राजनीति शांति की संस्कृति एवं समझ को विकसित करने जरूरत February 23, 2025 / February 24, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व शांति और समझ दिवस- 23 फरवरी, 2025-ः ललित गर्ग:-एक शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण समाज के निर्माण, विविध संस्कृतियों, धर्मों और क्षेत्रों के बीच सद्भाव, करुणा और सहयोग की स्थायी भावना की अपेक्षा को आकार देने के लिये हर वर्ष विश्व शांति एवं समझ दिवस 23 फरवरी को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। यह अवसर […] Read more » विश्व शांति और समझ दिवस- 23 फरवरी
राजनीति इतिहास का विकृतिकरण और नेहरू : अध्याय 1 February 22, 2025 / February 26, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment ( ‘ डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया ‘ की ‘ डिस्कवरी ‘ ) नेहरू जी और धर्म की परिभाषा वर्तमान में धर्म , मजहब और रिलीजन – इन तीनों को एक मानने की अवैज्ञानिक, अतार्किक और सृष्टि नियमों के सर्वथा प्रतिकूल अवधारणा कार्य कर रही है। भारत की राजनीति में जिस धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया गया […] Read more » Distortion of History and Nehru इतिहास का विकृतिकरण और नेहरू
राजनीति मातृभाषाएं संवारती हैं संस्कार और संस्कृति को February 21, 2025 / February 24, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस- 21 फरवरी 2025-ः ललित गर्ग:-मातृभाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपराओं, जीवनमूल्यों और इतिहास को संजोने का एक सशक्त साधन है। यह समाज, संस्कृति एवं राष्ट्र के लिए पहचान का महत्वपूर्ण साधन होती है। शोध बताते हैं कि बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़कर अधिक अच्छी तरह से समझ विकसित करते […] Read more » Mother tongues enhance values and culture अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस- 21 फरवरी
राजनीति दिल्ली की नई मुख्यमंत्री : चुनौतियों का सफर February 20, 2025 / February 26, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment प्रधानमंत्री श्री मोदी अपनी अलग कार्य शैली के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने श्रीमती रेखा गुप्ता को दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने के अपने निर्णय को भी अंतिम क्षणों तक गोपनीय रखा। मीडिया के लोग कई लोगों के नामों को लेकर अनुमान लगाते रहे , परंतु हरबार की भांति इस बार भी प्रधानमंत्री […] Read more » दिल्ली की नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता
राजनीति जनजातीय हितों व श्रद्धा पर केंद्रित हो नई वननीति February 20, 2025 / February 24, 2025 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment वनग्राम, वनों से सटे राजस्व ग्राम, जनजातीय समाज, वनों के भीतर कृषि का अधिकार, जनजातीय समाज को वनों के सीमित उपयोग की अनुमति आदि-आदि विषय मप्र में एक बड़ा सामाजिक सरोकार का प्रश्न रहे हैं। यह प्रश्न अब गहरा रहा है। मप्र सरकार कंपनी, संस्था, व्यक्ति या स्वयंसेवी संस्था को बिगड़े जंगल अनुबंध पर साठ […] Read more » केंद्रित हो नई वननीति
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार संघ साधना के तपोनिष्ठ ऋषिवर : श्री गुरुजी February 19, 2025 / February 24, 2025 by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल | Leave a Comment ~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल आक्रमणों और वर्षों की परतन्त्रता के कारण कमजोर और दैन्य हो चुके हिन्दू समाज को संगठित करने के ध्येय से डॉ.हेडगेवार ने २७ सितम्बर सन् १९२५ विजयादशमी के दिन शक्ति की पूर्णता को मानकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन किया। जो हिन्दू समाज को सशक्त और सामर्थ्यवान बनाने तथा राष्ट्रीयता के प्रखर […] Read more »
राजनीति आतंकवादी का भी कोई धर्म होता है February 18, 2025 / February 18, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment यदि हम इस समय भारत सहित वैश्विक परिदृश्य पर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि सारा संसार इस समय एक अघोषित युद्ध की विभीषिका में झुलस रहा है । आतंकवाद के नाम पर एक वर्ग के लोग निर्दोष लोगों का खून बहाना और अपना मजहबी विस्तार करना अपनी विरासत का एक अनिवार्य अंग मानते […] Read more » Terrorists also have a religion आतंकवादी का धर्म आतंकवादी का भी कोई धर्म होता है
आर्थिकी राजनीति आयकर कानून के सरल होने से विवाद घटेंगे February 17, 2025 / February 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में गुरुवार को 64 साल पुराने आयकर कानून-1961 के सरलीकरण और इसमें चले आ रहे बेवजह के प्रविधानों को समाप्त करने के उद्देश्य से नया इनकम टैक्स बिल-2025 पेश कर दिया। 622 पन्नों के इस विधेयक में 536 धाराएं शामिल हैं। जबकि आयकर कानून-1961 में 1647 पन्ने और […] Read more » Simplification of income tax law will reduce disputes. आयकर कानून के सरल होने से विवाद घटेंगे
राजनीति भारत-अमेरिका मैत्री से विकास के नये रास्ते खुलेंगे February 17, 2025 / February 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल में सम्पन्न हुई अमेरिका की दो दिवसीय यात्रा अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक, अविस्मरणीय एवं मील का पत्थर बनकर प्रस्तुत हुई है। यह निश्चित है कि मोदी के नेतृत्व में एक नई सभ्यता और एक नई संस्कृति गढ़ी जा रही है। व्हाइट हाउस में संपन्न प्रधानमंत्री मोदी और […] Read more » India-America friendship will open new avenues of development भारत-अमेरिका मैत्री
राजनीति केजरीवाल की हठधर्मिता ने डुबोई ‘आप ‘ की नैय्या February 17, 2025 / February 17, 2025 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़री दिल्ली की 70 सदस्यों की विधान सभा हेतु हुए 2015 के चुनाव में 70 में से 67 सीटें तथा 2019 में दिल्ली की सातवीं विधानसभा चुनाव में 62 सीटें जीतकर ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त करने वाली आम आदमी पार्टी पिछले दिनों दिल्ली चुनाव की जंग हार गयी। भारतीय जनता पार्टी को जहां पूर्ण बहुमत के साथ […] Read more » Kejriwal's stubbornness sank AAP's boat.
राजनीति गंगा मुक्ति आंदोलन के 42 साल और चुनौतियां February 17, 2025 / February 17, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment कुमार कृष्णन 22 फरवरी 2025 को कहलगांव में गंगा मुक्ति आंदोलन की वर्षगांठ मनाई जा रही है। सन 1982 में गंगा मुक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई थी।आज से 43 साल पहले शुरू हुए इस आंदोलन की निरंतरता आज भी कायम है। गंगा की जमींदारी के खिलाफ शुरू हुआ यह आन्दोलन 1987-88 आते आते बिहार के सम्पूर्ण गंगा क्षेत्र में फैल गया था और इसमें लाखों लोग शामिल हो गए थे। जब कुर्सेला से पटना तक(लगभग 500 किलोमीटर)नौका जुलूस निकाला गया तो गंगा तट के गांव गांव में स्त्री पुरुषों की भागीदारी और उनका उत्साह देखने लायक था। इस नौका जुलूस के बाद जब बिहार के सम्पूर्ण गंगा क्षेत्र में जलकर(मछली पकड़ने के एवज में दिया जानेवाला टैक्स) बंद कर दिया गया तो पानी के ठेकेदारों ने अनेक प्रकार के जुल्म ढाए थे लेकिन अन्ततः 1990 के जनवरी में सरकार को बाध्य होकर गंगा समेत बिहार की सभी नदियों की बहती धारा में परम्परागत मछुओं के लिए मछली पकड़ना करमुक्त कर दिया था। 1993 के पहले गंगा में जमींदारों की पानीदार थे, जो गंगा के मालिक बने हुए थे। सुल्तानगंज से लेकर पीरपैंती तक 80 किलोमीटर के क्षेत्र में जलकर जमींदारी थी। यह जमींदारी मुगलकाल से चली आ रही थी। सुल्तानगंज से बरारी के बीच जलकर गंगा पथ की जमींदारी महाशय घोष की थी। बरारी से लेकी पीरपैंती तक मकससपुर की आधी-आधी जमींदारी क्रमशः मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल के मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक और महाराज घोष की थी। हैरत की बात तो यह थी कि जमींदारी किसी आदमी के नाम पर नहीं बल्कि देवी-देवताओं के नाम पर थी। ये देवता थे श्री श्री भैरवनाथ जी, श्री श्री ठाकुर वासुदेव राय, श्री शिवजी एवं अन्य। कागजी तौर जमींदार की हैसियत केवल सेवायत की रही है।सन 1908 के आसपास दियारे के जमीन का काफी उलट-फेर हुआ। जमींदारों के जमीन पर आये लोगों द्वारा कब्जा किया गया।किसानों में आक्रोश फैला। संघर्ष की चेतना पूरे इलाके में फैली; जलकर जमींदार इस जागृति से भयभीत हो गये और 1930 के आसपास ट्रस्ट बनाकर देवी -देवताओं के नाम कर दिया।जलकर जमींदारी खत्म करने के लिए 1961 में एक कोशिश की गयी; भागलपुर के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर ने इस जमींदारी को खत्म कर मछली बंदोबस्ती की जवाबदेही सरकार पर डाल दी। मई 1961 में जमींदारों ने उच्च न्यायालय में इस कार्रवाई के खिलाफ अपील की और अगस्त 1961 में जमींदारों को स्टे ऑडर मिल गया।1964 में उच्च न्यायालय ने जमींदारों के पक्ष में फैसला सुनाया तथा तर्क दिया कि जलकर की जमींदारी यानी फिशरीज राइट मुगल बादशाह ने दी थी और जल-कर के अधिकार का प्रश्न जमीन के प्रश्न से अलग है क्योंकि जमीन की तरह यह अचल संपत्ति नहीं है। इस कारण यह बिहार भूमि सुधार कानून के अंतर्गत नहीं आता है। बिहार सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की और सिर्फ एक व्यक्ति मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक को पार्टी बनाया गया जबकि बड़े जमींदार मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक को छोड़ दिया गया। गंगा मुक्ति आंदोलन के अनिल प्रकाश के अनुसार आरंभ में जमींदारों ने इसे मजाक समझा और आंदोलन को कुचलने के लिए कई हथकंडे अपनाये। लेकिन आंदोलनकारी अपने संकल्प ‘‘हमला चाहे कैसा भी हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा’’ पर अडिग रहे और निरंतर आगे रहे। निरंतर संघर्ष का नतीजा यह हुआ 1988 में बिहार विधानसभा में मछुआरों के हितों की रक्षा के लिए जल संसाधनों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का एक प्रस्ताव लाया गया। कहलगांव के पत्रकार प्रदीप विद्रोही के अनुसार, मछुआ समाज की इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका रही है और आज भी बनी हुई है।इसके साथ ही किसानों, मजदूरों, झुग्गीवासीयों, बुनकरों, बुद्धिजीवियों,कलाकारों,कलाकारों,कवियों, साहित्यकारों और वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भागीदारी ने इस आंदोलन को सशक्त और व्यापक बनाया था। आंदोलन से जुड़े उदय बताते हैं कि ‘जातिप्रथा के जहर के खिलाफ चेतना जाग्रत करना हमारे आंदोलन का अभिन्न हिस्सा रहा है।1983 में आयोजित एकलव्य मेला से इस आंदोलन शुरुआत की गई थी। 1984 में इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के खिलाफ जब सिख विरोधी उत्पात शुरू हुआ था तो साथियों ने आगे बढ़कर उसे रोका था।भागलपुर और पटना में साम्प्रदायिक दंगे और तनाव हुए थे तो गंगा मुक्ति आंदोलन के लोगों ने जान पर खेलकर उसे रोकने की कोशिश की थी।यह सब गंगा मुक्ति आंदोलन की व्यापक वैचारिक दृष्टि के कारण ही सम्भव था।’ अनिल प्रकाश के अनुसार -जब गंगामुक्ति आंदोलन ने फरक्का बराज को विनाशकारी बताया था तो बहुतों ने खिल्ली उड़ाई थी।जब कहलगांव सुपर थर्मल पावर स्टेशन का गंगा मुक्ति आंदोलन ने विरोध किया था तो हमे आंदोलन विकास विरोधी बताया गया था।जब हमसब ने रासायनिक खादों और जहरीले रासायनिक कीटनाशकों पर रोक लगाने की मांग की थी तब भी हमारा मजाक उड़ाया गया था।सुन्दर लाल बहुगुणा और उनके साथी टिहरी बांध के निर्माण का विरोध कर रहे थे तो गंगा मुक्ति आंदोलन भी उनके साथ था। आज साबित हो रहा है कि हम सही रास्ते पर थे और दूसरों से आगे देख रहे थे।आज नदियां और ज्यादा जहरीली हो गई हैं,हमारे खेत जहरीले हो रहे हैं,उसमें उगनेवाले अनाज,फल और सब्जियां जहरीली हो रही हैं,हमारी मछलियां भी जहरीली होती जा रही हैं।यहां तक कि सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा भी शहरों में नहीं मिलती। आंदोलन 1980 के दशक की शुरुआत से ही चीख चीखकर कह रहे थे।मनुष्य और प्रकृति के मधुर सम्बन्धों की बुनियाद पर समता मूलक लोकतांत्रिक समाज बनना हमारा लक्ष्य है।हमसब इस दिशा में निरन्तर प्रयत्नशील रहे हैं और आगे भी रहेंगे।आंदोलन के वैज्ञानिक सलाहकार डॉक्टर के एस बिलग्रामी ने ठीक ही कहा था कि इकोलॉजी और इकॉनोमिक्स के बीच संतुलन बिठाकर चलना पड़ेगा। फरक्का बराज के कारण हमारी मछलियां समाप्त प्राय: हो गईं,लाखों लोगों की रोजी रोटी छीन गई और सामान्य जन के लिए सुलभ पौष्टिक भोजन(प्रोटीन,विटामिन)की कमी हो गई। मछुआरों का कहना है कि पहले गंगा में तमाम किस्म की मछलियां मिलती थीं, जैसे हिलसा, झींगा, पंगास, सौकची, कुर्सा, कठिया, गुल्ला, महसीर, कतला, रेहू, सिंघा, जो अब मुश्किल से ही दिखती हैं। हिलसा तो फरक्का के ऊपर लगभग लुप्त हो गई है। यह मछली प्रजनन के लिए समुद्र से नदी के मीठे पानी में जाती है। फरक्का ने हिलसा का रास्ता रोक दिया है। मछलियों के लुप्त होने के लिए यहां के निवासी बैराज के अलावा नदी किनारे बने ईंट के भट्टे, रेत खनन, प्रदूषण, गलत तरीके से मछली पकड़ने और विदेशी मछलियों को भी जिम्मेदार मानते हैं।गंगा और इसकी सहायक नदियों में मिट्टी बालू भर गया और बाढ़ तथा जल जमाव की समस्या बढ़ती चली गई। जलकर जमींदारी के खत्म होने बाद भागलपुर के गंगा नदी में सुल्तानगंज के जहांगीरा ( घोरघट पुल ) से पीरपैंती के हजरत पीरशाह कमाल दरगाह तक बिहार सरकार के पशुपालन एवं मत्स्य विभाग ने अपने ज्ञापांक 2294 /मत्स्य / पटना दिनांक 11 दिसंबर 1991 द्वारा पारंपरिक मछुओं हेतु शिकारमाही के लिए निःशुल्क घोषित किया है। निःशुल्क शिकारमाही की घोषणा के पूर्व ही पर्यावरण विभाग बिहार पटना द्वारा 22 अगस्त 1990 को सुल्तानगंज से कहलगांव तक विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन आश्रयणी क्षेत्र घोषित किया जा चुका था।सरकार ने निःशुल्क शिकारमाही के अधिकार को किसी भी आदेश से निरस्त नहीं किया है । वन विभाग मौखिक रूप से जबरन कहता है कि उपरोक्त क्षेत्र में मछली पकड़ना मना है ।मछली पकड़ने से रोकने के लिए तरह तरह का बेबुनियाद , झूठ और मनगढ़ंत आरोप मछुओं पर लगाया जाता है हकीकत ये है कि गैर मछुओं और सोसाइटी द्वारा गंगा में अवैध जाल चलाया जाता है और जिंदा धार में बाड़ी बांधा जाता है उसे वन विभाग कुछ नहीं कहता है। सवालिया लहजा में लोगों का कहना है कि वन विभाग नगर निगम / नगर परिषद / नगर पंचायत और एनटीपीसी पर गंगा को प्रदूषित कर डॉल्फिन मारने पर कोई कारवाई या मुकदमा क्यों नहीं करती? वन विभाग डॉल्फिन पर नगर निगम के कचरे और एनटीपीसी के कचरे से होने वाले नुकसान पर मुंह क्यों खोलता ? वन विभाग उम्र पूरा होने या प्रदूषण से मरने वाले सोंस की संख्या सार्वजनिक क्यों नहीं करता ? मत्स्य विभाग मछुओं को निःशुल्क शिकारमाही का परिचय पत्र निर्गत करने में आना कानी और टाल मटोल करता है।वन विभाग अवैध रूप से बाड़ी (जो डॉल्फिन के लिए हानिकारक है )बांधने पर कोई कारवाई क्यों नहीं करता ? फरक्का के कारण गंगा अब ज्यादा रफ्तार से अपना रास्ता बदल रही है, जिससे कटाव बढ़ा है। जब नदी उथली होती है तो फैलने लगती है और अपने किनारों पर दबाव डालती है। बिहार जैसे गरीब राज्य को 1,058 करोड़ रुपए जमीन के कटाव और बाढ़ के तत्काल प्रभाव को रोकने पर खर्च करने पड़े हैं। सिर्फ फरक्का का सवाल ही नहीं एनटीपीसी का सवाल गंभीर है। भागलपुर जिले के कहलगांव स्थित एनटीपीसी के इस कोल पावर प्लांट का निर्माण 1985 में शुरू हुआ था और इससे विद्युत उत्पादन 1992 में शुरू हुआ। शुरुआत से ही गंगा मुक्ति आंदोलन और स्थानीय पर्यावरणविदों ने इसके निर्माण पर आपत्ति जताई थी। गंगा नदी के किनारे बसा यह इलाका खेती के लिहाज के काफी उर्वर है। प्रदूषण के कारण यहां पेड़ों की हरियाली समाप्त हो गई है। पेड़ के पत्तों पर राख की मोटी परतें बिछी हुई हैं। और तो और प्रदूषण के कारण लोगों में सांस फूलने की समस्या और विकलांगता बढ़ी है। यह धना, आम और पान का इलाका रहा है। मगर एनटीपीसी की वजह से सब नष्ट हो गया। गंगा बेसिन के इलाकों के महत्वपूर्ण सवाल को लेकर दो दिनों तक 22 फरवरी 2025 को गंगा मुक्ति आंदोलन के वर्षगांठ पर कागजी टोला कहलगांव , भागलपुर में पुनः देश भर से परिवर्तनवादी जुटेंगे और आगे की योजना बनाएंगे। इस लिहाज़ से आंदोलन का शंखनाद दो दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। एक तो शासन तंत्र पर दबाव बनाने लिए, दूसरे सांगठनिक मजबूती के लिए। कुमार कृष्णन Read more » गंगा मुक्ति आंदोलन के 42 साल
राजनीति भारत को मजबूत बनाने के लिए नरेंद्र मोदी की कीप एंड बैलेंस थ्योरी को ऐसे समझिए February 17, 2025 / February 17, 2025 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय 21वीं सदी के एशियाई बिस्मार्क समझे जाने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘कीप एंड बैलेंस’ थ्योरी से जहां विकसित देश अमेरिका, रूस, चीन हैरान-परेशान हैं, वहीं भारत ग्लोबल साउथ यानी तीसरी दुनिया के देशों के दूरगामी हितों की हिफाजत करते हुए तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है। यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ, रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग द्वारा वक्त-वक्त पर की हुई बयानबाजियां इस बात की चुगली करती हैं। इसके अलावा भी बहुतेरे राष्ट्राध्यक्ष हैं जो कुछ ऐसी ही बातें छेड़ चुके हैं, जो गलत भी नहीं है। समझा जाता है कि जैसे भारतीय सियासत में उन्होंने अटलबिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कद्दावर नेताओं को साधते हुए नरेंद्र मोदी ने खुद को एक आदमकद चेहरे के रूप में स्थापित करते हुए पहले मुख्यमंत्री, फिर प्रधानमंत्री बने। ठीक वैसे ही अब अमेरिका, रूस और चीन को साधते हुए वो भारत के नेतृत्वकर्ता के तौर पर अपने राष्ट्र को एक अग्रणी विकसित देश की कतार में खड़ा करके ही दम लेंगे। उनके द्वारा पिछले 10-11 साल में जो युगान्तकारी निर्णय लिए गए हैं, वह भी इसी ओर इशारा करते हैं। इसे मोदी भारत का अमृतकाल भी करार देते आए हैं। अपनी हालिया अमेरिकी यात्रा (12-13 फरवरी 2025) के दौरान एक बार फिर से उन्होंने जिस द्विपक्षीय सूझबूझ कूटनीतिक चतुराई का परिचय दिया है, यह उसी का नतीजा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ को भी यहां तक कहना पड़ा कि “भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक टफ निगोशिएटर हैं। वह मुझसे कहीं ज्यादा सख्त वार्ताकार हैं और मुझसे कहीं अच्छे वार्ताकार भी हैं। इसमें उनका कोई मुकाबला ही नहीं है।” जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दोस्त के रूप में दिलेर होने के साथ-साथ बेहद प्रोफेशनल भी हैं। यही वजह है कि पिछले एक दशक में वैश्विक दुनियादारी में भारत का कद और पद बहुत ऊंचा उठा है। कई मामलों में वो देश के पहले प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी कर चुके हैं या फिर उसे तोड़ चुके हैं, जो साधारण बात नहीं है। उनके नेतृत्व में भाजपा और उनके संरक्षक के रूप में आरएसएस की भी देशव्यापी साख बढ़ी है। अंतर्राष्ट्रीय कुटनीतिज्ञ बताते हैं कि जिस तरह से उन्होंने अमेरिकी नेतृत्व वाले ‘नाटो’ और रूसी (सोवियत संघ) नेतृत्व वाले ‘सीटो’ से जुड़े देशों को एक साथ साधा है, कुछ को अपने पाले में कर लिया है, वह काबिलेतारीफ है। वहीं, चीनी नेतृत्व वाले ब्रिक्स में रूसी सलाह पर बने रहने के साथ-साथ अमेरिकी नेतृत्व वाले क्वाड में भी सम्मान जनक रूप से जमे रहना कोई साधारण कूटनीतिक गेम नहीं है। वहीं, खास बात यह कि अमेरिका के मुकाबले रूस-चीन-भारत गठजोड़ खड़ा करने का वैश्विक भय पैदा करने वाले चीन को, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी के मुकाबले अमेरिका-रूस-भारत गठजोड़ का नया वैश्विक भय एहसास करवाना चाहते हैं। क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ भी कुछ ऐसा ही करना चाहते हैं, ताकि दुनियादारी के मामले में अतिशय महत्वाकांक्षी देश चीन को काबू में रखा जा सके। बता दें कि ट्रंफ के पुतिन और मोदी से मित्रवत और व्यक्तिगत सम्बन्ध भी हैं। आपको यह जानकार हैरत होगी कि पीएम मोदी सबकुछ कर-करवा रहे हैं, लेकिन अमेरिका, रूस, चीन यानी तीनों के खिलाफ कहीं भी खुलेआम सामने नजर नहीं आ रहे हैं। क्योंकि तीनों बड़े देशों की राष्ट्रीय/व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को संतुलित रखना कोई साधारण बात नहीं है, जबकि इसी में भारत का दूरगामी हित निहित है। यह सब कुछ करते हुए भी मोदी, पुतिन के प्रति सॉफ्ट हैं, क्योंकि रूस भारत का भरोसेमंद अंतर्राष्ट्रीय पार्टनर समझा जाता है। वहीं कभी पाकिस्तान-चीन परस्त रहे अमेरिका, भारत विरोधी चीन और भारत-चीन के सवाल पर तटस्थ रुख रखने वाले रूस को इस करीने से साध रहे हैं कि तीनों भारत के हितबर्धक बने रहें, जबकि भारत उनके किसी भी अंतर्राष्ट्रीय या द्विपक्षीय ‘पाप’ से दूर रहे। मतलब कि गुटनिरपेक्ष बना रहे। भारत के पड़ोसी देश चीन को नियंत्रित रखने के लिए मोदी की यह नीति अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिज्ञों के बीच शोध का विषय है और इसलिए उन्हें 21वीं सदी का एशियाई बिस्मार्क करार दिया जाता है। लोग परस्पर यही सवाल पूछते हैं कि आखिर यह सबकुछ करते हुए मोदी क्या चाहते हैं? भारत को इन सबकी जरूरत क्या है? तो यह जान लीजिए कि कभी सोने की चिड़ियां और विश्व गुरु रहे भारत को मोदी पुनः वही दर्जा दिलाना चाहते हैं। वह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के साथ-साथ पूरी दुनिया में हिंदुत्व के प्रति एक नया आकर्षण पैदा करना चाहते हैं। वह अखण्ड भारत के सपने को पूरा करके उन क्षेत्रीय विडंबनाओं को समाप्त करना चाहते हैं जिनको लेकर अबतक अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठता आया है। महत्वपूर्ण बात यह कि यह सबकुछ करते हुए मोदी इन विषयों पर बोलते कम हैं, जबकि उनके काम दहाड़ते हैं। वह दुनियावी देशों के निरंतर यात्रा पर रहते हैं या फिर अपने प्रतिनिधियों को भेजते रहते हैं तो इसका मतलब भी यही है कि वह सबसे व्यक्तिगत और भरोसेमंद सम्बंध चाहते हैं। चाहे फ्रांस हो या जापान, ऑस्ट्रेलिया हो या दक्षिण कोरिया, ब्राजील हो या दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब हो या ईरान, इंग्लैंड हो या जर्मनी, प्रधानमंत्री दुनिया के दूसरी पंक्ति वाले देशों को भी भारत के हित में साधते जा रहे हैं। वहीं, ग्लोबल साउथ यानी तीसरी दुनिया के देशों की जब वे बात करते हैं तो इससे भारत को मिलने वाले एक बड़े बाजार का भी।पता चलता है। स्वाभाविक है कि यह सबकुछ प्रधानमंत्री मोदी की जैसे को तैसा वाली नीतियों से ही संभव हो पा रहा है। भारत का दूरगामी हित इसी में निहित है। वहीं, यह भी समझा जा रहा है कि दुनियावी कूटनीति के लिए एक अबूझ पहेली बन चुके भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को समझना सबके बूते की बात भी नहीं है। क्योंकि यह भारतीयों के पुनर्जागरण का काल है।इसलिए इंतजार कीजिए और अमृतकाल के दौर को समझिए। कमलेश पांडेय Read more » understand Narendra Modi's Keep and Balance Theory like this नरेंद्र मोदी की कीप एंड बैलेंस थ्योरी