कट, कापी, पेस्ट . . ., डिलीट !! नही रहे इसके जनक

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लिमटी खरे

आज के युग में कंप्यूटर के बिना जीवन की कल्पना बेमानी ही होगी। कंप्यूटर की उत्तपत्ति के बारे में अनेक धारणाएं प्रचलन में हैं। कोई कहता है यह अठारहवीं सदी के आरंभ में ही विकसित कर लिया गया था तो कोई इसका उद्भव उन्नीसवीं सदी के आसपास बताता है। कंप्यूटर में कट, कापी और पेस्ट की विधा का उपयोग वर्ड, नोटपेड, पेज मेकर, क्वार्क, इन डिजाईन जैसे प्लेटफार्मस पर किया जाता है। महज एक कमांड के जरिए ही सारा का सारा मामला इतना सरल करने की तरकीब ईजाद करने वाले मशहूर कंप्यूटपर वैज्ञानिक लैरी टेस्लर अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने 74 साल की उम्र में शरीर छोड़ा। उनके कौशल का जादू कंप्यूटर और मोबाईल के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों में लंबे समय तक छाया रहा है।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक लैरी टेस्लर को कंप्यूटर में महारत हासिल थी। उनके बारे में कहा जाता है कि वे कंप्यूटर से बातें किया करते थे। उन्होंने एप्पल, याहू, जेराक्स पोलो रिसर्च सेंटर के साथ ही साथ अमेजन में भी लंबे समय तक काम किया। उनको कंप्यूटर में कट, कापी और पेस्ट की विधा विकसित करने के लिए पहचाना जाता था। कंप्यूटर में किसी भी बात को टाईप करने के बजाए अगर किसी जगह टाईप की गई इबारत को कापी या कट करते हुए किसी दूसरी जगह पर चिपका (पेस्ट) कर दिया जाए तो यह संपादन में आसान तरीका माना जाता है।

1983 में कट, कापी पेस्ट को कंप्यूटिंग साफ्टवेयर का आधिकारिक हिस्सा बनाया गया। इसके लिए उन्होने एडीटर में टेक्सट अर्थात शब्दों को कापी करके एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए मोडलेस मैथड को तैयार किया था, जो बाद में कट, कापी और पेस्ट तकनीक कहलाई। इसके अलावा उन्होंने ढूंढो और बदलो अर्थात फाईंड एण्ड रिप्लेस की तकनीक भी इजाद की थी। उनके द्वारा ईजाद की गई अनेक तकनीकों के जरिए कंप्यूटर पर संपादन का काम बहुत ही आसान हो गया है।

कंप्यूटर के बारे में कहा जाता है कि यह पहली शताब्दी से ही अस्तित्व में आ चुका था। उस दौर में रेखीय संगणक अर्थात रेखीय एनालॉग का प्रयोग आरंभ हुआ था। गध्यकालीन समय में खोगलीय गणनाओं के लिए भी इस तरह के उपयोग होते रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी सेन्य कार्यों के लिए इसका प्रयोग होता आया है।

भारत में कंप्यूटर का आगाज 1952 में कोलकता के भारतीय सांख्यिकी संस्थान में हुई। इस दौरान यहां एक एनालॉग कंप्यूटर की स्थापना की गई थी। यह कंप्यूटर दस गुणा दस के मैट्रिक्स को आसानी से हल कर सकता था। इसके बाद भारत में कंप्यूटर के क्षेत्र में जमकर प्रगति हुई। 1956 में आईएसआई कोलकता में पहला इलेक्ट्रानिक कंप्यूटर स्थापित किया गया था। इसके साथ ही विश्व में जापान के बाद भारत दूसरा देश बना जहां कंप्यूटर तकनीक अपनाई गई।

इस दौर में एचईसी और 02 एम का निर्माण भारत के बजाए इंग्लेण्ड में हुआ करता था। इसे एंड्रयू डोनाल्ड बूथ के द्वारा विकसित किया गया था। इस कंप्यूटर में 1024 शब्द की ड्रम मेमोरी के साथ 16 बिट का कंप्यूटर हुआ करता था। इसके बाद 1958 मेतं आईएसआई में यूआरएएल नाम का एक और कंप्यूटर स्थापित किया गया। यह कंप्यूटर 32 बिट का हुआ करता था।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मशीन निगम के द्वारा 1975 में पहला पर्सनल कंप्यूटर (पीसी) ईजाद किया था। इसे व्यक्तिगत कंप्यूटर नाम दिया गया था। यह माईक्रोप्रोसेसर तकनीक थी जिसके जरिए सस्ता और कम स्थान घेरने वाला कंप्यूटर तैयार किया गया था, जिसका उपयोग लोग घर या कार्यालय में आसानी से कर सकते थे। इसके अधिकांश साफ्टवेयर लोगों के उपयोग में सुगम और सुलभ (यूजर फ्रेंडली) रहें, यह ध्यान में रखा गया था।

90 के दशक के बाद कंप्यूटर के क्षेत्र में भारत ने जमकर प्रगति की। पुणे के प्रगत संगणन विकास केंद्र में देश का पहला सुपर कंप्यूटर विकसित हुआ जिसे नाम दिया गया परम 8000 परम का शाब्दिक अर्थ होता था पैरेलल मशीन। इसके बाद से देश में कंपयूटर का विकास आरंभ हुआ।

हमें याद पड़ता है कि सबसे पहले हमारे द्वारा वर्ष 1993 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में साप्ताहिक हिन्दी मेल के प्रकाशन में काम करने का जब मौका मिला तब हमने कंप्यूटर का पहली बार उपयोग किया। उस दौरान 286 कंप्यूटर चलन में थे और इनकी कीमत उस दौर में सवा लाख रूपए हुआ करती थी, जाहिर है मंहगा होने के कारण इसके लिए दी गई हिदायतों को बहुत ही बारीकी से पढ़कर उसका पालन करना होता था। इसके बाद जब हमने पहली बार कंप्यूटर खरीदा तब वह 386 कंप्यूटर था। इसके बाद 486, पेंटियम और न जाने कितने नए नए वर्शन सामाने आते गए।

आज के युग में अखबारों, चेनल्स के साथ ही साथ सोशल मीडिया में कंप्यूटर का महत्व बहुत ज्यादा है। यहां तक कि अब तो व्यापारियों को भी मोटे मोटे बही खाते रखने की जरूरत नहीं, बिल बुक से बिल फाड़ने की आवश्यकता नहीं, मुनीम रखकर रोज का आय व्यय मिलाने के लिए सर खपाने की जरूरत नहीं, सब कुछ एक क्लिक पर ही मौजूद है। कंप्यूटर में साफ्टवेयर के जरिए जिस तरह की क्रांति आई है वह देखते ही बनती है।

अब तो सारे साफ्टवेयर ऑन लाईन मौजूद हैं। एक समय था जब कंप्यूटर में फ्लापी ड्राईव चला करती थी। बड़ी सी पतली फ्लापी के बाद इसका आकार घटा, यह साढ़े तीन इंच की हो गई। इसके बाद सीडी और डीवीडी चलन में आई और अब तो पेन ड्राईव भी गुजरे जमाने की बात हो रही है।

प्रौढ़ हो रही पीढ़ी ने सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि उसका पाला कंप्यूटर से पड़ेगा, तो लेपटॉप तो दूर की बात थी। पर नब्बे के दशक में ही लेपटॉप ने आमद दी। यह मंहगा जरूर था, पर लोगों के काम करने के लिए बहुत ही सुलभ माना जाता था। जिस तरह की क्रांति हर क्षेत्र में चल रही है उसे देखते हुए कंप्यूटर के क्षेत्र में नए नए वर्शन आना आम बात मानी जा रही थी।

आज के कंप्यूटर्स को अगर देखा जाए तो इसमें डाटा संरक्षित रखने के लिए अब ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है। सब कुछ छोटी सी डिस्क में ही रखा जाना संभव है। यह डेस्कटॉप में कहीं भी आसानी से फिट किया जा सकता है। इसके जरिए मल्टीमीडिया और मल्टी टास्किंग से लेकर ग्राफिक डिजाईनिंग तक आसानी से की जा सकती है। कंप्यूटर की तकनीक को यूजर फ्रेंडली बनाने में महती भूमिका निभाते हुए भी पर्दे के पीछे रहकर अपना जीवन इस काम को समर्पित करने वाले लैरी टेस्लर का निधन वास्तव में एक अपूर्णीय क्षति है।

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