अन्न भोजन संसार का, किसान का रोना है

—विनय कुमार विनायक
किसान लड़ रहे कीमत पाने उस धान के लिए,
जो खलिहान की खखरी, व्यापारी का सोना है!

किसान आज अड़ गए अपने सम्मान के लिए,
अन्न भोजन संसार का, किसान का रोना है!

किसान गुहार कर रहे अपने सामान के लिए,
जिसका मालिक वो, किन्तु भाग्य में खोना है!

किसान कभी लड़ते नहीं स्वगुणगान के लिए,
जिसे देख सुकून मिलता उसे बेभाव डुबोना है!

किसान पहचाने जाते हैं देश की शान के लिए,
उपेक्षित होके भी उसे इस पहचान को ढोना है!

सेठ गोदाम,किसान चाहते मंडी जोगान के लिए,
अन्न किसान का पसीना,बनिए का खिलौना है!

आज शोषक बेताब कृषक की रहनुमाई के लिए,
नेता तलाशते जमीन,किसान को सिर्फ बोना है!

ये किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए,
जो नेता खड़े हैं उनका लक्ष्य कृषि को डुबोना है!

देश आजाद मगर आजादी नहीं किसान के लिए,
पत्थर बिकते लाखों में, गेहूं को पराली होना है!

कृषक अनटुटवा बेटा जो रोते नहीं दूध के लिए,
ये दस्तूर है चुप बच्चों को दूध नहीं मिलना है!

जंग है ये ‘दूधो नहाओ पूतों फलों’ वाले के लिए,
मलाई औरों के लिए किसानों को छाछ पीना है!
—विनय कुमार विनायक

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