पूर्वोत्तर का एक राज्य मणिपुर… जिसे ‘भारत का आभूषण’ की भी संज्ञा दी जाती है। प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण भारत का यह हिस्सा अब सरकारी सुविधाओं के आधार पर विकास की नई इबारत भी लिख रहा है। मगर यहां के युवा खुद को नशे के मोहपाश से नहीं बचा पाए हैं। आंकड़ों में स्पष्ट है कि पंजाब के बाद मणिपुर दूसरा राज्य है जहां ड्रग्स की खपत ज्यादा होती है। ऐसे में अब राजनीतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बनाने लगे हैं।
समाज में समस्या गिनाने वालों की संख्या तो काफी मिलेगी, मगर समाधान के लिए बहुत कम लोग ही आगे आते हैं। ऐसे में चर्चा और प्रचार से दूर एक ऐसा शख्स भी है जो युवाओं को नशे के जाल से बाहर निकालने के लिए प्रयत्नशील है, जिसका नाम है आर.के. विश्वजीत सिंह… जिन्हें ‘नशा एवं एड्स से मुक्ति की लड़ाई’ तथा ‘अध्यात्म एवं नियमित व्यायाम द्वारा स्वस्थ्य व चरित्रवान युवाओं के निर्माण’ के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा प्रा. यशवंतराव केलकर युवा पुरस्कार भी मिल चुका है।
आर. के. विश्वजीत सिंह ने मणिपुर में एनिमल जिम संस्था के माध्यम से युवाओं को नशाखोरी से बचाने की मुहिम में लगे हैं। इन्हीं मसलों पर प्रवक्ता.कॉम के लिए ‘अजीत कुमार सिंह’ से खुलकर बात की । प्रस्तुत है बातचीत के अंश..
युवाओं में बढ़ती नशे की लत, समाज को किस तरह प्रभावित कर रही है ?
आज के युवा अध्यात्म से बिलकुल कट गये हैं, जिस कारण उनमें चरित्र का निर्माण सही तरीके से नहीं हो पा रहा है। युवा पीढ़ी आधुनिकता के दौड़ मे खुद को नशे के जाल में फंसा रही है। पहले यह शौक होता है फिर आदत बन जाता है।
ड्रग्स के खिलाफ काम करने की प्रेरणा कहां से मिली ?
कॉलेज के दिनों में कई मित्र ड्रग्स के चपेट में आए और अपनी जान गंवा बैठे। उनकी मृत्यु से मैं की टूट गया। उसी दिन मैंने संकल्प लिया कि मणिपुर के युवाओं को ड्रग्स और नशे के चपेट से निकालकर दम लूंगा। शुरू-शुरू में मैंने शारीरिक सौष्ठव हेतु एक छोटा सा जिम खोला, धीरे-धीरे मेरे जिम में युवाओं की संख्या बढ़ती गई।
नशे के खिलाफ अपनी लड़ाई के बारे में विस्तार से बताएं ?
नशे के खिलाफ जागरूक करने के उद्देश्य से मैंने 2003 में ‘इम्पॉर्टेंस ऑफ बॉडी बिल्डिंग’ के नाम से एक डॉक्यूमेन्ट्री बनाई। जिसे देखने के बाद अधिकतर युवा नशा करने से परहेज करने लगे और शारीरिक मजबूती पर ध्यान दिया जाने लगा।
एचआईबी पीड़ित रोगियों को आप कैसे ठीक करते हैं ?
एचआईबी कंट्रोल के लिए पारंपरिक जड़ी-बूटी का प्रयोग किया जाता है, जिससे स्थायी इलाज होता है। पहले तो लोग एड्स के बारे में बताने से कतराते थे लेकिन अब खुद लोग खुलकर बात करते हैं। एचआईबी पॉजिटिव मिस्टर इंडिया प्रदीप कुमार का मामला भी ऐसा ही था। 2014 में मैंने एड्स पीड़ित मरीजों की स्थिति में काफी सुधार किया था, जिसकी चर्चा मीडिया में भी हुई थी।
मणिपुर से इतर देश के अन्य भागों में नशा पीड़ितों के लिए आपकी योजना क्या है?
मणिपुर में अभी काफी काम करना है। फिलहाल सारा ध्यान यहां के लोगों को नशे से मुक्ति दिलाने पर है। हां, आने वाले दिनों में हमारी योजना रहेगी कि पूरे भारत के युवाओं को नशा-मुक्त बनाया जाए।