बाल जिज्ञासा

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moonबीनू भटनागर

चंदा मामा कयों कहलाता,

पास नहीं वो कभी भी आता,

दूर खड़ा बस इतराता है।

 

बिल्ली मौसी क्यों कहलाती,

नहीं कहानी कभी सुनाती,

दूध हमारा वो पी जाती,।

 

वानर पूर्वज क्यों कहलाते,

घूर घूर कर हमे डराते,

रोटी हाथ से छीन ले जाते,।

 

तितली दिखती इतनी सुन्दर,

हाथ क्यों नहीं कभी भी आती,

छूने से पहले उड़ जाती।

 

आम पेड़ पर लगे क्यों ऊँचे,

हाथ हमारा वहां न पंहुंचे,

देख दूर से बस मन ललचे।

 

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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