भगवान राम कृष्ण भी पूर्वजन्म के कर्मफल से बचा नहीं कोई

—विनय कुमार विनायक

पूर्वजन्म का कर्मफल भोगने से बचा नहीं कोई,

चाहे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम चन्द्र हों

या गीताज्ञानी योगेश्वर लीलाधर कृष्ण कन्हाई!

पूर्वजन्म का कर्मफल भोगने से बचा नहीं कोई,

चाहे भगवान श्रीराम की माता हो कौशल्या माई

या विमाता कैकई कर्मफल से बंधे हैं सारे भाई!

चाहे लाख करो छल, छंद, चतुराई, बुराई,भलाई,

जस करनी तस भोग बिना मुक्ति किसने पाई?

कैकई का हस्र सुनो जिसने राम वनवास दिलाई!

राम की विमाता कैकई ही, कृष्ण की माँ देवकी,

राम ही कृष्ण थे,रावण बने मामा कंश; कृष्ण के,

राम पिता दशरथ हुए कान्हा के पिता वसुदेवजी!

कैकई पर कामासक्त दशरथ ने चौदह वर्षों तक  

पुत्र को वनवास दिया,पुत्र कामना नारी वासना में

देहत्याग कर,देवकी रुपी कैकई संग में हुए कैदी!

काली काल कोठरी में केवल एकही काम आठोयाम,

देवकी से वसुदेव का संभोग पुत्रयोग वियोग हलकान,

बीत गए चौदह वर्ष बेड़ी बंधी कोख में लौटे श्रीराम!

वसुदेव ने आठवें कृष्ण के पूर्व पैदा की सात संतति,

सातवां बलराम छोड़कर कंश के हाथों मारी गई सभी,

पुत्र हेतु लालायित दशरथ, लालायित रहे वसुदेव भी!

श्रीराम घनश्याम बनकर देवकी माँ की कोख से आए,

उधर कौशल्या यशोदा माँ बनके बैठी थी आस लगाए,

वसुदेव ने कंश डर से कान्हा यशोदा गोद में भर गए!

चौदह वर्षों तक दशरथ ने कौशल्या की गोदी सूनी की,

चौदह वर्ष तक ही वसुदेव ने यशोदा की आंचल भर दी,

चौदह वर्ष में कृष्ण ने वसुदेव देवकी को कैद मुक्ति दी!

ये संयोग नहीं राम का पुनर्जन्म कर्मफल सिद्धांत ही,

जिस सीता की राम ने अग्निपरीक्षा लेकर बेवफाई की,

वही अगले जन्म की राधा,ब्याहता नहीं बनी कृष्ण की!

सीता नहीं किसी ज्ञात ख्यात राजा महाराजा की दुहिता,

सीता की माता भूमि थी, पिता का कुछ नहीं अता-पता,

जनश्रुति कहती रावण मंदोदरी थे सीता के माता-पिता!

काश धोबी को सीता माँ का ये जन्म वृतांत ज्ञात होता,

जिसने सीता पर आक्षेप किया और राम ने त्यागी सीता,

काश राम जटायु सा पिता मान रावण का श्राद्ध करता!

राम को वनवास मिला पर अनुज लक्ष्मण का साथ लिया,

लक्ष्मण भार्या उर्मिला को अकारण चौदह वर्ष संताप दिया,

सीता दंडित नहीं पर उनको वन लाके भोग-विलास किया!

राम कनिष्ठ कृष्ण,लक्ष्मण ज्येष्ठ बलराम हुए इस कर्म से,

सीता को दो-दो बार वनवास और परित्याग के कारण से,

कृष्ण छत्र विहीन वंचित हुए राजमुकुट सिर पर धारण से!

राम ने बाली पर छिपकर प्रहार किए,उसने धिक्कार दिए,

जैसे राम ने व्याध बनकर मारा मुझे वैसे ही मारूंगा उसे,

त्रेता के राम द्वापर में कृष्ण व्याध तीर के शिकार हुए!

राम ने सीता की जिस अक्षत यौवना रुप की कामना की,

सीता ने वही सद्यस्नाता राधा बनकर कृष्ण आराधना की,

मगर वो यशोदा अनुज रायण को ब्याही गई परकीया थी!

सीता विरह में राम ने सोलह हजार एक सौ आठ बार,

हा सीते! कहकर आठ-आठ आँसू बहाए, पर उसे पा कर

आखिर त्याग दिए, ग्रहण-त्याग के ऊहापोह में पड़ कर!

सोलह हजार एक सौ आठ बार, हा सीते! तुमसे प्यार

जो कहे राम ने, सोलह हजार एक सौ आठ स्वरूप धर

सीता ही, कृष्ण के जीवन में रानियाँ बनी थी आ कर!

जो सोलह हजार एक सौ राजपुत्री कैद थी नरकासुर की

लांक्षित हो गई, किसी की ब्याहता नहीं बन सकती थी,

कृष्ण ने सिंदूर दानकर नारकीय जीवन से दी आजादी,

सीता का प्रेम जितना सच्चा, शंकालु राम उतना कच्चा,

राम जब देवकी गर्भ से प्रकट हुए थे, कृष्ण रुप धरके,

सीता ने कंश से कृष्ण की जान बचाई नंदसुता; मरके!

राजा जनक ही जन्मे थे नंद गोप; पति यशोदा माई के,

राधा के पिता बने वृषभानु वैश्य; राजा जनक के भाई थे,

कर्मफल भोग हेतु सीता के पिता रावण थे,मामा कृष्ण के!

नारी सृष्टि की माता, नारी से बड़ा नहीं नर देव विधाता,

हल की सीत मांग में सिंदूरी बीज डालने से बनती सीता,

अज्ञात कुल शील नारी की माँग भरने से आती पवित्रता!

राम मर्यादित चरित्र का, मानवों को मर्यादित बनानेवाला,

सीता सतीत्व की पराकाष्ठा,भारतीय नारी की सत्यनिष्ठा,

सीता सी पवित्र होती सिंदूरी मांग की हर नारी परिणीता!

—विनय कुमार विनायक

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