गाय सर्वोत्तम हितकारी पशु होने सहित मनुष्यों की पूजनीय देवता है

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मनमोहन कुमार आर्य

      परमात्मा ने इस सृष्टि को जीवात्माओं को कर्म करने व सुखों के भोग के लिए बनाया है। जीवात्मा का लक्ष्य अपवर्ग होता है। अपवर्ग मोक्ष वा मुक्ति को कहते हैं। दुःखों की पूर्ण निवृत्ति ही मोक्ष कहलाती है। यह मोक्ष मनुष्य योनि में जीवात्मा द्वारा वेदाध्ययन द्वारा ज्ञान प्राप्त कर एवं उसके अनुरूप आचरण करने से प्राप्त होता है। सांख्य दर्शन में महर्षि कपिल ने मोक्ष का सूक्ष्मता से विवेचन किया है जिससे यह ज्ञात होता है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य वेद विहित सद्कर्मों अर्थात् ईश्वरोपासना द्वारा ईश्वर साक्षात्कार, अग्निहोत्र यज्ञ एवं परोपकार आदि को करके जन्म व मरण के बन्धन वा दुःखों से छूटना है, यही मोक्ष है। मनुष्य को जीवित रहने के लिए भूमि, अन्न व जल सहित गोदुग्ध व फलों आदि मुख्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। गोदुग्ध हमें गाय से मिलता है। दूध व घृत आदि वैसे तो अनेक पशु से प्राप्त होते है परन्तु देशी गाय के दूध के गुणों की तुलना अन्य किसी भी पशु से नहीं की जा सकती। गाय का दुग्ध मनुष्य के स्वास्थ्य, बल, बुद्धि, ज्ञान-प्राप्ति, दीर्घायु आदि के लिए सर्वोत्तम साधन व आहार है। मनुष्य का शिशु अपने जीवन के आरम्भ में अपनी माता के दुग्ध पर निर्भर रहता है। माता के बाद उसका आहार यदि अन्य कहीं से मिलता है तो वह गाय का दुग्ध ही होता है। गाय का दूध भी लगभग मां के दूध के समान गुणकारी व हितकर होता। भारत के ऋषि, मुनि, योगी व विद्वान गोपालन करते थे और गाय का दूध, दधि, छाछ व घृत आदि का सेवन करते थे। गोदुग्ध से घृत भी बनाते थे और उससे अग्निहोत्र यज्ञ कर वायु व जल आदि की शुद्धि करते थे। इन सब कार्यों से वह स्वस्थ, सुखी व दीर्घायु होते थे। ईश्वर प्रदत्त वेद के सूक्ष्म व सर्वोपयोगी ज्ञान को प्राप्त होकर सृष्टि के सभी रहस्यों यहां तक की ईश्वर का साक्षात्कार करने में भी सफल होते थे और मृत्यु होने पर मोक्ष या श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर सुखों से पूर्ण जीवन प्राप्त करते थे।

                गाय से हमें केवल दूध ही नहीं मिलता अपितु गाय माता नाना प्रकार से हमारी सेवा करती है और साथ ही कुछ महीनों व वर्षों के अन्तराल पर हमें पुनः बछड़ी व बछड़े देकर प्रसन्न व सन्तुष्ट करती है। बछड़ी कुछ वर्ष में ही गाय बन जाती है और हम उसके भी दुग्ध, गोबर, गोमूत्र, गोचर्म (मरने के बाद) को प्राप्त कर अपने जीवन मे सुख प्राप्त करते हैं। गोबर न केवल ईधन है जिससे विद्युत उत्पादन, गुणकारी खाद, घर की लिपाई आदि में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी प्रकार से गोमूत्र भी एक महौषधि है। इससे कैंसर जैसे रोगों का सफल उपचार होता है। नेत्र ज्योति को बनाये रखने नेत्र रोगों को दूर करने में भी यह रामबाण के समान औषध है। त्वचा के रोगों में भी गोमूत्र से लाभ होता है। आजकल पंतजलि आयुर्वेद द्वारा गोमूत्र को सस्ते मूल्य व आकर्षक पैकिंग में उपलब्ध कराया जा रहा है जिसे लाखों लोग अमृत समान इस औषध-द्रव का प्रतिदिन सेवन करते हैं। गोमूत्र किटाणु  नाशक होता है। इससे उदरस्थ कीड़े भी समाप्त हो जाते हैं। ऐसे और भी अनेक लाभ गोमूत्र से होते हैं। गाय के मर जाने पर उसका चर्म भी हमारे पैरों आदि की रक्षा करता है। गोचर्म के भी अनेक उपयोग हैं अतः हम जो-जो लाभ गो माता से लेते जाते हैं उस उससे हम गोमाता के ऋणी होते जाते हैं। हमारा भी कर्तव्य होता है कि हम भी गोमाता को उससे हमें मिलने वाले लाभों का प्रत्युपकार करें, उसका ऋण उतारें, उसको अच्छा चारा दें, उसकी खूब सेवा करें और उसके दुग्ध व गोमूत्र का पान करें जिससे हम स्वस्थ, सुखी, आनन्दित व दीर्घायु होकर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कर सकंे।

                गाय से हमें सबसे अधिक लाभ गोदुग्ध से ही होता है। जो मनुष्य गोदुग्ध का सेवन अधिक करता है उसको अधिक अन्न की आवश्यकता नहीं होती। इससे अन्न की बचत होती है और देश के करोड़ो भूखे व निर्धन लोगों को अपनी भूख की निवृत्ति में सहायता मिल सकती है। यह रहस्य की बात है कि देश में जितनी अधिक गौंवे होंगी देश में गोदुग्ध, गोघृत व अन्न उतना ही अधिक सस्ता होगा जिससे निर्धन व देश के भूखे रहने वाले लोगों को लाभ होगा। अनुमान से ज्ञात होता है कि देश की लगभग 40 प्रतिशत से अधिक जनता निर्धन एवं अन्न संकट से ग्रसित है। हमने भी अपने जीवन में निर्धनता और परिवारों में अन्न संकट देखा है। ऐसी स्थिति में यदि किसी निर्धन व्यक्ति के पास एक गाय है और आस-पास से उसे चारा मिल जाता है तो वह परिवार अन्न संकट सहित गम्भीर रोगों व मृत्यु का ग्रास बनने से बचाया जा सकता है।

      ऋषि दयानन्द ने गाय के दूध और अन्न के उत्पादन से संबंधित गणित के अनुसार गणना कर बताया है कि एक गाय के जन्म भर के दूघ मात्र से 25,740 पच्चीस हजार सात सौ चालीस लोगों का एक समय का भोजन होता है अर्थात् इतनी संख्या में लोगों की भूख से तृप्ति होती है। स्वामी जी ने एक गाय की एक पीढ़ी अर्थात् उसके जीवन भर के कुल बछड़ी व बछड़ों से दूघ मात्र से एक बार के भोजन से कितने लोग तृप्त हो सकते हैं, इसकी गणना कर बताया है कि 1,54,440 लोग तृप्त व सन्तुष्ट होते हैं। वह बताते हैं कि एक गाय से जन्म में औसत 6 बछड़े होते हैं। उनके द्वारा खेतों की जुताई से लगभग 4800 मन अन्न उत्पन्न होता है। इससे कुल 2,56,000 हजार मनुष्य का भोजन से निर्वाह एक समय में हो सकता है। यदि एक गाय की एक पीढ़ी से कुल दूघ व अन्न से तृप्त होने वाले मनुष्यों को मिला कर देखें तो कुल 4,10,440 चार लाख दस हजार चार सौ चालीस मनुष्यों का पालन एक बार के भोजन से होता है। वह यह भी बताते हैं कि यदि एक गाय से उसके जीवन में उत्पन्न औसत 6 गायों वा बछड़ियों से उत्पन्न दूध व बछड़ों-बैलों से अन्न की गणना की जाये तो असंख्य मनुष्यों का पालन हो सकता है। इसके विपरीत यदि एक गाय को मार कर खाया जाये तो उसके मांस से एक समय में केवल अस्सी मनुष्य ही पेट भर कर सन्तुष्ट हो सकते है। निष्कर्ष में ऋषि दयानन्द जी कहते हैं कि ‘देखो! तुच्छ लाभ के लिए लाखों प्राणियों को मार कर असंख्य मनुष्यों की हानि करना महापाप क्यों नहीं?’ गायों से इतने लाभ मिलने पर भी यदि कोई व्यक्ति व समूह गाय की हत्या करता व करवाता है और मांस खाता है व उसे प्रचारित व समर्थन आदि करता है तो वह बुद्धिमान कदापि नहीं कहा जा सकता। गाय सही अर्थों में देवता है जो न केवल हमें अपितु सृष्टि के आरम्भ से हमारे पूर्वजों का पालन करती आ रही है और प्रलय काल तक हमारी सन्तानों का भी पालन करती रहेगी। गाय से होने वाले इन लाभों के कारण निश्चय ही वह एक साधारण नहीं अपितु सबसे महत्वपूर्ण वा प्रमुख देवता है। हम गोमाता को नमन करते हैं। हमें गोमाता पृथिवी माता व अपनी जन्मदात्री माता के समान महत्वपूर्ण अनुभव होती है। वेद ने तो भूमि, गाय और वेद को माता कह कर उसका स्तुतिगान किया है।                 गोकरूणानिधि लघु पुस्तक की भूमिका में ऋषि दयानन्द जी के गोपालन व गोरक्षा के समर्थन में लिखे कुछ शब्द लिख कर हम इस लेख को विराम देते हैं। वह कहते हैं ‘सृष्टि में ऐसा कौन मनुष्य होगा जो सुख और दुःख को स्वयं न मानता हो? क्या ऐसा कोई भी मनुष्य है कि जिसके गले को काटे वा रक्षा करे, वह दुःख और सुख को अनुभव न करे? जब सबको लाभ और सुख ही में प्रसन्नता है, तब विना अपराध किसी प्राणी का प्राण वियोग करके अपना पोषण करना सत्पुरुषों के सामने निन्द्य (निन्दित) कर्म क्यों न होवे? सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर इस सृष्टि में मनुष्यों की आत्माओं में अपनी दया और न्याय को प्रकाशित करे कि जिससे ये सब दया और न्याययुक्त होकर सर्वदा सर्वोपकारक काम करें और स्वार्थपन से पक्षपातयुक्त होकर कृपापात्र गाय आदि पशुओं का विनाश न करें कि जिससे दुग्ध आदि पदार्थों और खेती आदि क्रिया की सिद्धि से युक्त होकर सब मनुष्य आनन्द में रहें।’ हम अनुरोध करते हैं कि पाठकों को गोरक्षा का महत्व जानने के लिए ऋषि दयानन्द जी की ‘गोकरुणानिधि’ तथा पं. प्रकाशवीर शास्त्री लिखित ‘गोहत्या राष्ट्रहत्या’ पुस्तकें पढ़नी चाहिये। गोरक्षा से देश की अर्थव्यवस्था भी सुदृण होती है। गोरक्षा व गोपालन आदि कार्यों से हम अपने अगले जन्म को सृष्टिकर्ता ईश्वर से उत्तम परिवेश में मनुष्य जन्म प्राप्त करने के अधिकारी बनते हैं।

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  1. श्री मनमोहन आर्य जी द्वारा प्रस्तुत ज्ञानवर्धक निबंध “गाय सर्वोत्तम हितकारी पशु होने सहित मनुष्यों की पूजनीय देवता है” के लिए उन्हें मेरा साधुवाद | स्थानीय भाषाओं के माध्यम से प्रत्येक भारतीय प्राथमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में ऐसा ज्ञान उपलब्ध होना चाहिए|

    निबंध के शीर्षक का google translate पर किए गए अंग्रेजी अनुवाद, Cow is the revered deity of human beings including being the best beneficial animal, को अंतरजाल पर खोजते विषय को पाश्चात्य सोच में केवल हिन्दुओं तक सीमित पाया गया है तिस पर जिज्ञासा-वश अन्यत्र प्रस्तुत श्री नजमुल होदा जी के निबंध Muslims can’t use liberal arguments to justify communalism on the cow slaughter issue को पढ़ मानो भारतीयता अथवा हिंदुत्व के आचरण में मेरा विश्वास और भी दृढ़ हुआ है|

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