
नागरिकता संशोधन विधेयक का लोकसभा में पारित हो जाना सचमुच सरकार की ऐतिहासिक जीत है । निश्चित रूप से इस संशोधन विधेयक के कानून बनने के पश्चात उन लाखों-करोड़ों हिंदुओं को राहत मिलेगी जो पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान से अल्पसंख्यक के रूप में उत्पीड़ित होकर वहां से भागकर भारत आये हैं । स्पष्ट है कि इन लोगों का भारत आने का उद्देश्य केवल यही था कि उन्हें भारत अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि दिखाई पड़ता है।उन्हें लगता हैं कि संसार में यदि कोई देश ऐसा है जो उन्हें शरण दे सकता है तो वह केवल भारत ही है । इन लोगों का भारत की ओर ही आना यह भी स्पष्ट करता है कि उनका हिंदुस्तान से या भारतवर्ष से अंतरंग प्यार भी है । अपने इस अंतरंग प्यार के कारण ही ये लोग भारत में किसी भी प्रकार की अराजकता फैलाने या उग्रवादी घटनाओं के माध्यम से देश को अस्थिर करने की घटनाओं में कहीं भी संलिप्त नहीं मिलते। किसी भी देश में रहने या शरण लेने की यह अनिवार्य शर्त होती है कि आप उस देश में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना को अपनाकर जीवन जीने में विश्वास रखते हैं । इन सभी हिंदू शरणार्थियों ने भारत में आकर नागरिकता प्राप्त करने की इस अनिवार्य शर्त को पूर्ण करके दिखाया है। ऐसे में केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए इस नागरिकता संशोधन विधेयक से निश्चय ही उन करोड़ों हिंदू शरणार्थी लोगों को लाभ मिला है जो भारत को अपना देश मानते और स्वीकार करते हैं।
इस विषय में देश के गृह मंत्री अमित शाह निश्चय ही बधाई के पात्र हैं । जिन्होंने लोकसभा में विपक्ष की सभी शंकाओं और प्रश्नों का तार्किक उत्तर देते हुए यह स्पष्ट किया की भारत के प्रति लगाव रखने वाले बांग्लादेशी , पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी अल्पसंख्यक हिंदुओं के प्रति सरकार को उदार होना ही चाहिए । ऐसे में यदि नागरिक संशोधन बिल कानून का रूप ले लेता है तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को सीएबी के अंतर्गत भारत की नागरिकता दी जाएगी। मानवीय आधार पर भी इन हिंदू शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलनी ही चाहिए , क्योंकि अफगानिस्तान , पाकिस्तान और बांग्लादेश से भागकर भारत आने का अभिप्राय है कि भारत से यदि उन्हें फिर भगाया गया तो वहां उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा ।
सरकार ने इस विधेयक को पेश करते समय ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। सरकार की ओर से ऐसा तर्क देने के पीछे का कारण यही है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए मुस्लिम भारत को अपना देश नहीं मानते । यह लोग भारत में आकर तोड़फोड़ , उग्रवाद , हिंसा , मारकाट आदि की आपराधिक और देशद्रोही घटनाओं में संलिप्त पाए जाते हैं । इनका भारत आने का उद्देश्य ही उसको अस्थिर करना होता है । यही कारण है कि सरकार इन्हें घुसपैठिया तो मान रही है , शरणार्थी नहीं । आत्मसम्मान और अपनी संप्रभुता के प्रति सजग कोई भी देश अपने देश में ऐसे घुसपैठियों को सहन नहीं कर सकता जो उसे अस्थिर करने की चेष्टाओं में संलिप्त हों । यही कारण है कि वर्तमान केंद्र सरकार भी घुसपैठियों को चुन – चुन कर बाहर निकालने के काम में जुट गई है।
कांग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर विधेयक का विरोध कर रही हैं कि यह विधेयक बांग्लादेशी , पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी हिंदुओं को शरणार्थी मानकर उन्हें भारत की नागरिकता देने की वकालत करता है, जबकि मुस्लिमों को घुसपैठिया मानता है। ऐसा विरोध करने वाली प्रत्येक राजनीतिक पार्टी को घुसपैठिया और शरणार्थी शब्दों की परिभाषा को स्पष्ट रूप में समझ लेना और स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि इन दोनों की परिभाषा में मूलभूत अंतर है। जिसे नागरिकता संशोधन विधेयक स्पष्ट करता है।
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध किया जा रहा है, और उनकी चिंता है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आए हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है। इस चिंता के पीछे कारण यही है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में धर्मांतरण कर – करके उनका हिंदू बहुसंख्यक स्वरूप गड़बड़ाया गया है । जिन लोगों ने बड़ी ‘ मेहनत ‘ से पूर्वोत्तर के इन राज्यों से हिंदुओं को समाप्त करने या उनकी संख्या को बहुत कम करने में सफलता प्राप्त की है , उनके लिए यह चिंता का विषय हो जाना स्वभाविक है कि अब यहां हिंदू भी सम्मान के साथ रह सकेगा और सरकारों के बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद ने वर्ष 2016 में लोकसभा में पारित किए जाते समय इस विधेयक का विरोध किया था, और तब वह सत्तासीन गठबंधन से अलग भी हो गई थी, पर जब यह विधेयक निष्प्रभावी हो गया तो असम गण परिषद पुनः गठबंधन में लौट आई थी । माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि पार्टी दो संशोधन लाकर उन सभी शर्तों को हटाने की मांग करेगी, जो धर्म को नागरिकता प्रदान करने का आधार बनाते हैं ।
असम में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के विरुद्ध विभिन्न प्रकार से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। जिनमें नग्न होकर प्रदर्शन करना और तलवार लेकर प्रदर्शन करना भी सम्मिलित है।
मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के चबुआ स्थित निवास और गुवाहाटी में वित्त मंत्री हिमंत बिस्व सरमा के घर के बाहर सीएबी विरोधी पोस्टर चिपकाए गए हैं । एनडीए की सहयोगी रही शिवसेना जो अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार चला रही है, इस विधेयक का समर्थन कर रही है।
कांग्रेस-एनसीपी समेत कुछ विपक्षी पार्टियां इस विधेयक का विरोध कर रही हैं । विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह विधेयक धर्म के आधार पर देश को बांटने की चेष्टा है। जबकि शिवसेना के सांसद संजय राउत का कहना है कि महाराष्ट्र में सरकार अपनी जगह और देश के प्रति निष्ठा अपनी जगह है। इसलिए हम लोग इस विधेयक का समर्थन करेंगे। स्वरा भास्कर ने अपने ट्विटर पर व्यंग्य कसते हुए इस विधेयक के विषय में लिखा है — ” हेलो , हिंदू पाकिस्तान । स्पष्ट है कि वह भी इसे भारत में हिंदू सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले विधेयक के रूप में देख रही हैं । उनका कहना है कि भारत में फिर जिन्ना का जन्म हो गया है । इससे एक बात तो स्पष्ट हुई कि स्वरा भास्कर देश के विभाजन के लिए जिन्ना को दोषी मानती हैं । और यह विधेयक जिन्नावादी सोच से दुखी रहे उन करोड़ों हिंदुओं के घावों पर मरहम लगाने का काम करेगा जो अपने देश से बाहर परदेस में रह गए और जिन्ना की सांप्रदायिकता की भेंट चढ़ते चढ़ते अपने परिवारों को पिछले 72 वर्ष से उजड़ते देखने के लिए अभिशप्त हो । इसी प्रकार आलिया भट्ट की मम्मी सोनी राजदान ने कहा है कि — अब भारत का अंत निकट है ।
सोनी राजदान को भी यह स्पष्ट होना चाहिए कि भारत का अंत हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने से नहीं , अपितु इस देश में घुसपैठियों के रूप में घुसे उन लोगों के कारण हो सकता है जो भारत को अपना देश नहीं मानते और इस देश को लूटने और मौज मस्ती करने का अपने लिए एक सुरक्षित स्थान मानते हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य