समाज आदिवासियों में जेण्डर समानता का मिथ December 18, 2010 / December 18, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी आदिवासियों के बारे में यह मिथ प्रचलित है कि उनमें स्त्री-पुरूष का भेद नहीं होता। यह धारणा बुनियादी तौर पर गलत है। आदिवासियों के परंपरागत नियम-कानून के मुताबिक स्त्री का दर्जा पुरूष से नीचे है। वह पुरूष की मातहत है। जिन आदिवासी इलाकों में जमीन के सामूहिक स्वामित्व की जगह जमीन के व्यक्तिगत […] Read more » Aboriginal आदिवासी
विविधा समाज देहव्यापार के बदलते स्वरुप और बिलखती घुंघरू December 13, 2010 / December 18, 2011 by अनिल अनूप | 6 Comments on देहव्यापार के बदलते स्वरुप और बिलखती घुंघरू अनिल अनूप महानगरीय संस्कृति एवं ग्लैमर ने आज देह व्यापार के मायने ही बदल दिए हैं. काफी हाई टेक हो गया है यह व्यापार, देश में आज कुल ग्यारह सौ सत्तर रेड लाइट एरिया हैं. इसमें ब्यापारिक दृष्टिकोण से सबसे ज्यादा धंधा वाला एरिया है कोलकता और मुंबई . कडोडो रूपये का साप्ताहिक आंकडा है […] Read more » Body Profession देहव्यापार
समाज आदिवासी जीवन में परिवर्तन का विरोध क्यों ? December 10, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on आदिवासी जीवन में परिवर्तन का विरोध क्यों ? -जगदीश्वर चतुर्वेदी आदिवासियों के जब भी सवाल उठते हैं तो एक सवाल मन में आता है कि क्या आदिवासी अपरिवर्तनीय हैं ? क्या वे जैसे रहते आए हैं उन्हें वैसे ही रहने दिया जाए ? भारत में पूंजीवादी परिवर्तनों का आदिवासियों पर क्या असर हुआ है ? भारत में 400 आदिवासी समुदाय रहते हैं। जिन्हें […] Read more » Aboriginal आदिवासी
समाज आदिवासी अस्मिता की चुनौतियां December 4, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment -जगदीश्वर चतुर्वेदी आदिवासी समस्या राष्ट्रीय समस्या है। भारत की राजनीति में आदिवासियों को दरकिनार करके कोई राजनीतिक दल नहीं रह सकता। एक जमाना था आदिवासी हाशिए पर थे लेकिन आज केन्द्र में हैं। आदिवासियों की राजनीति के केन्द्र में आने के पीछे प्रधान कारण है आदिवासी क्षेत्रों में कारपोरेट घरानों का प्रवेश और आदिवासियों में […] Read more » Asmita आदिवासी
समाज आदिवासी कौन है ? December 4, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 5 Comments on आदिवासी कौन है ? -जगदीश्वर चतुर्वेदी ‘आदिवासी’ पदबंध के बारे में पहली बात यह कि यह हिन्दी का नाम है और हिन्दी क्षेत्र में इसकी एक सीमा तक प्रासंगिकता है। लेकिन अन्यत्र कोई प्रासंगिकता नहीं है। ‘आदिवासी’ पदबंध विभ्रम पैदा करता है। यह मूल जनजातियों के साथ अनेय जनजातियों के बीच तनाव पैदा करता है। ‘आदिवासी’ पदबंध के पीछे […] Read more » Aboriginal आदिवासी
समाज भारत सरकार की असफल शिक्षा नीति? November 14, 2010 / December 20, 2011 by ललित कुमार कुचालिया | 1 Comment on भारत सरकार की असफल शिक्षा नीति? हमारे देश कों गावो के देश से जाना जाता रहा है . और जिस देश की सत्तर फीसदी जनता ग्रामीण क्षेत्रो में निवास करती हो, जिसने अपने भीतर विभिन्न भाषाओ तथा कला संस्कृति का समावेश किया हो, आप इसी बात से अंदाज़ा लगा सकते हो कि ऐसे देश कों शिक्षा कि कितनी ज़रुरत हो होगी […] Read more » India's failed education policy भारत सरकार की असफल शिक्षा नीति
समाज मर्यादाओं की जकड़न – राखी रघुवंशी November 13, 2010 / December 20, 2011 by राखी रघुवंशी | 3 Comments on मर्यादाओं की जकड़न – राखी रघुवंशी कल अपने साथियों के साथ श्याम नगर की बस्ती में पुस्तकालय कार्यक्रम के लिए जाना हुआ। इस पुस्तकालय में कई दिनों के बाद गई। बच्चों और युवाओं के लिए संचालित पुस्तकालय में दीपिका भी आई। दीपिका 1617 साल की 3री पास लड़की है। दीपिका से मैं पहली बार मिली थी और उससे कहानी की किताबों […] Read more » Limitations मर्यादाओं
समाज लीव इन में रहने वाली महिला रखैल नहीं तो और क्या? November 9, 2010 / May 28, 2013 by ए.एन. शिबली | 12 Comments on लीव इन में रहने वाली महिला रखैल नहीं तो और क्या? ए एन शिबली गत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने लीव इन में रह रही महिलाओं के संबंध में एक अहम फैसला देते हुये कहा की अगर कोई पुरूष रखैल रखता है , जिसको वो गुज़ारे का खर्च देता है और मुख्य तौर पर यौन रिश्तों के लिए या नौकरानी की तरह रखता है तो यह शादी […] Read more » Live in relationship लीव इन
समाज क्योंकि तुम अरुंधती नहीं हो मेरी बहन November 3, 2010 / December 20, 2011 by आवेश तिवारी | 22 Comments on क्योंकि तुम अरुंधती नहीं हो मेरी बहन -आवेश तिवारी क्या आप इरोम शर्मीला को जानते हैं? नहीं, आप अरुंधती रॉय को जानते होंगे और हाँ आप ऐश्वर्या राय या मल्लिका शेहरावत को भी जानते होंगे, आज(2 नवंबर) शर्मीला के उपवास के १० साल पूरे हो गए उसके नाक में जबरन रबर का पाइप डालकर उसे खाना खिलाया जाता है, उसे जब नहीं […] Read more » Arundhati Roy इरोम शर्मीला
समाज रूढ़िवाद की देन है हिन्दू-मुस्लिम विद्वेष November 3, 2010 / December 20, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 10 Comments on रूढ़िवाद की देन है हिन्दू-मुस्लिम विद्वेष -जगदीश्वर चतुर्वेदी इस्लामिक दर्शन और धर्म की परंपराओं के बारे में घृणा के माहौल को खत्म करने का सबसे आसान तरीका है मुसलमानों और इस्लाम धर्म के प्रति अलगाव को दूर किया जाए। मुसलमानों को दोस्त बनाया जाए। उनके साथ रोटी-बेटी के संबंध स्थापित किए जाएं। उन्हें अछूत न समझा जाए। भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश […] Read more » Muslim मुसलमान रूढि़वाद
समाज फ़ेसबुक का जादू सिर पर चढ़कर बोलता है– क्या? November 3, 2010 / December 20, 2011 by विश्वमोहन तिवारी | 8 Comments on फ़ेसबुक का जादू सिर पर चढ़कर बोलता है– क्या? -विश्वमोहन तिवारी ”मैं कितनी सुन्दर हूं”!! या यह भी कि, ”मैं कितना सैक्सी हूं!!!” दुनिया की सबसे अधिक लोकप्रिय वैब साइट फ़ेसबुक के ५० करो.ड से अधिक सक्रिय दीवाने हैं!! इस अद्वितीय घटना के कारण अब मनोवैज्ञानिक इस की लोकप्रियता के कारणों पर शोध भी करने लगे हैं। सोराया मेहदिनाज़ेद ने टोरान्टो के यार्क विश्वविद्यालय […] Read more » Facebook फेसबुक
समाज बंटा हुआ भारतीय समाज November 1, 2010 / December 20, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 6 Comments on बंटा हुआ भारतीय समाज -शिशिर चन्द्र आज भारतीय समाज कई भागों में विभाजित हो गया है. 1947 में जो विभाजन देश ने देखा, वो अब काफी पीछे छूट गया है. ऐसा लगता था कि देश विभाजन के बाद समग्रता को प्राप्त करेगा; लेकिन यह दिवा स्वप्न ही साबित हुआ. आज विभाजन की लकीरें और गहरी हो गयी हैं. सिर्फ […] Read more » Indian भारतीय