सामाजिक समानता के लिए ‘आरक्षण’ अनिवार्य !

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राजेश कश्यप 

जाने माने फिल्मकार प्रकाश झा की बहुविवादित फिल्म ‘आरक्षण’ अंतत: अपनी निर्धारित तिथि 12 अगस्त को प्रदर्शित हो ही गई। पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं आन्ध्र प्रदेश की राज्य सरकारों द्वारा पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के बाद तो मामला एकदम अति संवेदनशील हो गया था। पाठकों की बेसब्री को देखते हुए बता दें कि फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिस पर कोई आपत्ति उठाई जाए। फिल्म ‘आरक्षण’ विषय पर केन्द्रित जरूर है, लेकिन बौद्धिक, तार्किक एवं बेहद संतुलित ढ़ंग से इस मुद्दे को वैचारिक बनाया गया है। इसमें दलितों व पिछड़ों के पक्ष को बड़े सशक्त एवं प्रभावशाली तरीके से रखा गया है और साथ ही सामान्य व उच्च वर्गों के बीच ‘आरक्षण’ के सन्दर्भ में व्याप्त आक्रोश को बड़े सभ्य एवं सौम्य भाव से समुचित जवाब देकर शांत करने की बेहद सफल कोशिश की गई है। इसके साथ ही गत दिनों ‘आरक्षण’ के सन्दर्भ में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई गंभीर राय का अप्रत्यक्ष तौरपर बड़ी चतुराई से समर्थन भी किया है और दबी जुबान में सामाजिक समानता के लिए ‘आरक्षण’ को अनिवार्य समझा है।

फिल्म की कहानी डा. प्रभाकर आनंद (अमिताभ बच्चन), जोकि शकुन्तला ठकुराल (एसटीएम) महाविद्यालय के प्रिसींपल के सिद्धान्तों पर केन्द्रित है। डा. आनंद अपने महाविद्यालय में जातपात की बजाय सब वर्गों के बच्चों को शिक्षा एवं रोजगार के समान अवसर देने के पक्षधर हैं। लेकिन वे गरीब एवं वंचित तबके के बच्चों के लिए अलग से मुफ्त में कक्षाएं लगाते हैं, ताकि वे अमीर तबके के बच्चों की महंगी ‘कोचिंग’ जैसी सुविधाओं का मुकाबला कर सकें। ‘आरक्षण’ से अछूते महाविद्यालय में एकाएक समीकरण ऐसे बनते हैं कि जब उच्च घराने के बच्चों को अच्छे अंक हासिल करने के बावजदू दाखिला नहीं मिल पाता और ‘आरक्षण’ के चलते उनसे कम अंक हासिल करने वाले दलित व पिछड़े वर्गों के बच्चों को दाखिला मिल जाता है तो उनमें एक आक्रोश की भावना पनपती है। इसी आक्रोश को हवा देते हैं महाविद्यालय के प्राचार्य मिथलेश कुमार (मनोज वाजपेयी), जो ‘आरक्षण’ के मुद्दे को साम्प्रदायिक रंग देने की चाल में कामयाब हो जाते हैं। उनकीं इस चाल को काटने के लिए दलित वर्ग से संबंध रखने वाले प्राचार्य दीपक कुमार (सैफ अली खान) आगे आते हैं और दलितों एवं पिछड़ों की बड़ी लाजवाब पैरवी करते हैं। उनका उच्च घराने के छात्र सुशांत सेठ (प्रतीक बब्बर) से भी वैचारिक टकराव होता है। सुशांत और प्रिसींपल की लड़की पूर्वी आनंद (दीपिका पादुकोण) एक साथ पढ़ते हैं। दीपक कुमार व पूर्वी आनंद दोनों एक-दूसरे से गहरा प्यार करते हैं।

महाविद्यालय में ‘आरक्षण’ के नाम पर माहौल अति संवेदनशील हो जाता है। इसके चलते प्रिसिंपल डा. आनंद व दीपक कुमार के बीच बेहद गरमा-गरमी हो जाती है। प्रिसींपल उन्हें अभद्र आचरण का दोषी ठहराकर उन्हें महाविद्यालय से निकाल देते हैं। बदले हालातों में पूर्वी दीपक से अपना रिश्ता तोड़ लेती है। दीपक, पूर्वी एवं सुशांत के मैत्रीपूर्ण रिश्तों में गहरी दरार आ जाती है। दूसरी तरफ प्रिसींपल डा. प्रभाकर आनंद शिक्षा के बाजारीकरण को रोकने, महाविद्यालय के नियमों के खिलाफ आचरण करने और अलग से के.के. कोचिंग सेंटर चलाने पर प्राचार्य मिथलेश को एक सप्ताह के अन्दर लिखित जवाब देने के लिए नोटिस देते हैं। इससे तिलमिलाकर मिथलेश प्रिसींपल के खिलाफ ऐसी साजिश शुरू करता है कि फिल्म के अंत तक दर्शक अवाक् रहकर एकटक देखते ही रहते हैं।

फिल्म के सभी पात्रों ने जी जान से मेहनत की है। अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि उन्हें महानायक क्यों कहा जाता है। सैफ अली खान ने एक दलित शिक्षक की भूमिका बड़े जबरदस्त ढ़ंग से निभाई है। इसके लिए उन्हें बड़े-बड़े अवार्ड भी मिल सकते हैं। दीपिका पादुकोण ने अपने हिस्से का काम बखूबी पूरा किया है। मनोज वाजपेयी खलनायक के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ने में एकदम कामयाब रहे हैं। चेतन पंडित, यशपाल शर्मा, मुकेश तिवारी जैसे बेहतरीन कलाकार उम्दा प्रदर्शन करने के बावजूद हाशिये पर जाते नजर आते हैं। हेमामालिनी व शबाना आजमी बतौर मुख्य अतिथि कलाकार वाहवाही लूटने में कामयाब रहीं। प्रसून जोशी के गीत एवं शंकर महादेवन, एहशान नुरानी व लॉय मंडोसा का संगीत मधुर एवं कर्णप्रिय है। कोरियोग्राफी उच्च स्तरीय है। कहानी में कहीं कोई ठहराव या भारीपन नहीं है। दर्शक शुरू से अंत तक बंधा रहता है। फिल्म बौद्धिक लोगों को बेहद पसन्द आएगी। विवादों से चर्चा में आई यह फिल्म व्यवसायिक दृष्टि से भी फायदे में रहती दिखाई दे रही है।

 

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