साइबर सुरक्षा के अमेरिकी खेल

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

सामान्य तौर पर मिथ है कि इंटरनेट पर हम जो कर रहे हैं उसे कोई नहीं जानता। लेकिन यह बात सच नहीं है। अमेरिका में साइबर निगरानी करने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास सन् 2003 से चल रहे हैं। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने जनवरी 2008 के इंटरनेट निगरानी का आदेश जारी किया और अमेरिकी गुप्तचर विभाग को यह कहा कि वह इंटरनेट निगरानी करे। क्योंकि हैकरों के द्वारा फेडरल एजेंसियों के कम्प्यूटर सिस्टमों पर हमले की घटनाएं बढ़ गयी हैं। यह गुप्त आदेश था ।

इस आदेश के अनुसार नेशनल सुरक्षा एजेंसी को खास तौर पर यह दायित्व सौंपा गया है। कि वे सभी फेडरल एजेंसियों के कम्प्यूटर नेटवर्क पर निगरानी रखने का काम करेंगी। इसमें वे कम्प्यूटर नेटवर्क भी शामिल हैं जिनकी वे पहले निगरानी नहीं करती थीं। इस पूरे काम को ऑफिस ऑफ दि डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलीजेंस के द्वारा संयोजित किया जा रहा है।

अमेरिकी गृह मंत्रालय का काम है सिस्टम की रक्षा करना और पेंटागन का काम होगा जबाबी हमले की रणनीति तैयार करना। जिससे नेट घुसपैठियों को तबाह किया जा सके।

सन् 2005 से लेकर अब अमेरिका के कई मंत्रालयों के कम्प्यूटर नेटवर्क पर चीनी हैकरों के निरंतर हमले होते रहे हैं। खासकर रक्षा, कॉमर्स, गृह मंत्रालयों को हैकरों ने निशाना बनाया है। यहां तक कि परमाणु ऊर्जा विभाग के कम्प्यूटरों को भी चीनी हैकरों ने नहीं बख्शा है। अमेरिका के ये नेट सुरक्षा उपाय सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि अमेरिका की सीमा के परे भी इनका दायरा है।

सबसे पहले यहखबर ‘बाटलीमूर सन ’नामक अखबार ने सितम्बर 2007 में छापी थी उस समय इस खबर की ओर ज्यादा लोगों का ध्यान ही नहीं गया। इसे ‘साइबर पहल’ नाम दिया गया है। इस काम में NSA, CIA और FBI के साइबर विभाग सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

इस कार्य के लिए मोटी रकम भी बजट में आवंटित की गयी है और इसके दायरे में सरकारी और निजी क्षेत्र के सभी संस्थान ले लिए गए हैं। मूल बात यह है कि अब अमेरिका के प्रत्येक नागरिक और संस्थान की साइबर पहरेदारी की जा रही है। अब अमेरिका में सरकारी गुप्तचर संस्थाएं क्लासीफाइड और अन-क्लासीफाइड सभी किस्म की नेट निगरानी कर रही हैं इससे प्राइवेसी खतरे में पड़ गयी है।

बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद इस योजना में और भी तेजी आयी है और ‘वाशिंगटन पोस्ट’ (3 जुलाई 2009) के अनुसार साइबर सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता का क्षेत्र है। इसे ‘आइंस्टाइन 3’ नाम दिया गया है। इसके लिए 17 बिलियन डॉलर धन आवंटित किया गया है। इस प्रकल्प के पायलट सर्वे के लिए एटी एण्ड टी नामक विश्वविख्यात दूरसंचार कंपनी की मदद ली गयी है। इसके जरिए गैर सरकारी क्षेत्र की निगरानी का पायलट सर्वे किया जाएगा। इस समूची प्रक्रिया में मूल खतरा यह है कि निजी क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी के हाथों सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख क्षेत्रों के कम्प्यूटर कोड और सिगनेचर चले जाएंगे। सेना के तमाम कोड जो अभी तक सरकार के ही कब्जे में थे वे अब निजी कंपनी के पास चले जाएंगे।

उल्लेखनीय है अमेरिका मे बगैर वारंट के अमेरिकी नागरिकों के फोनकॉल और ईमेल की जासूसी संस्थाओं के द्वारा निगरानी का आदेश बुश प्रशासन के समय से चला आ रहा है। एटी एण्ड टी के पायलट सर्वे से इसे अलग रखा गया है।

‘आइंस्टाइन 3’ कार्यक्रम के साइबर राडार के जरिए नागरिकों की निगरानी हो रही है। इसके तहत गृह विभाग किसी नसेड़ी ड्राइवर को नशे में गाड़ी चलाते पकड़ सकता है। अथवा तेज गति से गाड़ी चलाने वालों को सीधा पकड़ सकता है।

दूसरी ओर नागरिक अधिकार संगठनों की मांग है कि नागरिकों के निजी ईमेल ,निजी संदेश और प्रेम संदेश न पढ़े जाएं। वे चाहते हैं नागरिकों की प्राइवेसी और नागरिक अधिकारों की हर हालत में रक्षा की जाए। उनके निजी डाटा जैसे इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस की हिफाजत की जाए। मुश्किल यह है कि सुरक्षा एजेंसियां किसी भी व्यक्ति को महज संदेह के आधार पर अपनी जांच के दायरे में ला सकती हैं।

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