संघर्ष कभी शब्दों के मोहताज नहीं रहे

1
247

दिलीप बीदावत
शब्द जब सियासत के लिए आफत बन जाते हैं या शब्द की अवधारणा से उजागर समाज के किसी वर्ग विषेष के जीवन स्तर के सुधार में कामयाबी हासिल नहीं होती है, तो शब्द को बदलने या प्रतिबंधित करने की प्रथा सच्चाई को तो नहीं छिपा सकती। हाल ही में सरकार ने दलित शब्द को असंवैधानिक करार देते हुए राज-काज में इस शब्द के उपयोग पर यह कहते हुए रोक लगाई है कि यह असंवैधानिक है। इससे पूर्व मध्यप्रदेश  हाइकोर्ट के एक फैसले के अनुसार राज्य में दलित शब्द के स्तेमाल पर रोक लगाई थी। इसी फैसले का हवाला देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों  के मुख्य सचिवों को पत्र भेज कर आग्रह किया गया है कि वे संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित अनुसूचित जाति केे केवल संवैधानिक शब्दावली अंग्रजी में शैड्यूल्ड कास्ट या हिंदी सहित अन्य राजभाषाओं में इसके उपयुक्त अनुवाद का ही प्रयेग करें। नाकामयाबियों को छुपाने के लिए नए शब्द गढ़े जाते हैं, जिनकी जुबान तो होती है, लेकिन गहराइयों तक जड़ें नहीें होती। ऐसे ही दो शब्द इन दिनों चर्चा में रहे हैं, दिव्यांग और दलित।
इससे पूर्व हमारे प्रधानमंत्री महोदय ने मन की बात रेड़ियो कार्यक्रम में विकलांग व्यक्तियों को दिव्यांग नाम से पुकारने का आव्हान किया था। इस शब्द को ब्रम्हवाक्य मानकर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने ऐसा ही फरमान जारी कर विकलांग व्यक्ति कोे दिव्यांग शब्द से संबोंधित करने की सलाह दी गई थी। सरकार के मुंह से उछलने वाले शब्दों को लपकने के लिए तैयार सरकारी पिछलग्गू मीडिया ने भी बिना तर्क-वितरक और विचार-विमर्ष के अपनी शब्दावली से विकलांग शब्द को विदाई दे दी। किसी ने यह सवाल खड़ा करने की जरूरत नहीं समझी कि विकलांग व्यक्तियों के जीवन स्तर, समाज और सरकारी नौकरों द्वारा किए जाने वाले उपेक्षित व्यवहार में इस शब्द के इस्तेमाल से क्या फर्क आऐगा। विकलांग व्यक्तियों के जीवन स्तर में क्या बदलाव आऐगा। अगर सरकारी दस्तावेजों, विकलांग व्यक्तियों को दिए जाने वाले प्रमाण-पत्रों में दिव्यांग शब्द ज्यादा सुषोभित लगता है, तो अलग बात है। इससे पूर्व भी विकलांग व्यक्तियों को विशेष  योग्यजन नाम दिया गया था। निषक्तजन आज भी सरकारी भाषा का अंग बना हुआ है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि देष के तमाम विकलांग व्यक्तियों तक सरकारी पहुंच और उनके अधिकारों की सुरक्षा के प्रति सरकारें नाकामयाब रही है।
ऐसा ही फैसला दलित शब्द को लेकर चर्चा में है। कुछ लोग इस फैसले की आलोचना भी कर रहे हैं। दलित शब्द का अर्थ दलन, दलना किसी के शोषण या उत्पीड़न की अवधारणा लिए हुए है। अवधारणा आज की हकीकत भी है। समाज का एक तबका भेदभाव, शोषण और उत्पीड़न का इस लिए षिकार है कि सामाजिक व्यवस्था में जीतीयता केे आधार पर उसे समाज के नीचले पायदान पर माना जाकर उसके साथ पारंपरिक व्यवस्था वाला अनुचित व्यवहार किया जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक एवं एक्टिविस्ट भवंर मेघवंशी  ने दलित शब्द के सरकारी स्तेमाल पर प्रतिबंध के पीछे की मंशा  को बड़े ही सटीक तरीके से उजागर किया है। उन्होंने कहा है कि दलित शब्द दलन से अभिप्रेत है, जिनका दलन और शोषण हुआ, वो दलित के रूप में जाने गए। दलित शब्द दुधारी तलवार है। यह अछूत समुदायों को साथ लाने वाला एकता वाचक अल्फाज है। इससे जाति की घेराबंदी कमजोर होती है और शोषितों की जमात निर्मित होती है। दलित शब्द कुछ समूहों को अपराधबोध भी करवाता है कि तुमने दलन किया, इस वजह से लोग दलित हैं। जिन पर दलन का आरोप यह शब्द मढ़ता है, उन्हें यह शब्द कभी पसंद नहीं रहा, वे सदैव इस शब्द को मिटा देने के लिए कमर कसे हुए हैं। भवंर मेघवंशी ने दलित शब्द के स्तेमाल के इतिहास के साथ-साथ इस शब्द ने किस प्रकार से दलन और शोषण पीड़ित समुदायों में एकता की ऊर्जा का संचार किया है, का भी बहुत ही अच्छा वरणन किया है जिससे यह आभास होता है कि वर्चस्व वादियों, समाज में यथास्थिति बनाए रखने वाले पैरोकारों के लिए दलित शब्द उनके कानों में गर्म शीशे चुभता हैं।
यह अलग बात है कि इस दलन, शोषण उत्पीड़न की जातीय अवधारणा विकसित हुई है, वर्गीय अवधारणा का विकास नहीं हुआ है। दलित शब्द की अवधारणा से अधिकांषतः वही जातियां संगठित हुई हैं, जिनका आर्थिाक और सामाजिक दोनों प्रकार का शोषण हो रहा है। यही कारण है कि शोषण और उत्पीड़न की शिकार अन्य जातियों, धर्मों, लिंग आधारित भेदभाव, व आर्थिक शोषण का दंश  झेल रहे समूह अलग-अलग रूपों में तो संगठित हुए हैं, लेकिन दलन और शोषण केे विरूद्ध एक मंच पर नहीं आए और इसका कारण भी सामाजिक राजनीतिक व्यवस्थाओं की जड़ों में ही विद्यमान है। भारत जैसे देष में जातीय औी लिंग आधारित भेदभाव की व्यवस्था को तोड़कर ही वर्ग आधारित एकता कायम हो सकती है। दलित शब्द को किसी जाति विषेष के संगठन से जोड़कर देखना राजनीतिक मजबूरी हो सकती है, लेकिन समानता के पक्षधरों के लिए इस शब्द से कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए। देश  के जाने-माने दलित एक्टिविस्ट मार्टिन मेकवान द्वारा की गई दलित शब्द की परिभाषा को समझें तो कोई कारण नहीं दिखता कि इस शब्द से देश  की एकता और अखंडता या संस्कृति कोे खतरा पैदा हो रहा हो। उन्होंने दो टूक शब्दों में परिभाषित करते हुए था कि ‘जो समानता में विश्वास    रखता है, वह दलित है’।
शब्द बदल देने से या प्रतिबंधित कर देने से स्थितियां नहीं बदल जाती। शब्द से किसी जाति विशेष  के समूह की अवधारणा पालने और अपने- अपने जातीय खांचों में फिट होकर अपने विकास सपना देखने वाले भी सपना नहीं, जंजाल ही देख रहे हैं। आजादी की लड़ाई में भारत छोड़ो, करो या मरो, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसे शब्द संघर्ष की आग में ही तपकर निकले थे और उस समय वर्तमान स्वरूप वाला भारतीय संविधान भी नहीं था। अंग्रेजी हुकुमत के लिए ऐसे ही शब्द आफत बने थे, जिससे उनका साम्राज्य समाप्त हुआ था। संविधान की  आवश्कता  ही दलन, शोषण और भेदभाव की व्यवस्था का उन्मूलन करना है। दलन, शोषण, उत्पीड़न और भदभाव को समाप्त करने के लिए खड़े होने वाले संघर्ष कभी शब्दों के मोहताज नहीं होते।
दिलीप बीदावत

1 COMMENT

  1. दलित शब्दसे ओसी/एससी प्रसन्न है. मेरे एक मित्र और कई अन्य जो दलित थे उनके मूँहसे भी इस शब्द की स्विकृति हूई है. वे समज़ते है कि दलित की पार्श्व भूमिमें वे लोग सवर्णो द्वारा पीडित है यह अभिप्रेत होता है. और अब ये दलित लोग, इस पीडन पर प्रत्याघात करेंगे. अब हम दलित तो है ही लेकिन केवल दलित नहीं हम वास्तवमें दलित-दीपडे है.
    महात्मा गांधीने दलितोंको हरिजन कहा था. इनके पीछे यह भावना थी कि लोग समज़े कि दलित लोग भी भगवानके जन है. केवल सवर्ण जन ही भगवानको प्यारे नहीं है.
    इसकी पार्श्व भूमिकामें अहिंसा और प्रेम था. “दलित” शब्दकी पार्श्वभूमिमें संघर्ष, रोष और बदलेकी भावना (प्रत्याघात) है.

    क्या श्रेय है. अहिंसा और प्रेमका रास्ता ही श्रेय है. और यह रास्ता शक्य भी है. जगजीवन राम कोंग्रेसमें आगे आये उसके पीछे आरक्षण नहीं था.
    दलितोंका उद्धार करना सवर्णोंका फर्ज बनता है. सवर्णोंको अपनी मानसिकता अनुशासनसे बदलना ही चाहिये.

    “विकलांग” शब्दकी पार्श्व भूमिमें कोई एक इन्द्रीयकी क्षतियुक्तता है. लेकिन विकलांग अन्य इन्द्रीयोंके/इन्द्रीयके क्षेत्रमें असाधारण होता है. चाहे वह कैसे भी हो लेकिन यह शक्ति दिव्य है. इसलिये उनके लिये दिव्यांग शब्द प्रयोजित करके उनका बहुमान किया गया है.

Leave a Reply to smdave1940 Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here