भारत में ई-जर्नलिज्म का विकास

Ejournalशैलेन्द्र चौहान
भारत जैसे विकासशील देश में, बड़े शहरों और जिला स्तर तक तो इंटरनेट की सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन आज भी गांव-देहातों में रहने वाले करोड़ों लोग इससे वंचित हैं। भारत में तेजी से फैलते इंटरनेट के जाल के बावजूद भी ज्यादातर जनसंख्या इंटरनेट सुविधाओं से दूर है। सवा अरब की आबादी वाले भारत जैसे देश में सिर्फ 15 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं। दुनिया भर में हुए गैलप के एक सर्वे के अनुसार भारत के सिर्फ तीन फीसदी लोगों के घर में इंटरनेट है, जबकि चीन में 34, रूस में 51 और ब्राजील में 40 फीसदी लोगों ने घर में इंटरनेट के होने की पुष्टि की। दूरसंचार ने अब हाईस्पीड इंटरनेट सेवा वाईमेक्स शुरू की है। इसमें बिना केबल वाले ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की सुविधा मिलेगी। इस सेवा के तहत 15 किलोमीटर के दायरे तक इंटरनेट इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें तीन तरह के मॉडम उपलब्ध हैं। एक से डेढ़ किलोमीटर तक के लिए यूएसबी नुमा मॉडम, पांच किलोमीटर तक मॉडम जिसमें एक इनबिल्ट एंटीना है तथा पांच किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र के लिए एक मॉडम और साथ में एक एंटीना जिसे छत पर लगाया जाता है। प्रतिस्पर्धा और तकनीकी क्रांति के दौर में बीएसएनएल भी किसी से पीछे नही है। वहीं अब गूगल ने गांव-देहात और सुदूर के क्षेत्रों में इंटरनेट को पहुंचाने की अपनी योजना शुरू कर दी है। इंटरनेट की सुविधाएं प्रदान करने के लिए गूगल ने एक अत्याधुनिक तकनीक ईजाद की है। दुर्गम इलाकों को इंटरनेट से जोड़ने के लिए गूगल ने आकाश में ऎसे प्रायोगिक गुब्बारे छोड़े हैं, जो अपने आसपास के इलाकों में इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराएंगे। प्रोजेक्ट लून के तहत कम्पनी ने न्यूजीलैंड में 30 अत्यधिक दबाव वाले गुब्बारे छोडे हैं, जहां से वे दुनिया भर में एक नियंत्रित रास्ते पर उड़ते हुए जाएंगे। इनमें लगे उपकरण, रेंज में आने वाले इलाके के बड़े हिस्से में 3-जी जैसी स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध करा गे। न्यूजीलैंड में धरती से 20 किमी ऊपर हीलियम भरे गुब्बारों की मदद से 50 घरों को इंटरनेट से कनेक्ट किया जा चुका है। यह परीक्षण करीब 18 माह तक चले एक लंबे प्रोजेक्ट लून के बाद किया गया। यह किसी भी जंगल, पहाड़ और गुफाओं में भी इंटरनेट सर्विस देने में सक्षम होगा, बशर्ते वहां पर इसका रिसीवर हो। इन गुब्बारों का डायमीटर 50 मीटर है। इनमें सोलर पैनल के साथ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगे हैं। यह गुब्बारा पृथ्वी के चारों तरफ इसी ऊंचाई पर चक्कर लगाते हुए इंटरनेट सर्विस प्रदान करेगा। इस प्रकार ईलेक्ट्रानिक्स आधारित पत्रकारिता माध्यम में यह तरीका काफी कारगर साबित हो सकता है। इंटरनेट के विस्तार और इस तकनीकी खोज व इसके प्रयोग ने ‘ई-जर्नलिज्म’ के फलक को और फैलाया है। ग्लोबलाईजेशन के दौर में पलक झपकते ही समूचे संसार से रूबरू होने का सहज साधन है ‘ई जर्नलिज्म’। ‘ई-जर्नलिज्म’ को सुविधानुसार वेब-मीडिया या सायबर मीडिया भी कहते हैं। आज इंटरनेट के अविष्कार तथा बड़ी संख्या में न्यूज पोर्टल, वेबसाईट, ब्लाग, कियास्क, सोशल नेटवर्किंग साईट आदि के अस्तित्व में आने से यह शक्ति बढ़ती जा रही है। यही नहीं आज सारे अखबार और चैनलों में भी अपने इंटरनेट संस्करण लांच करने को लेकर होड़ मची है। तमाम समाचारों के बाद में ईमेल आईडी या वेबसाइट का पता मौजूद रहता है। जो माध्यम जितनी शीघ्रता से सूचना देगा वह उतना ही अधिक सफल होगा। अपनी पुस्तक ‘माध्यम ही संदेश है’ में मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैक्लूहन की लिखी उक्ति ‘सूचना से अधिक महत्वपूर्ण सूचना तंत्र है’। हर छोटे-बड़े कार्यालय में इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध है। पत्रकारिता जगत में हो रहे विकास और बदलाव की इन गतिविधियों से भारत भी अछूता नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में अपनी ओर से सार्थक और सक्रिय भागीदारी कर रहा है। इस क्षेत्र में काफी बदलाव आने अभी शेष हैं। अब तो नेट पत्रकार शब्द व्यवहार में सुलभ हो गया है। डाउनलोड करने या फिर नागरिक पत्रकारिता के नाम पर समाचार अपलोड कर सकने की सुविधा ने ‘ई-जर्नलिज्म’ को आगे बढ़ाया है। सूचना को त्वरित गति से रिसीवर तक पहुंचाने में संदर्भ ढूंढने में और विश्लेषण करने के समय की कटौती भी होने लगी है। साफ्टवेयर से चुनिंदा विषयों पर लेख लिखे जाने लगे हैं। यह क्षेत्र अपने कामगारों से खास तरह के प्रशिक्षण की मांग जरूर करता है। समाचार के कलेवर विस्तार से संक्षिप्त व वस्तुनिष्ठ होते हुये अब बाइट्स पर आ गये हैं। पत्रकारों के डिजीटल होते जाने से कलम व कागज रोमांचक तरीके से तलाक लेते जा रहे हैं। ज्ञान, दर्शन, अध्यात्म और रचनात्मक सृजन के साथ अत्याधुनिक तकनीकों के तालमेल से पत्रकारिता का फैलाव क्रांतिकारी स्तर तक हो गया है। आवश्यकता इस बात की है कि पत्रकारिता के अन्य माध्यमों को कमजोर किये बिना ‘ई-जर्नलिज्म’ अपने तय सीमा क्षेत्र में अपना रोल निभाना है। यह समय के साथ कदमताल करते हुये टिके रहने और आगे बढ़ने की अनिवार्य शर्त भी है।

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