राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार संघ साधना के तपोनिष्ठ ऋषिवर : श्री गुरुजी February 19, 2025 / February 24, 2025 by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल | Leave a Comment ~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल आक्रमणों और वर्षों की परतन्त्रता के कारण कमजोर और दैन्य हो चुके हिन्दू समाज को संगठित करने के ध्येय से डॉ.हेडगेवार ने २७ सितम्बर सन् १९२५ विजयादशमी के दिन शक्ति की पूर्णता को मानकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन किया। जो हिन्दू समाज को सशक्त और सामर्थ्यवान बनाने तथा राष्ट्रीयता के प्रखर […] Read more »
राजनीति आतंकवादी का भी कोई धर्म होता है February 18, 2025 / February 18, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment यदि हम इस समय भारत सहित वैश्विक परिदृश्य पर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि सारा संसार इस समय एक अघोषित युद्ध की विभीषिका में झुलस रहा है । आतंकवाद के नाम पर एक वर्ग के लोग निर्दोष लोगों का खून बहाना और अपना मजहबी विस्तार करना अपनी विरासत का एक अनिवार्य अंग मानते […] Read more » Terrorists also have a religion आतंकवादी का धर्म आतंकवादी का भी कोई धर्म होता है
आर्थिकी राजनीति आयकर कानून के सरल होने से विवाद घटेंगे February 17, 2025 / February 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में गुरुवार को 64 साल पुराने आयकर कानून-1961 के सरलीकरण और इसमें चले आ रहे बेवजह के प्रविधानों को समाप्त करने के उद्देश्य से नया इनकम टैक्स बिल-2025 पेश कर दिया। 622 पन्नों के इस विधेयक में 536 धाराएं शामिल हैं। जबकि आयकर कानून-1961 में 1647 पन्ने और […] Read more » Simplification of income tax law will reduce disputes. आयकर कानून के सरल होने से विवाद घटेंगे
राजनीति भारत-अमेरिका मैत्री से विकास के नये रास्ते खुलेंगे February 17, 2025 / February 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल में सम्पन्न हुई अमेरिका की दो दिवसीय यात्रा अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक, अविस्मरणीय एवं मील का पत्थर बनकर प्रस्तुत हुई है। यह निश्चित है कि मोदी के नेतृत्व में एक नई सभ्यता और एक नई संस्कृति गढ़ी जा रही है। व्हाइट हाउस में संपन्न प्रधानमंत्री मोदी और […] Read more » India-America friendship will open new avenues of development भारत-अमेरिका मैत्री
राजनीति केजरीवाल की हठधर्मिता ने डुबोई ‘आप ‘ की नैय्या February 17, 2025 / February 17, 2025 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़री दिल्ली की 70 सदस्यों की विधान सभा हेतु हुए 2015 के चुनाव में 70 में से 67 सीटें तथा 2019 में दिल्ली की सातवीं विधानसभा चुनाव में 62 सीटें जीतकर ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त करने वाली आम आदमी पार्टी पिछले दिनों दिल्ली चुनाव की जंग हार गयी। भारतीय जनता पार्टी को जहां पूर्ण बहुमत के साथ […] Read more » Kejriwal's stubbornness sank AAP's boat.
राजनीति गंगा मुक्ति आंदोलन के 42 साल और चुनौतियां February 17, 2025 / February 17, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment कुमार कृष्णन 22 फरवरी 2025 को कहलगांव में गंगा मुक्ति आंदोलन की वर्षगांठ मनाई जा रही है। सन 1982 में गंगा मुक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई थी।आज से 43 साल पहले शुरू हुए इस आंदोलन की निरंतरता आज भी कायम है। गंगा की जमींदारी के खिलाफ शुरू हुआ यह आन्दोलन 1987-88 आते आते बिहार के सम्पूर्ण गंगा क्षेत्र में फैल गया था और इसमें लाखों लोग शामिल हो गए थे। जब कुर्सेला से पटना तक(लगभग 500 किलोमीटर)नौका जुलूस निकाला गया तो गंगा तट के गांव गांव में स्त्री पुरुषों की भागीदारी और उनका उत्साह देखने लायक था। इस नौका जुलूस के बाद जब बिहार के सम्पूर्ण गंगा क्षेत्र में जलकर(मछली पकड़ने के एवज में दिया जानेवाला टैक्स) बंद कर दिया गया तो पानी के ठेकेदारों ने अनेक प्रकार के जुल्म ढाए थे लेकिन अन्ततः 1990 के जनवरी में सरकार को बाध्य होकर गंगा समेत बिहार की सभी नदियों की बहती धारा में परम्परागत मछुओं के लिए मछली पकड़ना करमुक्त कर दिया था। 1993 के पहले गंगा में जमींदारों की पानीदार थे, जो गंगा के मालिक बने हुए थे। सुल्तानगंज से लेकर पीरपैंती तक 80 किलोमीटर के क्षेत्र में जलकर जमींदारी थी। यह जमींदारी मुगलकाल से चली आ रही थी। सुल्तानगंज से बरारी के बीच जलकर गंगा पथ की जमींदारी महाशय घोष की थी। बरारी से लेकी पीरपैंती तक मकससपुर की आधी-आधी जमींदारी क्रमशः मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल के मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक और महाराज घोष की थी। हैरत की बात तो यह थी कि जमींदारी किसी आदमी के नाम पर नहीं बल्कि देवी-देवताओं के नाम पर थी। ये देवता थे श्री श्री भैरवनाथ जी, श्री श्री ठाकुर वासुदेव राय, श्री शिवजी एवं अन्य। कागजी तौर जमींदार की हैसियत केवल सेवायत की रही है।सन 1908 के आसपास दियारे के जमीन का काफी उलट-फेर हुआ। जमींदारों के जमीन पर आये लोगों द्वारा कब्जा किया गया।किसानों में आक्रोश फैला। संघर्ष की चेतना पूरे इलाके में फैली; जलकर जमींदार इस जागृति से भयभीत हो गये और 1930 के आसपास ट्रस्ट बनाकर देवी -देवताओं के नाम कर दिया।जलकर जमींदारी खत्म करने के लिए 1961 में एक कोशिश की गयी; भागलपुर के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर ने इस जमींदारी को खत्म कर मछली बंदोबस्ती की जवाबदेही सरकार पर डाल दी। मई 1961 में जमींदारों ने उच्च न्यायालय में इस कार्रवाई के खिलाफ अपील की और अगस्त 1961 में जमींदारों को स्टे ऑडर मिल गया।1964 में उच्च न्यायालय ने जमींदारों के पक्ष में फैसला सुनाया तथा तर्क दिया कि जलकर की जमींदारी यानी फिशरीज राइट मुगल बादशाह ने दी थी और जल-कर के अधिकार का प्रश्न जमीन के प्रश्न से अलग है क्योंकि जमीन की तरह यह अचल संपत्ति नहीं है। इस कारण यह बिहार भूमि सुधार कानून के अंतर्गत नहीं आता है। बिहार सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की और सिर्फ एक व्यक्ति मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक को पार्टी बनाया गया जबकि बड़े जमींदार मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक को छोड़ दिया गया। गंगा मुक्ति आंदोलन के अनिल प्रकाश के अनुसार आरंभ में जमींदारों ने इसे मजाक समझा और आंदोलन को कुचलने के लिए कई हथकंडे अपनाये। लेकिन आंदोलनकारी अपने संकल्प ‘‘हमला चाहे कैसा भी हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा’’ पर अडिग रहे और निरंतर आगे रहे। निरंतर संघर्ष का नतीजा यह हुआ 1988 में बिहार विधानसभा में मछुआरों के हितों की रक्षा के लिए जल संसाधनों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का एक प्रस्ताव लाया गया। कहलगांव के पत्रकार प्रदीप विद्रोही के अनुसार, मछुआ समाज की इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका रही है और आज भी बनी हुई है।इसके साथ ही किसानों, मजदूरों, झुग्गीवासीयों, बुनकरों, बुद्धिजीवियों,कलाकारों,कलाकारों,कवियों, साहित्यकारों और वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भागीदारी ने इस आंदोलन को सशक्त और व्यापक बनाया था। आंदोलन से जुड़े उदय बताते हैं कि ‘जातिप्रथा के जहर के खिलाफ चेतना जाग्रत करना हमारे आंदोलन का अभिन्न हिस्सा रहा है।1983 में आयोजित एकलव्य मेला से इस आंदोलन शुरुआत की गई थी। 1984 में इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के खिलाफ जब सिख विरोधी उत्पात शुरू हुआ था तो साथियों ने आगे बढ़कर उसे रोका था।भागलपुर और पटना में साम्प्रदायिक दंगे और तनाव हुए थे तो गंगा मुक्ति आंदोलन के लोगों ने जान पर खेलकर उसे रोकने की कोशिश की थी।यह सब गंगा मुक्ति आंदोलन की व्यापक वैचारिक दृष्टि के कारण ही सम्भव था।’ अनिल प्रकाश के अनुसार -जब गंगामुक्ति आंदोलन ने फरक्का बराज को विनाशकारी बताया था तो बहुतों ने खिल्ली उड़ाई थी।जब कहलगांव सुपर थर्मल पावर स्टेशन का गंगा मुक्ति आंदोलन ने विरोध किया था तो हमे आंदोलन विकास विरोधी बताया गया था।जब हमसब ने रासायनिक खादों और जहरीले रासायनिक कीटनाशकों पर रोक लगाने की मांग की थी तब भी हमारा मजाक उड़ाया गया था।सुन्दर लाल बहुगुणा और उनके साथी टिहरी बांध के निर्माण का विरोध कर रहे थे तो गंगा मुक्ति आंदोलन भी उनके साथ था। आज साबित हो रहा है कि हम सही रास्ते पर थे और दूसरों से आगे देख रहे थे।आज नदियां और ज्यादा जहरीली हो गई हैं,हमारे खेत जहरीले हो रहे हैं,उसमें उगनेवाले अनाज,फल और सब्जियां जहरीली हो रही हैं,हमारी मछलियां भी जहरीली होती जा रही हैं।यहां तक कि सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा भी शहरों में नहीं मिलती। आंदोलन 1980 के दशक की शुरुआत से ही चीख चीखकर कह रहे थे।मनुष्य और प्रकृति के मधुर सम्बन्धों की बुनियाद पर समता मूलक लोकतांत्रिक समाज बनना हमारा लक्ष्य है।हमसब इस दिशा में निरन्तर प्रयत्नशील रहे हैं और आगे भी रहेंगे।आंदोलन के वैज्ञानिक सलाहकार डॉक्टर के एस बिलग्रामी ने ठीक ही कहा था कि इकोलॉजी और इकॉनोमिक्स के बीच संतुलन बिठाकर चलना पड़ेगा। फरक्का बराज के कारण हमारी मछलियां समाप्त प्राय: हो गईं,लाखों लोगों की रोजी रोटी छीन गई और सामान्य जन के लिए सुलभ पौष्टिक भोजन(प्रोटीन,विटामिन)की कमी हो गई। मछुआरों का कहना है कि पहले गंगा में तमाम किस्म की मछलियां मिलती थीं, जैसे हिलसा, झींगा, पंगास, सौकची, कुर्सा, कठिया, गुल्ला, महसीर, कतला, रेहू, सिंघा, जो अब मुश्किल से ही दिखती हैं। हिलसा तो फरक्का के ऊपर लगभग लुप्त हो गई है। यह मछली प्रजनन के लिए समुद्र से नदी के मीठे पानी में जाती है। फरक्का ने हिलसा का रास्ता रोक दिया है। मछलियों के लुप्त होने के लिए यहां के निवासी बैराज के अलावा नदी किनारे बने ईंट के भट्टे, रेत खनन, प्रदूषण, गलत तरीके से मछली पकड़ने और विदेशी मछलियों को भी जिम्मेदार मानते हैं।गंगा और इसकी सहायक नदियों में मिट्टी बालू भर गया और बाढ़ तथा जल जमाव की समस्या बढ़ती चली गई। जलकर जमींदारी के खत्म होने बाद भागलपुर के गंगा नदी में सुल्तानगंज के जहांगीरा ( घोरघट पुल ) से पीरपैंती के हजरत पीरशाह कमाल दरगाह तक बिहार सरकार के पशुपालन एवं मत्स्य विभाग ने अपने ज्ञापांक 2294 /मत्स्य / पटना दिनांक 11 दिसंबर 1991 द्वारा पारंपरिक मछुओं हेतु शिकारमाही के लिए निःशुल्क घोषित किया है। निःशुल्क शिकारमाही की घोषणा के पूर्व ही पर्यावरण विभाग बिहार पटना द्वारा 22 अगस्त 1990 को सुल्तानगंज से कहलगांव तक विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन आश्रयणी क्षेत्र घोषित किया जा चुका था।सरकार ने निःशुल्क शिकारमाही के अधिकार को किसी भी आदेश से निरस्त नहीं किया है । वन विभाग मौखिक रूप से जबरन कहता है कि उपरोक्त क्षेत्र में मछली पकड़ना मना है ।मछली पकड़ने से रोकने के लिए तरह तरह का बेबुनियाद , झूठ और मनगढ़ंत आरोप मछुओं पर लगाया जाता है हकीकत ये है कि गैर मछुओं और सोसाइटी द्वारा गंगा में अवैध जाल चलाया जाता है और जिंदा धार में बाड़ी बांधा जाता है उसे वन विभाग कुछ नहीं कहता है। सवालिया लहजा में लोगों का कहना है कि वन विभाग नगर निगम / नगर परिषद / नगर पंचायत और एनटीपीसी पर गंगा को प्रदूषित कर डॉल्फिन मारने पर कोई कारवाई या मुकदमा क्यों नहीं करती? वन विभाग डॉल्फिन पर नगर निगम के कचरे और एनटीपीसी के कचरे से होने वाले नुकसान पर मुंह क्यों खोलता ? वन विभाग उम्र पूरा होने या प्रदूषण से मरने वाले सोंस की संख्या सार्वजनिक क्यों नहीं करता ? मत्स्य विभाग मछुओं को निःशुल्क शिकारमाही का परिचय पत्र निर्गत करने में आना कानी और टाल मटोल करता है।वन विभाग अवैध रूप से बाड़ी (जो डॉल्फिन के लिए हानिकारक है )बांधने पर कोई कारवाई क्यों नहीं करता ? फरक्का के कारण गंगा अब ज्यादा रफ्तार से अपना रास्ता बदल रही है, जिससे कटाव बढ़ा है। जब नदी उथली होती है तो फैलने लगती है और अपने किनारों पर दबाव डालती है। बिहार जैसे गरीब राज्य को 1,058 करोड़ रुपए जमीन के कटाव और बाढ़ के तत्काल प्रभाव को रोकने पर खर्च करने पड़े हैं। सिर्फ फरक्का का सवाल ही नहीं एनटीपीसी का सवाल गंभीर है। भागलपुर जिले के कहलगांव स्थित एनटीपीसी के इस कोल पावर प्लांट का निर्माण 1985 में शुरू हुआ था और इससे विद्युत उत्पादन 1992 में शुरू हुआ। शुरुआत से ही गंगा मुक्ति आंदोलन और स्थानीय पर्यावरणविदों ने इसके निर्माण पर आपत्ति जताई थी। गंगा नदी के किनारे बसा यह इलाका खेती के लिहाज के काफी उर्वर है। प्रदूषण के कारण यहां पेड़ों की हरियाली समाप्त हो गई है। पेड़ के पत्तों पर राख की मोटी परतें बिछी हुई हैं। और तो और प्रदूषण के कारण लोगों में सांस फूलने की समस्या और विकलांगता बढ़ी है। यह धना, आम और पान का इलाका रहा है। मगर एनटीपीसी की वजह से सब नष्ट हो गया। गंगा बेसिन के इलाकों के महत्वपूर्ण सवाल को लेकर दो दिनों तक 22 फरवरी 2025 को गंगा मुक्ति आंदोलन के वर्षगांठ पर कागजी टोला कहलगांव , भागलपुर में पुनः देश भर से परिवर्तनवादी जुटेंगे और आगे की योजना बनाएंगे। इस लिहाज़ से आंदोलन का शंखनाद दो दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। एक तो शासन तंत्र पर दबाव बनाने लिए, दूसरे सांगठनिक मजबूती के लिए। कुमार कृष्णन Read more » गंगा मुक्ति आंदोलन के 42 साल
राजनीति भारत को मजबूत बनाने के लिए नरेंद्र मोदी की कीप एंड बैलेंस थ्योरी को ऐसे समझिए February 17, 2025 / February 17, 2025 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय 21वीं सदी के एशियाई बिस्मार्क समझे जाने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘कीप एंड बैलेंस’ थ्योरी से जहां विकसित देश अमेरिका, रूस, चीन हैरान-परेशान हैं, वहीं भारत ग्लोबल साउथ यानी तीसरी दुनिया के देशों के दूरगामी हितों की हिफाजत करते हुए तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है। यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ, रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग द्वारा वक्त-वक्त पर की हुई बयानबाजियां इस बात की चुगली करती हैं। इसके अलावा भी बहुतेरे राष्ट्राध्यक्ष हैं जो कुछ ऐसी ही बातें छेड़ चुके हैं, जो गलत भी नहीं है। समझा जाता है कि जैसे भारतीय सियासत में उन्होंने अटलबिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कद्दावर नेताओं को साधते हुए नरेंद्र मोदी ने खुद को एक आदमकद चेहरे के रूप में स्थापित करते हुए पहले मुख्यमंत्री, फिर प्रधानमंत्री बने। ठीक वैसे ही अब अमेरिका, रूस और चीन को साधते हुए वो भारत के नेतृत्वकर्ता के तौर पर अपने राष्ट्र को एक अग्रणी विकसित देश की कतार में खड़ा करके ही दम लेंगे। उनके द्वारा पिछले 10-11 साल में जो युगान्तकारी निर्णय लिए गए हैं, वह भी इसी ओर इशारा करते हैं। इसे मोदी भारत का अमृतकाल भी करार देते आए हैं। अपनी हालिया अमेरिकी यात्रा (12-13 फरवरी 2025) के दौरान एक बार फिर से उन्होंने जिस द्विपक्षीय सूझबूझ कूटनीतिक चतुराई का परिचय दिया है, यह उसी का नतीजा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ को भी यहां तक कहना पड़ा कि “भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक टफ निगोशिएटर हैं। वह मुझसे कहीं ज्यादा सख्त वार्ताकार हैं और मुझसे कहीं अच्छे वार्ताकार भी हैं। इसमें उनका कोई मुकाबला ही नहीं है।” जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दोस्त के रूप में दिलेर होने के साथ-साथ बेहद प्रोफेशनल भी हैं। यही वजह है कि पिछले एक दशक में वैश्विक दुनियादारी में भारत का कद और पद बहुत ऊंचा उठा है। कई मामलों में वो देश के पहले प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी कर चुके हैं या फिर उसे तोड़ चुके हैं, जो साधारण बात नहीं है। उनके नेतृत्व में भाजपा और उनके संरक्षक के रूप में आरएसएस की भी देशव्यापी साख बढ़ी है। अंतर्राष्ट्रीय कुटनीतिज्ञ बताते हैं कि जिस तरह से उन्होंने अमेरिकी नेतृत्व वाले ‘नाटो’ और रूसी (सोवियत संघ) नेतृत्व वाले ‘सीटो’ से जुड़े देशों को एक साथ साधा है, कुछ को अपने पाले में कर लिया है, वह काबिलेतारीफ है। वहीं, चीनी नेतृत्व वाले ब्रिक्स में रूसी सलाह पर बने रहने के साथ-साथ अमेरिकी नेतृत्व वाले क्वाड में भी सम्मान जनक रूप से जमे रहना कोई साधारण कूटनीतिक गेम नहीं है। वहीं, खास बात यह कि अमेरिका के मुकाबले रूस-चीन-भारत गठजोड़ खड़ा करने का वैश्विक भय पैदा करने वाले चीन को, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी के मुकाबले अमेरिका-रूस-भारत गठजोड़ का नया वैश्विक भय एहसास करवाना चाहते हैं। क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ भी कुछ ऐसा ही करना चाहते हैं, ताकि दुनियादारी के मामले में अतिशय महत्वाकांक्षी देश चीन को काबू में रखा जा सके। बता दें कि ट्रंफ के पुतिन और मोदी से मित्रवत और व्यक्तिगत सम्बन्ध भी हैं। आपको यह जानकार हैरत होगी कि पीएम मोदी सबकुछ कर-करवा रहे हैं, लेकिन अमेरिका, रूस, चीन यानी तीनों के खिलाफ कहीं भी खुलेआम सामने नजर नहीं आ रहे हैं। क्योंकि तीनों बड़े देशों की राष्ट्रीय/व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को संतुलित रखना कोई साधारण बात नहीं है, जबकि इसी में भारत का दूरगामी हित निहित है। यह सब कुछ करते हुए भी मोदी, पुतिन के प्रति सॉफ्ट हैं, क्योंकि रूस भारत का भरोसेमंद अंतर्राष्ट्रीय पार्टनर समझा जाता है। वहीं कभी पाकिस्तान-चीन परस्त रहे अमेरिका, भारत विरोधी चीन और भारत-चीन के सवाल पर तटस्थ रुख रखने वाले रूस को इस करीने से साध रहे हैं कि तीनों भारत के हितबर्धक बने रहें, जबकि भारत उनके किसी भी अंतर्राष्ट्रीय या द्विपक्षीय ‘पाप’ से दूर रहे। मतलब कि गुटनिरपेक्ष बना रहे। भारत के पड़ोसी देश चीन को नियंत्रित रखने के लिए मोदी की यह नीति अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिज्ञों के बीच शोध का विषय है और इसलिए उन्हें 21वीं सदी का एशियाई बिस्मार्क करार दिया जाता है। लोग परस्पर यही सवाल पूछते हैं कि आखिर यह सबकुछ करते हुए मोदी क्या चाहते हैं? भारत को इन सबकी जरूरत क्या है? तो यह जान लीजिए कि कभी सोने की चिड़ियां और विश्व गुरु रहे भारत को मोदी पुनः वही दर्जा दिलाना चाहते हैं। वह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के साथ-साथ पूरी दुनिया में हिंदुत्व के प्रति एक नया आकर्षण पैदा करना चाहते हैं। वह अखण्ड भारत के सपने को पूरा करके उन क्षेत्रीय विडंबनाओं को समाप्त करना चाहते हैं जिनको लेकर अबतक अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठता आया है। महत्वपूर्ण बात यह कि यह सबकुछ करते हुए मोदी इन विषयों पर बोलते कम हैं, जबकि उनके काम दहाड़ते हैं। वह दुनियावी देशों के निरंतर यात्रा पर रहते हैं या फिर अपने प्रतिनिधियों को भेजते रहते हैं तो इसका मतलब भी यही है कि वह सबसे व्यक्तिगत और भरोसेमंद सम्बंध चाहते हैं। चाहे फ्रांस हो या जापान, ऑस्ट्रेलिया हो या दक्षिण कोरिया, ब्राजील हो या दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब हो या ईरान, इंग्लैंड हो या जर्मनी, प्रधानमंत्री दुनिया के दूसरी पंक्ति वाले देशों को भी भारत के हित में साधते जा रहे हैं। वहीं, ग्लोबल साउथ यानी तीसरी दुनिया के देशों की जब वे बात करते हैं तो इससे भारत को मिलने वाले एक बड़े बाजार का भी।पता चलता है। स्वाभाविक है कि यह सबकुछ प्रधानमंत्री मोदी की जैसे को तैसा वाली नीतियों से ही संभव हो पा रहा है। भारत का दूरगामी हित इसी में निहित है। वहीं, यह भी समझा जा रहा है कि दुनियावी कूटनीति के लिए एक अबूझ पहेली बन चुके भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को समझना सबके बूते की बात भी नहीं है। क्योंकि यह भारतीयों के पुनर्जागरण का काल है।इसलिए इंतजार कीजिए और अमृतकाल के दौर को समझिए। कमलेश पांडेय Read more » understand Narendra Modi's Keep and Balance Theory like this नरेंद्र मोदी की कीप एंड बैलेंस थ्योरी
राजनीति बचा जा सकता है मानव निर्मित आपदा से ! February 17, 2025 / February 17, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला 15 फरवरी 2025 की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से 15 लोगों की मौत हो गई, यह बहुत ही दुखद है। मरने वालों में 11 महिलाएं, दो पुरुष और दो बच्चे शामिल बताए जा रहे हैं। हादसे में 15 लोग घायल हो गए, जिन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। दरअसल, प्रयागराज जाने के लिए स्टेशन पर भारी भीड़ जुटी थी। प्रयागराज एक्सप्रेस के कारण प्लेटफार्म नंबर 14 और 15 पर भारी भीड़ थी। हाल फिलहाल, रेलवे बोर्ड ने घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। हादसे के बाद राहत कर्मियों को तैनात कर दिया गया है और एलजी इसकी लगातार निगरानी कर रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अव्यवस्थाओं के चलते और भगदड़ के कारण जान-माल दोनों का ही नुकसान हुआ है। इसी बीच रेलवे ने प्रयागराज महाकुंभ के लिए चार विशेष गाड़ियां भी चलाने की घोषणा कर दी है, इससे भीड़ में कमी देखने को मिल रही है। बताया जा रहा है कि ट्रेनों के रद्द होने की अफवाह से भगदड़ मची थी। वास्तव में, यह घटना नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उस समय हुई, जब अचानक प्रयागराज जाने वाली दो ट्रेनों के रद्द होने की अफवाह के बाद यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई। बताया जा रहा है कि प्लेटफार्म नंबर 14 और 15, जो एक साथ हैं, के बीच अचानक भारी भीड़ पहुंच गई। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक रविवार को अवकाश होने के कारण शनिवार को प्रयागराज जाने के लिए काफी संख्या में लोग जुट गए। पाठकों को बताता चलूं कि इससे पहले 29 जनवरी को प्रयागराज के महाकुंभ में 40 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, 10 फरवरी 2013 को भी कुंभ के दौरान प्रयागराज स्टेशन पर भगदड़ मची थी। जानकारी के अनुसार इस हादसे में 36 लोग मारे गए थे। वास्तव में देश में महाकुंभ एक बड़ा आयोजन है और इसमें भारी संख्या में भीड़ उमड़ रही है। भारत ही नहीं विदेशों तक से महाकुंभ में अनेक लोग आ रहे हैं। अमूमन देश में किसी त्योहार पर भी इतनी भीड़ नहीं उमड़ती है लेकिन इस बार महाकुंभ में भीड़ का सैलाब है। मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से दिल्ली हादसे को लेकर यह खबरें भी आ रहीं हैं कि गलत अनाउंसमेंट और प्रशासन की लापरवाही इस हादसे का मुख्य कारण बनी। दिल्ली भारत की राजधानी है और अक्सर यहां रेलवे स्टेशन पर काफी भीड़ रहती है। महाकुंभ के कारण पहले से ही यात्रियों की संख्या अधिक थी। ऐसे में भीड़ प्रबंधन की ठोस व्यवस्थाएं की जानी बहुत जरूरी थी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, अचानक प्लेटफॉर्म बदलाव की गलत घोषणा हुई, जिससे यात्रियों में अफरातफरी मच गई और भगदड़ हो गई।शुरुआती जांच में रेलवे प्रशासन और स्टेशन प्रबंधन की गंभीर लापरवाही सामने आ रही है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, गलत घोषणाएं करने वाले अधिकारियों की पहचान की जा रही है। रेलवे और सुरक्षा एजेंसियों की ओर से भीड़ नियंत्रण की योजना की जांच हो रही है। घटना के समय ड्यूटी पर मौजूद अधिकारियों से भी लगातार पूछताछ जारी है। बताया यह भी जा रहा है कि भीड़ को कंट्रोल करने के लिए प्लेटफॉर्म 14 और 15 की एक-एक सीढ़ी बंद कर दी गई थी। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि यह पहली बार नहीं है जब इस तरह से अचानक रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मची हो। इससे पहले भी इस तरह की कई घटनाएं घटित हो चुकी हैं। 29 सितंबर 2017 को मुंबई के एलफिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन के फुट ओवरब्रिज पर भगदड़ मच गई थी और इस भगदड़ में 23 लोगों की मौत हो गई थी औ 39 अन्य यात्री घायल हो गए थे। दरअसल ,यह हादसा पुल गिरने की अफवाह के कारण हुआ था। इसी प्रकार से महाराष्ट्र के मुंबई में बांद्रा रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी, जिससे भगदड़ में 9 यात्री घायल हो गए थे। इतना ही नहीं, 10 फरवरी 2013 को कुंभ मेले के दौरान उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर अचानक मची भगदड़ में भी 32 लोगों की मौत हो गई थी। इसी प्रकार से वर्ष 2007 में भी मुगल सराय जंक्शन भगदड़ में 14 महिलाओं की मौत हो गई थी।वहीं इस घटना में 40 से अधिक यात्री घायल हो गए थे। वास्तव में,भगदड़ भीड़ प्रबंधन की असफलता या अभाव की स्थिति में पैदा हुई मानव निर्मित आपदा है। अक्सर भगदड़ किसी अफवाह के कारण पैदा होती है और भगदड़ में लोग दिशाहीन होकर इधर-उधर भागने लगते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दम घुटने व कुचलने से चोटिल होने एवं मृत्यु की घटनाएँ होती हैं। अक्सर भगदड़ मचने के पीछे जो कारण निहित होते हैं उनमें क्रमशः मनोरंजन कार्यक्रम,एस्केलेटर और मूविंग वॉकवे, खाद्य वितरण, जुलूस, प्राकृतिक आपदाएँ, धार्मिक आयोजन, धार्मिक/अन्य आयोजनों के दौरान आग लगने की घटनाएँ, दंगे, खेल आयोजन, मौसम संबंधी घटनाएँ आदि शामिल होते हैं। बैरिकेड्स, अवरोध, अस्थायी पुल, अस्थायी संरचनाएँ और पुल की रेलिंग का गिरना, दुर्गम क्षेत्र (पहाड़ियों की चोटी पर स्थित धार्मिक स्थल जहाँ पहुँचना मुश्किल है), फिसलन युक्त या कीचड़ युक्त मार्ग, संकरी गलियाँ एवं संकरी सीढ़ियाँ, खराब सुरक्षा रेलिंग, कम रोशनी वाली सीढ़ियाँ, बिना खिड़की वाली संरचना, संकीर्ण एवं बहुत कम प्रवेश या निकास स्थान, आपातकालीन निकास का अभाव भी बहुत बार भगदड़ के कारण बन सकते हैं। अप्रभावी भीड़ प्रबंधन तो भगदड़ मचने का कारण है ही। बहुत बार यह देखा जाता है कि किसी एक प्रमुख निकास मार्ग पर ही लोगों की निर्भरता होती है ,जो भगदड़ का कारण बन जाती है। आज अक्सर यह भी देखने को मिलता है कि किसी कार्यक्रम विशेष के लिए क्षमता से अधिक लोगों को अनुमति दे दी जाती है। बहुत से स्थानों पर उचित सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का भी अभाव होता है, जिससे सूचना देने में दिक्कत आती है। भीड़ अनेक बार गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार अपनाती है और सुरक्षा नियमों का ठीक से पालन नहीं करती है। आग या बिजली का प्रसार भी अनेक बार भगदड़ मचने का कारण बन सकता है। इसलिए सुरक्षा और निगरानी के उपाय पुख्ता होने चाहिए। सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति से पूर्व रिहर्सल प्रैक्टिस भी की जानी चाहिए ताकि भगदड़ आदि के समय सुरक्षा उपायों को तुरंत किया जा सके। सीसीटीवी, आधुनिक तकनीक को भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है।पुलिस प्रशासन, अग्निशमन सेवा, चिकित्सा सेवा एजेंसियों और आयोजक प्रबंधन के बीच समन्वय होना भी बहुत ही जरूरी और आवश्यक है। संचार व्यवस्थाएं भी अच्छी और सुदृढ़ होनी चाहिए। भगदड़ से बचने के लिए भगदड़ वाले स्थानों पर आगमन एवं निकास की समुचित व्यवस्था (पुरूष एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग) यथा बैरिकेडिंग की व्यवस्था होनी चाहिए। चिकित्सा दल एवं एम्बुलेंस की पर्याप्त व्यवस्था, बिजली के तारों एवं उपकरणों में सुरक्षा के पूर्ण उपायों की व्यवस्था, पार्किंग की समुचित एवं सुचारू व्यवस्था, नियंत्रण कक्ष, पर्याप्त रौशनी,वाच टावर की व्यवस्था होनी चाहिए। इतना ही नहीं, उपहार, भोजन, प्रसाद, कबंल आदि मुफत वितरण के दौरान भगदड़ रोकने की व्यवस्था की जाए एवं अधिक भीड़ होने पर सामग्री के विवरण पर प्रतिबंध लगाने हेतु आयोजकों केा पर्याप्त निर्देश दिए जाने चाहिए। किसी भी स्थान पर अनावश्यक रूप से एक स्थान पर भीड़ नहीं लगानी चाहिए।छोटे बच्चों, महिलाओं, बीमारों या वृद्वों को मेले में ले जाते समय उनकी जेब में (या गले में लाकेट की तरह) घर का पता और फोन नम्बर साथ रखा जाना चाहिए।भगदड़ के समय संयम पूर्ण व्यवहार करना चाहिए और घबराना नहीं चाहिए।किसी भी आपात स्थिति में तत्काल नियंत्रण कक्ष में संपर्क स्थापित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।भीड़ वाले स्थान पर किसी भी प्रकार के पटाखे/ज्वलनशील पदार्थ नहीं ले जाना चाहिए तथा ध्रूमपान नहीं करना चाहिए।प्रशासन की ओर से की जाने वाली घोषणाओं को ध्यान से सुनना चाहिए और उसके अनुसार व्यवहार करना चाहिए। सुनील कुमार महला Read more » Stampede मानव निर्मित आपदा
राजनीति ‘यू.एस. इंडिया कॉम्पैक्ट” चुनौतियाँ और अवसर। February 17, 2025 / February 17, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment -डॉ. सत्यवान सौरभ संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच बदलती गतिशीलता का इक्कीसवीं सदी में दुनिया के संगठित होने के तरीके पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। इस साझेदारी की क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिए, दोनों सरकारों को रणनीतिक बहुपक्षीय सम्बंधों, अर्थशास्त्र और रक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। मौजूदा हालात अमेरिका-भारत सम्बंधों के दीर्घकालिक विकास के पक्ष में हैं। मुझे उम्मीद है कि भारत चुनौतियों के साथ-साथ अवसरों को भी स्वीकार करने के लिए तैयार है। -डॉ. सत्यवान सौरभ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रम्प जूनियर ने 13 फरवरी, 2025 को वाशिंगटन डीसी में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का आधिकारिक कार्य यात्रा के लिए स्वागत किया। राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्र और गतिशील लोकतंत्रों के नेताओं के रूप में भारत-अमेरिका साझेदारी की ताकत की पुष्टि की, जो स्वतंत्रता, मानवाधिकार, कानून और बहुलवाद का सम्मान करते हैं। आपसी विश्वास, साझा हित, सद्भावना और सक्रिय नागरिक भागीदारी इस व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी की नींव के रूप में काम करते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमंत्री मोदी ने “यू.एस. इंडिया कॉम्पैक्ट” नामक एक बिल्कुल नया कार्यक्रम पेश किया, जिसका अर्थ है “सैन्य साझेदारी, त्वरित वाणिज्य और प्रौद्योगिकी के लिए अवसरों को उत्प्रेरित करना”, जिसका उद्देश्य इक्कीसवीं सदी में सहयोग के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्रांति लाना है। रणनीतिक और आर्थिक वातावरण लगातार अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों द्वारा नया रूप ले रहे हैं। कई क्षेत्रों में, भारत के बढ़ते नवाचार और अमेरिका की तकनीकी श्रेष्ठता एक दूसरे से मिलती है। भारत को $45 बिलियन के अधिशेष से लाभ होने के साथ, द्विपक्षीय व्यापार $118 बिलियन से ऊपर चला गया। प्रगतिशील आर्थिक सम्बंधों के माध्यम से, यह साझेदारी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को नया रूप देती है, सुरक्षा में सुधार करती है और आपसी विकास को बढ़ावा देती है। अमेरिका और भारत के बीच व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी सभी में वृद्धि हुई है। संचार संगतता और सुरक्षा समझौता और बेसिक एक्सचेंज ऐंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट जैसे महत्त्वपूर्ण समझौते, जो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा रसद में घनिष्ठ सहयोग की गारंटी देते हैं, पर अमेरिका और भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। लक्षित सैन्य अभियानों के लिए भारत को अमेरिकी भू-स्थानिक खुफिया जानकारी तक पहुँच प्रदान करके, 2020 बेसिक एक्सचेंज ऐंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट समझौते ने हिंद महासागर क्षेत्र में स्थितिजन्य जागरूकता में सुधार किया। महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल जैसी पहलों ने सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी महत्त्वपूर्ण तकनीकों में सहयोग को मज़बूत किया है। भारत और माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने 2.75 बिलियन डॉलर का सेमीकंडक्टर प्लांट बनाने के लिए मिलकर काम किया, जो आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन को बढ़ाएगा। अमेरिकी हाइड्रोकार्बन के एक महत्त्वपूर्ण आयातक के रूप में, भारत हरित ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करने में सहायता करता है। तेल आयात के मामले में, संयुक्त राज्य अमेरिका 2024 में 413.61 मिलियन डॉलर के साथ पांचवें स्थान पर रहा। लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएँ, विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं के लिए, चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के दोनों देशों के प्रयासों का लक्ष्य हैं। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका क्वाड राष्ट्रों का हिस्सा हैं। अमेरिका और भारत के बीच व्यापार वार्ता में मुख्य बाधा टैरिफ विवाद है। भारत द्वारा अमेरिकी वस्तुओं, विशेष रूप से कृषि और तकनीकी क्षेत्रों पर उच्च टैरिफ लगाए जाने से व्यापार संतुलन प्रभावित होता है और वार्ता अक्सर बाधित होती है। मादक पेय पदार्थों पर भारत द्वारा लगाए गए 150 प्रतिशत टैरिफ ने अमेरिकी निर्यातकों की बाजारों तक पहुँच को प्रतिबंधित करने के लिए अमेरिका की आलोचना की है। भारत में जेनेरिक दवा उद्योग सुलभ दवा की गारंटी के लिए अधिक संतुलित रणनीति का पक्षधर है, जबकि अमेरिका मज़बूत बौद्धिक संपदा सुरक्षा चाहता है। बौद्धिक संपदा सुरक्षा के बारे में चिंताओं के कारण अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने भारत को अपनी “प्राथमिकता निगरानी सूची” में रखा। ई-कॉमर्स विनियमों और प्रस्तावित डेटा स्थानीयकरण कानूनों पर भारत की अलग-अलग स्थिति अमेरिकी हितों के विपरीत है। गूगल और अमेज़न जैसे अमेरिकी निगमों द्वारा इस बारे में चिंता व्यक्त की गई थी कि भारत का व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक सीमा पार डेटा प्रवाह को कैसे सीमित करेगा। अमेरिका और भारत के बीच $45 बिलियन का व्यापार घाटा बाज़ार पहुँच बढ़ाने और टैरिफ कम करने के लिए अमेरिकी दबाव को प्रेरित करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने घुटने के प्रत्यारोपण और स्टेंट जैसे चिकित्सा उपकरणों पर कम टैरिफ का अनुरोध करके व्यापार असंतुलन को कम करने की मांग की। भारत के फाइटोसैनिटरी नियम जो अमेरिकी कृषि उत्पादों को प्रतिबंधित करते हैं, इस क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार के विस्तार में बाधा डालते हैं। चूंकि व्यापार वार्ता ने रक्त भोजन युक्त पशु आहार के मुद्दे को हल नहीं किया है, इसलिए भारत ने अमेरिकी डेयरी आयात को प्रतिबंधित कर दिया है। एलएनजी और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग अमेरिका की एक प्रमुख उत्पादक के रूप में स्थिति और भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के कारण संभव हुआ है। उदाहरण के लिए, इस तरह की साझेदारी भारत को ऊर्जा मिश्रण में प्राकृतिक गैस के अनुपात को मौजूदा 6 प्रतिशत से बढ़ाकर कुल प्राथमिक ऊर्जा मिश्रण का 15 प्रतिशत करने के अपने लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करेगी। लाभकारी शर्तों पर रक्षा हार्डवेयर का सह-उत्पादन रणनीतिक सम्बंधों को मज़बूत करते हुए भारत की अन्य देशों पर निर्भरता को कम कर सकता है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और जनरल इलेक्ट्रिक ने भारत में लड़ाकू जेट इंजन के संयुक्त निर्माण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसी महत्त्वपूर्ण तकनीकों में घनिष्ठ सम्बंधों द्वारा सहयोगी नवाचार के अवसर प्रदान किए जाते हैं। सहकारी अंतरिक्ष अन्वेषण और चंद्र मिशन के लिए आर्टेमिस समझौते में भारत को भागीदार के रूप में स्वीकार किया गया था। घरेलू उत्पादन बढ़ाने के भारत के प्रयास अमेरिका की “चीन+1” नीति के पूरक हैं, जो मज़बूत आपूर्ति श्रृंखलाओं में साझा उद्देश्यों को बढ़ावा देते हैं। उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के माध्यम से भारत में उत्पादन बढ़ाकर, एप्पल और सैमसंग ने चीनी कारखानों पर अपनी निर्भरता कम कर दी। एक ऐसा समझौता जो अधिक व्यापक है, उसे सीमित व्यापार समझौते द्वारा सुगम बनाया जा सकता है जो बाज़ार पहुँच में सुधार और टैरिफ विवादों को निपटाने पर केंद्रित है। भारत और अमेरिका ने कई औद्योगिक और कृषि उत्पादों पर टैरिफ कम करने पर सहमति व्यक्त की, जो एक व्यापक समझौते की संभावना का संकेत देता है। व्यापार असंतुलन को हल करके विश्व स्थिरता की नींव एक मज़बूत भारत-अमेरिका गठबंधन हो सकता है। डॉ. सत्यवान सौरभ Read more » U.S. “India Compact” यू.एस. इंडिया कॉम्पैक्ट
राजनीति भागवत की हिन्दू एकता से ही विश्वगुरु बन सकेंगे February 17, 2025 / February 24, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:- हिंदू एकता ही समाज, राष्ट्र एवं विश्व में शांति, सद्भाव और प्रगति को सुनिश्चित करती है। साथ ही, यह राष्ट्र की सुरक्षा और विकास के लिए भी ज़रूरी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को हिंदू समाज को एकजुट करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि […] Read more » Hindus will be able to become world leaders only through the unity of Bhagwat. हिन्दू एकता
राजनीति हे दयानिधे! जरूरी नहीं, सभी आपके अनुरूप हो.. February 17, 2025 / February 17, 2025 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment सुशील कुमार ‘नवीन’ संस्कृत देवभाषा है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत है तो संस्कार है, संस्कृति है। संस्कृत नहीं तो कुछ भी नहीं। प्रसिद्ध उक्ति भी है, भारतस्य प्रतिष्ठा द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा इति। साफ अर्थ है कि भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत और संस्कृति इन्हीं दोनों में निहित है। संस्कृत-संस्कृति का मूल है। कोई […] Read more » डीएमके सांसद दयानिधि मारन
राजनीति नौनिहालों के सपनों पर हावी होते कोचिंग सेंटर February 14, 2025 / February 14, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment भारत में कोचिंग सुविधाओं की संख्या में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है। ये केंद्र छात्रों को स्कूल स्तर की परीक्षाओं के साथ-साथ जेईई, नीट और यूपीएससी की तैयारी में मदद करते हैं। हालाँकि, इस उद्योग की विस्फोटक वृद्धि से कई चिंताएँ भी पैदा हो रही हैं। लगभग 58, 000 करोड़ के बाज़ार मूल्य […] Read more » कोचिंग सेंटर