यूपी में मस्तिष्क ज्वर का कहर

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डा. राधेश्याम द्विवेदी
अच्छा स्वास्थ्य सबसे अधिक मूल्यवान माना जाता है। कई बीमारियां स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न करती हैं। विभिन्न प्रकार के संक्रमण मानव जाति के लिए कभी-कभार महामारी बन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। मस्तिष्क ज्वर यानी इन्सेफेलाइटिस ऐसा ही एक दुलर्भ संक्रमण है जो करीबन दो लाख लोगों में से एक आदमी में पाया जाता है। यह रोग विशेषकर बच्चों, बुजुर्गों और कम प्रतिरक्षा क्षमता वाले कमजोर व्यक्तियों में पाया जाता है। जापानी इन्सेफेलाइटिस को मस्तिष्क में सूजन के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसके अनेक कारण हैं जिनमें विषाणु, जीवाणु, परजीवी, रसायन आदि शामिल हैं। कुछ मामलों में स्वप्रतिरक्षक कारक भी इसके लिए जिम्मेदार देखा गया है। इन सब कारकों के अलावा वायरल इन्सेफेलाइटिस को सबसे आम माना जाता है। जापानी इन्सेफेलाइटिस एक प्रकार दिमागी बुखार है जो वाइरल संक्रमण की वजह से होता है। यह एक खास किस्म के वायरस से द्वारा होता है, जो मच्छर या सूअर के द्वारा फैलते हैं। या यूं कह लें गंदगी से भी यह उत्पन्न हो सकता है। एक बार यह हमारे शरीर के संपर्क आता है, फिर यह सीधा हमारे दिमाग की ओर चला जाता है। दिमाग में जाते ही यह हमारे सोचने, समझने, देखने और सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह वायरस सिर्फ छूने से नहीं फैलता। ज्यादातर 1 से 14 साल के बच्चे एवं 65 वर्ष से ऊपर के लोग इसकी चपेट में आते हैं। इसका प्रकोप साल के तीन महीने अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में अपने जोरों पर होता है। बी.आर.डी. मेडिकल कालेज, गोरखपुर में रोज पुर्वांचल के अलावा बिहार के भी बच्चे इलाज के लिए भर्ती किए जाते हैं, परन्तु ये गंभीर रोग अब भी अपना रहस्य बरक़रार रखे हुवे है । नेहरु अस्पताल में कई सौ मरीजो का इलाज चल रहा है, और रोजाना कई बच्चे दम तोड़ रहे हैं । यूपी के गोरखपुर में दिमागी बुखार यानि इंसेफ्लाइटिस एक बार फिर कहर बनकर टूट रहा है। इस बीमारी पर काबू पाने के लिए अस्पताल के डॉक्टर 13 से 16 घंटे तक काम कर रहे हैं। आजाद भारत में अब तक दिमागी बुखार ने तकरीबन पचास हजार बच्चों को मौत के घाट उतार दिया। दुख है कि इसके साथ ही सरकारों व प्रशासन की संवेदना भी मर गई । डॉक्टर अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अगर इंतजाम ही ना हों तो कई बार कोशिशें नाकाम हो जाती हैं। अभी भी मरीजों का आना जारी है। जाहिर है जब मरीजों की संख्या ज्यादा होगी तो सरकार और प्रशासन को इंतजाम भी बड़े करने होंगे। ऐसा भी नहीं है कि ये अचानक हो रहा हो। गोरखपुर और उसके आसपास के इलाकों के लिए दिमागी बुखार शाप की तरह है। जो हर साल आता है। लेकिन उसके बावजूद सरकार हर साल नाकाफी इंतजाम का तोहमत ढोती है।
इन्सेफेलाइटिस के कारक:- वायरल इन्सेफेलाइटिस विभिन्न प्रकार के विषाणुओं जैसे रेबिज वायरस, हरपीज सिंप्लेक्स पोलियो वायरस, खसरे के विषाणु, छोटी चेचक विषाणु आदि के कारण होता है। मस्तिष्क में सूजन किसी तीव्र विषाणु के संक्रमण से या अव्यस्क संक्रमण के कारण भी हो सकता है। विभिन्न प्रकार के विषाणुओं जैसे जापानी इन्सेफेलाइटिस विषाणु, सेंट लुइस विषाणु, पश्चिमी नील विषाणु, शीतला मानइर विषाणु और शीतला मेजर विषाणु आदि वायरल इन्सेफेलाइटिस के मुख्य कारण हैं। कुछ परजीवी या मलेरिया जैसे प्रोटोजोआ संक्रमण भी मस्तिष्क सूजन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। जीवाणु इन्सेफेलाइटिस सिफलिस जैसे तीव्र जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। इन्सेफेलाइटिस को मुख्य तौर पर दो नामों प्राथमिक और द्वितीयक के रूप में जाना जाता है। प्राथमिक इन्सेफेलाइटिस तब होता है जब विषाणु या अन्य संक्रामक वाहक सीधे मस्तिष्क को प्रभावित करता है। इसमें संक्रमण एक क्षेत्र में केंद्रित होता है जबकि द्वितीयक इन्सेफेलाइटिस तब होता है जब हमारा प्रतिरक्षक तंत्र दोषपूर्ण हो जाता है और गलती से मस्तिष्क की स्वस्थ्य कोशिकाओं पर हमला कर देता है।
इन्सेफेलाइटिस के लक्षण:- यह बात ध्यान देने योग्य है कि मच्छर और चिचड़ी जैसे कीट अनेक प्रकार के इन्सेफेलाइटिस के विषाणुओं के वाहक होते हैं। इन्सेफेलाइटिस अक्सर अन्य विषाणु संक्रमणों के साथ होता है जिससे इसके लक्षण को पहचान पाना और सूजन का उपचार कर पाना कठिन होता है । हालांकि इसके सामान्य लक्षणों की बात करें तो इनमें बुखार, सिरदर्द, गरदन में अकड़, कमजोरी और उल्टी होना इसके शुरुआती लक्षण हैं। जबकि समय के साथ सिरदर्द में बढ़ोतरी होने लगती है और हमेशा सुस्ती छाई रहती है। भूख कम लगना, तेज बुखार, अतिसंवेदनशील होना वहीं, कुछ समय के बाद भ्रम का शिकार होना फिर पागलपन के दौरे आना, लकवा मारना और स्थिति कोमा तक पहुंच सकती है। वहीं, बहुत छोटे बच्चों में ज्यादा देर तक रोना, भूख की कमी, बुखार और उल्टी होना जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इन्सेफेलाइटिस के विभिन्न मामले में व्यक्ति को बहुत तेज बुखार और केंद्रीय तंत्रिका सिस्टम में संक्रमण से सम्बंधित लक्षणों का अनुभव होता है जैसे कि तेजदर्द, उल्टी एवं घबराहट, गर्दन में दर्द, भ्रण, भटकाव, व्यक्तित्व में बदलाव, दौरा, बोलने या सुनने में समस्या होना, जले हुए मांस या सड़े हुए अंडे की बदबू का आना, याददाश्त कम होना, उनींदापन होना एवं कोमा आदि शामिल हैं। बच्चों और शिशुओं में देखे जाने वाले लक्षणों में खोपड़ी में एक पूरा या उभरी हुई चित्ती, शरीर की जकड़न, कम दूध पीना, चिड़चिड़ापन एवं रोने पर उठाने पर भी चुप न होना आदि शामिल है।
इन्सेफेलाइटिस का इलाज:- इन्सेफेलाइटिस के अधिकतर प्रकार में लक्षण लगभग एक सप्ताह में उभरते हैं जबकि पूरी तरह से ठीक होने में अनेक सप्ताह या महीने लग सकते हैं। लेकिन गंभीर मामलों में ध्यान नहीं दिया जाए तो स्थायी रूप से मस्तिष्क की क्षति और विकलांगता जैसे सीखने की क्षमता का कम होना, बोलने में समस्या, याददाश्त कम होना, मांसपेशियों को नियंत्रित करने की क्षमता में कमी आना, और कुछ मामलों में तो मौत भी हो सकती है। इसीलिए इसके लक्षणों के आरंभ होने पर ही चिकित्सक की सलाह ले लेनी चाहिए। इन्सेफेलाइटिस बीमारी के निदान में इमेजिंग परीक्षण जैसे कम्प्यूटेड टोमोग्राफी यानी सीटी स्कैन, मस्तिष्क की एमआरआई एवं ईसीजी, रक्त परिक्षण, आदि शामिल हैं जोकि संक्रमण के लिए मस्तिष्कमेरू द्रव का परीक्षण करते हैं। इन्सेफेलाइटिस में प्रतिजैविक दवाओं का उपयोग किया जाता है। पिछले कुछ महीनों में दौरान बिहार के पटना और मुजफ्फरपुर क्षेत्रों में इन्सेफेलाइटिस के अनेक मामले सामने आए। जिन्हें देखते हुए भारत सरकार ने जापानी मस्तिष्क ज्वर के खिलाफ ज्यादा पीड़ित जिलों में व्यस्कों के लिए एक टीका भी शुरू करने की घोषणा की है। इसके साथ ही जापानी इन्सेफेलाइटिस और एक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम की रोकथाम और नियंत्रण के लिए व्यापक बहु आयामी रणनीति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। पांच राज्यों असम, बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में इस कार्ययोजना के अमल पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। मुख्य गतिविधियों में जन स्वास्थ्य कार्यक्रम, जापानी इन्सेफलाइटिस के टीकाकरण को बढ़ावा देना, चिकित्सा और सामाजिक पुनर्वास, ग्रामीण और शहरी इलाकों में पेयजल और स्वच्छता में सुधार शामिल हैं। विश्व भर में चिकित्सक इस बीमारी से बचाव के लिए कुछ उपायों को अपनाने की सलाह देते हैं। इन उपायों में से कुछ इस प्रकार हैं। किसी भी प्रकार के तेज बुखार या संक्रमण विशेषकर विषाणु संक्रमण का जल्द से जल्द उपचार करना आवश्यक है
इन्सेफेलाइटिस से बचाव के उपाय:-बच्चों को यह रोग अधिक सताता है इसीलिए बच्चों को पूरे कपड़े पहचाएं ताकि उनकी त्वचा ढकी रहे। साथ ही कीट प्रतिकर्षकों का उपयोग करें ताकि उसे मच्छर और अन्य कीट काट न पाएं। शाम के समय जब मच्छर जैसे काटने वाले कीट अधिक सक्रिय होते हैं तब बाहर कम रहें। नवजात शिशु के बचाव के लिए मां के जननांग पथ में सक्रिय दादों का सीज़ेरियन किया जा सकता है। पोलियो, खसरा, कण्डमाल आदि विषाणुओं के कारण होने वाले इन्सेफेलाइटिस को बच्चों में टीकाकरण से रोका जा सकता है। टीके के तीन डोज से जापानी इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम की जा सकती है। जहां ऐसी बीमारी फैली हो वहां जाने पर सावधानी रखना चाहिए।
दिमागी बुखार के मरीजों के आंकड़े:- जापानी इंसेफेलाइटिस यानी दिमागी बुखार की चपेट में आकर कई मौत हो गई है। माना जा रहा है कि संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है। अभी भी अस्पतालों में बहुत मरीज भर्ती हैं। ये आंकड़े सरकारी डॉक्टरों ने जारी किए हैं। 2010 में दर्ज 5,149 मामलों में 677 मरीजों ने दम तोड़ दिया। 2011 में दर्ज 6297 मामलों में से करीब 500 की मौत सामने आई। 2012 में 1527 मामलों में से 309 की मौत हो गई। 2013 में 17 राज्यों के 135 जिलों में कई जिंदगियां लील चुकी है। हर साल इंसेफ्लाइटिस के 70 फीसदी मामले यूपी में दर्ज होते हैं । 2013 में डॉ श्रीवास्तव ने एक अच्छे मुहीम की शुरुवात की थी, और ‘पहल’ बैनर के तले जागरूक लोगों के समूह के माध्यम से अब भी प्रयासरत हैं। ये बीमारी तक़रीबन 30 सालों से पूर्वांचल में तबाही मचाये हुवे है । इसकी वजह पता करने के लिये अमेरिका से डॉक्टरों की विशेषज्ञ टीम भी यहाँ दौरा कर चुकी है । मौत का सिलसिला कुछ कम हुवा है ऐसा कहना उचित नही है क्योंकि अब भी मौत का प्रतिशत बचने से ज्यादा है | मूल कारणों का अब तक पता भी नही लगा है ताकि रोकथाम किया जा सके । अमेरिका की विशेषज्ञ टीम जो CDC (Center for Disease Control) से है, इस पर विगत कई वर्षों से खोजबीन कर रही है।
2014 साल में बी.आर.डी. मेडिकल कालेज में लगभग 1900 मरीज भर्ती हो चुके हैं, जिनमें से 500 से ज्यादा की मौत हुई है। करोड़ो रूपये खर्च करने, आधुनिक बेड सुविधा और चिकित्सा पद्धति से लैस होने के बावजूद मासूमों को ये जानलेवा बीमारी मौत के आगोश में पंहुचा रही है।इंसेफ्लाइटिस से पार पाने के लिए एक टीका बनाया है। लेकिन इस टीके से महज 12-13 फीसदी बच्चों को ही फायदा होगा क्योंकि ये सिर्फ जापानी इंसेफ्लाइटिस का उपचार कर सकता है। बाकी मरीजों के लिए इस जानलेवा वाइरस और पंगु हेल्थकेयर सिस्टम से जंग जारी है। लोग इसे दिमागी बुखार का नाम दे देते हैं। राज्य सरकार को केंद्र से लगातार पैसे मिलते हैं। इन पैसों का इस्तेमाल राज्य सरकार सही तरीके से करना चाहिए।2014 में जापानी इन्सेफेलाइटिस का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। खासकर बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश में जापानी इन्सेफेलाइटिस के लक्षण दिखने को मिल रहे हैं। देश में अब तक इससे 700 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। पश्चिम बंगाल में जहां इससे प्रभावित 208 लोगों की मौत हो गई हैं। वहीं, असम में 295, उत्तरप्रदेश में 123 और बिहार में भी 200 से ज्यादा बच्चे इसकी चपेट में आ गए हैं। प्रभावित क्षेत्रों में इसके बढ़ते असर को रोकने के कई सुरक्षात्मक कदम उठाए जा रहे हैं। इस वायरस के खिलाफ 100 प्रतिशत टीकाकरण सुनिश्चित करना प्राथमिकता है। लेकिन साथ ही सरकार ने लोगों से भी सावधानी बरतने की अपील की है।
2016 में गोरखपुर में 682 में 180 इंसेफिलाइटिस मरीजों की मौत हो गयी है। हर रोज इस बीमारी से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस महीने इंसेफिलाइटिस से मरने वालों की संख्या 80 है। मंगलवार को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 23 लोगों को भर्ती किया गया था जिसमें से दल बच्चों की मौत हो गयी थी। आंकड़ों के मुताबिक 23 जनवरी से 23 अगस्त के बीच इंसेफिलाइटिस से मरने वालों की संख्या 180 के पार चली गयी है। कुल 670 मरीज इस बीमारी का इलाज कराने के लिए अस्पताल अभी तक भर्ती किये गये हैं। बीआरडी में कुल 682 लोगों को भर्ती कराया गया है अभी तक जिनमें से 180 मरीजों की अब तक मौत हो चुकी है। वहीं इस भयंकर बीमारी के बावजूद प्रशासन अभी तक इससे बचाव के प्रयास में कोताही बरत रहा है।

 

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