सरकारें चाहें तो नशे का कारोबार उस तरह फल फूल नहीं सकता जिस तरह फल फूल रहा है . . .

0
30

लिमटी खरे

एक समय था जब राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित किया करते थेतब लोग पूरे ध्यान से उनकी बातें न केवल सुना करते थेवरन उसे अमल में भी लाया करते थे। कालांतर में सियासी दावपेंचों के कारण सब कुछ पहले जैसा नहीं रह गया है। अब राजनेताओं के द्वारा कही जाने वाली बातें जनता के मानस पटल पर उस तरह छाप नहीं छोड़ पा रहीं है जैसा पहले हुआ करता था।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं में बढ़ते नशे की लत को लेकर चिंता व्यक्त की है उसकी सराहना की जाना चाहिए। इसके पहले राज्यों में मंत्रियों या मुख्यमंत्रियों के द्वारा युवाओं में नशे की लत को लेकर बयानबाजी की जाती रही है। इस तरह की कोरी बयानबाजी कहने के पीछे तातपर्य महज इतना है कि वर्तमान में युवा नशे की जिस अंधी सुरंग की ओर आकर्षित हो रहा है वह आने वाले कल के स्याह अंधकार को परिलक्षित करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा नई दिल्ली में गायत्री परिवार के द्वारा रविवार को अयोजित अश्वमेघ यत्र के कार्यक्रम में वीडियो संदेश के जरिए अपनी बात कही गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं को नेश की लत का शिकार होने से बचाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस बुराई से निपटने के लिए परिवारों को मजबूत सहयोग की जरूरत होती है। नरेंद्र मोदी का कहना था कि नशा मुक्त भारत के निर्माण के लिए यह अहम बात है कि परिवार किसी संस्थान की तरह मजबूत हो।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा कहा गया कि अश्वमेघ यज्ञ एक भव्य सामाजिक अभियान बन चुका है। उन्होंने लाखों युवाओं को नशे से दूर रखने और राष्ट्र-निर्माण गतिविधियों की दिशा में इसकी भूमिका को भी रेखांकित किया। अपने वीडियो संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नशे के दुष्परिणामों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि नशा एक ऐसी बुराई है जो जिंदगियों को तबाह कर सकती हैसमाज और देश को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है। उन्होंने कहा कि युवा देश का भविष्य हैं और भारत के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसके विकास में योगदान देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्हें अश्वमेध यज्ञ’ नाम वाले इस कार्यक्रम से जुड़ने में कुछ दुविधा थी क्योंकि यह शब्द ताकत के विस्तार से जुड़ा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के जमीनी हालातों की जानकारी तो शायद होगी है। देश का शायद ही कोई कस्बा नशे की जद से अछूता हो। हर राज्य, हर शहर में नशे के कारोबारियों की जड़ें बहुत ही गहरी हो चली हैं। शालाओं से निर्धारित दूरी पर तंबाखू उत्पाद बेचे जाने पर प्रतिबंध होने के बाद भी स्कूल, कॉलेज के आसपास ये बिक रहे हैं। गांव गांव में अवैध शराब बिक रही है। महिलाएं इसके खिलाफ मोर्चा खोलती नजर आती हैं। पुलिस थानों में शिकायत करती हैं, पर नतीजा वही ढाक के तीन पात ही नजर आता है। पहले महानगरों में सफेद पाऊडर सहित सूखे नशे की खबरें आया करती थीं, पर अब तो छोटे छोटे शहरों में सूखा नशा बेखौफ बिक रहा है। युवा इसके चंगुल में पड़ रहे हैं।

इसके लिए संस्थानों को अभियान चलाने की आवश्यकता तो है, पर क्या प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों सहित सांसदों और विधायकों को यह बात नहीं पता कि आबकारी, पुलिस आदि के जरिए इस पर लगाम लगाई जा सकती है। अगर लगाम नहीं लग पा रही है इसका सीधा मतलब है कि जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व से जिन जिम्मेदारों को वेतन, भत्ते और सुविधाएं मिल रहीं हैं, वे अपनी जवाबदेहियों का निर्वहन उचित तरीके से नहीं कर पा रहे हैं।

अगर हम अपना मोहल्ला साफ रखना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपना घर और घर के आसपास साफ सफाई रखना होगा। इसी तरह अगर किसी संस्थान को नशामुक्ति के लिए सराहा जा रहा है तो उसे निश्चित तौर पर सराहा जाना चाहिए किन्तु उसके पहले हमें सबसे पहले यह देखना चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों के नारकोटिक्स ब्यूरो, पुलिस, आबाकारी आदि महकमों के अधिकारी कर्मचारी अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन में कोताही तो नहीं बरत रहे हैं। शहरों में अगर गीला सूखा नशा आसानी से उपलब्ध हो रहा है तो इसका मतलब साफ है कि हम खुद अपनी जवाबदेही का निर्वहन ईमानदारी से नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री को चाहिए कि सबसे पहले वे सरकारी महकमों की मश्कें कसें उसके बाद देखें परिणाम कितने सुखद सामने आते हैं।

Previous articleअधिकतम मतदान का आव्हान एक क्रांतिकारी शुरूआत
Next articleमासिक धर्म जागरूकता में युवाओं की भागीदारी भी ज़रूरी है
लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here