चन्द्र शेखर आजाद के विश्वस्त थे कवि ह्रदय डॉ भगवान दास माहौर

अरविन्द विद्रोही

डॉ भगवान दास माहौर की पुण्य तिथि २ मार्च पे

२ मार्च , १९६९ के दिन काल के क्रूर हाथो ने चन्द्र शेखर आजाद के विश्वस्त रहे क्रांतिकारी डॉ भगवान दास माहौर को छीन लिया | इस कवि ह्रदय क्रांतिकारी का जन्म बडौनी ग्राम जनपद दतिया मध्य प्रदेश में हुआ था | माहौर जी के आदर्श चन्द्र शेखर आजाद थे | भुसावल बम कांड के नायक माहौर को बम बनाने का प्रशिक्षण आजाद ने ही दिलाया था | असेम्बली में बम फैकने के लिए क्रांतिकारी संगठन ने जब अंततोगत्वा भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चुना तब राजगुरु नाराज़ हो गये थे | राजगुरु की नाराज़गी अपने को चयनित ना किये जाने को लेकर थी | वे पूना में अलग नया क्रांतिकारी संगठन करने लगे | आजाद को मालूम पड़ा तो उन्होंने राजगुरु के साथ के लिए डॉ भगवान दास माहौर और सदाशिव मलकापुरकर को बम बनाने की सामग्री के साथ पूना भेज दिया | यह घटना सितम्बर १९२९ की है | पूना जाते समय भुसावल स्टेशन पर आप दोनों लोग मय पेटी/ बम सामग्री के गिरफ्तार कर लिए गये | चन्द्र शेखर आजाद ने भगवान दास माहौर को विक्टोरिया कॉलेज ,ग्वालियर में अध्ययन करने को कहा | उद्देश्य बताया -ग्वालियर में ही बम बनाने का कारखाना खोलना ,छात्रों को क्रांतिकारी संगठन से जोड़ना | दाखिला लेकर माहौर कुछ दिनों तक छात्रावास में रहे फिर किराये का कमरा लेकर रहने लगे ,इनका कमरा क्रान्तिकारियो का ठिकाना बन गया | भुसावल बमकांड में सुनवाई के दौरान इन लोगो ने गद्दार हो चुके जाय गोपाल और फणीन्द्र घोष पर गोलिया चला कर हत्या करने का प्रयास किया | दोनों गद्दार और पुलिस वाले सिर्फ घायल हुये | मुक़दमे में भगवान दास माहौर को आजीवन कारावास और सदाशिवराव मलकापुरकर को पंद्रह वर्ष का कारावास मिला | सन १९३८ में कांग्रेस मंत्री मंडलों के गठन के बाद कैदियो को मुक्त किया गया | रिहा होकर आप दोनों लोग झाँसी पहुंचे | भारत रक्षा कानून के तहत सन १९४० में भगवान दास माहौर फिर गिरफ्तार कर लिए गये | माहौर आज़ादी की प्राप्ति तक जेल आते जाते रहे | आजाद भारत में माहौर जी को उनके शोध ग्रन्थ- सन १८५७ के स्वाधीनता संग्राम का हिंदी साहित्य पर प्रभाव पर आगरा विश्व विद्यालय से पी एच डी की उपाधि प्रदान की गयी | माहौर जी को झाँसी विश्व विद्यालय ने बुंदेलखंड पर कार्य करने के उपलक्ष में डी लिट की उपाधि दी गयी | साहित्य महा-महोपाध्याय की पदवी उन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने मदनेश कृत रासो पर शोध हेतु दी थी | आज़ादी का जंग छिड़ा है ,आज़ादी का रंग | गरज रहा है विप्लव सागर, नचती क्रांति तरंग | छिड़ा है आज़ादी जंग | पास हमारे क्या खोने को ,सारा विश्व जित लेने को | बढे चलो ,है क्या डरने को | भूखे,नंग -धडंग ,छिड़ा है आज़ादी का जंग |

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अरविन्‍द विद्रोही
एक सामाजिक कार्यकर्ता--अरविंद विद्रोही गोरखपुर में जन्म, वर्तमान में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में निवास है। छात्र जीवन में छात्र नेता रहे हैं। वर्तमान में सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हैं। डेलीन्यूज एक्टिविस्ट समेत इंटरनेट पर लेखन कार्य किया है तथा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा लगाया है। अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 1, अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 2 तथा आह शहीदों के नाम से तीन पुस्तकें प्रकाशित। ये तीनों पुस्तकें बाराबंकी के सभी विद्यालयों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को मुफ्त वितरित की गई हैं।

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