– ललित गर्ग –
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व बुराइयों से संघर्ष का प्रतीक पर्व है, यह पर्व देश की सांस्कृतिक चेतना एवं राष्ट्रीयता को नवऊर्जा देने का भी पर्व है। आज भी अंधेरों से संघर्ष करने के लिये इस प्रेरक एवं प्रेरणादायी पर्व की संस्कृति को जीवंत बनाने की जरूरत है। प्रश्न है कौन इस संस्कृति को सुरक्षा दे? कौन आदर्शो के अभ्युदय की अगवानी करे? कौन जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठापना मे अपना पहला नाम लिखवाये? बहुत कठिन है यह बुराइयों से संघर्ष करने का सफर। बहुत कठिन है तेजस्विता एवं शक्ति जागरण की यह साधना। बहुत जटिल है स्व-अस्तित्व एवं स्व-पहचान को ऊंच शिखर देना। आखिर कैसे संघर्ष करें घर में छिपी बुराइयों से, जब घर आंगण में रावण-ही-रावण पैदा हो रहे हो, चाहे भ्रष्टाचार के रूप में हो, चाहे राजनीतिक अपराधीकरण के रूप में, चाहे साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने वालों के रूप में हो, चाहे राष्ट्र को तोड़ने वाले आतंकवाद के रूप में हो, चाहे शिक्षा, चिकित्सा एवं न्याय को व्यापार बनाने वालों के रूप में। यह उत्सव प्रतिवर्ष मनाते हुए जहां शक्ति की कामना की जाती है, वहीं राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों की ओर ध्यान खींचा जाता है। इससे नई प्रेरणा, नई ताजगी, नई शक्ति एवं नई दिशाएं मिलती है।
नवरात्रि के बाद आने वाला दशहरा का पर्व हिन्दुओं का बेहद ही खास पर्व है, यिह हर साल दिपावली के पर्व से 20 दिन पहले आता है। दशहरा राक्षसों के राजा रावण पर भगवान श्रीराम की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। लोग दशहरा को दस दिनों तक श्रीराम एवं रावण के बीच हुए युद्ध को नाटक के रूप में जगह-जगह मंचित करते हैं। इस नाटकीय रूप को राम-लीला कहा जाता है। उत्तर भारत में लोग मुखौटे पहनकर और विभिन्न नृत्य रूपों के माध्यम से राम-लीला का आयोजन करते हैं, साथ ही इसका लुत्फ भी उठाते हैं, हिन्दू संस्कृति को संगठित करने का माध्यम बनाते हैं। रामायण के छंदों का पालन करते हुए, वे रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण जैसे तीन बड़े राक्षसों के विशाल आकार के पुतले बनाते हैं। इसके बाद पुतलों को जलाने के लिए उनमे विस्फोटक पदार्थ भरा जाता है और जमकर आतिशबाजी की जाती है।
भगवान श्रीराम सच्चाई के प्रतीक है और रावण बुराई की शक्ति का। देवी दुर्गा के पूजा के साथ हिन्दू लोगों के द्वारा यह महान धार्मिक उत्सव और दस्तूर मनाया जाता है। इस पर्व को पूरे देश में मनाने की परंपरा और प्रक्रियां अलग-अलग है। भगवान श्रीराम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसके बाद श्रीराम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान, और बंदरों की सेना के साथ एक बड़ा युद्ध लड़कर सीता को छुड़ाया। इसलिए विजयादशमी बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है। इस दिन रावण दहन के साथ ही अस्त्र, वाहन पूजन और मां दुर्गा, प्रभु श्रीराम, गणपति देव के पूजन की भी परंपरा है। इसके अलावा विजयदशमी को विजया तिथि कहा गया है। मान्यता है कि यह दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए बेहद शुभ होता है।
दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। यह देश की सांस्कृतिक एकता और अखण्डता को जोड़ने का पर्व भी है। इस वर्ष का विजयादशमी पर्व इसलिये विशेष है, क्योंकि इस पर्व की सकारात्मक क्रांतिकारी ऊर्जा से न केवल राष्ट्र में सक्रिय नकारात्मक एवं अराष्ट्रीय ताकतों को सख्त संदेश दिया जाना है बल्कि पडौसी पाकिस्तान-चीन आदि देशों की कुचेष्टाओं के लिये ललकारा एवं सावधान भी किया जाना है। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष मनाने के बाद राष्ट्र को शताब्दी वर्ष के लिये सशक्त किया जाना है। मूलभूत आस्थाओं एवं राष्ट्रीयता के दृढ़ीकरण के साथ देश में जो नई चेतना आई है, वह एक शक्तिशाली नेतृत्व का जीवंत साक्ष्य है। राष्ट्रीयता, स्व-पहचान, स्वदेशी-भावना, हिन्दू-संस्कृति के ऊर्जा के अक्षय स्रोतों की खोज में जो प्रयत्न किया जा रहा है, वह अभूतपूर्व है। जन-आकांक्षा के अनुरूप राष्ट्र को जिस युगीन परिवेश में प्रस्तुति दी जा रही है, वह असाधारण है।
दशहरा शक्ति की साधना, कर्म, नवसृजन एवं पूजा का भी पर्व है। पिछले आठ दशकों में लगातार हिन्दू-संस्कृति को कमजोर करने की राजनीतिक चालें होती रही है। दरअसल हिन्दू धर्म नहीं, विचार है, संस्कृति है। हिन्दू राष्ट्र होने का अर्थ धर्म से न होकर हिन्दू संस्कृति के सर्वग्राही भाव से है। हिन्दू संस्कृति उदारता का अन्तर्निहित शंखनाद है क्योंकि पूरे विश्व में यह अकेली संस्कृति है जो बहुविचारवाद यानी सभी धर्म, विचार एवं संस्कृतियों को स्वयं में समेटे हैं। चार्वाक जैसे भौतिकवादी विचारक को भी इस देश ने ऋषि की उपाधि दी गई जिसने कहा था कि ‘ऋणं कृत्व घृतं पीवेत’ अर्थात जो भी है वह आज है, कल किसने देखा है इसलिए आज को भरपूर ढंग से जीना चाहिए और कर्जा लेकर भी अगर यह करना पड़े तो करना चाहिए। इसके साथ ही हमारे ऋषियों ने हमें यह उपदेश भी दिया कि ‘सत्यं बूर्यात न बूर्यात सत्यं अप्रियं’ अर्थात सच बोलो मगर कड़वा सच मत बोलो।
हिन्दू संस्कृति की यही महानता और विशेषता रही है कि प्रिय सत्य की वकालत तो करती है मगर इसके कटु होने पर निषेध करने को भी कहती है। यह हिन्दू संस्कृति अहिंसा की संस्कृति है पर जरूरत पड़ने पर शस्त्र उठाकर स्व-रक्षा की बात भी कहती है। हिन्दू शब्द से ही स्वराष्ट्र का बोध होता है जो कि हिन्दू संस्कृति के वृहद स्वरूप का ही सौपान है। इसी विचारधारा को बल देने का सशक्त माध्यम है विजयादशमी पर्व। इस पर्व के माध्यम से सभी का स्वर एवं उद्देश्य यही होता है कि बुराई का नाश किया जाये और अच्छाई को प्रोत्साहन दिया जाये। नवरात्रि के बाद दशहरा का अंतिम यानी दसवां दिन है- विजयदशमी, जिसका मतलब है कि आपने तमस, रजस या सत्व तीनों ही गुणों को जीत लिया है, उन पर विजय पा ली है। आप इन तीनों गुणों से होकर गुजरे, तीनों को देखा, तीनों में भागीदारी की, लेकिन आप इन तीनों में से किसी से भी, किसी भी तरह जुड़े या बंधे नहीं, आपने इन पर विजय पा ली। यही विजयदशमी है- आपकी विजय का दिन।
भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। जो घृणा से भरा है, क्रोध से भरा है, विद्वेष से भरा है, ईर्ष्या से भरा है, लोभ से भरा है, वह भय को बढ़ा रहा है। ये सब भय एवं शक्तिहीनता के भोजन है। जबकि वीरता एवं शौर्य का दशहरा पर्व मनाते हुए सबसे बड़ी जरूरत भीतर के इन रावणों को जलाने की है।
भारत ने कभी भी युद्ध एवं हिंसा का समर्थन नहीं किया, लेकिन किसी ने हमें ललकारा एवं युद्ध की स्थितियां खड़ी कर ही दी, ऐसी युद्ध की स्थितियों में शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा ना कर उस पर हमला कर उसका पराभव करना ही भारतीय राजनीति का कौशल है। भगवान श्रीराम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक दिवस है। भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध के लिये इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे। दशहरे का उत्सव धर्म की रक्षा, शक्ति का प्रदर्शन और शक्ति का समन्वय का प्रतीक है। इसके अलावा दशहरा नकारात्मक शक्तियों के ऊपर सकारात्मक शक्तियों के जीत का प्रतीक है।