के कुछ वर्षों में मिडल ईस्ट के कुछ देशों के साथ ही, इजराईल के साथ भी भारत के मिलिटरी, राजनैतिक एवं व्यापारिक सम्बंध प्रगाढ़ हुए हैं। न केवल इजराईल की कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं बल्कि कई भारतीय कम्पनियां भी इजराईली कम्पनियों में निवेश कर रही हैं एवं कुछ कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। इस प्रकार भारत के अरब देशों के साथ साथ इजराईल के साथ भी प्रगाढ़ व्यापारिक रिश्ते कायम हो गए हैं। कई भारतीय कम्पनियां इजराईल के स्टार्ट अप में भारी मात्रा में निवेश करती दिखाई दे रही हैं। चूंकि भारत का सकल घरेलू उत्पाद अब लगभग 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छूने जा रहा है, अतः भारतीय कम्पनियां अब इस स्थिति में पहुंच गई हैं कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तरह अन्य देशों में विभिन्न क्षेत्रों में कम्पनियों का अधिग्रहण कर सकें अथवा इन विदेशी कम्पनियों में अपना पूंजी निवेश बढ़ा सकें। इस दृष्टि से भारत की कुछ बड़ी कम्पनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (मुकेश अम्बानी समूह), इनफोसिस, विप्रो, टाटा समूह, अडानी समूह आदि इजराईल की कम्पनियों का अधिग्रहण करने में सफलता हासिल कर रही हैं। हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, इजराईल में सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण करने वाली एक कम्पनी टावर सेमीकंडक्टर नामक कम्पनी का अधिग्रहण करने का प्रयास कर रही है। सेमीकंडक्टर चिप के उपयोग हेतु भारत में बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध है, इससे इस उत्पाद के लिए अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम होगी। इजराईल की उक्त कम्पनी पूर्व में ही भारी मात्रा में सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण कर रही है। पूर्व में अमेरिकी कम्पनी इंटेल ने उक्त कम्पनी को 540 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदने का प्रयास किया था परंतु इंटेल को इस कार्य में सफलता नहीं मिल सकी थी। परंतु, अब भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज इस कम्पनी को खरीदने का प्रयास कर रही है। टावर सेमीकंडक्टर वर्ष 2009 में केवल 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार करती थी परंतु यह वर्ष 2022 में इस कम्पनी का व्यापार बढ़कर 168 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। अतः यह कम्पनी अत्यधिक तेज गति से प्रगति कर रही है। भारत में दवाईयों का निर्माण करने वाली एक कम्पनी सन फार्मा ने भी इजराईल की टेरो फार्मा नामक एक कम्पनी को अपनी सहायक कम्पनी बना लिया है। इससे भारतीय सन फार्मा कम्पनी का विस्तार इजराईल में भी हुआ है। सन फार्मा को नई तकनीकी को विकसित करने में भी सहायता मिली है। इसी प्रकार, भारतीय कम्पनी अदानी पोर्ट्स एंड लाजिस्टिक्स ने इजराईल के सबसे बड़े हाईफा पोर्ट का विस्तार करने का कार्य हाथ में लिया है। इस विस्तार के कार्य पर 115 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च होगी। वर्ष 2021 में इजराईल के कुल विदेशी व्यापार का लगभग 56 प्रतिशत हिस्सा इसी पोर्ट के माध्यम से हो रहा था। टाटा समूह की टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) नामक सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कम्पनी भी इजराईल में अपने व्यापार का लगातार विस्तार कर रही है। भारत की इनफोसिस कम्पनी ने इजराईल की सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की पनाया नामक कम्पनी का 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर में अधिग्रहण कर लिया है।  भारत का टाटा समूह इजराईल के एयर स्पेस में कार्य कर रही कम्पनियों एवं सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही कम्पनियों में अपना निवेश बढ़ा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में इजराईल की कम्पनियों के साथ मिलकर कार्य किया जा सके। इजराईल के पास सुरक्षा उपकरण बनाने की नवीनतम तकनीक उपलब्ध है। भारत एवं इजराईल अब टैंक्स एवं राडार के निर्माण का कार्य साथ मिलकर करने जा रहे हैं। वैसे भी भारत एवं इजराईल के बीच मिलिटरी सैन्य समझौता पूर्व में ही किया जा चुका है। इसी प्रकार के समझौते, उद्योग के क्षेत्र में रिसर्च, आर्थिक विकास के लिए एक दूसरे के साथ भागीदारी, विशेष रूप से स्वास्थ्य, एयरो स्पेस एवं इलेक्ट्रॉनिक्स  जैसे क्षेत्रों में भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से भी किए जा रहे हैं। आरटीफिशियल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में निजी क्षेत्र द्वारा किए जा रहे निवेश के मामले में अमेरिका, चीन एवं यूनाइटेड किंगडम के बाद इजराईल, पूरे विश्व में, चौथे स्थान पर है। अतः भारत की इजराईल के साथ व्यापार के क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी का लाभ भारत को भी मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।  इजराईल में भारतीय इंजीनीयरों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है। आज इजराईल में सॉफ्टवेयर विकसित करने हेतु 18,000 से अधिक इंजीनियर कार्य कर रहे हैं और यह संख्या अमेरिका में कार्य कर रहे इंजीनियरों की तुलना में बहुत कम जरूर है परंतु अब तेजी से भारतीय इजनीयरों की मांग इजराईल में बढ़ रही है। सुरक्षा के क्षेत्र में भी इजराईल भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार है। भारत इजराईल से हाई क्वालिटी ड्रोन, मिसाईल, एवं अन्य उपकरण आदि खरीदता है। इजराईल-हम्मास युद्ध के बाद से इजराईल में कार्य कर रहे फिलिस्तिनियों को इजराईल से बाहर निकाल दिया गया है। अतः अब इजराईल ने एक लाख भारतीय कामगारों की मांग भारत सरकार से की है। उधर, ताईवान ने भी एक लाख भारतीय कामगारों की मांग की है। अब विभिन्न देशों में भारतीय कामगारों की मांग भी बढ़ती जा रही है।    भारतीय कम्पनियां इसी प्रकार ब्रिटेन की कम्पनियों में भी अपना निवेश बढ़ा रही हैं। टाटा समूह ने ब्रिटेन की कोरस नामक कम्पनी में 217 करोड़ यूरो का पूंजी निवेश किया है। रिलायंस समूह ने बैटरी का निर्माण करने वाली एक फरडीयन नामक कम्पनी में 10 करोड़ यूरो का पूंजी निवेश किया है। टाटा समूह ने टेटली नामक कम्पनी में 4 करोड़ से अधिक यूरो का पूंजी निवेश किया है। टाटा मोटर्स ने जगुआर लैंड रोवर्स नामक कम्पनी का अधिग्रहण कर लिया है एवं टाटा मोटर्स 400 करोड़ यूरो का अतिरिक्त पूंजी निवेश इस कम्पनी में करने जा रही है। इसी प्रकार के पूंजी निवेश करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की विभिन्न भारतीय कम्पनियां जैसे विप्रो एवं इनफोसिस आदि, भी ब्रिटेन की कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। टाटा केमिकल्स लिमिटेड भी कुछ अन्य कम्पनियों में अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही है। यूनाइटेड किंगडम के लिए, भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्त्रोत बन गया है। आज भारत की 954 कम्पनियां यूनाइटेड किंगडम में कार्य कर रही हैं एवं वहां 106,000 नागरिकों को रोजगार प्रदान कर रही हैं। भारतीय कम्पनियों द्वारा इजराईल एवं ब्रिटेन की कम्पनियों के अधिग्रहण एवं इन कम्पनियों में किए जाने वाले पूंजी निवेश से भारतीय कम्पनियों की साख पूरे विश्व में बढ़ रही है एवं अब कुछ भारतीय कम्पनियां भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की श्रेणी में गिनी जाने लगी हैं।     प्रहलाद सबनानी

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