डिजिटल इण्डिया अभियान से होगी नई सूचना क्रान्ति का आगाज

digital indiaअशोक “प्रवृद्ध”

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा एक जुलाई को अपनी चिर-परिचित शैली के अनुरूप पूर्ण भव्यता के साथ उद्घाटन व शुभारम्भ किया गया डिजिटल इण्डिया अभियान सरकार का एक और स्वागतयोग्य कदम है । सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य सभी नागरिकों को संचार और नवीनतम तकनीकों का लाभ पहुँचाते हुए डिजिटल सेवाएं उपलब्ध कराना, सरकारी योजनाओं को आम जन के लिए ऑनलाइन उपलब्ध कराना और इस तकनीक के बारे में जनता में जागृति लाना है। अभियान की विराटता व व्यापकता का अंदाजा इस बात से होता है कि इस अभियान पर 500 करोड़ रुपये खर्च किए जाने की योजना है । इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में डिजिटल इण्डिया सप्ताह का शुभारम्भ भी किया था। डिजिटल इण्डिया सप्ताह की सफलता का इस बात से पता चलता है कि‍ इस दौरान वि‍भि‍न्‍न राज्‍य सरकारों और केन्द्र की ओर से 250 से ज्‍यादा ऑनलाइन सेवाएं शुरू हुई हैं। इस बात का खुलासा करते हुए संचार एवं प्रौद्योगि‍की मंत्री रवि‍ शंकर प्रसाद ने कहा कि‍ इस दौरान स्‍वास्‍थ्‍य, शि‍क्षा, सार्वजनि‍क वि‍तरण प्रणाली, सामाजि‍क कल्‍याण और पेंशन सेवा, पुलि‍स, कृषि‍, व्‍यापार और रोजगार से जुड़ी 250 से ज्‍यादा सेवाओं को वि‍भि‍न्‍न राज्‍य सरकारों ने लॉन्‍च कि‍या है। इस अभियान के तहत डिजिटल इण्डिया पोर्टल, मोबाइल ऐप, माईगॉव मोबाइल ऐप, स्‍वच्‍छ भारत मिशन ऐप और आधार मोबाइल अपडेट ऐप जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके माध्यम से लोग पहली बार सरकार से सीधे तौर पर जुड़ेंगे और उन्हें सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की जानकारी के साथ ही उनका लाभ भी मिल पाएगा। अभियान की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि डिजिटल इण्डिया भारत के भविष्य का खाका बदलने को तैयार हो गया है। क्योंकि इस अभियान से पहले ही देश में 4.5 लाख करोड़ रुपए का निवेश का ऐलान हो चुका है साथ ही इससे 18 लाख लोगों को रोजगार भी मिलने की संभावना पक्की हो गई है। आज हमें दुनिया में आ रहे बदलाव को समझने की जरूरत है। अगर हम इस बदलाव को नहीं समझ पाए तो हम बहुत पिछड़ जाएंगे। इस अभियान से हर नागरिक का सपना पूरा होगा। आज हर बच्चा डिजिटल ताकत को समझता है। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने समारोह की शुरुआत करते हुए कहा कि डिजिटल इण्डिया का उद्देश्य है समृद्ध भारत, और इसका सार है साक्षर भारत। इसके दम पर सशक्त भारत का निर्माण होगा। भारतीय प्रतिभा को आईटी से जोड़कर देश को सशक्त बनाया जा सकेगा। योजना की महता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि डिजिटल इण्डिया के अंतर्गत जनता को अनेक डिजिटल सुविधाएँ मुहैय्या करायी जाने की योजना सरकार की है । डिजिटल इण्डिया योजना के माध्यम से हर गाँव और शहर को इंटरनेट से जोड़ने की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, ताकि लोग कागजी कार्य के बजाय अपने ज्यादातर काम सीधे ऑनलाइन कर सकें। योजना के अंतर्गत डॉक्यूमेंटस (पैन कार्ड, आधार कार्ड और अन्य जरूरी दस्तावेज) रखने के लिए डिजिटल तिजोरी, विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें डाऊनलोड और अध्ययन करने के लिए ई-बैग, ऑनलाइन चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराने हेतु ई-हेल्थ योजना आदि की सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी। ई-हेल्थ योजना के जरिये बड़े अस्पतालों में लोगों को लंबी लाइनें नहीं लगानी पड़ेंगी। मरीज देश के किसी भी कोने में बैठकर ऑनलाइन अप्लाई कर सकेंगे। दूर-दराज के गांवों को भी इस स्कीम से जोड़ा जाएगा। बताया जा रहा है कि यह प्रधानमंत्री मोदी की महत्वकांक्षी योजना है और इसे लागू करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये आवंटन की मंजूरी दी गई है। सूचना मंत्रालय और आयकर विभाग डिजिटल इण्डिया को कार्यान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

 

संसार की लगभग पंद्रह प्रतिशत युवा आबादी भारतीय है। यदि उसे समय के साथ कदमताल मिलाते हुए आगे बढ़ना है, तो डिजिटल होना भी एक अनिवार्यता है। डिजिटल इण्डिया वीक के दौरान अरबों डॉलर के निवेश की संभावना जताई जा रही है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने ईडीएफ पॉलिसी डॉक्युमेंट के साथ ही डिजिटल इंडिया बुक को भी लॉन्च किया। डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्‍युनिकेशन 11 राज्‍यों में भारतनेट शुरू करेगा और देशभर में वाई-फाई की सुविधा उपलब्‍ध कराएगा। नेक्‍स्‍ट जेनरेशन नेटवर्क (एनजीएन) भी इस योजना का हिस्‍सा है। डिजिटल इण्डिया अभियान के बाद देश में तमाम तरह की डिजिटल सेवाएँ आरम्भ हो गई हैं और अब भारत भी ब्रॉडबैंड हाई-वे पर मौजूद होगा। जिसके कारण नई सूचना क्रान्ति का आगाज होगा। लगभग ढाई  लाख ग्राम पंचायतें भारत नेट से जुड़ेंगी। सार्वजनिक वाई-फाई उपलब्ध होगा। अर्थात सम्पूर्ण भारत डिजिटल हो जाएगा और कागज एक पुराना अतीत बनकर रह जाएगा।

 

चूँकि इस अभियान को मेक इन इण्डिया और स्किल इण्डिया के बहुचर्चित उद्देश्यों से जोड़ कर प्रस्तुत किया गया है, इसलिए इसकी फलक की व्यापकता, आवश्यकता व महता और भी विस्तृत व व्यापक हो जाता है। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि योजना के शुभारम्भ पर कॉरपोरेट जगत के बड़े नाम व बड़ी हस्तियाँ इकट्ठी हुईं । इसके अतिरिक्त कई वि‍देशी नि‍वेशकों ने भी भारत में अपनी रुचि‍ जतलाई और भारत के डिजि‍टलि‍करण पर करीब 7.72 लाख करोड़ रुपए के नि‍वेश का प्रस्‍ताव पेश कि‍या। यह सभी जानते हैं कि ऐसी बड़ी परियोजनाओं का कार्यान्वयन वर्तमान आर्थिक परिवेश में केवल सरकार के वश की बात नहीं है । निजी क्षेत्र की उत्साहपूर्ण भागीदारी से ही इस प्रकार की योजनाएं पूरी हो सकती हैं, अतः संभावित निवेशकों को सरकार का आरंभ से ही इस अभियान से जोड़ने का तर्क समझा जा सकता है। ध्यातव्य है कि डिजिटल इण्डिया सप्ताह के कार्यक्रमों की घोषणा करते वक्त सूचना तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस दौरान अरबों डॉलर निवेश के एलान की उम्मीद जताई थी। अभियान के अंतर्गत एक जुलाई से एक सप्ताह तक सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में डिजिटल कार्यक्रम आयोजित किए गए और  देश के 600 जिलों में इस तकनीक के बारे में जागृति लाने के उद्देश्य से एक साथ अभियान चलाये गए । दरअसल केन्द्र सरकार 2019 तक देश के सभी पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने तथा स्कूलों और विश्वविद्यालयों में वाई-फाई की सेवा देने का लक्ष्य लेकर चल रही है। डिजिटल इण्डिया अभियान की ये सभी प्रशंसनीय उद्देश्य हैँ, परन्तु इस विन्दु पर कुछ ठोस वास्तविकताओं से आँख मिलाने की जरूरत भी है, जिनके बिना उद्देश्य की पूर्ति संभव नहीं दिखती ।

 

पूर्व संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन सरकार के द्वारा 2006 में शुरू किये गए नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क योजना के तहत दो लाख गाँवों को फाइबर केबल से जोड़ा जाना था, परन्तु 2013 में लक्ष्य पाँच साल पिछड़ा हुआ था। पिछले एक वर्ष में भी केबल बिछाने की गति में अपेक्षित सुधार नहीं दिखा है। इंटरनेट की पहुँच व पैठ का सवाल अलग है। बमुश्किल देश की 20 फीसदी आबादी की इस तक पहुँच है। गाँवों में तो यह महज 9  प्रतिशत है। कंप्यूटर व स्मार्ट फोन की कीमत, शिक्षा के स्तर, तकनीक कौशल में पारंगतता, देशी भाषाओं में बेहतरीन कंटेन्ट का अभाव ऐसी ठोस वजहें हैं, जिससे इंटरनेट सेवाएं अब तक भारतीय जनसँख्या के एक छोटे हिस्से को ही उपलब्ध हैँ। डेटा गोपनीयता की सुरक्षा का मुद्दा अलग से मौजूद है। इन सबके रहते पूरे भारत को डिजिटल बनाने का स्वप्न पूरा नहीं हो सकता। अतः सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि यह सिर्फ निवेशकों और समाज के कुछ तबकों के लाभ की परियोजना बन कर ना रह जाए। शानदार उद्घाटन के आगे का रास्ता चुनौती भरा है।

 

डिजिटल भारत भविष्य का यथार्थ है, जबकि हमारे कुछ यथार्थ परम्परागत भी हैं, जिन पर प्रश्न खड़े किए जा सकते हैं कि उनके रहते हम डिजिटल कैसे हो सकते हैं? देश में आज भी करीब 30 करोड़ आबादी गरीब है, करीब 55 फीसदी आबादी आज भी खुले में शौच जाने को अभिशप्त है, अधिकांश गाँवों  तक बिजली तो पहुँच नहीं पाई है, कम्प्यूटर और स्मार्ट फोन तो बहुत दूर की बात हैं। इंटरनेट उपभोक्ता के लिहाज से भारत दुनिया में 129वें स्थान पर है, फिर भी सरकार की नई पहल आशा तो जगाती ही है क्योंकि प्रधानमंत्री का दावा है कि इस डिजिटल क्रान्ति से 18 लाख रोजगार पैदा होंगे। बेशक इसमें कुछ जोखिम भी हैं, जो अमरीका सरीखे सर्वशक्तिशाली देश के सामने भी हैं। सबसे बड़ा और संवेदनशील मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा का है। हम जितनी भी सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनके सर्वर विदेशी हैं। हमारी सामरिक सूचनाएं तक लीक हुई हैं। जिन नौ कंपनियों के जरिए ये लीक हुई थीं, उनके खिलाफ  हम कुछ भी कार्रवाई नहीं कर सके, क्योंकि वे हमारे कानूनी दायरे के बाहर हैं। ऐसे में यदि विदेशी सर्वरों के जरिए भारत का डाटा विदेशी हाथों में जाता रहता है, तो संकट कभी भी गहरा सकता है। लिहाजा ऐसे जोखिमों से निजात पाने के लिए जरूरी है कि डिजिटल भारत होते हुए अपना भी सर्वर तैयार किया जाए। जिस तरह सरकार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उत्पादन देश में ही करना चाहती है, उसी तरह सर्वर की दिशा में भी नई पहल हो सकती है।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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