अजीत कुमार सिंह
भारत ईरान समझौता पर विशेष…
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दो दिवसीय ईरान दौरे के दौरान जो 12 समझौते किए, उसमें चाबहार बंदरगाह समझौता आने वाले दिनों में भारत के लिये बहार लाने वाला है। चाबहार बंदरगाह के लिये किया गया समझौता इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन भी पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट बना रहा है। चाबहार को ग्वादर के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। कांडला एवं चाबहार बदंरगाह के बीच की दूरी, नई दिल्ली से मुंबई के बीच के दूरी से भी कम है। इसलिए भारत पहले वस्तुएं ईरान तक तेजी से पहुंचाने और फिर नए रेल एवं सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान ले जाने में मदद मिलेगी। चाबहार के रणनीतिक बंदरगाह के निर्माण और परिचालन संबधी वाणिज्यिक अनुबंध पर समझौते से भारत को ईरान में अपने पैर जमाने और पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान, रूस और यूरोप तक सीधी पहुंच बनाने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री मोदी 15 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईरान यात्रा के बाद इस देश की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। बहरहाल, चाबहार बंदरगाह के विकास में भारत 500 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा। जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौतों में मील का पत्थर साबित होगा।
चाबहार बंदरगाह बनाने के लिए वाजपेयी जी ने अपने कार्यकाल 2003 में ही शुरू कर दिया था। लेकिन यह सौदा बाद में आगे नहीं बढ़ सका। पिछले एक साल में मोदी सरकार ने इसे तेजी से बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप ईरान के दक्षिणी तट पर चाबहार बंदरगाह के पहले चरण के विकास के बारे में समझौता हुआ। इसे भारत के साथ एक साझा उद्यम के जरिये विकास किया जायेगा। इसके अलावा भारत के निर्यात आयात बैंक की ओर से 15 करोड़ डॉलर की कर्ज सुविधा देने का करार भी शामिल है। भारतीय कंपनी इरकॉन ने चाबहार से जोहेदान तक रेल लाइन बिछाने का शुरूआती करार किया है। वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की नाल्को ने चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र में पांच लाख टन क्षमता का एल्यूमिनियम स्मेल्टर लगाने की संभावना के एमओयू पर दस्तखत किए हैं। यह स्मेल्टर तब लगाया जाएगा जब ईरान सस्ती प्राकृतिक गैस उपलब्ध करायेगा।
चाबहार बंदरगाह ईरान के साथ-साथ भारत के लिए बहुत मायने रखता है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापार का सीधा रास्ता तो खुलेगा ही साथ ही चाबहार के जरिए भारत आसानी से अफगानिस्तान ही नहीं उससे आगे मध्य एशिया तक पहुंच बना सकेगा। अभी इसके लिए भारत को पाकिस्तान का मुंह देखना पड़ता है और पाकिस्तान इसके लिए अक्सर राजी नहीं होता।
इस ऐतिहासिक समझौते की वजह से भारत अब बिना पाकिस्तान गए अफगानिस्तान और फिर उससे आगे रूस और यूरोप में अपना व्यापार विस्तार कर सकेगा। उक्त समझौता करके मोदी सरकार ने बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल की है। एक तरह से कह सकते हैं कि यह पाकिस्तान की हार है और चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती है। इस समझौता से पाकिस्तान और चीन दोनों सकते में पड़ गये होंगे। चाबहार पाकिस्तान में चीन द्वारा परिचालित ग्वादर बंदरगाह से करीब 100 किलोमीटर की दूरी है। जिसका फायदा भारत चीन द्वारा किये जा रहे गतिविधियों पर नजर रखने में मिल सकेगा। चीन अभी भारत को हर तरफ से घेरने के कोशिश में है। चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को परिचालन कर 46 अरब डॉलर निवेश से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा विकसित करने की योजना बना रखी है। इस समय में भारत के तरफ से ईरान के साथ किया गया यह समझौता चीन को करारा जवाब है।
ईरान के पास सस्ती प्राकृतिक गैस और बिजली है। जिसका फायदा आने वाले समय में भारत को निश्चित रूप से मिलेगा। भारत तेल और प्राकृतिक गैस के मामले में खाड़ी देश पर निर्भर है। अब इस समझौते से भारत का खाड़ी देश से निर्भरता हटेगी साथ आसानी से प्राकृतिक गैस आदि उपलब्ध हो पायेगी। भारत ईरान के चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र में ऐल्यूमिनियम सेमेल्टर संयत्र से लेकर यूरिया संयत्र करने के लिए अरबों डॉलर निवेश करेगा। इससे न केवल भारतीय अर्थव्यस्था की रफ्तार बढ़ेगी बल्कि देश में युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होगें। भारत यूरिया सब्सिडी पर 45000 करोड़ रूपये सालाना खर्च करता है। यदि भारत इसका विनिर्माण चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र में करता है तो कांडला बंदरगाह ले जाते और वहां से भीतरी इलाकों मे तो उतनी ही राशि की बचत होगी।
अपने देश में उपेक्षा का शिकार हिंदी भाषा की पढ़ाई ईरान में होने की संभावना है। यह भारत के लिए गौरव का विषय है। इससे एक दूसरे देश के संस्कृति को जानने का मौका मिलेगा और आपस में आत्मीय संबध स्थापित होंगे। भारत और ईरान के बीच जो 12 समझौता हुआ उसमें प्रमुख रूप से भारत ईरान सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में परस्पर सहयोग, विदेशी व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए सहयोग का ढ़ांचा तैयार करने पर सहमति, चाबहार बंदरगाह का विकास है। इस समझौता से भारत की गिरती अर्थव्यवस्था में जान आयेगी और विश्व बाजार में अपना पहुंच आसानी से बना पायेगा। एक अन्य समझौता ईरान के विदेश मंत्रालय के स्कूल फॉर इंटरनेशनल रिलेशंस और भारत के विदेश सेवा संस्थान, एफएसआई के बीच किया गया है।
हाल के दिनों में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से कई देशो से आपसी संबध में सुधार हुआ है। भारत में भले ही विरोधी पार्टी इसे खास तवज्जो न दे लेकिन विश्व के मानसपटल पर भारत के प्रति नजरिये में काफी बदलाव आया है। जिसका परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है। विदित हो कि प्रधानमंत्री के विदेश दौरा पर विरोधी पार्टी कई बार सवाल खड़े कर चुके हैं। उनका कहना है जबसे मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं तब से विदेश के दौर पर ही है और निवेश ना के बराबर है। हांलाकि विपक्ष का भी कहना सही है लेकिन उन्हें अभी धैर्य रखना होगा। क्योंकि रोम का निर्माण एक दिन में नहीं हुआ था।
चाबहार को चीन की मदद से बने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के प्रति-संतुलन और पाकिस्तान पर चीन के प्रभाव की काट के तौर भी देखा जा रहा है। पर इन सब के बीच मतलब यह नहीं कि ईरान यात्रा को चाबहार पर हुए करार तक सीमित करके देखा जाए। सच तो यह है कि भारत और ईरान के बीच व्यापार, आवजाही, निवेश ऊर्जा और कूटनीतिक सहयोग के चढते ग्राफ का प्रतीक चिह्न है। चाबहार को लेकर हुए करार की भारत के लिए एक और उल्लेखनीय उपलब्धि है, फारस की खाड़ी में खोजे गए फरजाद-बी गैस के विकास के अधिकार ओएनजीसी विदेश लिमिटेड को मिलना। ईरान के अलग-थलग पड़े रहने की वजह से संभावनाओं के जो द्वार बंद थे, वे अब खुलने लगे हैं। यह भारत-ईरान संबध का नया अध्याय है। कुल मिलाकर कहें तो चाबहार आने वाले समय में भारत के लिए बहार लाने वाला है।
ईरान एक सभ्य देश है. भारत और ईरान ने विश्व में तमाम प्रकार के विवाद और गड़बड़ के बावजूद एक दूसरे के फायदे वाला व्यपारिक काम किया है. मुझे विश्वास है की अगर यह समझौता हकीकत की जमीन पर उतरता है तो उससे दोनों देशो का हित होगा. साथ ही जो मुलुक भारत के पड़ोस में चेक बुक डिप्लोमेसी करते हुए अपना वर्चस्व जमाना चाहते है उनके भी मनोबल में गिरावट आएगी.
विश्व समुदाय द्वारा पिछले वर्ष ईरान से पाबंदियां हटाने का लाभ भारत जैसे देशों को होना लाजिमी था!केवल सस्ता तेल और गैस ही नहीं बल्कि अब चाबहार बंदरगाह पर हुए समझौते से भारत को व्यवसायिक और सामरिक लाभ भी हुआ है! वास्तव में अमेरिका द्वारा ईरान से समझौते का सबसे तीखा विरोध इजराइल द्वारा किया गया था! लेकिन अमेरिका ने इसके बावजूद ईरान से समझौता किया तो उसकी प्रमुख वजह मध्य एशिया में परमाणु होड को रोकना था! अगर ‘शिया’ ईरान द्वारा किसी प्रकार परमाणु बम बना लिया जाता तो फिर ‘सुन्नी’ सऊदी अरब को रोकना लगभग असम्भव हो जाता! और पाकिस्तान के बाद दो और मुस्लिम देशों का परमाणु शक्ति संपन्न हो जाना विश्व शांति के लिए बहुत बड़ा संकट उत्पन्न कर सकता था!अतः इजराइल के विरोध के बवजूद अमेरिका ने ईरान से समझौता किया!ताकि कम से कम दस वर्षों तक पश्चिम एशिया में परमाणु शक्ति के विकास को रोक जा सके!
भारत ने जो समझौता चाबहार पर और अन्य मामलों में किये हैं उन पर जल्दी से जल्दी अमल करना होगा! साथ ही आगे अफ़ग़ानिस्तान तक रेलवे लाइनें बिछाने के काम को भी तेज़ी से पूरा करना होगा! जरूरी नहीं है की परिस्थितियां लगातार ऐसी ही बनी रहेंगी!अतः पूरी रफ़्तार से काम करके अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को संरक्षित करना होगा!
भारत को समृद्धि के पथपर आगे बढता हुआ देखकर हर्ष होता है।ऐसे ही दिन दूना रात चौगुना मेरा भारत आगे बढता रहे।
बंधुओं राजनीति भूलकर मोदी जी को सभी साथ दे; तो विकास और भी शीघ्र गति से हुए बिना नहीं रहेगा।
सबका साथ होगा, तो, सबका विकास होगा।
दो वर्षों में इस प्रधान सेवक ने जो चमत्कार सर्जा है; आँखॆ चकाचौंध करनेवाला है। ऐसा कभी न हुआ था, न अपेक्षित था।
जय भारत ।