
मुद्दत से चली आ रही
पत्रकारिता की पुरानी
कई छिद्रवाली नाव पर
सवार है
मेरे शहर के तमाम पत्रकार
इस पुरानी नाव में
कुछ छेद
पार कर चुके लोगों ने
तो कुछ छेद
इस नाव पर सवार लोगों ने किये है।
इस पुरानी नाव को
चट्टानों के बीच
भयंकर तूफानों को
भी झेलना होता है
नदी का पानी तेजी से
मौत के रूप में नाव में घुस रहा है
और पत्रकार निश्चिंतता से
चैन की बंशी बजा रहे है।
इनका आचरण
स्वयं मृत्युवरण का है
पर दुनियावालों को
नाव पर सवार ये सभी पत्रकार
स्थिरता,निर्बाधता,शांति और संघर्ष की
पतवार खेते
नदी पार करते नजर आते है।
नाव पर सवार प्रायः अधिकांश पत्रकार
संकीर्णताओं में जकड़े स्वार्थ में अकड़े
खुदको सर्वोच्चता के
उच्चतम शिखर पर देख रहे है।
पत्रकारिता की सेकड़ों छिद्रवाली
पुरानी नौका को
अपनी बपौती समझने वाले लोग
अपने नये साथी को देखकर चैकते है
जैसे अचानक
गाॅव का साॅड
शहर में आ घुसा हो।
ये हर तरह से
अपने पैने नुकीले सींगें को
दिमाग के घटिया
षड़यंत्रों के कुतर्को को
अपने भारीभरकम
अनुभवों व दैत्याकार शरीर को
हथियार बनाकर निरूत्तर
कर देते है नवागतों को
नाव पर सवार सभी
गहरे जानी दुश्मन की तरह बैठे हुये है।
ग्रीष्म चूसकर जैसे
ऊर्जा को दग्ध कर देता है
कमजोर वृक्षों को जैसे
अंधड़ उखाड़ देता है
पौथीधारी ये अपने घर के
नबाव से जमे जकड़े है
दुनिया जाये भाड़ में
ये शराब कबाब पाकर अकड़े है
पीव सदा के लिये डूब जाये
यह नाव हमारी बला से
हम तो किनारे आ गये,
तुम मरो हमारी दुआ से।।