परिवर्तन की पटरी पर आ रही माखनलाल विश्‍वविद्यालय की गाड़ी

‘सिंह इज किंग’ का सिंहासन हिला

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय… एशिया का एक मात्र हिन्दी पत्रकारिता को समर्पित विश्वविद्यालय. इस विश्वविद्यालय को हिन्दी पत्रकारिता का देवालय कहा जाता है. जहां देश के तमाम मीडिया संस्थान ज्यादातर अंग्रेजीदां पत्रकार पैदा कर रहे हैं वहीं ये विश्वविद्यालय अकेले हिन्दी पत्रकारों की फौज खड़ी कर रहा है.

लेकिन दुख की बात ये है कि आजकल पत्रकारिता का ये देवालय कुछ और वजहों से सुर्खियां बटोर रहा है. सुर्खियां एक लेकिन सुर अनेक. इस सारे घटनाक्रम पर खबरदार मीडिया ने बेहद पैनी रखी. पर्दे के पीछे की जो कहानी छन कर बाहर आई वो बेहद चौंकानेवाली है. हो सकता है ये कहानी बहुतों को हजम ना हो. हो सकता है इस विश्वविद्यालय से परोक्ष और अपरोक्ष रूप से जुड़े लोगों को ये सब पहले से मालूम हो. वे दबी जुबान से इसे स्वीकारें भी. बहरहाल मुद्दा बस इतना है क्यों और कैसे इस पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नवोदित पत्रकारों की कलम मजबूत करवाने की बजाय नेतागिरी का पाढ पढाया जा रहा है. आइये पड़ताल करते है इस हंगामे और महाभारत के पीछे क्या और कौन हैं? क्यों इस सुनियोजित मुहिम को सियासी रंग देने की वकालत की जा रही है?

हंगामा है क्यूं बरपा

विश्वविद्यालय के कुलपति बी के कुठियाला. इनकी नियुक्ति को लेकर शुरू से ही कुछ लोग नाराज चल रहे थे. सूत्र बताते हैं कि कुछ लोगों को शुरू से ही ये गवारा नहीं था कि कुठियाला साहब कुलपति बने. खैर बी के कुठियाला की नियुक्ति हुई और उन्होंने अपने तरीके से कामकाज शुरू किया. अमूमन जो होता है. सूत्रों के अनुसार, अनुशासन प्रिय और थोड़ा कठोर प्रशासक के रूप में जाने जानेवाले कुठियाला को विश्वविद्यालय में जो चीजें बेतरतीब लगी उसे हटाने की कवायद शुरू की. व्यवस्था पर वर्षो से पड़ी धूल जैसे ही हटनी शुरू हुई उसी वक्त से इस हंगामे की पटकथा लिखी जाने लगी.

कुठियाला हाय-हाय, कुठियाला बाय-बाय

तारीख 18 अगस्त 2010 : पहली बार विश्वविद्यालय शिक्षक संघ और कर्मचारियों की कुलपति के खिलाफ लामबंदी. अगुवा शिक्षक संघ के अध्यक्ष. मुद्दा कुलपति का तानाशाही रवैया.

तारीख 31 अगस्त 2010 : छात्रो का सुनियोजित ढंग से कुलपति हटाओ अभियान में आगे आना. हंगामा शुरू. घिनौनी राजनीति के तहत विश्वविद्यालय के स्टुडेंट को कैंपस में प्रदर्शन. तालेबंदी. पढाई ढप.

तारीख 3 सितम्बर 2010 : इस मुहिम को सियासी रंग देने की कोशिश. एनएसयूआई(NSUI) का कुलपति के पुतले को विश्वविद्यालय के कैंपस के बाहर फूंका जाना.

मीडिया की पाठशाला बना राजनीति की पाठशाला

माखनलाल विश्वविद्यालय को करीब से जानने वालों को ये अच्छी तरह मालूम है कि कैंपस के अंदर का सूरत-ए-हाल क्या है? वो बड़ी साफगोई से स्वीकारतें हैं कि जब उजड़े चमन को संवारने की बात शुरू हुई तो कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया. उन्हें लगता है कि अगर इस पर परिवर्तन का चोखा रंग चढ गया तो उनका सिंहासन हिलना तय है. इसी डर से कुछ लोग नहीं चाहते है कि व्यवस्था बदले.

शिक्षक संघ के अध्यक्ष का ये कहना है कि कुलपति से जो अपेक्षाएं थी वे उसपर बिल्कुल खरे नहीं उतरे. सूत्र कहते है कि ये तो अध्यक्ष ही समझे कि क्या अपेक्षाएं थी बस उनके या कुछ शिक्षक के मन मुताबिक काम नहीं हुआ है और परिवर्तन हो रहा है तो शायद यही डर उन्हें सता रहा है. जिससे कि वे लामबंद हो रहे है. अगर परिवर्तन सकारात्मक है इसे सियासी रंग देने की जरूरत क्या है.

इस पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति हटाओ मुहिम में अब बस एक ही एजेंडा है पढाई ताक पर राजनीति चरम पर. सूत्र बताते हैं कि प्रोफेसर कुठियाला की बर्खास्तगी की मांग को लेकर शिक्षक, कर्मचारी, स्टूडेंट से लेकर एनएसयूआई का प्रदर्शन किया गया. उससे छात्रों का एक बड़ा तबका भी खासा नाराज हैं और एतराज जताया है. छात्रो का कहना है कि कुछ लोग जबरन कुलपति हटाओ मुहिम को सियासी रंग दे रहे हैं. इस प्रदर्शन की स्क्रिप्ट भी विश्विद्यालय के एक विभागाध्यक्ष के इशारों पर लिखी गयी थी. एनएसयूआई को प्रदर्शन कराने के एवज में मोटी रकम दी गयी थी. प्रदर्शन के माध्यम से जो भी मांगो का ज्ञापन सौंपा जा रहा है वो वीसी को नहीं मिल रहा है.सूत्र ये भी बड़ा खुलासा करते हैं कि इस विभागाध्यक्ष के इशारों पर इस मुहिम में इस विभाग के पूर्व स्टुडेंट को घसीटा जा रहा है. हस्ताक्षर अभियान के तहत जोड़ा जा रहा है और ये हस्ताक्षर अभियान कुठियाला हटाओ मुहिम का एक बड़ा हिस्सा है. अब आप खुद ही सोचिये इस फालतू के मुहिम को किस अंजाम तक पहुंचाने की तैयारी है.

भाजपा बनाम कांग्रेस

एनएसयूआई के भोपाल प्रदर्शनों में हमेशा से लाठीचार्ज होता आया है. एनएसयूआई के प्रदर्शन के बहाने माखनलाल की लड़ाई को भाजपा बनाम कांग्रेस में बदलने की राजनीति की जा रही है. सूत्र आगे बताते है कि अगर वीसी के पुतला दहन कार्यक्रम में एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं को लाठियां पड़ जाती तो वीसी की कुर्सी खतरे में पड़ सकती थी. क्योंकि कांग्रेस इसे मध्य प्रदेश की विधानसभा में उठाकर शिवराज सिंह चौहान पर दबाव बना सकती थी. इन सबके पीछे कुछ नेता किस्म के शिक्षको का डर्टी माइंड काम कर रहा था. लेकिन कुलपति के साथ छात्रों के बड़े तबके के साथ आ जाने के बाद इनका रास्ता आसान हो गया. अब आप खुद ही देख लीजिये कि अपने निजी हितों को साधने के लिए किस तरह का घिनौना खेल खेला जा रहा है.

छात्रों को बनाया जा रहा है मोहरा

अपने निजी हितों को साधने के लिए युवा शक्ति और नवोदित पत्रकारों का दुरूपयोग किस प्रकार किया जाता है, ये कोई एशिया के पहले हिंदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुछ विभागाध्यक्षों से सीखे. पहले तो कुलपति को हटाने में आसमान सिर पर उठा लिया फिर स्टडी सेंटर के संचालाकों के साथ कर्मचारियों को लामबंद किया लेकिन फिर भी बात नहीं बनी तो अपनी इस घिनौनी राजनीति में उभरते हुए पत्रकारों को भी साझा करने की नाकाम कोशिश की.

हुड़दंग मचाते और मुस्कुराते ये छात्र है देश के भावी पत्रकार… पूर्व से नाराज विश्विद्यालय के दो डिपार्टमेंट (अधिकतर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के पत्रकार यहीं से पैदा होते है) के एचओडी ने छात्रों को कुलपति हटाओ अभियान में जबरन घसीटा और जो 31 अगस्त को छात्रों का उग्र प्रदर्शन हुआ. वो पूर्व नियोजित था. सूत्र आंखों देखा हाल बयां करते है कि इस प्रदर्शन में सिर्फ और सिर्फ एक ही डिपार्टमेंट के छात्र मौजूद थे बाकी नदारद. छात्रों को मोहरा बनाकर आगे लाने की कवायद में इनमें से दूसरे डिपार्टमेंट के एचओडी भी पर्दे के पीछे से इस काम को अंजाम देने में लगे थे. इन दोनों को शतरंज की बिसात पर प्रचारित और जन संपर्क की गोटी सेट करने में मदद कर रहे थे एक तीसरे विभाग के एचओडी. छात्रों के एक गुट ने इस एचओडी से इस घटनाक्रम में छात्रों को अलग रखने का अनुरोध भी किया. लेकिन उन्होंने इस पटकथा को अपनी स्वीकृति दे दी. सूत्र बताते है कि छात्रों के मन में कुठियाला को हटाने का जहर इस कदर भरा गया कि ये मीडिया के सामने कुलपति के बारे में अनर्गल बयानबाजी करने लगे. जरा सोचिए कि इन दिग्भ्रमित छात्रों का बयान खुद ही मीडिया के सामने ये खुलासे कर रहा है कि किस तरह युवा जोश को अपने व्यक्तिगत स्वार्थो को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जब अधिकांश नव प्रवेशी छात्रों ने स्वयं को इस आंदोलन से अनभिज्ञता व्यक्त की तो क्यों इन मासूम बच्चों को कलम की जगह प्रदर्शन की पट्टियां और माइक की जगह पर्चियां थमाई जा रही है.

सिंह इज किंग का सिंहासन हिला

सूत्र बताते हैं कि विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाये जाने की महाभारत को बढाने में दो सिंह इज किंग का मास्टर माइंड काम कर रहा हैं. कहते है कि विश्वविद्यालय में आमतौर पर दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी हैं और दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है लेकिन इस बार कुलपति के सख्त मिजाज ने दोनो के होश फाख्ता कर दिये हैं. कहानी उसी दिन से शुरू हो गयी जब स्वच्छन्दतापूर्वक काम कर रहे सभी कर्मचारियों को नियमित और समयबद्धकाम करने का निर्देश दिया गया और पल-पल की अपडेट ली जाने लगी. सूत्र बताते है कि ये दोनों सिंह इससे पहले किंग हुआ करते थे और विश्विद्यालय को अपने इशारे पर नचाया करते थे. लेकिन नये बने कुलपति ने जब नाजायज चीज़ों पर अंकूश लगाने के लिए इनके पर कतरना शुरू किया तो इनका सिंहासन डोलने लगा. तभी से ये अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगे और अपनी महत्वाकांक्षा को अमलीजामा पहनाने और निजी हितों को साधने के लिए सभी के साथ युवा शक्ति को भी इस ओर धकेल दिया. दरअसल कुलपति के आने के बाद खुद इनकी साख और मनमानी पर खतरा उत्पन्न हो गया है. इन दोनों सिंहो के अधिकारों में कटौती कर दी गयी है. जिससे कि ये भन्नाएं हुए हैं. कुलपति कुछ बुनियादी क्रायटेरिया को खंगालने में भी लगे है जिससे इन सिंहों को अपना सिंहासन हिलता हुआ नजर आ रहा है. सूत्र ये भी बताते है कि सिंह इज किंग का जुमला फीका पड़ गया है इसलिए दोनों ने अपनी कुर्सी खतरे में जान इस मुहिम में विश्वविद्यालय के सभी कर्मचारियों के साथ स्टूडेंट को भी बली का बकरा बनाने पर तुले है. सूत्र ये भी बताते है कि आज दो सिंह हैं. कल कई सिंह पैदा हो जायेंगे जो किंग बन जायेंगे. इसलिए संभव है कि इन सिंहों का तबादला कर उनके पर कतरा जाए जिससे अकादमिक स्तर और विश्वविद्यालय की गुणवत्ता में सुधार लाया जाये.

परिवर्तन का डर

जब-जब परिवर्तन होता है… व्यवस्थाएं बदलती है तो चरमराहट होती ही है. शायद यही डर कुछ लोगों को सता रहा है. कुलपति का काम के प्रति समर्पण के साथ संघ से जुड़ाव एक अहम कारण रहा है जो विश्वविद्यालय के कुछ बनावटी एचओडी से कहीं बेहतर है. कुठियाला की साफगोई विश्वविद्यालय के कुछ विभागाध्यक्ष को भा नहीं रही है. जिसके कारण वे कुठियाला से दो-दो हाथ करने के लिए मीडिया के साथ विश्विद्यालय के कर्मचारियों को भी अपनी इस गंदी मुहिम में लामबंद करने में लगे है. सूत्र ये भी बताते हैं कि कुलपति से भी फैसले लेने में कुछ गलतियां हुई है. ऐसा नहीं कि वे हमेशा सही ही हो. कम्युनिकेशन के माहिर खिलाड़ी कुठियाला को जब नीतिगत फैसले लेने थे, तो उन्हें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी. शायद विचार विमर्श का एक कोना उन्होंने खाली छोड़ दिया. माखनलाल में सरकारी तंत्र को पटरी पर लाने के लिए पहले उन्हें वस्तुस्थिति समझनी चाहिए थी. क्योंकि वो कहते हैं ना कि सितार के तार को उतना ही कसा जाये जिससे कि मधुर संगीत निकले. नाकि तार की डोर ही टूट जाये. शायद माहौल को समझे बिना कुठियाला से यहीं चूक हो गयी. बहरहाल परिवर्तन से नहीं डरने और घबराने वाले कर्मचारियों में से अधिकतर सकारात्मक परिवर्तन के हिमायती हैं. उन्हें बखूबी मालूम है कि सही और गलत क्या है.

प्रॉब्लम और इगो हटाओ, पत्रकार बनाओ

इस विश्वविद्यालय में जो कुछ भी चल रहा है उसका फायदा उठाने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता है. आरोप प्रत्यारोप की होली खेली जा रही है. कुछ सज्जन अपने पूर्वाग्रहों को मजबूत बनाने में लगे हुए है. छात्र की फिक्र किसी को नहीं. सब अपनी-अपनी पोलिटिक्स में लगे हैं और अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं. जो काम कल तक नेता करते थे वो आज पदासीन कर रहे है. विश्वविद्यालय जोर आजमाइश का अखाड़ा बन चूका है. इसमें सबसे ज्यादा पीस रहे हैं स्टूडेंट. क्या डिपार्टमेंट के अंदर चलने वाले शीतयुद्ध बंद नहीं किया जा सकता है? क्या कोई प्रॉब्लम है तो उसे टेबल पर बैठकर खत्म नहीं किया जा सकता है? जब हर चीज़ का सोल्यूशन बातचीत है तो क्यों अपनी-अपनी इगो को लेकर ओछी राजनीति की जा रही है? उन आकाओं को ये जरूर सोचना चाहिए कि जितनी उर्जा इन व्यर्थ के बनावटी हरकतों में खर्च कर रहे है, वो अगर इन युवा शक्ति को एक बेहतर पत्रकार बनाने में करेंगे तो देश और समाज को एक नया भविष्य मिलेगा. कम से कम उन्हें माखनलाल का बीस सालों के इतिहास को भूलना नहीं चाहिए बल्कि इस इतिहास को और मजबूत बनाने की दिशा में पहल करनी चाहिए. अगर गलतियां या गड़बड़ी किसी भी स्तर पर है तो उसे दुरूस्त करने की दिशा में पहल ना की विरोध. ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में सभी मुखियाओं को समझना चाहिए कि अगर विश्वविद्यालय को एक उंचाई देनी है तो शीतयुद्ध, प्रदर्शन, लामबंदी और घिनौनी राजनीति की बर्फ को पिघलाना होगा. सवाल ये भी है कि नवोदितों के दिल में जिस तरह राजनीति और हड़ताल का बीज बोया जा रहा है क्या वो विश्वविद्यालय के भविष्य के लिए शुभ संकेत है? जब ज्यादातर स्टूडेंट पढाई के पक्षधर है तो क्यों कुछ हाथ इस विश्वविद्यालय के शैक्षणिक माहौल में मिर्ची डालने की कोशिश कर रहे हैं? इन सभी विद्वानों को एक मंच पर आकर काम करना चाहिए ना कि स्टुडेंट और कर्मचारियों को अपने निजी स्वार्थ के लिए मोहरा बनाने का काम. काम करने के मिजाज को एक पटरी पर लाकर कम्युनिकेशन के इस इकलौते विश्वविद्यालय से अच्छे पत्रकार पैदा करने के जज्बे को अमलीजामा पहनाना चाहिए जिससे कि देश के चौथे खंभे को मजबूत करने की दिशा में अग्रसर इस पाठशाला को शकुनी की पाठशाला बनने से बचाया जाय.

19 COMMENTS

  1. ऐसा युगों से होता चला आ रहा है कि जब कोइ व्यक्ति समाज एवं राष्ट्र हित मे कार्य प्रारंभ करता है तो समस्त शक्तियां उसको विफल करने के लिये कमर कस लेती हैं। कुछ तो निज स्वार्थ हेतु तो कुछ अज्ञानता वश। अब ऐसे मे यदि कुठियाला जी को विरोध न झेलना पडता तो आश्चर्य होता, विरोध झेलने पर नहीं। यह विरोध इस बात का द्योतक है कि कुठियाला जी अपने कार्य को सही तरीके से अंजाम दे रहे हैं। कुठियाला जी आप अपने कार्य मे सफल हो यही हमारी कामना है।

  2. सटीक एवं सार्थक। आजकल राजनीति कहीं भी हावी हो जा रही है यहाँ तक कि विद्या के मंदिरों में भी।। विद्या मंदिरों को तो कम से कम राजनीति अपने चंगुल से दूर रखें।। अगर ये मंदिर ही नापाक हो जाएँगे तो आनेवाली पीढ़ी देश का एक नई दिशा कैसे दे पाएगी।।

  3. मै कुठियाला जी को तो नहीं जानता पर ये जरूर जानता हूं कि कांग्रेस और वाम लोकतांत्रिक हैं ही नही ये लोग हंमेशा दूसरों को विरोध करते हैं और वे गैर लोकतांत्रिक तरीके से

  4. According to my belief and knowledge i would suggest all those people who really want to change the nation into a developed and curruption free state on the globe to change their biased attitude about politicians and the system which resist truth people to perform their duties…….come forward to save the nation by saving people who believe in truth……….!!!

  5. this is really disgusting this kind of happening will spoiled the wood be journalist, people who involve should stop it and support for higher management.

  6. आदरणीय कुठियाला जी आप बस अपना काम ईश्वरीय काम मान कर किये जाइये…,.
    शुद्ध ह्रदय की प्याली में विश्वाश दीप निष्कंप जलाकर, .
    कोटि कोटि पग बड़े जा रहे तिल तिल जीवन जला जलाकर !
    जब तक ध्येय न पूरा होगा, तब तक पग की गति न थमेगी ,
    आज कहे चाहे जो दुनिया , कल को बिना झुके न रहेगी, कल को बिना झुके न रहेगी,!!

    आपके साहस को सदर नमस्कार…वन्दे मातरम

  7. कुठियाला जी के लिए शुभकामनाएं की वे शिक्षा के मंदिर में फैलाई जा रही राजनीति की गन्दगी की सफाई करने में सफल हों. एन एस यु आई के माध्यम से छात्रों की युवा शक्ती का दुरूपयोग सचमुच निंदनीय कार्य है. ऐसी कुचालें चलने वालों से कठोरता से कभी तो निपटना ही पडेगा. अन्यथा देश की युवा शक्ती को भटकाव से कैसे रोका जा सकेगा?

  8. संघ- “राष्ट्र निष्ठा” को सबसे उपर मानता है। इसके पश्चात –>हिंदू निष्ठा—>पश्चात संघ निष्ठा। उसका नाम भी “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” है।
    हो सकता है, कि हर साधारण स्वयंसेवक को यह पता ना हो। पर आप गुरुजी के विचारोंको पढेंगे, तो जान जाएंगे। पर जब भौमिक वास्तविकताओं में संघको काम करना पडता है, तो साहजिक ही तर तम (तारतम्य) की वरीयताओं के अनुसार काम करना पडता है। यह वरीयताएं हर परिस्थितिमें आपको अलग दिखाई दे सकती है। दो अच्छाई में अधिक अच्छा,– बुराईयोमें कम बुरा,– अच्छा और बुरेमें अच्छा–> और निकष केवल राष्ट्र हित।
    कुछ टिप्पणीयोंको देखने से लगता है। वे संघकी विचारधारा को अन्य विचारधाराओं के समान मानकर चल रहे हैं। यह उनका भ्रम है। जनसंघ की, भा ज पा की या अन्य संस्थाओं को संघ सादॄश्य मानना; भी गलती ही कहलाएगी। संघ आजकी परिस्थितिमें “चाणक्य” है, निर्लिप्त है।
    गुरुजी के हवन करते हुए चित्रके साथ, उद्धरण है। ॥ओम राष्ट्राय स्वाहा॥भारतका भाग्य है, कि उसके पास संघ है। पाकीस्तानके डॉन नामक मुख पत्रने भी यह कहा था, कुछ अलग शब्दो में।

  9. ये हमेशा से होता है और हर जगह होता है,संघ के किसी स्वंय्सेवक के कुलपती बन जाने पर र्भष्ट और हरामखोर प्रोफेसरो के पेट मे बल पड जाता है,क्योकि उनकि दुकान्दारि बंद हो जाती है,मेरे विश्वविधाय्लय मे भी एसा ही हुवा था,निव्र्तमान कुलपति महोदय के कारण ही हम इंजिनियर स्टुडेंट समय पर पास हुवे वरना हमारा सेशन ४ कि जगह ५ साल का खिचने वाला था,सर के कठोर अनुशासन के कारण ही अनेक कर्मचारियो के नेताओं,छात्रो के नेताओ और राज्निति करने वाले प्रोपेसरो कि दुकानदारि बन्द हो गयी,टुयशन्खोरो की जुबान पर ताले पड गये,उन लोगो कि हिम्मत तक नही होति थी छात्रो को डराकर टुयशन बुलाने की,और कम्युनिस्ट,कोन्ग्रेसि प्रोपेसर और छात्र संगटन दुकान दारि छोड,पढाने या पढने लगे थे,सब गुण्डागर्दी बन्द.
    और उनके जाते ही,सब शेर हो गये है,मेरे जुनियर बता रहे थे कि चुनाव के समय जमकर कोन्गेर्सि विसि का फ़ायदा उथाया गया,यहा तक की जिते हुवे उम्मिदवारो को “रिकाउण्टिक” के नाम पर हरा दिया,टुयशन वापस चालु,यहा तक की एक प्रोफ़ेसर सहाब रुपये वसुलते रंगे हाथ धरे गये पर कोयी कार्वायी नहीं.
    स्वंयसेवक अगर ऊची पोस्ट पर पहुंचते है उसका यही फ़ायदा होता है,हमारे पुर्व कुलपति को नमन और एसे कठोर अनुशासन वाले माखनलाल विश्व्विध्यालय के कुलपति महोद्य को भी नमन.
    सर आप कठोर अनुशासन को लगु करे इन गुन्डो और पढने लिखने में कम नेतागिरि मे ज्यादा ध्यान देने वाले छात्रो और प्रोफ़ेसरो की चिन्ता मत करिइये,जो पढने लिखने वाला छात्र होगा वो हमेशा आपके साथ होगा,उसकि तादाद बहुत ज्यादा है,कैमपस को एन गुण्डो से दुर कंरेगे तो पढायि अपने आप अच्छि हो जायेगी……………………….

  10. अगर कवि प्रदीप, माखनलाल के छात्र होते तो कहते …देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान….कितना बदल गया संस्थान. …मध्य वर्गीय और गरीब हिन्दी भाषी ऐसे छात्र-छात्राएं जिनके लिए पत्रकारिता फैशन नहीं बल्कि रोटी का सामान है, उनके लिए यह रिपोर्ट आँखें खोलने वाली और रुलाने वाली भी है. अपने निजी खुन्नस को विचारधारा के दुराग्रह का जामा पहनाना कही से भी उचित नहीं है. और ऐसा अगर दशकों से इस संस्थान के अंग रहे वरिष्ठों के द्वारा किया जा रहा हो तब तो भर्त्सना ही की जा सकती है. सबको यह समझना चाहिए कि उनकी चौधराहट भी तो संस्थान के बदौलत ही है. उसी को नुकसान पहुचा कर आप एक खुद का, छात्रों का और अंततः संस्थान का नुक्सान ही करेंगे. वास्तव में शर्मनाक.

  11. कुठियाला जी सत्‍य परेशान होता है पराजित नही. आप आगे बढ़ते जाएं और ध्‍यान रखें कि हाथी चलता रहता है कुत्‍ते भौंकते रहते हैं.

  12. भाई लोगो शर्म करो और कम से कम विद्या के मंदिरों को तो राजनितिक संस्थाओ के रंग से अलग रखो .राजनीति करने के लिए और बहुत मंच है |मैं नहीं जानता कि ये कुलपति महोदय कौन है पर यदि कुलपति के पद पर आये है तो हम आप से ज्यादा काबिल होंगे |
    उन्हें कांग्रेस और भा.जा.पा. के रंग से दूर रखों ,वस्तुत स्वयम कुठियाला जी को सामने आकर इस मिथक को तोडना चाहिए कि वो किसी संघ -जनसंघ के नहीं अपितु एक तटस्थ कुलपति है ,जो अच्छी हिन्दी पत्रकारिता के संरक्षक है

  13. वामपंथी और कांग्रेसी चाहते हैं कि देश के सभी प्रमुख शिक्षण संस्थाओं, शोध संगठनों पर उनका आजीवन कब्जा रहे, कुठियाला का संघ से जुड़ाव रहा है, सारा पेट दर्द इसी बात को लेकर है।

    • सन १९२५ से
      डां हेडगेवार-एक डाक्टर.
      श्री गुरुजि-एक प्रोफ़ेसर
      बालासाहब देवरस-स्नातक
      रज्जु भैय्या-उच्च स्नातक और साराभाई द्वारा गुरुजी से विग्यान के हित के लिये रज्जु भैय्या को सोपने का आग्रह.
      सुदर्शन जि-एक इन्जिनियर
      मोहन जी-डोक्टर

  14. शिक्षण संस्‍थानों में कुंडली मार कर बैठे और वहां वैचारिक प्रदूषण फैलाते वामपंथियों और कांग्रेसियों को सबक सिखाने की जो शुरूआत माखनलाल विवि से हुई है वह ऐतिहासिक महत्‍व का कार्य है। कुठियालाजी से सीख लेते हुए यह अभियान देश के सभी विश्‍वविद्यालयों में चलना चाहिए।

  15. माखनलाल विवि में चल रहे महाभारत को लेकर प्रवक्‍ता डॉट कॉम पर प्रकाशित पूर्व लेख पर मैंने जो टिप्‍पणी की थी, वह अक्षरश: सत्‍य प्रतीत हो रही है। मैंने लिखा था-

    अवसरवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसमें सभी विचारधारा के पिलपिले लोग शामिल हो जाते हैं। कुठियालाजी के खिलाफ चल रही साजिश इसी अवसरवादी राजनीति का नतीजा है।
    आज पूरी दुनिया समस्‍याओं से त्रस्‍त है और लोग विकल्‍प की तलाश में भारत की ओर आस लगाए हुए हैं। और भारत है जो स्‍व को भूलकर अभी भी पश्चिम की नकल में जुटा है।
    क्‍या योग और परंपरा की पढ़ाई कराना अभारतीय है? कुठियालाजी के खिलाफ चल रही साजिश सूर्य को ढ़के बादल की तरह है, सच सामने आकर रहेगा। क्‍योंकि अंत में धर्म की ही जीत होती है।
    कुठियालाजी के साहस को सलाम।

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