आज का समाचार है कि कश्मीर में चार लाख लोग अभी भी बाढ़ में फ़ंसे हैं। राहत कार्य में सेना के एक लाख जवान जुटे हैं। ६० हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।
कश्मीर में अपनी जान को जोखिम में डालकर बाढ़ पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचानेवाले सेना के ये वही जवान हैं जिन्हें वहां के राजनेता, फ़िरकापरस्त और कट्टरपन्थी कल तक काफ़िर कहकर संबोधित करते थे। ज़िहादी उनके खून के प्यासे थे। वही सेना के जवान आज देवदूत बनकर कश्मीरियों की रक्षा के लिये अपनी जान की बाज़ी लगा रहे हैं। पिछले आम चुनाव में फ़ारुख अब्दुल्ला ने सार्वजनिक बयान दिया था कि नरेन्द्र मोदी और उनको वोट देने वालों को समुन्दर में फ़ेंक देना चाहिये। उसी नरेन्द्र मोदी ने कश्मीरियों के लिये केन्द्र का खज़ाना खोल दिया है। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिये न तो हिज़्बुल मुज़ाहिदिन आगे आया और न तालिबान। न आई.एस.आई.एस. ने पहल की न अल-कायदा ने। न आज़म खां आगे बढ़े, न ओवैसी। उनकी मदद की है तथाकथित सांप्रदायिक सेना ने, मौत का सौदागर कहे जाने वाले नरेन्द्र मोदी ने और ज़िहाद के शिकार करोड़ों काफ़िरों ने।
कश्मीर में आई बाढ़ से लाखों लोग विस्थापित हो गये हैं। अपना घर छोड़कर शरणार्थी बनने का दर्द अब उन्हें महसूस होना चाहिये। प्रकृति ने उन्हें यह अवसर प्रदान किया है। इन बाढ़ पीड़ितों को तो सिर्फ़ अपना घर छोड़ना पड़ा है लेकिन तनिक खयाल कीजिए उन हिन्दू विस्थापितों का जिन्हें कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों ने बम-गोले और एके-४७ की मदद से जबरन घाटी से निकाल दिया था। किसी ने अपनी जवान बेटी खोई, तो किसी ने अपनी बहू। किसी ने अपना पिता खोया, किसी ने बेटा। न फ़ारुख की आंख से आंसू का एक बूंद टपका न उमर का दिल पसीजा। न सोनिया ने एक शब्द कहा, न राहुल ने बांहें चढ़ाई। इसके उलट ओवैसी के हैदराबाद और आज़म के रामपुर में मिठाइयां बांटी गईं।
यह वक्त है स्थिर चित्त से चिन्तन करने का। क्या धारा ३७० की उपयोगिता अभी भी है?
सब ऊपर वाले की व्यवस्था है । हम उम्मीद करते हैं कि मुसलमान इस आपदा से कुछ सीखेंगे ।
कोई विकल्प नहीं ,उन्हें आज भी वे लश्कर, तालिबान, और ओवेशी पसंद हैं,यदि राज्य सरकार से नाराजगी थी तो सहायता के लिए भरे सामन के ट्रकों पर व हेलीकॉप्टरों पत्थर फेंकने की क्या जरुरत थी?अलगाववादी तो अब घरों में छिपे पड़े हैं, पाकिस्तान , आई एस आई क्यों नहीं मदद के लिए आगे आई? बेवकूफ हाफिज प्रकृति के इस प्रकोप को भारत की साजिश बता रहा है,उमर खिसकती राजनीतिक ज़मीं को बचाने अब खाने के पैकेट अपने हाथ से बाँट रहें हैं , पर इतनी सहायता के बाद उनके फूटे मुहं से एक शब्द भी केंद्र के लिए नहीं निकला है ,जिस सेना को हटाने के लिए वे बार बार हठधर्मी कर रहे थे उसी ने ही अब इस प्रकोप से फिर बचाया है, जो पहले आतंकवादियों से बचाती रही है,पर इन कृतघ्नहीन लोगों के लिए इन सबका कोई महत्व नहीं
कांग्रेस तो वैसे ही सदमे में है, उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि इतनी बड़ी प्राकृतिक विपदा का मोदी सरकार इतनी अच्छे तरह से निपटेगी पिछले साल उत्तराखंड की विपदा में उसकी ढीली व्यवस्था जग जाहिर है,जब कि उसकी पार्टी की अपनी सरकार थी
सेना कभी फिरकापरस्त नहीं रही हमारी। चुनाव से पहले मोदी जी को चाहे जो कहा गया हो लेकिन आज वो देश के PM हैं। उन्होंने संविधान की शपथ ली है। सारा देश उनके लिए एक जैसा है। कश्मीर भी देश का एक हिस्सा है। मोदी ने कश्मीर की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर 1000 करोड़ की तत्काल मदद और फ़ौज को राहत के काम में लगाकर अपना फर्ज़ अदा किया है। इससे कश्मीर के अलगाव वादियों को एक सबक दिया गया है वे सीखें या न सीखें।
लेखक की इस बात में डी दम है कि विस्थापन क्या होता है ये कश्मीरीयों को शायद अब समझ में आये लेकिन हमारा कहना है कि चंद अलगाव वादियों ने कश्मीरी पंडितो को कश्मीर छोड़ने को मजबूर किया था सारे कश्मीरियों ने नहीं।
कुल मिलाकर इस सब से भारत सरकार सेना और मोदी को लेकर मुस्लिमो और खासतौर पर कश्मीरियों की राय में कुछ बदलाव भी आ सकता है.
चाहे जो भी हो जाय और कुछ भी हम कर दें; कश्मीरी मुसल्मान तो कश्मीरी मुसल्मान ही है, रहने वाला है और रहेगा। उसमें कुछ भी परिवर्तन आने वाला नहीं है। चाहे अर्बों रुपये और पम्प कर दिये जायँ, और भी लाखों सैनिक इनकी रक्षा करते करते अपने जीवन की आहुति दे दें; ये लोग तो वैसे के वैसे ही रहने वाले हैं। अभी भी पत्थर फेंकते दिखेंगे, फेंकते रहेंगे और चुन चुन कर गालियाँ उगलते रहेंगे।
डा० रणजीत सिंह