कोरोना कहर ने बदल दी सोच एवं संवेदनाएं

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-ः ललित गर्ग:-
हम कोरोना महासंकट में बदलाव के अनेक स्वरूप उभरते हुए देख रहे हैं, सबसे बड़ा बदलाव यह देखने में आ रहा है कि अब हमारा राष्ट्रीय चरित्र बनने लगा है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा और लोकतंत्र व्यवस्था में सबसे बड़ा राष्ट्र, कोरोना महामारी को नियंत्रित करने में अब तक सफल रहा हैं। हमने भी देशव्यापी लाॅकडाउन, सोशल डिस्टेंसिग, निजी स्वच्छता जैसे उपायों से कोरोना वायरस के भयावह प्रसार को रोकने की कोशिश की है। सामुदायिक व्यवहार में इस संयम, स्व-विवेक, सादगी एवं अनुशासन के अभीष्ट परिणाम भी मिले हैं। जहां-जहां इन उपायों का कड़ाई से पालन किया गया है, वहां पर रोगियों की संख्या तथा मृत्यु दर में कमी दर्ज की गई है। इसके विपरीत जहां इन उपायों का उल्लंघन या उनके पालन में ढिलाई बरती गई, वहां पर रोगियों की संख्या में तेजी देखी गई है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की अनेक मजबूरियां, कमियां व कमजोरियां हो सकती हैं। वे सब परिवर्तन के लिये समय और धैर्य मांगती हैं। पर तब तक हमें कोरोना महासंकट को परास्त करने के लिये एकजुटता प्रदर्शित करनी होगी, राष्ट्र के चरित्र को उज्ज्वल एवं सुदृढ़ बनाना होगा। हमारी परम्परागत सोच, संवेदना एवं संयम-संस्कृति को जीवंतता प्रदान करनी होगी, केवल तभी हम महाशक्तियों के सामने, निहित स्वार्थों के देशों के गुटों के सामने सिर उठाकर खड़े हो सकते हैं, एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।
कोरोना कहर ने देश में राजनीतिक दलों के उद्देश्यों एवं स्वार्थों को भी बेनकाब किया है। केवल सत्ता एवं स्वार्थ के लिए राजनीति करने वालों को देश ने नजरअंदाज किया एवं नकारा है। बल्कि स्वार्थ की राजनीति की जगह सेवा की राजनीति को बल मिल रहा है। शरीर की स्वस्थता के लिये  आत्मा को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए, यह देश ने भलीभांति समझा है। इस महामारी से जूझते हुए केंद्र और राज्य अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। जनप्रतिनिधि एवं सकारात्मक राजनीति से जुड़े लोगों ने बिना किसी स्वार्थ-लाभ-लोभ के सेवा-प्रकल्पों एवं भोजन’-जरूरत के सामानों के वितरण के अभिनव उपक्रम रहे हैं। निष्काम भाव की यह सिद्धि प्रसिद्धि एवं प्रचार-भाव से दूर है। सब कुछ स्वयं प्रेरित राष्ट्रीयता एवं मानवीयता की भावना से हैं। निष्काम सेवा एवं संवेदना के ऐसे अनूठे एवं अनुकरणीय उपक्रम दूसरे देशों के लिये प्रेरणा का माध्यम बने हैं। भारत से दुनिया के देशों ने अनेक तरह से प्रेरणा ली है और इस महासंकट के घावों पर मरहम लगाने का प्रयास किया है।
भारत के प्रयासों की प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अनेक संस्थाओं ने की है। भारत ने जहां अपने देश के लोगों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के लिये कारगर कदम उठाये वहीं दुनिया के तमाम देशों की भी चिंता उसकी प्राथमिकता रही है। अमेरिका सहित कई देशों में दवाएं भी दी गई हैं। भारत के प्रयास निरन्तर परिणामकारी एवं प्रेरक बने हैं। बेशक चिकित्सकों और उनके सहयोगियों पर हुए कुछ हमले की घटनाएं भारत की उदात्त संस्कृति पर काला धब्बा बने हैं, कुछ धर्म-विशेष के लोगों की नासमझी एवं संकीर्ण-सोच से कोरोना संघर्ष को लम्बा कर दिया है। षड़यंत्रपूर्ण पूरे देश में कोरोना फैलाना, हमारी जान बचाने को तत्पर चिकित्सकों पर हमला करना, लाॅकडाउन के नियमों का उल्लंघन करना आदि जघन्य आपराधिक एवं अमानवीय स्थितियों से बार-बार उजाले तक पहुंचने की संभावनाओं पर कुहासा छाया है।
कोरोना महामारी ने हमारी सोच, संवेदना एवं जीवनशैली में बड़ा बदलाव ला दिया है। भारत की परम्परागत सोच विश्व कुटुम्बकम की रही है। व्यक्तिगत रूप में अपनी चिंता करते हुए दूसरे देशों की भी चिंता उसकी सोच का हिस्सा रही हैं, यही कारण है कि भारत के लोग अपने मोहल्ले, गांव, नगर के साथ राष्ट्र और विश्व की भी चिंता कर रहे हंै। कोरोना महामारी के दौरान दुनिया को भारतीय लोककल्याण संस्कृति को अपनाने की स्थिति में पहली बार देखा है। कोरोना के बाद बनने वाले विश्व की संरचना में भारत की मूल्याधारित सोच एवं संवेदना-संस्कृति व्यक्ति, परिवार एवं समाज की आधार होगी। जिस तरह दुनिया ने भारत के योग एवं अहिंसा को अपनाया, ठीक उसी तरह अब भारत के जीवन मूल्य, खानपान प्रणाली – शाकाहार एवं आयुर्वेद को विश्व अपनायेगा, तद्नुसार आचरण देने वाली संस्कृति ही भविष्य में दुनिया की सामाजिक व्यवस्था और मानवीय संबंधों का नियमन करेगी।
कोरोना महामारी हमारी अग्नि-परीक्षा का काल है। जिसने न केवल हमारी पारंपरिक सांस्कृतिक, धार्मिक उत्सवों-पर्वो में व्यवधान उत्पन्न किया है, बल्कि हमारी शैक्षणिक और आर्थिक गतिविधियों को भी बाधित किया है। इसने हमारे देश की जनसंख्या के एक बड़े वर्ग को भूख एवं अभावों की प्रताड़ना एवं पीड़ा दी है, अपनों से दूर किया है। रोजगार छीन लिये हैं, व्यापार ठप्प कर दिये हैं, संकट तो चारों ओर बिखरे हैं, लेकिन तमाम विपरीत स्थितियों के हमने अपना संयम, धैर्य, मनोबल एवं विश्वास नहीं खोया है। हम सब एक साथ मिलकर इन बढ़ती हुई चुनौतियों एवं संकटों का समाधान खोजने में लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फौलादी एवं सक्षम नेतृत्व में सभी राजनैतिक एवं प्रशासनिक शक्तियां जटिल से जटिल होती स्थितियों पर नजर बनाए हुए हैं और कठिनाइयों को कमतर करने के लिए हरसंभव सुविचारित कदम उठा रहे हैं। घरों में रहकर, सुरक्षित रहकर ही हम इन खौफनाक एवं डरावनी स्थितियों पर काबू पा सकते हैं। हमें निरंतर सतर्क रहना होगा, ढिलाई की गुंजाइश नहीं है। हमारी एक भूल अनेक जीवन को संकट में डाल सकती है। इसलिये यह समय है, जब हम अपने संकल्प और प्रयासों में एकता दिखाएं। वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए परस्पर दूरी बनाएं रखें, लेकिन मनुष्य के रूप में अपनी मानवीय संवेदना का अहसास सबको कराये। हम अपने धर्म-संप्रदाय के मूल संस्कारों, उपदेशों को फिर से समझें। हम अपना ख्याल रखें और संभव हो, तो अपने पास रहने वालों का भी ध्यान रखें।
हमारा देश सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक-राष्ट्रीय पर्वों, त्योहारों तथा सांस्कृतिक, सामुदायिक अवसरों की समृद्धता और जीवंतता का देश है, हमारे यहां हर दिन कोई न कोई पर्व या त्यौहार होता है, जिन्हें हम साथ मिल-जुलकर मनाते हैं। लाॅकडाउन एवं सोशल डिस्टेंसिंग हमारी इस त्यौहार संस्कृति के विपरीत है, लेकिन हमें मजबूरन यह मार्ग अपनाना पड़ा है, क्योंकि इसके अलावा इस घातक वायरस के संक्रमण को सीमित करने का और कोई विकल्प है ही नहीं। इस महामारी से कोई भी समुदाय या समूह निरापद नहीं है। हम रामनवमी, बैसाखी, अक्षय तृतीया, ईस्टर तथा रमजान के अवसर पर क्रमशः हल्के और छोटे आयोजनों की आदत डाल रहे हैं। रमजान के पवित्र माह भी प्रारंभ हो चुका है, इस पवित्र एवं पाक माह एवं रोजे के कार्यक्रमों में छोटे-मोटे व्यवधानों को बर्दाश्त करना होगा। यह कष्टप्रद हो सकता है, पर इसके अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है। हम अपने घरों में ही रहें, अपने स्वजनों के साथ इबादत करें और यह उम्मीद करें कि इस चुनौती से शीघ्र ही उबर सकेंगे। लोकमंगल कोरोना मुक्ति महाभियान का लक्ष्य है। इससे सेवा, संवेदना एवं समझ का नया अध्याय प्रारम्भ होगा और व्यक्तिगत सुखों, सुविधाओं एवं साधनों का विसर्जन होगा तभी मूल्यों का निर्माण होगा। तभी कोरोना मुक्ति का सुर्योदय जन-जन के जीवन का उजाला बन सकेगा।

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