दीपावली : अभिनन्दन गीत

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    सखि जगमग दीवाली है आई, महिनवा कार्तिक का।
     देखो झूम झूम नाचे है मनवा, महिनवा कार्तिक का।।
         *
    अमावस की रात में अँधेरा था छाया,
    दीपों  की  ज्योति ने  उसको भगाया,
    जैसे भू  पर आकाश उतर आया, महिनवा कार्तिक का।।
         *
    लिपे  पुते घर  सजे  सजाए,
    फुलझड़ी पटाके हैं शोर मचाए,
    सजी घर घर में दीपों की माल, महिनवा कार्तिक का।।
         *
     खील-बताशे के ढेर लगे हैं,
     मेवे मिठाई भी ख़ूब सजे हैं,
     जैसे ख़ुशियों की आई बारात, महिनवा कार्तिक का।।
         *
     घर घर में गणपति-पूजन हुआ है,
     लक्ष्मी  का  आह्वान  हुआ  है ,
     गूँजी मंत्रों की पावन गुंजार, महिनवा कार्तिक का।।
          *
     बहिना ने भाई के टीका किया है,
     भाई  ने  भी  उपहार  दिया  है,
     आज प्रेमरस बरसै अँगनवा, महिनवा कार्तिक का।।
          *
      सखि जगमग दीवाली है आई, महिनवा कार्तिक का।
      सखि सबको है आज बधाई, महिनवा कार्तिक का।।
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                                   — शकुन्तला बहादुर
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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

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