दुश्मन की हर गतिविधि पर पैनी नजर रखेगा ‘कार्टोसैट-3’

इसरो की एक और शानदार सफलता

योगेश कुमार गोयल

      भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा गत 27 नवम्बर को प्रक्षेपित किए गए तीसरी पीढ़ी के बेहद चुस्त और उन्नत ‘कार्टोसैट-3’ उपग्रह को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के सतीश धवन स्पेस सेंटर से अमेरिका के 13 नैनो सैटेलाइट के साथ पीएसएलवी-सी47 रॉकेट के जरिये लांच किया गया और इसी के साथ इसरो और भारत के नाम अंतरिक्ष में सफल अभियानों का एक और नया अध्याय जुड़ गया। ‘चंद्रयान-2’ की लांचिंग के बाद इसरो का यह दूसरा बड़ा मिशन था, जो पूरी तरह सफल रहा। यह इस साल का इसरो का पांचवां बड़ा मिशन था। घने बादलों के बीच 44.4 मीटर लंबे पीएसएलवी-सी47 ने ‘कार्टोसैट-3’ के साथ अमेरिका के 13 नैनो उपग्रहों को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरी और कार्टोसैट-3 को मात्र 17 मिनट 46 सैकेंड में तथा अमेरिकी उपग्रहों को 26 मिनट 56 सैकेंड बाद अंतरिक्ष की तय कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। बेहतर क्षमता और नवीनतम तकनीकी वाला ‘कार्टोसैट-3’ उपग्रह दुश्मन की हर गतिविधि पर पैनी दृष्टि रखेगा। 509 किलोमीटर दूर कक्षा में स्थापित किए गए करीब 1625 किलोग्राम वजनी कार्टोसेट-3 का जीवनकाल करीब पांच वर्ष का होगा। कार्टोसैट-3 मिशन पर पीएसएलवी-सी47 की यह 49वीं उड़ान थी जबकि इसरो के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से यह 74वां प्रक्षेपण यान मिशन था। इस उपग्रह प्रक्षेपण को इसरो की शानदार सफलता करार देते हुए इसरो प्रमुख के. सिवन का कहना है कि कार्टोसैट-3 धरती पर नजर रखने वाला अब तक का सबसे जटिल, उन्नत और सर्वाधिक रेजोल्यूशन वाला भारतीय उपग्रह है। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र के निदेशक एस. सोमनाथ के अनुसार इस उपग्रह का डिजाइन सबसे अलग है और उन्नत प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यह पूरी तरह से नया है।

      ‘कार्टोसैट-3’ को ‘अंतरिक्ष में भारत की आंख’ कहा गया है और इसका कारण यही है कि यह सबसे ताकतवर कैमरे वाला नागरिक उपग्रह है। यह विभिन्न प्रकार के मौसम में पृथ्वी की तस्वीरें लेने में सक्षम है। अभी तक किसी भी अन्य देश द्वारा इतनी सटीकता वाला सैटेलाइट कैमरा लांच नहीं किया जा सका है। अमेरिका की निजी स्पेस कम्पनी ‘डिजिटल ग्लोब’ का ‘जियोआई-1’ सैटेलाइट 16.14 इंच की ऊंचाई तक की तस्वीरें ले सकता है जबकि कार्टोसेट-3 अंतरिक्ष में 509 किलोमीटर की ऊंचाई से जमीन पर 0.25 मीटर अर्थात् 9.84 इंच की ऊंचाई तक की स्पष्ट तस्वीरें ले सकेगा और अंधेरे में भी निगरानी कर सकेगा। इसमें लगे हाई रिजोल्यूशन एडवांस्ड स्पेशियल कैमरों का ग्रांउड रिजोल्यूशन इतना जबरदस्त है कि उनकी मदद से पृथ्वी से करीब 509 किलोमीटर ऊंचाई से भी यह बेहद साफ तस्वीरें ले सकेगा। इतनी ऊंचाई से ही यह जमीन पर दो ऐसी चीजों में भी फर्क कर सकता है, जिनके बीच की दूरी 25 सेंटीमीटर हो। यह देश का अब तक का सबसे बेहतरीन ऐसा ‘अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट’ है, जिससे पृथ्वी की बिल्कुल साफ तस्वीरें ली जा सकती है। इसमें अडैप्टिव ऑप्टिक्स टैक्नोलॉजी की मौजूदगी तस्वीरों को धुंधला होने से रोकेगी और सैटेलाइट द्वारा खींची जाने वाली तस्वीरें इतनी साफ होगी कि किसी व्यक्ति के हाथ में बंधी घड़ी के समय को भी स्पष्ट देखा जा सकेगा। यह सैटेलाइट हमारी हाई रिजोल्यूशन इमेजिन क्षमता को बढ़ाएगा और इसका प्रमुख कार्य अंतरिक्ष से भारत की जमीन पर नजर रखना है। इसकी मदद से स्पेस-सर्विलांस की क्षमता बढ़ने के साथ यह सुरक्षाबलों के लिए कई प्रकार से फायदेमंद साबित होगा।

      ‘कार्टोसैट-3’ की विशेषताओं को देखते हुए इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इसकी मदद से भारत को अपनी सुरक्षा में काफी बढ़त मिलेगी और यह आने वाले समय में भारत की सुरक्षा में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सुरक्षा के लिहाज से इसे बहुत अहम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इससे मिलने वाली तस्वीरों को सेना अपनी जरूरत के अनुसार बड़ा करके आकलन कर सकती है और तस्वीरों के जरिये आतंकी ठिकानों और आतंकियों की पॉजीशन की सटीक जानकारी भी प्राप्त कर सकती है। भारत का यह पहला ऐसा सैटेलाइट है, जो पेनक्रोमैटिक मोड में 16 किलोमीटर दूरी की स्पेशियल रेंज कवर करने के साथ-साथ मल्टी-स्पेक्ट्रम और हाइपर स्पेक्ट्रम को भी बड़ी आसानी से कैप्चर कर सकता है। अभी तक भारत के पास जितने भी ऑब्जरवेटरी सैटेलाइट्स मौजूद हैं, उनमें कार्टोसेट-3 सबसे उन्नत किस्म का है। इसका उपयोग प्राकृतिक आपदाओं में मदद के साथ-साथ देश की सीमाओं की निगरानी के लिए होगा। इसके जरिये भारतीय सेनाएं पाकिस्तान की नापाक हरकतों और चीन की गतिविधियों पर बाज जैसी पैनी नजर रखने में सक्षम होंगी और जरूरत पड़ने पर इसकी मदद से सर्जिकल स्ट्राइक अथवा एयर स्ट्राइक को भी अंजाम दे सकेंगी। इस उपग्रह मिशन को देश की सबसे ताकतवर आंख इसलिए माना गया है क्योंकि इसके जरिये पाकिस्तान और उसके आतंकी कैंपों पर सीधी नजर रहेगी और अंतरिक्ष में भारत की इसी ताकतवर आंख की मदद से भारतीय सेना दुश्मनों और आतंकियों को उन्हीं के घर में घुसकर मारेगी। पाकिस्तान पर किए गए सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के लिए कार्टोसैट सीरीज के उपग्रहों की मदद ली भी गई थी।

      उरी हमले का बदला लेने के लिए भारतीय सेना ने पाकिस्तान में जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी, तब इसरो के उपग्रहों की मदद से ही आतंकियों के ठिकानों का पता लगाया गया था और लाइव तस्वीरें मंगाई गई थी। ठीक उसी प्रकार बालाकोट हमले के बाद की गई एयर स्ट्राइक में भी इसरो द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किए गए उपग्रहों ने ही मदद की थी। इसरो की तीन सैटेलाइट सीरीज (रीसैट, कार्टोसैट तथा जीसैट) इस कार्य में मददगार साबित हुई थी। कार्टोसैट की ही भांति रीसैट भी हर प्रकार के मौसम में पृथ्वी की तस्वीरें लेने में सक्षम है, जिसके जरिये अंतरिक्ष से जमीन पर तीन फीट की ऊंचाई तक की बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकती हैं। 26/11 के मुम्बई हमलों के बाद इसरो द्वारा रीसैट सीरीज के उपग्रहों को सीमाओं की निगरानी और घुसपैठ रोकने के लिए विकसित किया गया था। जहां तक जीसैट सीरीज के उपग्रहों की बात है तो इसरो द्वारा इस सीरीज के अभी तक बीस उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े जा चुके हैं, जिनमें से 14 अभी भी काम कर रहे हैं। इन उपग्रहों का उपयोग टेलीफोन तथा टीवी संबंधी संचार के लिए होता है, जो भारतीय सेनाओं के लिए सुरक्षित संचार की सेवा प्रदान करते हैं। इसके अलावा ये उपग्रह मौसम तथा आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने में भी महत्वपूर्ण निभाते हैं। वायुसेना तथा नौसेना अपने विमानों और जहाजों का नेविगेशन रीसैट सीरीज के इन्हीं उपग्रहों की मदद से करती हैं।

      अगर बात करें ‘कार्टोसैट’ सीरीज के उपग्रहों की तो ‘कार्टोसैट-3’ भारत द्वारा निर्मित एक प्रकार की स्वदेशी पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों की श्रृंखला का इस सीरीज का नौवां सैटेलाइट है। इससे पूर्व इसरो कार्टोसैट श्रृंखला के आठ सैटेलाइटों का सफल प्रक्षेपण कर चुका है, जिनमें सबसे पहला ‘कार्टोसैट-1’ 5 मई 2005 को, दूसरा ‘कार्टोसैट-2’ 10 जनवरी 2007 को, तीसरा ‘कार्टोसैट-2ए’ 28 अप्रैल 2008 को, चौथा ‘कार्टोसैट-2बी’ 12 जुलाई 2010 को, पांचवां ‘कार्टोसैट-2 सीरीज’ 22 जून 2016 को, छठा ‘कार्टोसैट-2 सीरीज’ 15 फरवरी 2017 कोे, सांतवां ‘कार्टोसैट-2 सीरीज’ 23 जून 2017 को तथा आठवां ‘कार्टोसैट-2 सीरीज’ 12 जनवरी 2018 को प्रक्षेपित किया गया था। इन उपग्रहों को विभिन्न पैमाने में डाटा उपलब्ध कराने में बहुत सफल माना गया है। कार्टोसैट सैटेलाइट सीरीज के ये सभी उपग्रह भारतीय रिमोट सेंसिंग कार्यक्रम का अहम हिस्सा रहे हैं, जो विशेष रूप से पृथ्वी के संसाधन प्रबंधन और निगरानी के लिए शुरू किए गए हैं। कार्टोसैट-3 की मदद से भारत के तटीय इलाकों की बेहद सटीक जानकारी हासिल हो सकेगी, जिससे इन क्षेत्रों की इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लानिंग में मदद मिलेगी। इसके अलावा यह उपग्रह सड़कों के नेटवर्क को मॉनीटर करने, नियमन, भौगोलिक स्थितियों में होने वाले बदलावों की जानकारी भी उपलब्ध कराएगा। इसका उपयोग 3-डी मैपिंग, वानिकी, पर्यावरण एवं आपदा प्रबंधन, जल प्रबंधन, कृषि, सीमा सुरक्षा इत्यादि में भी किया जाएगा। इस सफल मिशन के जरिये भारत ने अंतरिक्ष में एक बार फिर जो बड़ी छलांग लगाई है, उसके लिए इसरो को ढ़ेरों बधाईयां।

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