राजनीति शख्सियत समाज ताशकंद में हमने खोया लाल बहादुर October 1, 2024 / October 1, 2024 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment 2 अक्टूबर शास्त्री जयंती विशेष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाग्य और कर्म के बीच के संघर्ष में कभी कर्म जीतता है तो कभी भाग्य, किन्तु कभी-कभी दोनों के इतर प्रारब्ध बलवान हो जाता है।आध्यात्म और दर्शन के अध्येता प्रारब्ध को सर्वोपरि मानकर नियति के फ़ैसले को अंतिम निर्णय कहते हैं और प्रारब्ध सबकुछ छीनकर भी कभी-कभी उससे कहीं अधिक लौटा […] Read more » 2 अक्टूबर शास्त्री जयंती लाल बहादुर शास्त्री
राजनीति वन नेशन वन इलेक्शन आज के भारत की आवश्यकता October 1, 2024 / October 1, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में लोकसभा एवं विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं। परंतु केंद्र सरकार द्वारा कुछ विधानसभाओं को 1950 एवं 1960 के दशक में इनकी अवधि समाप्त होने के पूर्व ही भंग करने के चलते कुछ विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा से अलग कराने की आवश्यकता पड़ी थी, उसके बाद से लोकसभा, विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय स्तर पर नगर निगमों, निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग समय पर कराए जाने लगे। आज स्थिति यह निर्मित हो गई है कि लगभग प्रत्येक सप्ताह अथवा प्रत्येक माह भारत के किसी न किसी भाग में चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष केवल 65 दिन ऐसे रहे हैं जब भारत के किसी स्थान पर चुनाव नहीं हुए हैं। किसी भी देश में चुनाव कराए जाने पर न केवल धन खर्च होता है बल्कि जनबल का उपयोग भी करना पड़ता है। जनबल का यह उपयोग एक तरह से अनुत्पादक श्रम की श्रेणी में गिना जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के श्रम से किसी प्रकार का उत्पादन तो होता नहीं है परंतु एक तरह से श्रमदान जरूर करना होता है। यह श्रम यदि बचाकर किसी उत्पादक कार्य में लगाया जाय तो केवल कल्पना ही की जा सकती है कि इस श्रम से देश के सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की जा सकती है। अमेरिकी थिंक टैंक के एक अर्थशास्त्री के अनुसार, देश में बार बार चुनाव कराए जाने के चलते उस देश का सकल घरेलू उत्पाद लगभग एक प्रतिशत से कम हो जाता है। चुनाव कराने के लिए होने वाले खर्च पर भी यदि विचार किया जाय तो भारत में केवल लोकसभा चुनाव कराने के लिए ही 60,000 करोड़ रुपए का खर्च किया जाता है। आप कल्पना कर सकते हैं इस राशि में यदि विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं, नगर निगमों, निकायों एवं ग्राम पंचायतों के चुनाव पर किए जाने वाले खर्च को भी जोड़ा जाय तो खर्च का यह आंकड़ा निश्चित ही एक लाख करोड़ रुपए के आंकडें को पार कर जाएगा। उक्त बातों के ध्यान में आने के पश्चात केंद्र सरकार ने विचार किया है कि भारत में “वन नेशन वन इलेक्शन” के नियम को लागू किया जाना चाहिए। इस विचार को आगे बढ़ाने एवं इस संदर्भ में नियम आदि बनाने के उद्देश्य से भारत के पूर्व राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में राष्ट्रपति/केंद्र सरकार को सौंप दी है। इसके बाद, केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल की समिति ने इस रिपोर्ट को स्वीकृत कर लिया है एवं इसे अब लोकसभा एवं राज्यसभा के सामने विचार के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। किसी भी देश की लोकतंत्रीय प्रणाली में समय पर चुनाव कराना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। चुनाव किस प्रकार हों, समय पर हों एवं सही तरीके से हों, इसका बहुत महत्व होता है। परंतु देश में चुनाव बार बार होना भी अपने आप में ठीक स्थिति नहीं कही जा सकती है। विश्व के कई देशों, यथा स्वीडन, ब्राजील, बेलजियम, दक्षिण अफ्रीका, आदि में समस्त प्रकार के चुनाव एक साथ ही कराए जाने के नियम का पालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है। चुनाव एक साथ कराने के कई फायदे हैं जैसे इन देशों में चुनाव कराने सम्बंधी खर्चों पर नियंत्रण रहता है। दूसरे, सुरक्षा हेतु पुलिसकर्मियों एवं चुनाव करवाने के लिए स्थानीय कर्मचारियों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता को कम किया जा सकता है। तीसरे, देश में चुनाव एक साथ कराने से अभिशासन पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है एवं चौथे विभिन्न स्तर के चुनाव एक साथ कराने से चुनाव में वोट डालने वाले नागरिकों की संख्या में निश्चित ही वृद्धि होती है क्योंकि नागरिकों को मालूम होता है कि पांच साल में केवल एक बार ही वोट डालना है अतः वह अन्य कार्यों को दरकिनार करते हुए अपने वोट डालने के अधिकार का उपयोग करना पसंद करता है। इसी प्रकार यदि कोई नागरिक किसी अन्य नगर यथा दिल्ली में कार्य कर रहा है और उसके मुंबई का निवासी होने चलते उसे वोट डालने के लिए मुंबई जाना होता है तो पांच वर्ष में एक बार तो इस महान कार्य के लिए वह दिल्ली से मुंबई आ सकता है परंतु पांच वर्षों में पांच बार तो वह दिल्ली से मुंबई नहीं जा पाएगा। इसके अलावा लोकसभा, विधानसभाओं, स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग होने से विभिन्न पार्टियों के पदाधिकारी, इनमें केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के मंत्री आदि भी शामिल रहते हैं, अपना सरकारी कार्य छोड़कर चुनाव प्रचार के लिए अपना समय देते हैं। जबकि, यह समय तो उन्हें देश एवं प्रदेश की सेवा में लगाना चाहिए। इससे देश में अभिशासन की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। वन नेशन वन इलेक्शन के लिए गठित उक्त विशेष समिति ने यह सलाह दी है कि शुरुआत में लोकसभा एवं समस्त प्रदेशों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते है। यदि ऐसा होता है तो यह भी सही है कि देश में लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संसाधनों की भारी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी, इसका हल किस प्रकार निकाला जाएगा इस पर भारतीय संसद में विचार किया जा सकता है। साथ ही, भारत में 6 राष्ट्रीय दल, 54 राज्य स्तरीय दल एवं 2000 से अधिक गैर मान्यता प्राप्त दल हैं जिनके बीच में सामंजस्य स्थापित करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, भारत में अंतिम बार लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव एक साथ 1960 के दशक में कराए गए थे। आज भारतीय नागरिकों को भी शिक्षित करने की आवश्यकता होगी कि लोकसभा, विधान सभाओं एवं स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ किस प्रकार कराए जा सकते हैं ताकि उन्हें वोट डालने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो। इन समस्याओं का हल भारतीय संसद में चर्चा के दौरान निकाला जा सकता है। यदि किसी कारण से केंद्र में लोकसभा अथवा किसी प्रदेश में विधानसभा पांच वर्ष की समय सीमा के पूर्व ही गिर जाती है तो लोकसभा अथवा उस प्रदेश की विधान सभा के चुनाव शेष बचे हुए समय के लिए पुनः कराए जा सकते हैं, ऐसे प्रावधान को कानूनी रूप प्रदान दिया जा सकता है। इससे विभिन्न राजनैतिक दलों के सांसदों एवं विधायकों पर भी यह दबाव रहेगा कि वे लोकसभा अथवा विधानसभा को समय पूर्व भंग कराने अथवा गिराने का प्रयास नहीं करें।वन नेशन वन इलेक्शन के सम्बंध में कुछ संशोधन तो देश के वर्तमान कानून में करने ही होंगे और फिर पूर्व में भी विभिन्न विषयों पर अलग अलग खंडकाल में (समय समय पर) 100 बार से अधिक संशोधन कानून में किए ही जा चुके हैं। यह तर्क भी सही नहीं है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से भारत के नागरिक केंद्र एवं राज्यों में एक ही राजनैतिक दल की सरकार चुनने को प्रोत्साहित होंगे। परंतु, भारत का नागरिक अब पूर्ण रूप से परिपक्व एवं सक्षम हो चुका है कि वह लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर केवल एक ही दल की सरकार को नहीं चुनेगा। देश में ऐसा कई बार हुआ है कि लोकसभा एवं विधान सभा के एक साथ हुए चुनवा में लोकसभा में एक दल के सांसद को चुना गया है एवं विधान सभा में किसी अन्य दल के विधायक को चुना गया है। भारत आज एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे समय में भारत को अपने संसाधनों का उत्पादक कार्यों के लिए उपयोग करना आवश्यक होगा न कि रक्षा एवं सरकारी कर्मचारी देश में बार बार हो रहे चुनाव के कार्यों में व्यस्त रहें। कुल मिलाकर वन नेशन वन इलेक्शन, देश के हित में उठाया जा रहा एक मजबूत कदम है। इस विषय पर, भारत के हित में, देश के समस्त राजनैतिक दलों को गम्भीरता से विचार कर इस नियम को भारत में लागू किया जाना चाहिए। प्रहलाद सबनानी Read more » one nation one election वन नेशन वन इलेक्शन
राजनीति समाज हरियाणा का खराब लिंगानुपात क्यों नहीं बना चुनावी मुद्दा? October 1, 2024 / October 1, 2024 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना के शुरुआती साल 2014 में लिंगानुपात में कुछ सुधार के बाद हरियाणा में यह फिर से बिगड़ने लगा है। एक साल में ही हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात में बड़ा सुधार हुआ। एक हज़ार लड़कों के मुकाबले 900 लड़कियों के जन्म के साथ ही यह बीते 20 साल के […] Read more » हरियाणा का खराब लिंगानुपात
राजनीति अहिंसा को जीवनशैली बनायें October 1, 2024 / October 1, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस 2 अक्टूबर 2024 पर विशेषः -ः ललित गर्ग:- आज चारों तरफ हिंसा का बाहुल्य है। आज के युग तो अनावश्यक हिंसा का युग कहा जा सकता है। बिना मतलब जीवों की और आदमी की भी हिंसा हो रही है। हिंसा करना एक शौक बनता जा रहा है। धीरे-धीरे यह शौक आदमी की […] Read more »
आर्थिकी राजनीति विश्व के वित्तीय एवं निवेश संस्थान भारत के आर्थिक विकास के अनुमानों को बढ़ा रहे हैं October 1, 2024 / October 1, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment आज जब विश्व में कई विकसित एवं विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याएं दिखाई दे रही है, वैश्विक स्तर पर कई प्रकार की विपरीत परिस्थितियों के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है। कई विदेशी एवं निवेश संस्थान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के सम्बंध में पूर्व में दिए गए अपने अनुमानों में संशोधन कर रहे हैं कि आगे आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति और अधिक तेज होगी। विशेष रूप से कोरोना महामारी के पश्चात भारत ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में तेज रफ्तार पकड़ ली है। भारत में आर्थिक क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों को लागू किया गया है। स्टैंडर्ड एवं पूअर (एसएंडपी) नामक विश्व विख्यात क्रेडिट रेटिंग संस्थान ने हाल ही में अपने एक प्रतिवेदन में बताया है कि भारत, केलेंडर वर्ष 2024 में एवं इसके बाद के वर्षों में 6.7 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर के साथ वर्ष 2031 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा तथा भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान वर्तमान के 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाएगा। साथ ही, भारत में प्रति व्यक्ति आय भी बढ़कर उच्च मध्यम आय समूह की श्रेणी की हो जाएगी। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार भी वर्तमान के 3.92 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। हालांकि एसएंडपी ने भारत में आर्थिक विकास दर के 6.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ने का अनुमान लगाया है जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर के 7.3 प्रतिशत के अनुमान के विरुद्द 8.2 प्रतिशत की रही है। भारत में अब सरकारी क्षेत्र के साथ ही निजी क्षेत्र भी पूंजीगत खर्चों को बढ़ाने पर ध्यान देता हुआ दिखाई दे रहा है, इससे आगे आने वाले समय में केंद्र सरकार पर पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करने सम्बंधी दबाव कम होगा और केंद्र सरकार का बजटीय घाटा और अधिक तेजी से कम होगा, जिससे अंततः विदेशी निवेशक भारत में अपना निवेश बढ़ाने के लिए आकर्षित होंगे। इसी प्रकार, विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी वर्ष 2024, 2025 एवं 2026 में भारत के आर्थिक विकास सम्बंधी अपने अनुमानों के बढ़ाया है। विश्व बैंक का तो यह भी कहना है कि भारत ने केलेंडर वर्ष 2023 में विश्व के वार्धिक आर्थिक विकास में 16 प्रतिशत का योगदान दिया है और इस प्रकार भारत अब विश्व में आर्थिक विकास के इंजिन के रूप में कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने वर्ष 2023 में 7.2 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की थी, जो विश्व की अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं द्वारा इसी अवधि में हासिल की गई विकास दर से दुगुनी थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की आर्थिक विकास दर के वर्ष 2024 के अपने पूर्व अनुमान 6.7 प्रतिशत की विकास दर को बढ़ा कर 7 प्रतिशत कर दिया है। ओईसीडी देशों के समूह ने भी वर्ष 2024 एवं 2025 में वैश्विक स्तर पर आर्थिक प्रगति के अनुमान जारी किए हैं। इन अनुमानों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2024 एवं 2025 में सकल घरेलू उत्पाद में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की जा सकेगी। वहीं भारत की आर्थिक विकास दर वर्ष 2024 के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2025 में 6.8 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। चीन की आर्थिक विकास दर वर्ष 2024 में 4.9 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2025 में 4.5 रहने की सम्भावना है। इसी प्रकार रूस एवं अमेरिका की आर्थिक विकास दर भी वर्ष 2024 में क्रमशः 3.7 प्रतिशत एवं 2.6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2025 में क्रमशः 1.1 प्रतिशत एवं 1.6 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। कुल मिलाकर आज विश्व के लगभग समस्त वित्तीय एवं निवेश संस्थान आगे आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक विकास दर के बढ़ने के अनुमान लगा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर वित्तीय संस्थानों द्वारा भारत के आर्थिक विकास दर के सम्बंध में लगाए जा रहे अनुमानों के अनुसार यदि भारत आगे आने वाले वर्षों में प्रतिवर्ष 6.7 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करता है तो भारत वर्ष 2031 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसके ठीक विपरीत भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की थी एवं भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत वित्तीय वर्ष 2024-25 में 7 प्रतिशत से अधिक की आर्थिक विकास दर हासिल करेगा, इस प्रकार तो भारत वर्ष 2031 के पूर्व ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। दूसरे, विश्व में भारत से आगे जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाएं हैं, आज इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं में कई प्रकार की समस्याएं दिखाई दे रही हैं जिनके चलते इन देशों की आर्थिक विकास दर आगे आने वाले कुछ वर्षों में शून्य रहने की सम्भावना दिखाई दे रही है। इस प्रकार, बहुत सम्भव है कि भारत मार्च 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा एवं मार्च 2026 अथवा मार्च 2027 तक जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा और भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए वर्ष 2031 तक इंतजार ही नहीं करना पड़ेगा। विश्व बैंक द्वारा जारी वैश्विक आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 ने भी वित्तीय वर्ष 2025 में भारत को विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बने रहने के संकेत दिए हैं। पिछले तीन वर्षों में पहली बार वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2024 में स्थिर होने के संकेत दे रही है। वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के वर्ष 2024-25 में 2.6 प्रतिशत एवं वर्ष 2025-26 में 2.7 प्रतिशत रहने की सम्भावना विश्व बैंक द्वारा की गई है। इसी प्रकार, मुद्रा स्फीति में भी धीरे धीरे कमी आने के संकेत मिल रहे हैं एवं यह वैश्विक स्तर पर औसतन 3.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है। मुद्रास्फीति उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को कम करती है एवं उनके व्यय करने की क्षमता को भी हत्तोत्साहित करती है। कई देशों को मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ता है। उच्च ब्याज दरें मुद्रास्फीति को नियंत्रित तो करती हैं परंतु आर्थिक प्रगति को धीमा भी कर देती है जिससे रोजगार के अवसरों में कमी भी दृष्टिगोचर होती है। उक्त वर्णित वैश्विक आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 के अनुसार दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों के योगदान से वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने 8.2 प्रतिशत की अतुलनीय आर्थिक विकास दर हासिल की है, यह आर्थिक विकास दर देश में मानसून व्यवधानों के कारण कृषि क्षेत्र के उत्पादन वृद्धि में आई कमी के बावजूद हासिल की गई है। साथ ही, भारत में व्यापक कर आधार से राजस्व में वृद्धि के चलते सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष राजकोषीय घाटे में कमी हासिल की जा सकी है। विशेष रूप से भारत में व्यापार घाटा भी कम होता दिखाई दे रहा है, जिससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में समग्र आर्थिक स्थिरता लाने में योगदान मिला है। जलवायु परिवर्तन के कारण भी विश्व के कई देशों में बाढ़, सूखा एवं तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता और प्रबलता बढ़ती दिखाई दे रही है। इस तरह की आपदाएं बुनियादी ढांचे, निवास स्थानों एवं व्यवसाओं को व्यापक क्षति पहुंचा रही हैं। साथ ही, यह कृषि उत्पादन को भी बाधित कर रही है, जिससे खाद्यान के उत्पादन में कमी एवं इनकी कीमतों में वृद्धि होती दिखाई दे रही है। इससे सरकारी वित्त व्यवस्था पर भी अतिरिक्त भार पड़ रहा है। विश्व बैंक की आर्थिक सम्भावना रिपोर्ट 2024 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में तार्किक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। वर्ष 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता के संकेत जरूर दिए हैं परंतु कोविड महामारी से पहले के विकास के स्तरों की तुलना में वैश्विक स्तर पर विकास अभी भी धीमा बना हुआ है। वैश्विक स्तर पर मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर प्रभावी उपाय करने होंगे। यहां भारत की “वसुधैव क़ुटुम्बकम” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” जैसी भावनाओं के साथ, वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास के लिए, यदि सभी देश मिलकर आगे बढ़ते हैं तो भारत के साथ साथ पूरे विश्व में भी खुशहाली लाई जा सकती है। प्रहलाद सबनानी Read more » भारत के आर्थिक विकास
आर्थिकी राजनीति शक्तिशाली देशों की सूची में भारत पहुंचा तीसरे स्थान पर September 27, 2024 / September 27, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment आस्ट्रेलिया के एक संस्थान, लोवी इन्स्टिटयूट थिंक टैंक, ने हाल ही में एशिया में शक्तिशाली देशों की एक सूची जारी की है। “एशिया पावर इंडेक्स 2024” नामक इस सूची में भारत को एशिया में तीसरा सबसे बड़ा शक्तिशाली देश बताया गया है। वर्ष 2024 के इस इंडेक्स में भारत ने जापान को पीछे छोड़ा है। इस इंडेक्स में अब केवल अमेरिका एवं चीन ही भारत से आगे है। रूस तो पहिले से ही इस इंडेक्स में भारत से पीछे हो चुका है। इस प्रकार अब भारत की शक्ति का आभास वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जाने लगा है। एशिया पावर इंडेक्स 2024 के प्रतिवेदन में बताया गया है कि वर्ष 2023 के इंडेक्स में भारत को 36.3 अंक प्राप्त हुए थे जो वर्ष 2024 के इंडेक्स में 2.8 अंक से बढ़कर 39.1 अंकों पर पहुंच गए हैं एवं भारत इस इंडेक्स में चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर आ गया है। एशिया पावर इंडेक्स 2024 को विकसित करने के लिए कुल 27 देशों और क्षेत्रों से प्राप्त आंकड़ों का आंकलन एवं सूक्षम विश्लेषण किया गया है। एशिया में जो नए शक्ति समीकरण बन रहे हैं उनका ध्यान भी इस इंडेक्स में रखा गया है तथा विभिन्न मापदंडों पर आधारित पिछले 6 वर्षों के आकड़ों का विश्लेषण कर यह इंडेक्स बनाया गया है। आर्थिक क्षमता, सैन्य (मिलिटरी) क्षमता, अर्थव्यवस्था में लचीलापन, भविष्य में संसाधनों की उपलब्धता, कूटनीतिक, राजनयिक एवं आर्थिक सम्बंध एवं सांस्कृतिक प्रभाव जैसे मापदंडो पर उक्त 27 देशों एवं क्षेत्रों का आंकलन कर विभिन्न देशों को इस इंडेक्स में स्थान प्रदान किया गया है। उक्त इंडेक्स में अमेरिका, 81.7 अंकों के साथ प्रथम स्थान पर है। चीन 72.7 अंकों के साथ द्वितीय स्थान पर है। भारत ने इस इंडेक्स में 39.1 अंक प्राप्त कर तृतीय स्थान प्राप्त किया है। जापान को 38.9 अंक, आस्ट्रेलिया को 31.9 अंक एवं रूस को 31.1 अंक प्राप्त हुए हैं एवं इन देशों का क्रमशः चतुर्थ, पांचवा एवं छठवां स्थान रहा है। इस इंडेक्स में प्रथम 5 स्थानों में से 4 स्थानों पर “क्वाड” के सदस्य देश हैं – अमेरिका, भारत, जापान एवं आस्ट्रेलिया। एशिया में अमेरिका की लगातार बढ़ती मजबूत ताकत के चलते उसे इस इंडेक्स में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि, चीन की मजबूत मिलिटरी ताकत के चलते उसे इस इंडेक्स में द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। जापान के इस इंडेक्स में तीसरे से चौथे स्थान पर आने के कारणों में मुख्य कारण उसकी आर्थिक स्थिति में लगातार आ रही गिरावट है। भारत ने चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर छलांग लगाई है। आर्थिक क्षमता एवं भविष्य में संसाधनो की उपलब्धता के क्षेत्र में भारत को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है। साथ ही, सैन्य क्षमता, कूटनीतिक, राजनयिक एवं आर्थिक सम्बंध के क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रभाव के क्षेत्र में भारत को चौथा स्थान प्राप्त हुआ है। अब केवल अमेरिका और चीन ही भारत से आगे हैं एवं जापान, आस्ट्रेलिया एवं रूस भारत से पीछे हो गए हैं। जबकि, कुछवर्षपूर्वतकविश्वकीमहानशक्तियोंमेंभारतकाकहींभीस्थाननजरनहींआताथा।केवलअमेरिका, रूस, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रान्सआदिदेशोंकोहीविश्वमेंमहाशक्तिकेरूपमेंगिनाजाताथा।अबइससूचीमेंभारततीसरेस्थानपरपहुंचगयाहै। उक्त इंडेक्स तैयार करते समय आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि अन्य शक्तिशाली देशों का भी आंकलन किया गया है। साथ ही, विश्व में तेजी से बदल रहे शक्ति के नए समीकरणों का भी व्यापक आंकलन किया गया है। इस आंकलन के अनुसार अमेरिका अभी भी एशिया में सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बना हुआ है। चीन तेजी से आगे बढ़कर दूसरे स्थान पर आया है। तेजी से बढ़ती सेना एवं आर्थिक तरक्की चीन की मुख्य ताकत है। उक्त प्रतिवेदन में यह तथ्य भी बताया गया है कि उभरते हुए भारत से अपेक्षाओं एवं वास्तविकताओं में अंतर दिखाई दे रहा है। इस प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के पास अपने पूर्वी देशों को प्रभावित करने की सीमित क्षमता है। परंतु, वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। भारत अपने पड़ौसी देशों नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बंगलादेश, म्यांमार एवं अफगानिस्तान, आदि की विपरीत परिस्थितियों के बीच भारी मदद करता रहा है। आसियान के सदस्य देशों की भी भारत समय समय पर मदद करता रहा है, एवं इन देशों का भारत पर अपार विश्वास रहा है। कोरोना के खंडकाल में एवं श्रीलंका, म्यांमार तथा अफगानिस्तान में आए सामाजिक संघर्ष के बीच भारत ने इन देशों की मानवीय आधार पर भरपूर आर्थिक सहायता की थी एवं इन्हें अमेरिकी डॉलर में लाइन आफ क्रेडिट की सुविधा भी प्रदान की थी ताकि इनके विदेशी व्यापार को विपरीत रूप से प्रभावित होने से बचाया जा सके। उक्त प्रतिवेदन के अनुसार भारत के पास भारी मात्रा में संसाधन मौजूद हैं एवं जिसके बलबूते पर आगे आने वाले समय में भारत के आर्थिक विकास को और अधिक गति मिलने की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। साथ ही, भारत अपने पड़ौसी देशों की आर्थिक स्थिति सुधारने की भी क्षमता रखता है। भारत ने हाल ही के वर्षों में उल्लेखनीय आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं। जिसके चलते लगातार तेज हो रहे आर्थिक विकास के बीच सकल घरेलू उत्पाद की स्थिति और बेहतर हो रही है तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की मान्यता बढ़ रही है। साथ ही, बहुपक्षीय मंचों पर भी भारत की सक्रिय भागीदारी बढ़ती जा रही है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में एशिया के कई देशों के साथ अपने सम्बंधों को मजबूत किया है। अब तो अफ्रीकी देशों का भी भारत पर विश्वास बढ़ता जा रहा है एवं भारत में ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। भारत में हाल ही में अपनी कूटनीतिक एवं राजनयिक क्षमता में भी भरपूर सुधार किया है एवं इसके बल पर वैश्विक स्तर पर न केवल विकसित देशों बल्कि विकासशील देशों को भी प्रभावित करने में सफल रहा है। यूक्रेन एवं रूस युद्ध के समय केवल भारत ही दोनों देशों के साथ चर्चा कर पाता है एवं युद्ध को समाप्त करने का आग्रह दोनों देशों को कर पाता है। इसी प्रकार, इजराईल एवं हमास युद्ध के समय भी भारत दोनों देशों के साथ युद्ध समाप्त करने की चर्चा करने में अपने आप को सहज एवं सक्षम पाता है। आपस में युद्ध करने वाले दोनों देश भारत की सलाह को गम्भीरता से सुनते नजर आते हैं। भारत ने कभी भी विभिन्न देशों के आंतरिक स्थितियों पर अपनी विपरीत राय व्यक्त नहीं की है और न ही कभी उनके आंतरिक मामलों में कभी हस्तक्षेप किया है। इस दृष्टि से वैश्विक पटल पर भारत की यह विशिष्ट पहचान एवं स्थिति है। दक्षिण एशिया के देशों में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है इसलिए भारत का पूरा ध्यान इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम कर अपने प्रभाव को बढ़ाना है। इसी मुख्य कारण से शायद भारत दक्षिण एशिया के देशों पर अधिक ध्यान देता दिखाई दे रहा है। जिसका आशय उक्त प्रतिवेदन में यह लिया गया है कि विश्व के अन्य देशों को सहायता करने की भारत की क्षमता तो अधिक है परंतु अभी उसका उपयोग भारत नहीं कर पा रहा है। हिंद महासागर पर भारत का ध्यान अधिक है और क्वाड के सदस्य देश मिलकर भारत की इस दृष्टि से सहायता भी कर रहे हैं। दक्षिण एशियाई देशों के अलावा विश्व के अन्य देशों की मदद करने के संदर्भ में भारत ने हालांकि अभी हाल ही के समय में बढ़त तो बनाई है परंतु अभी और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। भारत में आगे बढ़ने की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। उक्त प्रतिवेदन में भारत को एशिया को तीसरा सबसे बड़ा ताकतवर देश बताया गया है परंतु वस्तुतः भारत अब एशिया का ही नहीं बल्कि विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ताकतवर देश बन गया है क्योंकि इस सूची में एशिया के बाहर से अमेरिका को भी एशिया में पहिले स्थान पर बताया गया है। एक अन्य अमेरिकी थिंक टैंक का आंकलन है कि भारत यदि इसी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा तो इस शताब्दी के अंत तक भारत, चीन एवं अमेरिका को भी पीछे छोड़कर विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश बन जाएगा। प्रहलाद सबनानी Read more »
राजनीति दवा कारोबार की अनैतिकता से बढ़ता जीवन संकट September 27, 2024 / September 27, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग-केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने दवाइयों के क्वालिटी टेस्ट में 53 दवाओं को फेल कर दिया गया है। उनमें कई दवाओं की क्वालिटी खराब है तो वहीं दूसरी ओर बहुत सी दवाएं नकली भी बिक रही हैं। इन दवाओं में बीपी, डायबिटीज, एसिड रिफलक्स और विटामिन की कुछ दवाइयां भी शामिल […] Read more » Life crisis increasing due to immorality of drug business दवा कारोबार की अनैतिकता
राजनीति देश विरोधी शक्तियों का साथ देते राहुल गांधी ? September 27, 2024 / September 27, 2024 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अमेरिका कभी भी वैश्विक राजनीति में भारत का मित्र नहीं रहा है। हर मोड़ पर इसने भारत को पटखनी देने का हर संभव प्रयास किया है। पाकिस्तान और चीन को भारत के विरुद्ध उकसाने की गतिविधियों में भी अमेरिका की सीआईए सक्रिय रही है। इसके साथ-साथ वहां के नेतृत्व ने भी भारत को नीचा दिखाने […] Read more » Would Rahul Gandhi support anti-national forces देश विरोधी शक्तियों का साथ देते राहुल गांधी
राजनीति कश्मीर में ‘मादरे मेहरबान’ मामले को उठावे भाजपा September 26, 2024 / September 26, 2024 by मनोज ज्वाला | Leave a Comment मनोज ज्वाला भारतीय संविधान से धारा तीन सौ सत्तर को निरस्त करते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर उसे केन्द्र-शासित बना दिए जाने केबाद वहां हो रहे विधानसभा-चुनाव में जब कांग्रेस एवं नेशनल कांफ्रेंस की ओर से अपने अपने चेहरे धोए -चमकाए जा रहे हैं , तब ऐसे में भाजपा को चाहिए कि वह […] Read more » BJP should raise the issue of ‘Madre Meherban’ in Kashmir कश्मीर में मादरे मेहरबान
राजनीति हरियाणा विधानसभा चुनाव और भाजपा की रणनीति September 24, 2024 / September 24, 2024 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतर चुकी है। पार्टी को जहां सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, वहीं अपने कुछ उन विधायकों का भी तीखा विरोध झेलना पड़ रहा है, जिन्हें पार्टी ने विधानसभा चुनाव की दौड़ से बाहर कर दिया है अर्थात […] Read more » हरियाणा विधानसभा चुनाव
राजनीति एकात्म मानववाद – एक दिव्य सिद्धांत September 24, 2024 / September 24, 2024 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment प्रवीण गुगनानी महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु अरस्तु ने कहा था – “विषमता का सबसे बुरा रूप है विषम चीजों को एक समान बनाने का प्रयत्न करना।” The worst form of inequality is to try to make unequal things equal. एकात्म मानववाद, विषमता को इससे बहुत आगे के स्तर पर जाकर […] Read more » एकात्म मानववाद
राजनीति योग एवं योग-निद्रा के चमत्कारी प्रभाव से वैज्ञानिक सहमत September 24, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग विश्व में भारतीय योग की प्रासंगिकता एवं उपयोगिता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, योग के चमत्कारी प्रभावों को अब विज्ञान भी स्वीकारने लगा है। अमेरिका, यूरोप व खासकर चीन में योग को लेकर बड़े शोध किए जा रहे हैं। कुछ समय पहले नोबेल पुरस्कार के सम्मानित एक अमेरिकी न्यूरो सर्जन ने माना था […] Read more » Scientists agree with the miraculous effects of yoga and yoga-nidra योग एवं योग-निद्रा