दिल्ली की जो सूरत आज दिखाई दे रही है वह सूरत दिल्ली को दिलदार कहने लायक बिलकुल भी नहीं है और सवाल यही खड़ा होता है कि हम दिल्ली को अगर अपना दिल नहीं मानेगे तो कैसे चलेगा काम? दिल्ली यूं तो अपने आप में एक प्रदेश है, लेकिन महज इसे एक प्रदेश मानकर राजनीतिक रोटियां सेंकना सत्ता और सत्ता के गलियारों में खुद को मजबूत करना राजनेताओं का दांव-पेंच हो सकता है, लेकिन यह दिल्ली की सेहत के लिए कतई अच्छा नहीं है। एमसीडी की हड़ताल हो या अन्य विवादों पर केंद्र और दिल्ली का विवाद इस सबने दिल्ली के दिलदार होने का रुतबा जैसे छीन सा लिया हो ऐसा लगता है। फिलहाल यह सूरत कब बदलेगी और राजनेताओं की सीरत में कब परिवर्तन आएगा यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन हाल ए दिल्ली बड़ा बुरा है। मार्च की गर्माहट का अहसास है। दिल्ली प्रदूषित है, अव्यवस्थाओं का केंद्र बनती जा रही है और अब तो दिल्ली राजनीतिक अखाड़ा भी बन चली है। हिन्दुस्तान का दिल माने जाने वाला यह शहर देश की दिलदार राजधानियों में शुमार होती थी, लेकिन अब इस दिल की धड़कन कोलेस्ट्रोल के जमाब से मध्यम पड़ती जा रही है। रबीश कुमार कहते हैं कि दिल्ली है तो हिन्दुस्तान है, मुल्क है तो दिल्ली है, लेकिन जब दिल्ली का ही यही हाल है तो फिर बाकी देश का हाल क्या होगा बताने की जरुरत नहीं है। मेयरों के आरोप हैं कि केजरीबाल झूठ बोल रहे हैं और आने वाले मुंसीपल चुनावों को लेकर प्लेटफार्म बनाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीबाल खुद यह कह रहे हैं कि वह एक पैसे के देनदार नहीं है फिर भी दिलदार हैं, दिल्ली के हैं इसलिए दिलदारी दिखा रहे हैं। न जाने कैसी होड़ मच निकली है और इस होड़ में मैं कुछ ऐसा देख रहा हूॅ कि न तो किसी पद की कोई गरिमा रह गई है और न कोई गरिमामयी बयानबाजियां ही। बस रह गया है तो बेतहाशा राजनीतिक लाभ कमा लेने का मंत्र। कभी गैर राजनीतिक माने जाने वाले केजरीबाल अपनी पहचान रखते थे वह राजनीति में आएंगे और इतनी जल्दी परिपक्व राजनीतिज्ञ हो जाएंगे यह दिलदार दिल्ली ने भी नहीं सोचा था। खैर यह सब बातें तो होनी ही थी और दिल्ली को जो कुछ देखना था वह तो दिल्ली जरुर देखेगी और देख रही है। अब तो साफतौर पर यह दिखाई देता है कि देश की यह धड़कती राजधानी राजनीतिक अखाड़ा बन गई है और इस अखाड़ा बनी दिल्ली की चीत्कार किसी को भी दिखाई नहीं देती। सब अपने-अपने मंसूबे पूरे करने में इतने कमजर्फ हो गए हैं कि दिल्ली की तकलीफ किसी को सुनाई नहीं पड़ती।
कहते हैं हम बदलेगें तो युग बदलेगा, इसी तरह अगर दिल्ली बदलेगी तो देश बदलेगा, सोच आगे ले जाने की बात थी वो कहीं पीछे छूट गई। दिल्ली राजधानी तो है, राजधानी तो रहेगी और उसकी बात वो कहां रह गई है। यह सोचने की फुर्सत भी अब भला किसे रह गई है। हाल ए दस्तूर दिल्ली यही चलता गया तो बहुत तकलीफ से गुजरेंगे दिन यह अहसास कंपा देता है पर परवाह किसे है यहां हर कोई दिल्ली को अपना-अपना राजनीतिक मंत्र बना लेता है। यूं तो उंगलियां उन पर भी उठती हैं कई हजार और वो भी नहीं दिखते दूध के धुले, पर चुनाव के बाद भी घमासान जब देखती है दिल्ली और हिन्दुस्तान तो शर्म बहुत आती है। हमारे सिस्टम और हमारी राजनीति के साथ राजनीतिज्ञों पर कि हम जनता को बेवकूफ समझना आखिर बंद कब करेंगे। हमने पांच साल दिए एक सरकार को वह अगले पांच साल बाद हमारे बीच अपना लेखा-जोखा लेकर आएगी। हम अपनी अदालत में सुनवाई करेंगे और निर्वाचन के दिन फैसला करेंगे फिर तूम बीच में कभी टॉर्लेंस, कभी ऑड-इवन और संसद को न चलने देकर अपनी अपरिपक्वता जाहिर कब तक करते रहोगे।
sampoorn bakvas.Who is responsible for Delhi’s cleanliness? If Delhi Government is not paying the dues,,why is it that MCD or rather MCDs are not taking the case to High Court?If employees are doing illegal strike they also can be taken to task.Why is ESMA not being applied?If salary up to December was already paid ,why did employees went on strike on January27,when next salary was due on January 31?Anybody who is writing about MCDs’ strike should be ready to reply these questions.There many other issues also.MCDs have been declared most corrupt department of Delhi followed by Delhi Police.What control Delhi Government has on these two departments?