कोरोना की इस लड़ाई में हम न जाने कितने ही अपनों को खोते जा रहे हैं। जैसे-जैसे इसका प्रभाव बढ़ रहा है वैसे-वैसे ही हम देख रहे हैं कि डॉक्टरों की कोरोना के उपचार में उग्रता भी बढ़ती जा रही है।
आरंभ से ही यह विश्व की सभी औषधि एवं उपचार से जुड़ी संस्थाओं ने बार बार यह कहा, और यहां तक कि बड़े बड़े चिकित्सकों ने भी अनेक बार यह बताया कि बहुत सी औषधियां जो कोरोना में दी जा रही हैं, उनका इसमें कोई भी लाभ नहीं है। परंतु यदि लाभ नहीं है, तो जो हानि हो रही है उसका उत्तरदायित्व कौन लेगा ? हर एलोपैथिक औषधि के कुछ लाभ हैं तो कुछ हानियां भी अवश्य हैं। जब यह देखा जाता है कि किसी रोग की स्थिति में लाभ बहुत अधिक हैं, और हानि कम हैं, तब ही वह औषधि रोगी को दी जाती है।
यदि आप इंटरनेट पर यह जानने का प्रयास करें कि क्या वायरस इन्फेक्शन में ज्वर को नीचे लाना उचित है, तो आप आश्चयजनक रूप से यह पाएंगे कि कोई भी विश्व भर का लेख, शोध या संस्था यह नहीं बताती कि इस स्थिति में ज्वर को उतारना चाहिए। यह सभी सर्वसम्मति से कहते हैं कि वायरल इंफेक्शन में ज्वर को उतारने से न केवल रोग की अवधि बढ़ेगी, अपितु लोग मृत्यु की ओर अग्रसर भी होंगे।
पिछले दिनों अमेरिका के विश्वविख्यात वैज्ञानिकों के शोध में यह सामने आया कि ज्वर उतारने के कारण ही रोगी का इम्यून सिस्टम अर्थात् रोगप्रतिरोधी क्षमता बार-बार साइटोकाईन छोड़ रही है। और हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता के जिन साइटोंकाईन्ज़ को ज्वर को हमारे मस्तिष्क के हाइपोथैलमस से चढ़वाना था, उनको ज्वर ने ही शरीर से समाप्त भी करना था। ऐसा लगता है कि बार-बार ज्वर को दवाओं से नीचे लाकर ही साईकोटाईन स्टोर्म जैसी विकट समस्या बन रही है जो आज इतने लोगों को काल के गाल में लिये जा रही है। परंतु दूसरी ओर बहुत बड़े-बड़े डॉक्टर टीवी पर आकर खुलेआम यह कह रहे हैं कि 6-6 घण्टे में तो अवश्य ही, पर हो सके तो चार चार घण्टे में ही पैरासिटामोल की 650 मिलीग्राम की गोली खाते रहें, ज्वर को ऊपर ही न आने दें। अन्य डाक्टर भी रोगियों को जो सलाह दे रहे हैं वह भी लगातार पेरासिटामोल खाने को कह रहे हैं, वह भी 650 की मात्रा दिन में 4 बार, चाहे जवर न भी हो तो भी।
यदि उन चिकित्सकों से यह पूछा जाये कि इस ज्वर उतारने और उनकी इस औषधि पैरासिटामोल का कोविड के रोग को समाप्त करने में क्या लाभ है, तो वह केवल यह बताएंगे कि इससे रोगी का कष्ट, सिर और शरीर की पीढ़ा आदि कुछ समय के लिये कम हो जाती है। तो क्या इस तुच्छ सामायिक लाभ के लिए रोग को बढ़ने दें और इससे होने वाली हानि को अनदेखा कर दें? क्या अधिक ज्वर हो तो गीली पट्टी रख कर 102 तक नहीं लाया जा सकता? यह बात भी समझनी होगी इस वायरस में प्रायः निम्न स्तर का ही ज्वर आता है जो रोग को लड़ने में शरीर की आवश्यकता भी है।
यह देखा गया है कि इस प्रकार ज्वर को दबाने से रोग की अवधि लंबी हो रही है और लोगों को अनेक विकट समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ ही पेरासिटामोल से हमारे शरीर का जी एस एच- ग्लुटैथियोन तत्व, जो हमारे शरीर का प्राकृतिक एण्टीऔक्सीडैंट है, गिरने से अनेक प्रकार की इन्फ्लेमेशन और खून जमने की प्रक्रिया आरंभ हो गई है, फेफड़ों में अत्यधिक इन्फ्लेमेशन होने से लोगों को सांस की समस्या आ गई है, बहुत बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन सपोर्ट पर पड़े हैं, चारों और ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है और दूसरी ओर खून का थक्का जमने से हार्टअटैक होने से सहस्रों लोग प्रतिदिन मर रहे हैं।
हमने विश्व की सबसे अच्छी प्रक्रियाओं को न देखना चाहा और न ही अपनाया। अमेरिका ने पेरासिटामोल की अधिकतम डोज़ मात्र 325 मिलीग्राम कर दी जिससे लोग इसके विषैले प्रभाव से बचे रहें। इंग्लैंड में केवल अधिक बुखार होने पर ही पेरासिटामोल दी जा रही है। इंग्लैंड में एक कोविड-19 रुग्णालय में काम करने वाले बड़े डॉक्टर ने बताया कि वहां 15 दिन से आपात् विभाग में कोविड-19 पेशेंट के गंभीर रोगी आने बंद हो गए हैं क्योंकि वे लोग अधिक बुखार होने पर ही थोड़ा सा पेरासिटामोल देने के अतिरिक्त न घर पर कोई औषधि दे रहे हैं ना चिकित्सालय में कोई ऐसी औषधि दे रहे हैं, जैसे एंटीबायोटिक या अन्य कई औषधियों भारत में दी जा रही हैं। केवल ऑक्सीजन सपोर्ट या किसी किसी को थोड़ा सा स्टीरॉयड दे रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि फ्रांस ने पेरासिटामोल को सामान्य उपलब्ध औषधि से हटा दिया है। वहां अब आप डॉक्टर की लिखित अनुमति के बिना पेरासिटामोल नहीं खरीद सकते। और हमारे यहां तो यह मूंगफली की भांति दिन में चार बार खिलाई जा रही है।
आप सोचें जिस ज्वर ने हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम को गति देनी थी, जिस ज्वर ने रोग को भगाना था, उस को ही रोककर आप रोग पर कैसे विजय पा पाएंगे। दूसरी ओर और हम देख रहे हैं कि एक छपा छपाया पर्चा सबको थमाया जा रहा है, अनेक एंटीबायोटिक और एंटीपैरासाइटिक अर्थात् पेट के कीड़े मारने की दवाई भी खिलाई जा रही है। एम्स के अध्यक्ष डॉक्टर रणदीप गुलेरिया के मना करने के बाद भी घर-घर में थोड़ी सी खांसी होने पर ही स्टीरायड की गोली मैड्रोल खिलाई जा रहे हैं। अनेक रोगी आंतो मे छिद्र होने से मर रहै हैं।
एंटीबायोटिक्स का काम शरीर में होने वाली बैक्टीरियल इनफेक्शन को समाप्त करना है और यह एंटीबायोटिक केवल बैक्टीरिया,अच्छे या बुरे, को ही नहीं मारते अपितु हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी क्षीण करते हैं। तो क्या हम अपने शरीर को पागल समझ कर उसको कुछ भी काम ना करने दें, वह भी तब जब सारा मेडिकल सिस्टम यह मानता है कि यह लड़ाई हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति शक्ति ने ही जितनी है। और इस प्रकार जब हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता नष्ट भ्रष्ट हो रही है तो न जाने किस किस प्रकार की दुनिया भर में बंद की जा चुकी औषधियां हम पर प्रयोग की जा रही हैं। जो रोगी इस सब से बच भी जाएंगे उनको आगे होने वाले समय में किस-किस प्रकार की समस्याएं आएंगी इसका अनुमान हम अभी नहीं लगा पा रहे हैं।
हमारा भारतवर्ष एक उन्नत औषधविज्ञान अर्थात आयुर्वेद, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा आदि अनेक औषधविज्ञानों से परिपूर्ण है। जब चीन अपनी पारंपरिक औषधियों से इस रोग से को परास्त कर इस से बाहर आ सकता है, तो हम क्यों नहीं? डब्ल्यू एच ओ के आंकड़े आए हैं कि 92% चीनी रोगियों को चीन की पारंपरिक औषधियां दी गई। परंतु कितना दुर्भाग्य है कि भारत में आयुर्वेद जैसे महान् एवं परिपूर्ण औषध विज्ञान को हेय दृष्टि से देखा जाता है। यह बताते हुए सुखद अनुभव होता है कि चीन की पारंपरिक औषधि आयुर्वेद की ही देन है। हमारे आचार्य जो आठवीं नौवीं शताब्दी में चीन, तिब्बत, मोंगोलिया, कोरिया, जापान आदि गए उन्होंने ही वहां इस औषधि विज्ञान को सिखाया और उन देशों ने उसको लगातार बढ़ाया और अपनाया। भारत में भी आयुर्वेद से लाखों लोग ठीक हुए हैं।
इस चरमराते मेडिकल सिस्टम में जनता को ही जागरूक होना होगा और अपने शरीर से खिलवाड़ बंद करवाना होगा। यह सोचना होगा कि इतनी मौतें कोविड-19 से हो रही हैं या इसमें खिलाई जा रही औषधियों से। हमारे आईसीएमआर, मेडिकल एसोसिएशन आदि संस्थाओं को सबको मिलकर यह देखना होगा कि क्यों इतनी अधिक मात्रा में बिना कारण दवाएं खिलाकर लोगों को काल के मुंह की ओर धकेला जा रहा है।
लेखक
विवेकशील अग्रवाल
(स्वास्थ सम्बंधित शोधकर्ता,समाज सेवी एवं व्यवसायी)
आनन्द निकेतन, नई दिल्ली