मैनुएल मैक्रो : स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की गूंज साथ-साथ

डॉ. खुशबू गुप्ता

फ़्रांस के राज्य प्रमुख इमैनुएल मैक्रो की भारत यात्रा पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि “यह संयोग मात्र नहीं है कि स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की गूंज, फ़्रांस में ही नहीं भारत के संविधान में भी दर्ज है. हमारे दोनों देशों के समाज इन  मूल्यों की नीवं पर खड़े हैं” दोनों देशों के मध्य मधुर संबंधों को दर्शता है. विदित हो कि भारत और फ़्रांस के मध्य राजनयिक सम्बन्ध हमेशा से घनिष्ट एवं मैत्रीपूर्ण रहे हैं हालाँकि सामरिक संबंध कई वर्ष पुराना रहा है परन्तु दोनों देशों की सभ्यताओं की आध्यात्मिक साझेदारी सदियों पुरानी रही है. दोनों देशों के मध्य वणिज्यिक सम्बन्ध १७वी शताब्दी से ही रहा है. भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर फ़्रांस के राज्य प्रमुखों की मुख्य अतिथि के रूप में भागीदारी भी दोनों देशों के मध्य संबंधों की प्रगाढ़ता को दर्शाता है. इतना ही नहीं जब भी हम दोनों देशों के संबंधों की समीक्षा करते हैं तो देखते हैं कि कुछ ऐसे वैश्विक मुद्दे रहे हैं जिसको लेकर दोनों देश अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है चाहे वह सामरिक साझेदारी का मुद्दा हो आतंकवाद का मुद्दा या फिर जलवायु परिवर्तन.

गौरतलब हो कि शीतयुद्ध काल से ही  फ़्रांस द्वारा किया गया सहयोग तथा उसका सकारात्मक दृष्टिकोण परिलक्षित होता रहा है चाहे वह भारत के द्वारा किये जाने वाला परमाणु तकनीकी की मांग की पूर्ति रहा हो, या १९७४ में भारत के  प्रथम परमाणु परीक्षण जिसे “शांति के लिए परमाणु विस्फोट” का नाम भी दिया गया के लिए फ़्रांस का सहयोग रहा हो इतना ही नहीं १९८३ में भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की नईया को पार लगाने की बात हो और तो और वर्ष २००८  में परमाणु सप्लायर ग्रुप द्वारा भारत पर से प्रतिबन्ध हटाये जाने के पश्चात फ्रांस वह पहला देश था, जिसने भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किये. शीतयुद्ध के दौरान ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा परमाणु उर्जा से सम्बंधित सूचनाओं पर जब रोक लगाया गया था तब फ़्रांस ही था जिसने भारत की सहायता की थी. दोनों देशों के मध्य संबंधों को बल उस वक्त और मिला जब १९५० में  भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की विशेष बैठक में फ़्रांस परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष फ्रैडरिक जोलियट-क्यूरी द्वारा भारत की यात्रा की गई जिससे दोनों देशों के मध्य तकनीकी सहयोग का मार्ग भी प्रशस्त हुआ. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा के द्वारा रोक और नियंत्रण की नीति को अपनाने पर भी भारत  द्वारा मांग किया जाना और फ़्रांस के द्वारा सहयोग पाना बहुत ही सकारात्मक संबंधों को परिलक्षित करता है जो अभी वर्तमान समय में भी दृष्टिगत हो रहा है.  १९६० के दौरान परमाणु समझौते और राजनयिक संबंधों के कारण संबंधों में और भी गहनता आई. १९७४ में भारत का पहला परमाणु परीक्षण किया जाना विश्व के कुछ शक्तिशाली देशों द्वारा नाराज़गी भी जताई गयी और अमेरिका के लिए तो चौकाने वाली घटना थी उस दौरान फ्रांसीसी राजदूत डेनियल जुर्गेन्सन की तरफ से मिली प्रतिक्रिया “भारतीय इस बात को लेकर बहुत प्रसन्न हैं कि फ्रांस ने हर प्रकार के अमैत्रीपूर्ण निर्णय से बचने का प्रयास किया” फ़्रांस के इस सकारात्मक व्यवहार से भारत को बहुत राहत मिली.  हालाँकि भारत द्वारा किये गए परमाणु परीक्षण के बाद कनाडा और अमेरिका जो कि भारत की परमाणु जरूरतों की पूर्ति करते थे सहायता देना बंद कर दिए थे लेकिन बाद में अमेरिका द्वारा फ़्रांस को ईंधन सप्लाई की अनुमति दी गई इसे लेकर भारत में पेरिस की बहुत सराहना भी किया गया.

विदित हो कि १९९८ में दोनों देशों के मध्य सामरिक साझेदारी स्थापित हुई इसी सन्दर्भ में भारत की यात्रा पर आये फ़्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति का वक्तव्य कुछ खास संबंधों की तरफ इशारा कर रहा है कि ‘फ़्रांस ने भारत को अपना पहला सामरिक साझेदार इस मकसद से बनाया है कि भारत भी यूरोप और अन्य पश्चिमी देशों में पहला सामरिक साझेदार बनाये”  इसी उद्देश्य के साथ द्वीपक्षीय सहयोग के लगभग सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई. इसी सन्दर्भ में वर्तमान में भारतीय प्रधान मंत्री मोदी द्वारा यह कहना दोनों देशों के संबंधों में गर्मजोशी को दर्शा रहा है “रक्षा, सुरक्षा, अंतरिक्ष और उच्स्तरीय तकनीकी में भारत और फ्रांस के द्विपक्षीय सहयोग का इतिहास बहुत लम्बा है। दोनों देशों में द्विपक्षीय संबंधों के बारे में बाईपारटीसन  सहमति है। सरकार किसी की भी हो, हमारे संबंधों का ग्राफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ ऊँचा ही जाता है.”  द्वीपक्षीय सहयोग में भारत में नाभिकीय एवं नवीकरणीय ऊर्जा,अन्तरिक्ष विज्ञानं, शिक्षा, रेलवे, शहरी विकास, पर्यावरण, संस्कृति, विज्ञानं और प्राद्योगिकी के अतिरिक्त रक्षा क्षेत्र में भी व्यापक सहयोग दोनों देशों के मध्य बढ़ रहा है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखे तो नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम विश्व का सबसे बड़ा ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम दोनों देशों ने  शुरू किया है साथ ही साथ २०२० तक  १७५ GW बिजली उत्पन्न करने कि घोषणा भी सरकार द्वारा किया गया. फ़्रांस वैश्विक स्तर के मंचों  पर भारत की अधिक भूमिका का समर्थन भी करता रहा है जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता का मुद्दा देखा जा सकता है.  बता दें कि फ़्रांस भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का विगत वर्ष में ९वाँ  प्रमुख स्रोत भी रहा है. नागरिकों का नागरिकों से जुड़ाव दोनों देशों के मध्य प्रगाढ़ता को लेकर आएगा. जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में बात करें तो दोनों देशों ने हमेशा से इस वैश्विक मुद्दे को लेकर संवेदनशीलता को दर्शया है  और इसी भावना के साथ अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम को यहाँ तक मोदी जी के द्वारा कहा गया कि  अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन रूपी नन्हा पौधा सम्मिलित प्रयास और प्रतिबद्धता के बिना रोपा ही नहीं जा सकता था. बता दें की इस कार्यक्रम के बीज का रोपण भारत और फ़्रांस के संयुक्त सहयोग से किया गया है. साथ ही साथ आतंकवाद का मुद्दा जो दोनों देशों को और करीब लेकर आया हमेशा से देखा गया है की इसके किसी भी रूप को सहन न करने तथा इसका समूल नाश करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है. फ्रांसीसी राष्ट्रपति  मेक्रों की भारत यात्रा के दौरान १४ समझौते पर हस्ताक्षर किया गया जैसे स्मार्ट शहर विकास, शहरी जन परिवहन प्रणाली का विकास, शहरी बस्तियों और उपयोगिताओं, जैतापुर संयंत्र को लेकर अहम् बात भी हुई. संक्षेप में, दोनों देशों का संतुलन और समग्र दृष्टिकोण, समावेशिता और भागीदारी, रक्षा और सुरक्षा, आतंकवाद और इससे जुड़े संगठनो पर लगाम, चीन द्वारा एशिया और अफ्रीकी देशों में बढती सैन्य मौजूदगी साथ ही साथ फ़्रांस के लिए हिन्द महासागर स्थित रीयूनियन आईलैंड जो की बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है, प्रशांत क्षेत्र में चीन का दबदबा दोनों देशों को एक साथ लेकर आया है.

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here