राजनीति भारत के साहसिक कदम से अमेरिका की दादागिरी पर लग सकता है ‘ग्रहण’। August 12, 2025 / August 12, 2025 by संतोष कुमार तिवारी | Leave a Comment संतोष कुमार तिवारी अमेरिका की तरफ से भारत पर टैरिफ लगाने का सिर्फ रूस से तेल खरीदना ही एक कारण नहीं है बल्कि इसके पीछे कई और भी कारण हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगा दिया है, जो 7 अगस्त से प्रभावी है और वहीं इस टैरिफ को बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की चेतावनी दे चुके हैं, जिसके पीछे की वजह भारत द्वारा रूसी तेल खरीदना बताया जा रहा है जबकि भारत का रूस सबसे बड़ा दोस्त है जो हमेशा भारत के साथ बड़े भाई की तरह खड़ा रहता है। इधर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड टंप ने गीदड़भभकी दिखाते हुए भारत के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि जब तक टैरिफ को लेकर मसला नहीं सुलझ जाता है, तब तक कोई बातचीत नहीं होगी जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति को ज्ञात है कि भारत में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री है जो अपने देश के हित के आगे अमेरिका क्या दुनिया की किसी ताकत के साथ नहीं झुक सकते है। ट्रम्प के टैरिफ़ बढ़ाने की गीदड़भभकी के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ-साफ कह दिया कि देश के किसानों, पशुपालकों और मछुवारों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।प्रधानमंत्री का यह बयान अमेरिका को और चुभ गया और ट्रम्प को समझ में आ गया कि भारत को झुकाना अब सरल नहीं है। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद देश के किसान, पशुपालक और मछुवारा व्यवसाय से जुड़े लोग काफ़ी खुश है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों और हिम्मत की सराहना कर रहे है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यह चाहते हैं कि भारत अमेरिकी कृषि उत्पाद और डेयरी प्रोडक्ट्स पर टैरिफ कम करे ताकि भारत जैसे बड़े बाजार में अमेरिका के इन उत्पादों को बेचा जा सके लेकिन भारत इन क्षेत्रों को देश में ज्यादा प्राथमिकता देता है. अगर भारत इन क्षेत्रों को अमेरिका के लिए खोलता है तो भारत के किसानों की आय पर असर होगा जिसे लेकर भारत कभी भी समझौता नहीं करना चाहेगा जबकि अमेरिका कृषि और दुग्ध उत्पादों के लिए शत प्रतिशत टैरिफ़ कम करने की मांग कर रहा है। इसके अलावा अमेरिका यह भी चाहता है कि भारत रूसी तेल का आयात कम करे और अमेरिका से ज्यादा तेल का आयात करे जबकि भारत को अमेरिका की तुलना में सस्ता तेल रूस से मिल रहा है तो अमेरिका से भारत तेल क्यों ख़रीदे। भारत जैसे बड़े बाजार में अमेरिका के मुंह खाने के बाद अमेरिका के दादागिरी पर ग्रहण लगने की आशंका बन रही है क्योंकि अमेरिकी डॉलर दुनिया भर में इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है। वर्ष 1944 से ही अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल सभी देश व्यापार के लिए कर रहे हैं। दुनिया भर के सेंट्रल बैंक अपने यहां डॉलर का रिजर्व रखते हैं। करीब 90 फीसदी विदेशी मुद्रा लेन-देन डॉलर में ही होती है लेकिन ब्रिक्स देशों ने इस पर निर्भरता कम करने के लिए कदम उठाये जिसे लेकर ट्रंप बौखलाए हुए हैं क्योंकि ब्रिक्स संगठन के देश मिलकर वर्ल्ड इकोनॉमी में कुल 35 प्रतिशत का योगदान देते हैं। ऐसे में अगर इन देशों ने अमेरिका और डॉलर का विरोध किया तो अमेरिका के सुपर पॉवर बने रहने का स्थिति छिन सकती है। साथ ही डॉलर वर्ल्ड करेंसी से हट भी सकता है और अमेरिकी दादागिरी में ग्रहण लग सकता है। भारत और रूस के तेल व्यापार की बात की जाये तो भारत रूस से 2022 से तेल का आयात बढ़ाया है। भारत अभी रूस से हर दिन 1.7 से 2.2 मिलियन बैरल तक का रूसी तेल आयात करता है। भारत रूसी तेल का करीब 37 फीसदी हिस्सा आयात कर रहा है। वहीं सबसे ज्यादा चीन रूस से तेल खरीद रहा है। साल 2024 में भारत ने रूस से 4.1 लाख करोड़ रुपये का कच्चा तेल आयात किया है। जो अमेरिका को पच नहीं रहा है और अपनी दादागिरी के दम पर अपने देश के कृषि और दुग्ध उत्पाद को भारत जैसे बड़े बाजार में बिना टैरिफ़ के बेचने के लिए बेताब है और भारत द्वारा अमेरिका की बात न मामने पर 50 प्रतिशत टैरिफ़ बढ़ाने की बात कहीं जा रही है। जबकि अमेरिका के इस फैसले से भारत के विरोध में रहने वाला चीन भी अमेरिका के इस कदम को गलत बताया है। अब अमेरिका के लिए एक चिंता और हो रही है कि भारत,रूस और चीन जैसे महाशक्ति यदि एक हो जाएगी तो अमेरिका की दादागिरी भी खतरे में पड़ सकती है। अमेरिका के इस मनमानी टैरिफ़ पर न चीन बल्कि विश्व के कई देशों ने सही नहीं करार दिया है। भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने का विरोध तो अमेरिका का बहाना है, अमेरिका का मुख्य दर्द भारत जैसे बड़े बाजार में अमेरिका के कृषि और दुग्ध उत्पाद को बेचने का मौका न मिलना प्रमुख है। अमेरिका चाहता है कि उसके कृषि और दुग्ध उत्पाद जैसे दूध, पनीर, घी आदि को भारत में आयात की अनुमति मिले। अमेरिका का तर्क हैं कि उनका दूध स्वच्छ और गुणवत्ता वाला है और भारतीय बाजार में सस्ता भी पड़ सकता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और इस क्षेत्र में करोड़ों छोटे किसान लगे हुए हैं। भारत सरकार को डर है कि अगर अमेरिकी दुग्ध उत्पाद भारत में आएंगे तो वे स्थानीय किसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। भारत में ज्यादातर लोग शुद्ध शाकाहारी दूध उत्पाद चाहते हैं जबकि अमेरिका में कुछ दुग्ध उत्पादों में जानवरों की हड्डियों से बने एंजाइम का इस्तेमाल होता है। इसके साथ ही अमेरिका चाहता है कि गेहूं, चावल, सोयाबीन, मक्का और फलों जैसे सेब, अंगूर आदि को भारत के बाजार में कम टैक्स पर बेचा जा सके और भारत अपनी इम्पोर्ट ड्यूटी को कम करे। इसके अलावा, अमेरिका जैव-प्रौद्योगिकी फसलों को भी भारत में बेचने की कोशिश करता रहा है लेकिन भारत की सरकार और किसान संगठन इसका कड़ा विरोध करते हैं। इसको लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि देश के किसानों, पशुपालकों और मछुवारों के हितों के साथ समझौता नहीं हो सकता है। प्रधानमंत्री के इस बयान से अमेरिका समेत पूरे विश्व ने भारत के रुख को समझ लिया और सभी ने मान लिया कि भारत अमेरिका के आगे झुकने वाला देश नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रहित सर्वोपरि है, इसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े उसके लिए वह तैयार रहते है। इसलिए इस समय पुरे देश के पक्ष और विपक्ष दलों के नेताओं, किसानों, पत्रकारों, बुद्धजीवियों और आम लोगो को अमेरिका के इस कड़े कदम का विरोध करते हुए सरकार के साथ खड़े होने की जरूरत है। संतोष कुमार तिवारी Read more » अमेरिका की दादागिरी
राजनीति आज़ादी के 78 साल का हासिल: थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है August 12, 2025 / August 12, 2025 by राजेश जैन | Leave a Comment राजेश जैन 15 अगस्त 1947 को जब देश ने आज़ादी की सांस ली तो करोड़ों लोगों की आंखों में ऐसे देश का सपना था जो अपने पैरों पर खड़ा हो, जहां वैज्ञानिक सोच और सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिले, हर इंसान को बराबरी का दर्जा और हर गांव-गली को शिक्षा की रौशनी हासिल हो । […] Read more » आज़ादी के 78 साल
राजनीति शिक्षा-चिकित्सा को मुनाफाखोरी से बचाने का भागवत-आह्वान August 12, 2025 / August 12, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इंदौर के एक किफायती कैंसर अस्पताल के उद्घाटन अवसर पर जो बात कही, वह आज की सबसे बड़ी सामाजिक-आर्थिक और नैतिक आवश्यकता को उजागर करती है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शिक्षा और चिकित्सा जैसे बुनियादी क्षेत्रों को मुनाफाखोरी से मुक्त होना […] Read more » Bhagwat's call to save education and medical treatment from profiteering
राजनीति वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बढ़ता अमेरिकी आतंक और भारत August 11, 2025 / August 11, 2025 by प्रो. महेश चंद गुप्ता | Leave a Comment प्रो. महेश चंद गुप्ता दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के कारण अमेरिका लंबे समय से वैश्विक आर्थिक नीतियों पर दबदबा बनाए हुए है। यह दबदबा अब खुलेआम दादागिरी का रूप ले चुका है, खासकर जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मनमाने टैरिफ लगाकर देशों को आर्थिक रूप से झुकाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ की घोषणा ने इस दादागिरी को और स्पष्ट कर दिया है, यानी कुल मिलाकर 50 फीसदी का टैरिफ — यह न सिर्फ व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार संतुलन पर भी असर डालेगा। ट्रंप को भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर आपत्ति है जबकि विडंबनायह है कि चीन भी यही कर रहा है और अमेरिका स्वयं रूस से यूरेनियम और खाद खरीद रहा है, यानी सिद्धांत और व्यवहार में अमेरिकी नीति दोहरे मानदंडों से भरी है। सवाल यह है कि भारत क्यों अपने हितों को ताक पर रखकर अमेरिकी दबाव में काम करे? कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत पर टैरिफ बढ़ोतरी के एलान के बाद पहली बार एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रतिक्रिया ने भारत के अडिग रुख को और मजबूती से सामने रखा है। उससे भारत का अडिग रवैया परिलक्षित हो रहा है। मोदी ने साफ कह दिया है कि हमारे लिए, हमारे किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है, चाहे उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। भारत किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा। यह वक्तव्य बताता है कि भारत अब वैश्विक दबावों के आगे नतमस्तक नहीं होगा। यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (यूएसटीआर) के आंकड़ों के अनुसार भारत-अमेरिका के बीच वार्षिक व्यापार 11 लाख करोड़ रुपये का है। भारत अमेरिका को 7.35 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करता है जिसमें दवाइयाँ, दूरसंचार उपकरण, जेम्स-एंड- ज्वेलरी, पेट्रोलियम, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग उत्पाद और वस्त्र शामिल हैं। वहीं, अमेरिका से भारत 3.46 लाख करोड़ रुपये का आयात करता है जिसमें कच्चा तेल, कोयला, हीरे, विमान व अंतरिक्ष यानों के पुर्जे शामिल हैं। लेकिन यहां चिंता की बात यह है कि चीन, वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देशों पर अमेरिका ने इतना भारी शुल्क नहीं लगाया है, जिससे उनके उत्पाद भारतीय उत्पादों की तुलना में अमेरिकी बाजार में सस्ते पड़ेंगे। फिर भी, मोदी सरकार का रवैया दृढ़ है। साठ के दशक में हम गेहूं, दूध के लिए भी अमरीका पर निर्भर थे लेकिन लगता है ट्रंप ने उन दिनों लिखी गई कोई किताब ताजा मानकर पढ़ ली है। उन्हें आज भी पुराना भारत दिख रहा है जिसे वह झुकाने की सोच रहे हैं। उन्हें यह समझ में आ जाना चाहिए कि अब भारत पहले वाला भारत नहीं रहा है। वह आत्मनिर्भर एवं विश्व में तेजी से बढ़ती हुई अर्थ व्यवस्था है। भारत का पूरे विश्व में दबदबा बढ़ रहा है। उद्योग जगत भी इस दबाव को एक अवसर के रूप में देख रहा है। उद्योगपति हर्ष गोयनका का कहना है कि अमेरिका निर्यात पर टैरिफ लगा सकता है लेकिन हमारी संप्रभुता पर नहीं। आनंद महिंद्रा ने तो यह भी कहा कि जैसे 1991 के विदेशी मुद्रा संकट ने उदारीकरण की राह खोली थी, वैसे ही यह टैरिफ संकट भी हमें आत्मनिर्भरता की दिशा में गति दे सकता है। ललित मोदी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ट्रंप को 2023 की उस रिपोर्ट की याद दिलाई है जो अमेरिका की कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने ही जारी की थी। गौरतलब है कि गोल्डमैन सैक्स ने इस रिपोर्ट में कहा […] Read more » Growing American terror on global economy and India अमेरिकी आतंक और भारत
राजनीति भारत अमेरिका टैरिफ वार August 11, 2025 / August 11, 2025 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानन्द मिश्रा कहते हैं बाज़ जब शिकार करता है तो सबसे पहले ऊँचाई पर चढ़ता है, फिर बिना आहट के झपट्टा मारता है। आज भारत ठीक उसी मोड़ पर खड़ा है। अमेरिका ने भारत से होने वाले आयात पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री जी को तुरंत बात करनी चाहिए, अमेरिका से दो टूक कह देना चाहिए कि ये हमें मंज़ूर नहीं पर समझदारी इसी में है कि इस वक्त हम चुप रहें लेकिन हाथ पर हाथ धर कर नहीं बल्कि मन ही मन तैयारी करते हुए। कोरोना जैसे संकट ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया लेकिन भारत उस समय भी घबराया नहीं। जहाँ एक ओर अमेरिका में लोग सड़कों पर ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे थे, वहीं भारत गाँव की पगडंडियों से लेकर महानगरों की गलियों तक जीवन के लिए लड़ रहा था और लड़ कर जीता भी। हमने टीके बनाए, दवाइयाँ बाँटी, यहाँ तक कि दूसरों की मदद भी की। अब जब अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाए हैं तो क्या हमें नहीं घबराना चाहिए क्योंकि यह पहला और आखिरी झटका नहीं है। हो सकता है कल ये टैरिफ 150% तक बढ़ जाएँ। हमने सीखा है रोटी तब पकती है जब आँच तेज़ हो। भारत को अब मुँह से नहीं, हाथों से जवाब देना है। जो चीज़ें बाहर से आती हैं, उन्हें यहीं बनाना सीखना चाहिए। देश के गाँव-गाँव में हुनर बिखरा पड़ा है। बस उसे दिशा देने की ज़रूरत है। आज भी लोहार की भट्टी में वह आग है जो मशीन को टक्कर दे सकती है, अगर उसे अवसर मिले। अगर अमेरिका अपना दरवाज़ा बंद करता है तो अफ्रीका, रूस, दक्षिण एशिया और अरब देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते मज़बूत करना चाहिए। बाजार एक नहीं,कई होते हैं पर आँख सिर्फ उसी पर टिकती है जहाँ आदत पड़ जाए। जनता को जागरूक बनना होगा। हम हर विदेशी चीज़ के पीछे दौड़ने वाले लोग नहीं रहे। अब हम समझ चुके हैं कि ‘मेड इन इंडिया’ सिर्फ शब्द नहीं, एक ज़रूरत है, आत्मसम्मान की ज़रूरत। सरकार को चाहिए कि वह छोटे कारीगरों को, खेत के किसानों को और छोटे उद्यमियों को ऐसी छत दे जहां वो धूप-बारिश में भी कुछ बना सकें जो बाहर भेजा जा सके। सबसे बड़ा संकट बाहर से नहीं, भीतर से आता है। जब घर की दीवारें खुद कमजोर हो जाएँ तो बाहर की आंधी क्या कर लेगी लेकिन जब भीतर ही दरारें हों, एकता की नींव हिलने लगे, तब सबसे बड़ा डर वहीं से होता है। आज देश के भीतर कुछ ऐसे स्वर सुनाई देते हैं जो विदेशी ताक़तों को न्योता देते हैं। जब एक घर का बेटा ही पड़ोसी से कहे कि ‘आओ,हमारे घर में आग लगाओ’ तो किसे दोष दिया जाए? हमें सतर्क रहना है लेकिन उत्तेजित नहीं। हमें जागरूक रहना है लेकिन आक्रामक नहीं। क्योंकि राष्ट्र की रक्षा सिर्फ सरहद पर नहीं होती। गाँव के किसान,शहर के मजदूर,और पढ़ने वाले छात्र के भीतर भी होती है। इस समय प्रधानमंत्री जी को कोई जवाब नहीं देना चाहिए बल्कि उन्हें वही करना चाहिए जो एक धैर्यवान पिता करता है जब कोई पड़ोसी ऊँची आवाज़ में बोलता है. वह अपना काम दोगुनी मेहनत से करता है ताकि उसका घर पहले से मज़बूत हो जाए। बात तब होनी चाहिए जब बोलने का मतलब हो और आज नहीं तो कल वह दिन आएगा। जब भारत बोलेगा भी और दुनिया सुनेगी भी। देश की रक्षा बंदूक से ही नहीं, चरित्र से भी होती है। नारे से नहीं, निर्माण से होती है और सबसे बढ़कर आत्मनिर्भरता से होती है। आज भारत को सिर झुकाकर बात नहीं करनी है लेकिन सिर उठाकर चलने की तैयारी ज़रूर करनी है। शिवानन्द मिश्रा Read more » भारत अमेरिका टैरिफ वार
राजनीति क्या राहुल गांधी एक जिम्मेदार राजनीतिज्ञ हैं ? August 11, 2025 / August 11, 2025 by वीरेन्द्र परमार | Leave a Comment वीरेन्द्र सिंह परिहार क्या राहुल गांधी एक गैर जिम्मेदार राजनीतिज्ञ हैं। अब जब 2022 की राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी की इस बात पर कि चीन ने भारत की 2000 कि.मी. जमीन कब्जा ली, सर्वोच्च न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुये कहा कि इस बात का क्या सबूत है। अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो ऐसी बाते नहीं कर सकते। इस तरह से अनेको बातें है जिससे यह पता चलता है, कि उनका रवैया सदैव ही एक गैर जिम्मेदाराना राजनीतिज्ञ का रहा है। वह चाहे राफेल का मामला हो, चाहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वीर सावरकर या पैगोसेस का मामला हो, सभी मामलों में वह झूठे और गलत साबित हुये हैं। अब प्रियंका वाड्रा भले ही यह कहे कि यह जज तय नहीं कर सकते कि सच्चा भारतीय कौन है ? पर लाख टके की बात यह कि यदि देशका सर्वोच्च न्यायालय यह तय नहीं करेगा तो कौन करेगा ? क्या यह एक खानदान विशेष करेगा ? इसी तरह से आये दिन राहुल गांधी चुनाव आयोग पर बेसिर-पैर के हमले करते रहते हैं, उस पर वोट चोरी करने और देख लेने की धमकी देते हैं। उस पर जब कर्नाटक चुनाव आयोग ने राहुल से शपथ-पत्र माँग लिया तो साय-पटाय बकने लगे कि वह नेता है और जो सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं, वही शपथ-पत्र है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प जब अपने निहित स्वार्थों के चलते भारत की अर्थव्यवस्था को डेड/मृत बताते हैं, तो लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी उस पर पूरी तरह सहमति व्यक्त करते हैं। परीक्षण करने का विषय है कि क्या इसमें कुछ सच्चाई है। अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट यह कहती है कि भारत की अर्थव्यवस्था राकेट बनी हुई है। वर्तमान में भारत की विकास दर जहाँ 6.4 प्रतिशत है वहीं चीन की 4.8 प्रतिशत, अमेरिका 1.9 प्रतिशत, यू.के. की 1.2 प्रतिशत, जर्मनी 0.1 प्रतिशत, जापान 0.7 प्रतिशत फ्रांस 0.6 प्रतिशत विकास दर है। कुल मिलाकर भारत विश्व की सबसे ज्यादा बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। वर्ष 2015 में भारत की अर्थव्यवस्था जहाँ 2.1 ट्रिलियन डालर की थीं, वहीं 2025 में दुगुने से ज्यादा 4.3 ट्रिलियन डालर की हो चुकी है। विनिर्माण क्षेत्र में भारत की स्थिति जहाँ 57.4 प्रतिशत की है, चीन जहाँ 50.4 प्रतिशत है, वहीं अमेरिका 40.1 प्रतिशत में ही अटका हुआ है। कहने का आशय यह कि दुनिया की नम्बर 1 और नम्बर 2 दोनो ही अर्थव्यवस्थाओं से भारत विनिर्माण क्षेत्र में आगे है। आज दुनिया का प्रत्येक देश भारत से ज्यादा से ज्यादा व्यापार करने के तत्पर है। 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ पर देश का शेयर मार्केट धड़ाम हो जाना चाहिए था पर इसका बहुत हल्का असर हुआ। यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक यूपीए शासन के दौर में महगाई की दर 8.2 प्रतिशत वार्षिक थी जबकि मोदी शासन में यह 5.5 से ऊपर कभी नहीं गई। यूपीए शासन में एफडीआई के माध्यम से जहाँ मात्र 305 करोड़ रूपये आये, वहीं मोदी शासन में 595 करोड़ रूपये का निवेश हुआ। जी.एस.टी. का कलेक्शन जुलाई 2025 में 1.96 लाख करोड़ रूपये है जो पिछले वर्ष से 7.5 प्रतिशत ज्यादा है। ऐसी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था को डेड कहना एक सफेदपोश झूठ और ट्रम्प का फ्रस्टेशन ही कहा जा सकता है। यद्यपि इस मामले में राहुल के रवैये को लेकर उनकी ही पार्टी के नेताओं जैसे राजीव शुक्ला एवं शशि थरूर ने ही असहमति जताते हुये राहुल गांधी को आईना दिखाया। राजीव शुक्ला ने कहा कि हमारी इकोनामी बहुत मजबूत है तो शिवसेना उद्धव गुट की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी इस मामले में अपनी असहमति जताई। इसी अर्थव्यवस्था के तहत राहुल गांधी ने म्यूचल फंड एवं शेयर मार्केट के माध्यम से स्वतः भारी कमाई की है। 2014 के बाद जहाँ म्यूचल फंड से वह 3.8 करोड़ और शेयर मार्केट से 4.87 करोड़ अर्जित कर चुके हैं। वर्ष 2014 में राहुल गांधी ने शेयर मार्केट में 83 लाख रूपये का निवेश किया जो 2019 में 5 करोड़ और 2024 में 8 करोड़ रूपये हो गया। राहुल गांधी ने पिछले 5 महीनें में 66 लाख 49 हजार का मुनाफा कमाया। यही स्थिति उनकी माँ सोनिया गांधी और बहन प्रियंका वाड्रा की भी है। बड़ी सच्चाई यह कि ट्रम्प ने 2014 के पश्चात भारत में स्वतः निवेश किया है। ट्रम्प स्वतः कह चुके हैं कि निवेश की दृष्टि से भारत अच्छी जगह है। ट्रम्प टावर्स के कार्य मुम्बई, पुणे, गुरूग्राम जैसे शहरों में तेजी से फैले हैं तो नोयडा, हैदराबाद, बेंगलुरू जैसी जगहों में 15000 करोड़ के निवेश ट्रम्प रियल स्टेट में कर चुके हैं। वर्तमान में भारत में ट्रम्प का कारोबार 29 लाख करोड़ रूपये का है। ट्रम्प के बेटे स्वतः भारत आकर कई परियोजनाओं की शुरूआत करने वाले हैं। बड़ा सवाल फिर यही कि यदि भारत डेड इकोनामी है तो फिर ट्रम्प की कम्पनियाँ भारत में इतना निवेश क्यों कर रही हैं ? यदि ट्रम्प भारत को रूस से तेल और हथियार खरीदने को लेकर नहीं झुका पा रहे हैं। भारत के कृषि बाजार, पशुपालन और डेयरी को अमेरिका के लिये नहीं खुलवा पा रहे हैं तो ट्रम्प का भारत के विरोध में खड़ा होना तो समझ में आता है पर यदि राहुल गांधी ऐसे भारत विरोधियों के साथ खड़े हो जाते हैं तो यह समझ के परे है। सिर्फ इतना ही नहीं, वह जब पाकिस्तान के इस दावे कि आपरेशन सिन्दूर के दौरान उसने भारत के पाँच लड़ाकू विमान गिरा दिये, उस पर सुर-से-सुर मिलाते हुये सरकार से पूछते हैं कि बताओं हमारे कितने जहाज गिरे तो यह सब एक तरफ जहाँ राष्ट्र-बोध का अभाव है, वहीं किसी भी कीमत पर पागलपन की हद तक सत्ता पाने की छटपटाहट भी है। जैसा कि शशि थरूर ने कहा, भारत मात्र निर्यात पर निर्भर नहीं, वह एक मजबूत और विशाल बाजार है। बड़ी बात यह कि अमेरिकी धमकी के बाद भारतीय व्यापारियों के संगठन कैट ने ‘भारतीय सम्मान हमार स्वाभिमान’ का अभियान चलाते हुये स्वदेशी वस्तुओं की ही खरीदी और बिक्री पर जोर दिया है। उपरोक्त आधारों पर यह कहा जा सकता है कि राहुल सिर्फ एक गैर जिम्मेदार राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि भारत-विरोधी मानसिकता के नागरिक भी हैं। Read more » राहुल गांधी
राजनीति दिल्ली में लैंडफिल गैसें बन रही हैं मुसीबत August 11, 2025 / August 11, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गव दिल्ली की आबोहवा खराब करने में कचरों के ऐसे ठिकाने खतरनाक साबित हो रहे हैं, जिनसे लैंडफिल गैसें हवा और जल स्रोतों को एक साथ प्रदूषित करते हैं। दिल्ली समेत समूचे राजनीति क्षेत्र में अनेक लैंडफिल ठिकाने हैं। इसलिए इस पूरे क्षेत्र में कचरे के इन ढेरों से फूटती लैंडफिल नामक षैतानी गैसों से एक बड़ी आबादी […] Read more » Landfill gases are becoming a problem in Delhi लैंडफिल गैसें
राजनीति कांग्रेस का ‘भगवा आतंकवाद’ और न्यायालय का निर्णय August 8, 2025 / August 8, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राष्ट्रीय जांच एजेंसी की एक विशेष अदालत ने मालेगांव बम विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। न्यायालय के इस आदेश के आने के बाद कांग्रेस और उसके नेताओं के द्वारा फैलाए गए इस भ्रम की भी पोल खुल गई है कि देश में कोई “भगवा आतंकवाद” नाम की चिड़िया भी […] Read more » Congress's 'saffron terrorism' and the court's decision कांग्रेस का 'भगवा आतंकवाद'
राजनीति राहुल के आरोपों पर सर्वोच्च सवाल? August 8, 2025 / August 8, 2025 by विजय सहगल | Leave a Comment विजय सहगल संसद मे विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक बार फिर विवादों के घेरे मे हैं। 4 अगस्त 2025 को देश की सर्वोच्च नयायालय की पीठ ने राहुल गांधी को भारतीय सेना पर अपमान जनक टिप्पणी और चीन द्वारा भारत की भूमि पर कब्जे के उनके गैरजिम्मेदाराना बयान के लिये जहां एक तरफ लताड़ लगाई, वही दूसरी […] Read more » Supreme question on Rahul's allegations? राहुल के आरोपों पर सर्वोच्च सवाल
राजनीति अमेरिकी दादागिरी पर मोदी की ललकार August 8, 2025 / August 8, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – देश के अग्रणी कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि-क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए ललकारभरे शब्दों में अमेरिकी टैरिफ पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगा, भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत का […] Read more » Modi's challenge to American bullying मोदी की ललकार
राजनीति स्वास्थ्य-योग राष्ट्रीय समस्या बनती कुत्ता काटने की खूनी घटनाएं? August 8, 2025 / August 8, 2025 by रमेश ठाकुर | Leave a Comment डॉ. रमेश ठाकुर पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठतम नेता विजय गोयल ने कटखने कुत्तों से उत्पन्न हुई समस्याओं पर अंकुश लगवाने के लिए न सिर्फ अभियान छेड़ा हुआ है, बल्कि कुछ महीने पहले जंतर-मंतर पर धरना भी दिया था। आवारा और कटखने कुत्तों का आतंक पिछले कुछ समय से समूचे देश में तेजी […] Read more » Bloody incidents of dog bites becoming a national problem? कुत्ता काटने की खूनी घटना
राजनीति भारत डेड नहीं, एक जीवंत और सनातन अर्थव्यवस्था August 8, 2025 / August 8, 2025 by पंकज जायसवाल | Leave a Comment पंकज जायसवाल भारत केवल एक भूगोल नहीं बल्कि एक निरंतर सभ्यता है। इस सभ्यता का मूल चरित्र सनातन है जिसका अर्थ है सस्टेनेबल, शाश्वत, स्थायी, निरंतर और अनश्वर। यही विशेषता भारत की अर्थव्यवस्था में भी परिलक्षित होती है। भारत की अर्थव्यवस्था हमेशा से जीवंत (Vibrant) और रेजिलिएंट रही है क्योंकि इसकी जड़ें प्रकृति, सामाजिक संरचना […] Read more » India is not dead it is a vibrant and eternal economy भारत जीवंत और सनातन अर्थव्यवस्था