आओ उर में गाओ सुर में!

आओ उर में गाओ सुर में,

स्पंदित कर हर हृद भव में;

प्रति प्राण प्रफुल्लित नर्तन कर,

भर जाए सुधा वसुधा सुधि में!

आए वसंत नव फाग लिए,

हर मानव मन अनुराग दिए;

चहके कुहके पाखी जीवन,

हर वनस्पति पुलके त्रिभुवन! 

साधना ध्यान सब कर पाएँ,

कर योग स्वास्थ्य सौजन्य वरें;

आत्मा उज्ज्वल चैतन्य रहे,

परमात्म चरण में अर्पित हो! 

द्योतित दीप्तित हर दृष्टि रहे, 

क्षिति सलिल अनल औ अनिल बहे;

हो गगन सूक्ष्म प्रणवित प्रभवित,

चित अहं महत में हो थिरकित! 

कोशिका चक्र गुरु गति पाएँ, 

नाड़ी नारायण को भाए;

‘मधु’ मानवता को मर्म दिए, 

हों धर्म परायण धरिणी में! 

✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’

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