
—विनय कुमार विनायक
हर कोई रिश्तेदार यहां पिछले जन्म का,
हर कोई किराएदार यहां पिछले जन्म का!
हर कोई कर्ज चुकाने,उगाहने आता पिछले जन्म का!
यहां नहीं कोई मित्र, नहीं कोई शत्रु होता,
दोस्त और दुश्मन आ मिलते, पिछले जन्म का,
जिससे तुमने जो लिया, दिया, वो सब ले, दे जाएंगे!
खाली हाथ आए,खाली हाथ जाएंगे,
जो भी तुमने लिया, दिया यहीं आकर,
सारे लेन, देन का चुकता होगा यहीं पर!
इस धरती का हर चीज, इस धरती में रह जाएगी,
इस धरती से देह मिली, नेह मिला, देह-नेह यहीं रह जाएंगे,
जिसको जितनी खुशियां बांटी, उतनी वो लौटाएंगे!
जिसका तुमने जितना खून पिया, आंसू पिए,
उतना खून वो पी के रहेंगे, आंसू गिरा ही देंगे!
खारे समुद्र का एक भी खारा बूंद नहीं घटता,
जितना जल मेघ पीता उतना जल उझल देता!
जितना अहं,दंभ,षड्यंत्र, करोगे, उतना तो सहोगे हीं,
जितना घन घमंड करता, उतनी बिजली नर्तन करती!
बेजुबानों की जुबां हरोगे,बेजुबान हो के रहोगे,
क्यों निष्ठुर बनते हो, सामने वाले को जीने दो!
मीठी बोली बोलो, पीने को जल दो, बैठने तो कहो!
बेदाम जो वस्तु मिले हैं,उसे बांटते क्यों नहीं हो?
सब कोई अपना,सब परमात्मा के आत्मज हो!
आत्मा की जाति नहीं होती,ना बड़ी छोटी होती,
आत्मा जितनी टूटती बंटती, उतनी की, उतनी होती!
काया चाहे जितनी छोटी, बड़ी होती, आत्मा उतनी होती!
आत्मा, आत्मा में भेद नहीं,आत्मा ही परमात्मा होती,
हर जीव ईश्वर है, ईश्वर की हर जीवात्मा थाती!