—विनय कुमार विनायक
कुछ चीजें जन्मजात नहीं संस्कार से आती
मगर संस्कार कहां से आता?
निश्चय ही संस्कार आता संस्कृति से
और संस्कृति बची है भाषाओं की जननी संस्कृत में ही!
“मातृवत परदारेषु’
पराई नारी को माता समझना
ये आज भी है भारत देश की मान्यता
बस ट्रेन में खड़ी महिला देखकर
सीट से उठ जाना फिर महिला को बिठा देना!
ऐसी भावना आज भी देश में देखी जाती
ये भावना आई कहां से? निश्चय ही मनु की
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ से ही!
वासना जीव मात्र का लक्षण है
मगर ब्रह्मचर्य व संयम है भारत वतन में
एकबार किसी नारी का हाथ थामने का अर्थ
जीवन भर सुख दुःख में साथ निभाने का!
पति पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता
निभाते वफा, तलाक से ताल्लुक नहीं होता!
हिन्दुओं का मानव मात्र को भाई समझना
हर धर्म मजहब के प्रति सहिष्णुता दिखाना
सबकी भलाई कामना करना किसने सिखाया?
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’
‘कृण्वन्तो विश्वं आर्यम’ जैसी उक्तियों ने ही!
ये फितरत है भारत और भारतीय जनों का
पर दुःख कातर हो जाना, दया ममता लुटाना
तन-मन-धन से सहयोग करना धर्म है अपना!
‘पर हित सरिस धर्म नहिं भाई
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई’
मातृभूमि पर मर मिटने का जलवा मिला कैसे?
‘माता भूमि पुत्रोऽमं पृथ्विया’
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ भाव से!
मगर आज भारत में ये संस्कृति दम तोड़ रही
विकृत मानसिक स्थिति मानवता को छोड़ रही
मानवीय मूल्य साम्प्रदायिक मंच से खोने लगा
प्रेम नहीं वासना के लिए छल प्रपंच होने लगा!
छद्म धर्म झूठे नाम से प्यार करना
बर्बरतापूर्ण बलात्कार कर जान मार देना
मजहबी फिरकापरस्ती आतंक फैलाना
बेकसूरों की हत्या बेवजह बेशुमार करना!
ये बुराई भारतीयों में आई कैसे कहां किस जगह से?
विदेशी धर्म मत मजहब संस्कार हीनता की वजह से!
संस्कृति को बचाना है तो संस्कृत भाषा जानना होगा
अगर वेद में भेद दिखे तो उपनिषदों का तर्क ज्ञान लें
संस्कृत में समस्त सृष्टि का ज्ञान, जिसे पाना ठान लें
संस्कृत का पठन-पाठन मनुस्मृति के बहाने नहीं टालें!
मनुस्मृति की अच्छाई मानिए प्रक्षिप्त बुराइयां त्याग दें
‘सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्—‘मनु उक्ति
सत्य बोलें प्रिय बोलें अप्रिय सत्य प्रिय झूठ नही बोलें
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ मनुस्मृति कहती!
मनुस्मृति में ही नारी रक्षा की त्रिस्तरीय बात कही गई
नारी रक्षक पिता पति पुत्र, उसे अकेली छोड़ी नहीं जाती
‘पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने रक्षन्ति स्थविरे
पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रयमर्दति’ चूक नहीं हो नारी रक्षा में
संस्कृत संस्कृति संस्कार की भाषा पढ़ें, लिखें, सहेज लें!
—विनय कुमार विनायक