देश में बालश्रम, केंद्र सरकार और हमारी मानसिकता

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

आज के बच्‍चे कल के होनहार नागरिक हैं जोकि किसी भी देश को गढ़ने का कार्य करते हैं, इसलिए ही बच्चों को देश की अमूल्य निधि माना जाता है। इस दृष्‍ट‍ि से दुनिया के तमाम देश अपने भविष्‍य को लेकर बेहद संवेदनशील रहते हैं। फिर भी कुछ देश ऐसे भी हैं जो अपने देश के बेहतर भविष्य के लिए हमें बच्चों का सही ढंग से    पालन-पोषण तो करना चाहते हैं, किंतु वे उतने क्रियात्‍मक रूप से संवेदनशील नहीं होते, उनका यह सकारात्‍मक पक्ष सिर्फ विचार तक अधिक सीमित रहता है। दुनिया के 140 महत्‍वपूर्ण देशों की सूची में 71 देश ऐसे हैं जहां बच्चों से मजदूरी करवाई जाती है। बच्‍चों की सबसे ज्‍यादा स्‍थ‍िति एशिया और अफ्रिका के विकासशील देशों में खराब है। बाल श्रमिकों की संख्या सबसे ज्यादा भी इन्‍हीं देशों में है।

 

वस्‍तुत: यहां बच्चों से तेल निकलवाने, गाडि़यों की बॉडी बनाने, ईंट-गारा तैयार करने, स्टील का फर्नीचर बनाने, चमड़े के काम से लेकर तकनीति स्‍तर पर मोबाइल के पुर्जे बनाने तक के कई श्रमसाध्‍य कार्य कराए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट कहती है कि कई देशों में काम करने की कोई न्यूनतम उम्र तय नहीं। उन्‍हें उनके श्रम का पूरा पैसा भी नहीं दिया जाता तथा बाल श्रम के विरोध में जो भी कानून हैं इन देशों में उनका भी ठीक से पालन नहीं होता है।

 

इस संदर्भ में भारत की स्‍थ‍िति का आंकलन करे तो यहां भी स्‍थ‍ितियां बहुत अच्‍छी नहीं हैं। यह बात उचित है कि  2001 की जनगणना की तुलना में 2011 में बाल श्रमिकों की संख्या में कमी आई है, परन्तु स्‍थ‍ि‍तियों में बहुत ज्‍यादा बदलाव नहीं आया है। अभी भारत दुनिया में सबसे ज्‍यादा बाल मजदूरी करवाने वाले देशों में फिलीपीन्‍स और बंग्‍लादेश से भी आगे है। एक अनुमान के तहत देश में लगभग 6 करोड़ से भी अधिक बाल श्रमिक हैं जिनमें 2 करोड़ से अधिक लड़कियाँ हैं । इसमें भी जो देश का सबसे अधिक क्षेत्र इन बाल श्रमिकों से प्रभावित है उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पंश्‍च‍िमबंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा राज्‍य सबसे आगे हैं । इसका इससे दुखद पक्ष क्‍या होगा कि समाचार संस्‍थान जिसे कि देश की जनता ने संविधान के चतुर्थ स्‍तम्‍भ तक की संज्ञा दी है, वह भी बाल श्रमिकों से काम लेता है। देश के आप किसी भी शहर में ट्रेन, बस अड्डे या स्‍टेशन पर चलें जाए आपको बच्‍चे समाचार पत्र बेचते नजर आ जाएंगे, जिन्‍हें कि स्‍वयं मीडिया संस्‍थानों ने अपनी आय एवं प्रसार के लिए रखा हुआ है। अब जब खुले तौर पर मीडिया संस्‍थान ही बाल मजदूरी करा रहे हैं तो यह सहज ही समझा जा सकता है कि अन्‍य जगह कितनी भयावह स्‍थ‍िति बालश्रम की होगी।

 

वस्‍तुत: इसकी जो मूल जड़ समझ आती है, वह है देश में जनसंख्या वृद्‌धि और उस जन संख्‍या के लिए रोजगार का अभाव ।  असल में इसी से निस्र‍ित होकर बाल-श्रम आज एक समस्या के रूप में अपना विस्तार ले रहा है । देश में करोड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं जो गरीबी की रेखा के नीचे रहकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं । इन लोगों को भरपेट रोटी भी बड़ी कठिनाई से मिलती है । ऐसे में उनके बच्‍चों की स्‍थ‍ितियों का सहज अनुमान जा सकता है। इससे जुड़ा एक पक्ष यह भी है कि एक विशेष समुदाय के लोग जनसंख्‍या नियंत्रण के उपायों में विश्‍वास नहीं करते हैं, जिसके कारण से भी लगातार देश में आबादी का घनत्‍व बढ़ रहा है और इससे बालश्रम भी।

 

देखाजाए तो बालश्रम के बहुआयामी स्वरूप को देखते हुए केंद्र सरकार ने इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की है। सरकार ने बाल श्रम (निषेध और संशोधन) अधिनियम, 2016 पारित किया, जिसेकि 1 सितम्बर, 2016 से लागू किया गया है। इस संशोधन के अनुसार किसी भी व्यवसाय या प्रक्रिया में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को रोजगार प्रदान करना पूरी तरह निषिद्ध है। अधिनियम के प्रावधानों को सबसे पहले 1986 में लागू किया गया था, तब इससे आशा यही थी कि भविष्य में 14 वर्ष के कम आयु के बच्चों को रोजगार देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकेगा। राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना 1988 में प्रारम्भ की गई, इसके जरिए बाल श्रम के सभी रूपों से बच्चों को बाहर करना, उनका पुनर्वास करना और उन्हे शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल करना रहा।

 

इसके बाद पहली बार बच्चों की उम्र को निःशुल्क और अनिवार्य  शिक्षा के प्रति बच्चों के अधिकार अधिनियम, 2009 से जोड़ा गया। पहली बार बच्चों के किशोर वय को पारिभाषित किया गया तथा14-18 वर्ष के बच्चों को किशोर माना गया। संशोधन विधेयक द्वारा किशोर बच्चों को खतरनाक व्यवसायों में रोजगार देना निषेध किया गया। इसी कड़ी में बाल श्रम से जुड़े हुए बच्चों की पहचान करने, उन्हें संरक्षित करने और उनके पुनर्वास के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर संस्थागत तंत्र का गठन किया गया है, जो केंद्रीकृत आकड़े एकत्र करेगा तथा कार्यक्रमों की निगरानी करेगा।

 

वस्‍तुत: श्रम क्षेत्र समवर्ती सूची में है इसलिए कार्यक्रमों को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है। इसी पृष्ठभूमि में ऑन लाइन पोर्टल ‘पेंसिल’ की परिकल्पना की गई है। ‘पेंसिल’ पोर्टल के अंतर्गत चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम, शिकायत प्रकोष्ठ, राज्य सरकार, राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना और इस सब के बीच परस्पर सहयोग को रखा गया है। वास्‍तव में  ‘पेंसिल’, श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा विकसित एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म है, जिससे बाल श्रम को पूरी तरह समाप्त करने में मदद मिलेगी, पर केंद्र का इतनाभर अभी कर देना बालश्रम की दृष्‍ट‍ि से पर्याप्‍त नहीं है। वास्‍तव में वर्तमान केंद्र और राज्‍य सरकारों को देश का बचपन सुरक्षित रखने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है ।

 

कहना यही है कि देश में बढ़ती हुई बाल-श्रमिकों की संख्या देश के सम्मुख एक गहरी चिंता का विषय है । यदि समय रहते इसको नियंत्रण में नहीं लाया गया तब इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत भयावह हो सकते हैं । हमारी सरकार ने बाल-श्रम को अपराध घोषित कर दिया है परंतु समस्या की जड़ तक पहुँचे बिना इसका निदान नहीं हो सकता है । इसके लिए सबसे ज्‍यादा जरूरी कार्य हमारी मानसिकता में बदलाव लाने का है। सरकार अपने लाख प्रयास करले बाल मजदूरी भारत से तब तक विदा नहीं होगी जब‍ तक कि हम श्रम का सम्‍मान करना नहीं सीखेंगे। अपने पैसे बचाने की लालसा से हम अपने ही देश वासियों का शोषण करते हैं, जिसके परिणाम स्‍वरूप उन्‍हें अपने बच्‍चों से मजदूरी करवाने के लिए विवश होना पड़ता है। यदि हम किसी श्रमिक को उसके श्रम का समुचित पारिश्रमिक नहीं देंगे तो केंद्र के ऐसे सभी बाल मजदूरी के विरोध में उठाए कदम कभी सफल नहीं हो सकेंगे। काश, हम सभी अपनी मानसिकता बदले के लिए तैयार हो जाएं।

 

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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