संजय सक्सेना
समाजवादी पार्टी में एक तरफ सुलह-समझौते की कोशिश हो रही है तो दूसरी तरफ ऐसे लोंगो की भी संख्या कम नहीं है जो सपा की ‘आग’ में घी डालने का काम कर रहे हैं। भीतर खाने से जो खबरें आ रही हैं उसके अनुसार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इस समय अपने विरोधियों से चौतरफा मुकाबला करना पड़ रहा है। एक तरफ नेताजी नाराज हैं तो दूसरी तरफ लगता है कि चचा शिवपाल यादव अपने भतीजे के खिलाफ ‘ हम नहीं या तुम नही।’ के तर्ज पर आगे बढ़ते हुए सपा को ‘गहरी खाई’ में ले जाने से भी संकोच नहीं कर रहे हैं। बात इससे आगे की कि जाये तो जिस तरह से अखिलेश पिता का घर छोड़कर नये ‘ठिकाना’ पर चले गये हैं,उससे तो यही लगता है कि अखिलेश को उन ‘लोंगो’ से ही नहीं मोर्चा संभालना पड़ रहा है जो सियासत में हैं,बल्कि वह लोग भी उनके लिये मुश्किल खड़ी कर रहे हैं जो कहने को तो चाहरदीवारी के भीतर रहते हैं,लेकिन वहीं से वह सियासी तीर चलाते हैं। इस बात का अहसास तब और ताजा हो गया था जब हाल ही में अखिलेश ने सार्वजनिक रूप से यहां तक दिया कि बचपन में उन्हें अपना नाम तक स्वयं रखना पड़ा था। यानी वह यह अपने समर्थकों और चाहने वालों को यह जताना चाह रहे थे कि मॉ की मौत के बाद कहीं न कहीं वह परिवार में अलग-थलग पड़ गये थे। हो सकता है घर का मनमुटाव सड़क पर न आता,अगर अखिलेश को सीएम बनाने की बजाये मुलायम स्वयं मुख्यमंत्री बन जाते। ऐसा लगता है कि सियासत में अखिलेश की बढ़ती लोकप्रियता से कहीं न कहीं उन लोंगो को करारा झटका लगा है जो यह मानकर चल रहे थे कि अखिलेश कभी भी बिना मुलायम की बैसाखी के सहारे चल ही नहीं सकते हैं। यही वजह थी, अखिलेश की इच्छा के विरूद्ध जाकर कौमी एकता दल का सपा में विलय किया गया। गायत्री प्रजापति को पुनः मंत्री बनवा दिया गया। अखिलेश के करीबियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। हद तो तब हो गई जब उस गायत्री प्रजापति को सपा के रजत जयंती समारोह का संयोजक बना दिया गया जिसके बारे में अखिलेश की धारणा बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। इसके अलावा भी टिकट चयन में अखिलेश की अनदेखी, पार्टी कार्यालय में सीएम की सुरक्षा के लिये तैनात सुरक्षा बलों को हटाया जाना आदि तमाम मामले स्वाभिमानी अखिलेश के लिये नमक पर मिर्चा छिड़कने से कम नहीं था। इतना ही नहीं शिवपाल यादव का भतीजे अखिलेश पर भाग्य और विरासत वाला तंज कसना भी युवा अखिलेश को काफी नागवार गुजरा। शायद इसी लिये जब सपा रजत जयंती समारोह मना रही होगी, तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उसमें भाग लेने की बजाये रथ यात्रा पर निकले हुए होंगे। इस बात की सूचना अखिलेश ने पत्र लिखकर मुलायम सिंह और सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को दे भी दी है।
खैर, तमाम जलालत झेलने के बाद भी अभी तक अखिलेश अपने परिवार की खींचतान के बारे में खुल कर नहीं बोले हैं, तो यह उनकी शालीनता भी हो सकती है और मजबूरी भी,लेकिन अखिलेश जैसी मजबूरी उनके समर्थकों के साथ नहीं है। इसी लिये वह बेबाक टिप्पणी कर रहे हैं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने सपा प्रमुख और अपने भाई मुलायम सिंह यादव को अखिलेश के पक्ष में पत्र लिखकर सपा के भीतर जो अलख जलाई थी, उसे सपा के कई नेता भी आगे बढ़ाने में लग गये हैं। पहले सपा की युवा बिग्रेड ने रजत जयंती समारोह कार्यक्रम के बहिष्कार की घोषणा की उसके दूसरे ही दिन समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य और अखिलेंश के करीबी उदयवीर सिंह ने मुलायम को पत्र लिख मारा। उदयवीर का पत्र नेताजी को आईना दिखाने के लिये काफी था। था तो यह एक एमएलसी का पत्र, लेकिन लग यह रहा था एमएलसी के पत्र में पूरे प्रदेश की भावनाएं समाई हुईं थी। मुलायम को लिखे पत्र में उदयवीर ने बिना लाग लपेट के आरोप लगाया कि शिवपाल राजनीतिक महत्वाकांक्षा और निजी ईष्या में अखिलेश के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। अपना दर्द बयान करते हुए उदयवीर ने लिखा हम लोगों को पार्टी से आपके(मुलायम) अपमान के आरोप में बाहर किया गया है। खुद अखिलेश यादव आपके अपमान के बारे में नहीं सोच सकते तो हमारी बिसात क्या है,जबकि कई बार सार्वजनिक मंचों पर अखिलेश जी को आपने न जाने क्या-क्या कहा जो उनकी गरिमा के प्रतिकूल था, फिर भी वे आज्ञाकारी पुत्र की तरह सदैव मुस्कराते रहे।
उदयवीर ने आरोप लगाया कि जैसे ही 2012 में अखिलेश को सीएम बनाने की बात आई, घर में षड्यंत्र शुरू हो गया। तब अखिलेश की सौतेली मां सामने नहीं आईं, लेकिन उनका राजनीतिक चेहरा बनकर शिवपाल ने पार्टी के तमाम नेताओं से संपर्क कर इस निर्णय को हर संभव रुकवाने की कोशिश की। शिवपाल की महत्वाकांक्षा काफी समय से अखिलेश का पीछा कर रही है। उन्होंने कई सार्वजनिक मंचों पर सीएम का मजाक उड़ाया, जैसे कि लड़का है, ये एक्सप्रेस-वे क्या बनवाएगा, कानून व्यवस्था इसके बस की बात नहीं है। उदयवीर ने सीएम की सौतेली मां को भी षड्यंत्र में शामिल बताते हुए कहा कि आपकी पत्नी, बेटे, बहू, भाई के साथ उनके रिश्तेदार, मौकापरस्त नेता और ठेकेदार अखिलेश के खिलाफ षड्यंत्र रचते रहे। आपने इनके दबाव में सीएम को अपमानित भी किया। गैंग में चालबाज की भूमिका अमर सिंह ने निभा दी।
पत्र का सार तो यही है कि आज की तारीख में समाजवादी पार्टी के भीतर अखिलेश के कद के बराबर कोई नेता नहीं रह गया है। अखिलेश के साथ युवा ब्रिगेड तो है ही, मुलायम सिंह के कई संगी-साथी भी ‘नेताजी’ से अधिक ‘बेटाजी’ पर भरोसा जता रहे हैं। बेटाजी की लोकप्रियता पार्टी के भीतर ही नहीं जनता के बीच भी सिर चढ़कर बोल रही है।
पार्टी के भीतर की इस रस्साकसी से सबसे अधिक भ्रम में पार्टी के छोटे नेता ओर कार्यकर्ता हैं। उनके लिए तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह किस पाले में बैठें। कल तक भले ही सपा में मुलायम की ही चलती रहती हो,लेकिन अब ऐसा नही है। इस समय सपा की सियासत कई कोणों में बंटी हुई नजर आ रही है। जानकारों का कहना है कि कुनबे की रार का मुकम्मल रास्ता न निकलते देख अखिलेश ने आगे बढ़ने का फैसला किया है,जो समय के हिसाब से लाजिमी भी है। अब इसमें वह कितना आगे जायेंगे यह देखने वाली बात होगी। वैसे अखिलेश के पक्ष में खड़े चचा प्रो0 रामगोपाल यादव का चुनाव आयोग में जाना भी,यही दर्शाता है कि अब पार्टी में विभाजन तय हो गया है। यह शिवपाल यादव और उनकी टीम को उसकी औकता बताये बिना शायद ही रूक पायेगा।
लब्बोलुआब यह है कि रथयात्रा और रजत जंयती की तारीखों का टकराना सपा के भीतर की राजनीति की दिशा तय करने में अहम साबित हो सकता है। जिलों में रथयात्रा को सफल बनाने की जिम्मेदारी जिलाध्यक्षों की होती है। उनके संगठनात्मक मुखिया शिवपाल यादव हैं। 5 और 6 जनवरी को पार्टी का रजत जयंती समारोह होगा। इसमें सभी पार्टी पदाधिकारियों की मौजूदगी होनी है। ऐसे में रथयात्रा चल रही होगी तो कार्यकर्ता के लिए यह तय करना मुश्किल होगा कि समारोह मनाएं कि रथ में निकलें। पूरे घटनाक्रम पर नजर रख रहे राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा के शीर्ष नेतृत्व से हालात को भांपने में कहीं न कहीं चूक हो रही है। मुलायम सिंह के चुनाव बाद फेस तय करने के बयान के बाद स्थितियां और जटिल हो गई,जिस पर बाद में सफाई दी गई,लेकिन बात बिगड़ती ही चली गई। पहले मुलायम के कंधे पर बैठकर शिवपाल यादव चाल चल रहे थे,अब अखिलेश अपने तुरूप के पत्ते खोल रहे हैं।