औधोगिक चिंता बनाम भूमि अधिग्रहण

0
143

प्रमोद भार्गव

औधोगिक घरानों के व्यावसायिक हितों के लिए नए भूमि अधिग्रहण कानून के प्रारूप में एक बार फिर खेती किसानी से जुड़े लोगों के हितों को सूली पर चढ़ा दिया। जबकि हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली की और कूच कर रहे सत्यग्रहियों के साथ एक लिखित करारनामा करके भरोसा जताया था कि नए कानून में भूमि सुधार नीतियों को महत्व दिया जाएगा। गरीब व वंचित भूमिहीनों के जमीन से जुड़े मुद्रदे हल किए जाएंगे। किंतु कानून का जो नया मसौदा सामने आया है, उससे तो लगता है सरकार को उजड़ने वाले लोगों की परवाह नहीं है। भूमि अधिग्रहण और मुआवजे के हक के कानून आज भी अंग्रेज़ हुकूमत से जुड़े कानूनों से निर्मम व निंरकुष हैं। यह इस बात से प्रमाणित होता है कि किसानों को मुआवजे का वाजिब हक की लड़ार्इ लड़ने वाले पूर्व विधायक डा. सुनीलम को तो आजीवन कारावास की सजा सुना दी गर्इ, लेकिन इस मामले में पुलिस द्धारा चलार्इ गर्इ गोलियों से जो चौबीस किसान मारे गए वे पुलिस वाले हत्या के कानूनी दायरे में आए ही नहीं। गोरों के जमाने का यह काला पक्ष आजादी के 65 साल बाद भी भयावह काले कानून के रूप के वजूद में है। जाहिर है जो कानून सम्राज्यवादी शक्तियों ने साम्राज्य विस्तार के लिए बनाए थे, आज उन्हीं का वर्चस्व लोकतांत्रिक सरकार औधोगिक विस्तार और चंद पूंजीपतियों के हितार्थ भूमि के धु्रवीकरण के लिए बनाए रखना चाहती है। यह दुखद स्थिति व्यापाक सामाजिक सरोकारों को हाशिए पर बनाए रखने वाली है।

वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून 1894 में फिरंगी हुकूमत अपने राज्य विस्तार के लिए अस्तित्व में लार्इ थी। नस्लीय सोच के चलते भूमि और आजीविका से वंचित होने वाले लोगों के दर्द व परेशानी में ही ब्रिटिश राज के हित अंतनिहित थे। लेकिन अपने लिए अपने लोगों की प्रजातांत्रिक सरकारें भी ब्रिटिश राजतंत्र का अनुकरण करेंगी यह चिंताजनक है। इसलिए सरकार लगातार संविधान में संशोधन करके ऐसे अनुच्छेदों को कमजोर करती चली आ रही है, जिससे भूमि स्वामियों को न तो बाजार भाव मुआवजा मिले और न ही वे आजीविका के स्थायी रोजगार से जुड़ पाएं। संविधान में चवालीसवां संशोधन तो केवल इसलिए किया गया था, जिससे सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार संकुचित हो जाएं। भूमि हड़पने की यह मानसिकता हमें योरोपीय सामंतशाही ने दी। भारतीय सांमतशाही पश्चिमी सांमतशाही से उदार मानवीयता के आधार पर भिन्न थी। फिरंगी शासन द्वारा नर्इ भू – राजस्व व्यवस्था भारत में अमल में लाने से पहले भूमि पर किसान का व्यकितगत अधिकार नहीं था। भूमि ग्राम समुदाय की सामूहिक संपत्ती थी। किसान उत्पादित फसल का एक अंश राजा या जागीरदार को देकर भू – राजस्व चुकाता था। खेत में खेती के अधिकार की यही अलिखित परंपरा थी। चूंकि भूमि पर निजी मालिकाना हक नहीं था, लिहाजा जमीम बेचने व खरीदने की कानूनी प्रकिया से मुक्त थी। किसान के पलायन करने पर, उसके संतानहीन होने या मुत्यु हो जाने पर ग्राम समुदाय को यह हक था कि वह इस भूमि की जोत का अधिकार किसी ओर किसान को दे दे। ब्रिटिश हुकूमत ने इस उदात्त पंरपरा को चालाकी से अपने हित में बदल दिया और भूमि को निजी संपत्ति बना दिया। तकि उसका क्रय विक्रय हो सके और जरूरत पड़ने पर अधिकारपूर्वक अधिग्रहण भी किया जा सके। चालाकी बरतते हुए ही अंगे्रजी राज में जो भू – राजस्व कर फसल के रूप में चुकाया जाता था, उसे नगद राशि में बदल दिया। ताकि सूखा अथवा बाढ़ की स्थिति में भी लगान के रूप में नगद राशि वसूली जा सके। इस ;अद्ध नीति से ब्रिटिश राज की लूट आसान हो गर्इ। इस संदर्भ में ब्रुक्स ने अपनी पुस्तक ”ला आफ सिविलिजेशन में इस लूटनीति पर लिखा है, ‘पृथ्वी का वजूद जब से कायाम हुआ है तब से लेकर आज तक किसी व्यवसाय से इतना लाभ नहीं हुआ , जितना बि्टेन को भारत की इस लूट से हुआ। जाहिर है, उदारवादी नीतियों के भारत में आगमान के बाद इन तीन सालों के भीतर जितने भी बड़े धोटालों का राजफाश हुआ है, वे भूमि खदान और अन्य जल, थल व नभ से जुड़ी प्राकृतिक संपदाएं ही हैं। इन लूटों से जुड़े व सत्ता पर काबिज राजनेता, नौकरशाह व उधोगपति हैं। ऐसे शातिर दिमागों का यह गठजोड़ भूमि अधिग्रहण का ऐसा मसौदा कैसे वजूद में लाने देगा, जिससे उसके हितों के तो पर कटें और किसान व वंचितों के हित सधें। इंदिरा गांधी की बैंक व बीमा कंपनियों के राष्ट्रीयकरण और ग्रामीण व शिक्षित बेरोजगार को आसान कर्ज उपलब्ध कराने की नीतियों को छोड़ दें तो ज्यादातर शासक दल भरे पेट वालों का ही और पेट भरने की कवायद में लगे रहे हैं। भूमण्डलीयकरण की नीतियों ने तो गरिब व वंचित की कमर ही तोड़कर रख दी।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और जन सत्याग्रह आंदोलन के नेता पीवी राजगोपाल के भूमि सुधार से जुड़ी नीतियों को लेकर जो समझौता आगरा में हुआ था, उसे भूमि अधिग्रहण के प्रारूप में लगभग नकार दिया गया। आखिर में सरकार ने मजदूर की तुलना में उधोग जगत के महत्व को ही रेखांकित करते हुए भूमि करोबार से जुड़े निजी खिलाडि़यों के आर्थिक लाभ की चिंता ही बदस्तूर रखी। अधिग्रहण के पुराने प्रारुप में व्यवस्था थी कि अधिग्रहीत होने वाली भूमि से प्रभावित 80 प्रतिशत लोगों की सहमति ग्राम सभा बुलाकर ली जाए। यदि भूमि अधिग्रहण सार्वजानिक हित अथवा राष्ट्रीय परियोजनाओं के लिए किया जा रहा है तो अधिग्रहण के बाद भूमि की उपयोगिता का स्वरूप बदला नहीं जा सकता। किंतु नए प्रारूप में जहां भूमि स्वामियों की सहमति 80 फीसदी से घटाकर 66 फीसदी कर दी गर्इ, वहीं भूमि का उपयोग बदलने का अधिकार भी राजस्व अधिकारियों को दे दिया गया। यहां गौरतलब है कि हाल ही में सार्वजनिक हितों के लिए अधिग्रहीत की गर्इ भूमि हड़पने के जो तीन बड़े मामले सामने आए हैं, वे भूमि का स्वरूप बदलने से ही संभव हुए हैं। रांबर्ट वडरा को गुड़गांव में अस्पातल की जमीन, भाजपा के राष्ट्रीय अघ्यक्ष नितिन गडकरी को उमरेठ बांध की जमीन और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को लवांसा परियोजना की बची 348 एकड़ जमीन का हस्तांतरण भूमि अधिग्रहण के उपयोगिता संबंधी लक्षित स्वरुप को बदलकर ही संभव हो पाया था।

अधिग्रहण के मसौदे में भूमि से वंचित उन मजदूरों का भी ख्याल रखा गया था, जिनके पास कृषि योग्य भूमि भले ही न हो, किंतु आजीविका गांव में हो रही खेती किसानी में भगीदारी करके ही चलाते थे। भूमि स्वामी और कृषि मजदूर परस्पर आश्रित होते हैं। संसदीय समिती ने भी इन कृषि मजदूरों की जिवीका का ख्याल रखते हुए इन्हें मुआवजे के अधिकार से जोड़ने की पैरवी की थी। लेकिन इस अनुशसा को भी मंत्री मण्डल के समूह ने अस्वीकार कर दिया। यहां इस तथ्य को रेखांकित करना जरुरी है कि 50 से 60 प्रतिशत ऐसे भूमिहीन खेतिहर मजदूर होते हैं, जिन्हें भूमि अधिग्रहण के विस्थापन का अभिशाप झेलना पड़ता है। इनकी कौषल दक्षता कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में नहीं होती। इसलिए विस्थापन का मर्मांतक दंश जीवनपयर्ंत इन लाचारों को भुगतना होता है। इन्हें मुआवजे के हक से वंचित रखना, सरकार की हृदयहीनता दर्षाता है।

संशोधित मसौदे में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की साझेदारी ;पीपीपीद्ध वाली परियोजनाओं को भी भूमि का अधिग्रहण सरकार करेगी। जबकि पुराने प्रारुप में निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए भूमि देने की बाध्यकारी शर्त से सरकार मुक्त थी। इस कारण औधोगिक घराने और रीयल स्टेट के कारोबारी परेशान थे। आखिरकार वे इस प्रावधान को बदलवाने में सफल भी हो गए। अब ये लोग बिचौलियों के जरिये भूमि का अधिग्रहण जरुरत से ज्यादा कराएंगे और भूमि के दुरुपयोग का सिलसिला जारी रहेगा। इस बाबत संसदीय समिति ने कहा था कि जब अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान और कनाडा जैसे देशो में सरकारें निजी क्षेत्र के लिए जमीन अधिग्रहण नहीं करतीं तो भारत में कारोबारियों को यह सुविधा क्यों दी जाए ? किंतु केंद्र सरकार ने तय कर दिया कि उसकी प्राथमिकता में तो केवल व्यापार और व्यापारी हैं। इसीलिए केंद्र सरकार अब खेती में भी पीपीपी माडल को आगे बढ़ाने पर आमादा है। इस माडल को जमीन पर उतारने का दबाव विश्व आर्थिक फोरम द्वारा वजूद में लार्इ गर्इ नर्इ’ कृषि पहल का है। इसकी प्रायोगिक शुरुआत महाराष्ट्र में हो भी गर्इ है। यहां उल्लेखनीय है कि हमारे यहां खेती का जो कुल रकबा है, उसमें से 83 प्रतिशत पर खेती छोटे या सीमांत किसान करते हैं। उनके परिवार की आजीविका का यही प्रमुख साधन है। ऐसे में पीपीपी के मार्फत खेती का एकीकरण किसान का संकट और बढ़ाएगा। और हताशा में किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की संख्या में वृद्धि होगी।

संसदीय समिति ने कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाने की सिफारिष की थी, जिससे कृषि का रक्बा न घटे और खाध सुरक्षा बनी रहे। किंतु नए मसौदे में इस चिंता को नजरअंदाज करते हुए भरसक उपजाउ और बहु-फसली भूमि को भी अधिग्रहण के दायरे में लाया गया है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण प्रस्ताव है। हाल ही में राज्यसभा में एक ध्यानाकर्शण सवाल के जवाब में बताया गया कि 2009 तक 36 लाख हेक्टेयर उपजाउ व सिंचित भूमियों का अधिग्रहण आवास और विकास योजनाओं के लिए किया गया। जबकि देश में 177 लाख हेक्टेयर बंजर, उसर अथवा पड़त जमीनें खाली पड़ी हैं। यदि सरकार में जरा भी संवेदना बांकी है तो उसे उधोगों और गैर-कृषि प्रयोजनों के लिए यही बंजर जमीनें आबंटित करनी चाहिए। ऐसा करने से कृषि भूमि तो बचेगी ही, बंजर क्षेत्रों में लगने वाली परियोजनाओं से इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी रोजगार के साधन सुलभ होंगे। किंतु सरकार की चिंता तो पूंजीपतियों की सुविधा है। इसलिए सरकार की मंशा है कि येन-केन-प्रकारेण ब्रिटिश राज की भूमि अधिग्रहण नीति वजूद में बनी रहे और किसानों को ठगने का सिलसिला जारी रहे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,719 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress