सुरेश हिंदुस्थानी
देश में प्राकृतिक वातावरण को निर्मित करने वाले संसाधनों का जिस प्रकार से दोहन हो रहा है, उससे कई प्रकार की विषमताएं हमारे सामने मौत बनकर आ रही हैं। हमारा देश वर्तमान में सूखे को लेकर गंभीर मंथन की मुद्रा में है। लेकिन क्या हमने इस बात पर विचार किया है कि यह सूखे की स्थिति के पीछे कौन से कारण हैं? जब तक हम इस बात पर गीनता के साथ विचार नहीं करेंगे, तब तक हम सूखे की समस्या का स्थाई समाधान नहीं निकाल सकते। इसलिए हम सभी को अभी से, बल्कि आज से ही बिना देर किए इस समस्या के बारे में चिन्तन करना होगा, नहीं तो जब हालात बेकाबू हो जाएंगे, तब बहुत देर हो चुकी होगी। उस समय हमारे हाथ में कुछ नहीं बचेगा और हम हाथ मलते ही रह जाएंगे।
आगामी मानसून को लेकर देश में जिस प्रकार से भविष्य वाणी की जा रही हैं, उससे देश के नागरिकों में एक आशा का संचार हुआ है। भारत देश के लिए अच्छी खबर यह है कि आने वाले समय में मानसून समय पर आएगा और अच्छा रहेगा। भारत के मौसम विभाग का भी आकलन यही है और अन्य मौसम विशेषज्ञों की राय भी इससे मिलती है। इसके सच होने की काफी संभावना इसलिए भी है कि इन दिनों मौसम की भविष्यवाणी की तकनीक व ज्ञान काफी बेहतर हो गया है और पिछले कई साल से मौसम की भविष्यवाणियां सही निकलती रही हैं। वैसे भी, जब से मानसून का रिकार्ड रखना शुरू किया गया है, तब से अब तक लगातार तीन साल खराब मानसून कभी नहीं रहा, जबकि लगातार दो साल खराब मानसून के कई उदाहरण हैं। इस साल मानसून शुरू होते-होते प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव भी खत्म हो जाएगा, जिसकी वजह से पिछली बार अच्छी बारिश नहीं हुई थी। अल नीनो के बाद आने वाले मानसून में अमूमन सामान्य से ज्यादा बारिश होती है। हालांकि सामान्य या ज्यादा बारिश का अर्थ यह नहीं है कि देश में हर जगह उतनी ही वर्षा होगी, जितनी अपेक्षित है। इसका अर्थ यह भी है कि आम तौर पर सामान्य वर्षा होगी, लेकिन कहीं-कहीं सामान्य से काफी ज्यादा वर्षा हो सकती है और कुछ जगहों पर सामान्य से कम वर्षा भी संभव है।
भारत जैसे विशाल देश या भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून जैसे कई महीने चलने वाले मौसमी घटनाचक्र में कुछ अनियमितता तो स्वाभाविक है और पिछले कई वर्षों से मौसम में अनियमितता का यह तत्व बढ़ गया है। मानवीय गतिविधियों की वजह से या प्रकृति के अपने कारणों से मौसम लगातार अनियमित होता जा रहा है, लेकिन हमने इसके लिए तैयारी नहीं की है, बल्कि हम यह कह सकते हैं कि मौसम की अनियमितता के साथ हमारी लापरवाही भी बढ़ रही है।
अगर हम साल-दर-साल उत्तराखंड, कश्मीर व बिहार की बाढ़ या महाराष्ट्र और बुंदेलखंड का सूखा झेल रहे हैं, तो इसमें मौसम से ज्यादा हमारी लापरवाही का दोष है। इस साल अगर ज्यादा बारिश हुई, तो कई जगह बाढ़ का खतरा रहेगा और हमें उम्मीद करनी चाहिए कि कोई बाढ़ पहले की तरह भयानक न हो। पिछले वर्षों में मुंबई और चेन्नई में आई भारी बाढ़ ने यह दिखा दिया है कि बिना सोचे-समझे अंधाधुंध शहरीकरण की रफ्तार ने हमारे महानगरों को किस तरह असुरक्षित बना दिया है। इसके अलावा हमें यह बात भी ध्यान में रखना होगी कि हमारे देश के गांव जितने समृद्ध होंगे, उतने ही हम सुरक्षित होते जाएंगे। लेकिन आज हालात यह हैं कि गांव समाप्त होते जा रहे हैं। गांव के लोग आज शहरों की तरफ पलायन करने लगे हैं। शहरों की तरफ इस प्रकार का पलायन ही सारी समस्याओं का कारण है, क्योंकि शहरीकरण के लिए आज जंगल और पेड़ पौधों का अंधाधुंध विनाश किया जा रहा है। हम जानते हैं कि वृक्ष हमारे जीवन संचालन का बहुत बड़ा हिस्सा है, अगर वृक्ष नहीं होंगे तो हमारा जीवन भी प्रभावित होगा, यह निश्चित है। इसलिए सबसे पहले हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम अगर एक वृक्ष काटते हैं तो हमें दस वृक्ष लगाने का भी उपक्रम करना होगा। आज जितनी मात्रा में पेड़ काटे जा रहे हैं, उतने अनुपात में वृक्ष लगाने का काम नहीं हो रहा। जिस क्षेत्र में वृक्ष अच्छी संख्या में होंगे, उस क्षेत्र में वर्षा की संभावनाएं बहुत अच्छी होती हैं।
बाढ़ और सूखा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, वर्षा का प्रभाव बाढ़ का कारण बनता है तो वर्षा का अभाव सूखे की स्थिति को निर्मित करता है। अगर हमारे देश में जल संचयन की प्रभावी व्यवस्था हो जाए तो बाढ़ और सूखे की समस्या से आसानी से निपटा जा सकेगा। क्योंकि शहर और गांवों में जल संग्रह के लिए जो स्थान बनाएं जाएंगे, उससे भूजल स्तर में काफी हद तक सुधार आएगा और वर्षा का पानी अनावश्यक रूप से बाढ़ का कारण नहीं बनेगा, इसलिए हमें जल संग्रहण पर ज्यादा जोर देना होगा। जितनी अधिक संख्या में जल संग्रहण करने वाले स्थान बनाए जाएंगे, उतना ही हमें लाभ होगा। इसके अलावा यही जल भविष्य में हमारे खेतों में सिंचाई का माध्यम बन सकेंगे, जिससे सूखे की स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।
वर्तमान में जिस प्रकार से भयावह स्थिति का निर्माण हुआ है, वह जल प्रबंधन की हमारी कमजोरी को दिखाते हैं। अगर बारिश के पानी को सही ढंग से संचित करने और व्यवस्थित निकासी के इंतजाम हों, तो सूखे की स्थिति में पानी की तंगी और ज्यादा बारिश से बाढ़ के प्रकोप, दोनों से बचा जा सकता है। पिछले वर्षों की लगातार प्राकृतिक आपदाओं ने यह दिखा दिया है कि अब पानी के प्रबंधन में लापरवाही और नहीं चल सकती, इसलिए सरकार और समाज को सही कदम उठाने ही होंगे। मानसून सामान्य से ज्यादा हो, तब भी प्राकृतिक रूप से भारत के कई हिस्सों में बारिश कम ही होती है। महाराष्ट्र और उससे जुड़े कर्नाटक के कुछ क्षेत्र ऐसे ही हैं। यहां पड़े भीषण सूखे से यह सबक लेना चाहिए कि पानी का सही इंतजाम किया जाए और ऐसी फसलें बोई जाएं, जिनमें पानी कम लगता है। इसी तरह, पूरे देश में मौसम और उसकी अनियमितता को ध्यान में रखकर जल प्रबंधन और खेती के लिए व्यापक योजनाएं बनानी जरूरी हैं। इस साल अच्छे मानसून का मतलब फिर से लापरवाही न होकर भविष्य के लिए समझदारी से योजना बनाना होना चाहिए।
सुरेश हिंदुस्थानी