’गंगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं’

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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद – प्रथम कथन
प्रस्तुति: अरुण तिवारी
पहला कथन: ’गंगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं’
Swami-Gyan-swroop-Sanand-pic-by-Vinod-Rawatतारीख 01 अक्तूबर, 2013: देहरादून का सरकारी अस्पताल। समय सुबह के 10.36 बजे हैं। न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री अरविंद पांडे आकर जा चुके हैं। लोक विज्ञान संस्थान से रोज कोई न कोई आता है। श्री रवि चोपङा भी आये थे। मैं पंहुचा, कमरे में दो ही थे, नर्स और स्वामी सानंद जी। 110 दिन के उपवास के पश्चात् भी चेहरे पर वही तेज, वही दृढ़ता ! ताज्जुब हुआ कि वजन जरूर घटा है, किंतु न मानसिक, न शारीरिक.. किसी कमजोरी का कोई लक्षण नहीं। मैने प्रणाम किया; स्वामी जी ने भी उठकर अपना स्नेहाशीष दिया। हिंडन नदी के कार्यकर्ता श्री विका्रंत शर्मा और हिंदू अखबार के लिए लिखने वाली उनकी परिचित एक पत्रकार बहन भी मेरे साथ आई हैं; परिचय हुआ। जब तक वेे स्वामी सानंद से बातचीत कर वापस गये, मैंने नित्य कर्म निपटाया और वापस लौटकर पास रखी बंेच पर डट गया। बगल में निगाह गई; तीन किताबें देखी – 1. दौलत रास की दृष्टि में साहिबे कमाल – गुरु गोविंद सिंह। ( प्रकाशक: गुरुमति साहित्य चैरिटेबल ट्रस्ट, बाज़ार माई सेघं, अमृतसर )
2. गुरु तेगबहादुर की जीवनी ( लेखक: महंत जगतराम एम़ ए. हरिद्धार ), प्रकाशक: गुरुद्वारा हेमकुण्ठ साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट, ऋषिकेश।
3. प्रकाशन विभाग, अद्वैत आश्रम, 5, डिही एण्टाली रोड, कोलकोता – 700014 द्वारा प्रकाशित ’विवेकानंद साहित्य ( पांचवां खण्ड )।
मैने देखा कि तीसरी पुस्तक के पेज नंबर 374 की कोर मुङी हुई है। संभवतः स्वामी जी यहां तक पढ़ चुके हैं। वह समझ गये; बोले – ’’आजकल विवेकानंद साहित्य का हिंद वर्जन पढ़ रहा हूं। एनर्जी कई माध्यमों से दी जाती है। माृतसदन आश्रम ( कनखल, हरिद्वार ) में गंगा से मिली। इसीलिए 110 दिन पूर्व मेरा वजन 55 किलो था; आज 110 दिन बीतने पर 45 किलो पर बना हुआ है।
आज भारतीय भी वेस्टर्नाइज्ड हो गया है। इसीलिए वह गंगा को नहीं समझ पा रहा। इफ यू वांट टू अंडरस्टैंड, तो विवेकानंद साहित्य पढें समझ जायेंगे कि वेद और उपनिषदों में भारत क्या है।
द वेस्टर्न पीपुल्स आर वैरी…..खैर, मैं कहता हूं कि मत किसी को आरोप करो; खुद करके देखो। लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। मुझे आवेश आ जाता है। द रिलेशन बिटविन मी एण्ड माई मदर एण्ड दैट वाज….दरअसल, मैं किसी को भी मां और अपने बीच में नहीं लाना चाहता।’’
उत्तराखण्ड में जो हुआ, उसके लिए हम डिज़र्व करते हैं
मैने बातचीत को स्वामी जी के दर्द से हटाकर, उत्तराखण्ड के दर्द की तरफ मोङा। उत्तराखण्ड में हुई तबाही पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही। स्वामी जी इसे प्राकृतिक आपदा मानने को तैयार नहीं हैं। बोल उठे – ’’उत्तराखण्ड में जो हुआ, उसके लिए हम डिज़र्व करते हैं। लोग, केदारनाथ जी के दर्शन करने हैलीकाॅप्टर में जाते हैं। पालकी और लम्बी-लम्बी गाङियों में जाते हैं। भागीरथी, अलकनंदा में पिकनिक करने जाते हैं। यदि आप तीर्थयात्री हैं, तो पैदल क्यों नहीं जाते ? गंगा-हिमालय ऊर्जा लेने जायें।’’
’’अमरनाथ की यात्रा श्रावण प्रतिपदा में होती थी। सिर्फ एक महीने के लिए होती थी; अब आषाढ़ में हेाती है। बगल ही ढाल में लंगर और लंगर में चाउमिन दिया गया। यही सब खेल है, तो क्या हो ? यही खेल, अमरनाथ शिवलिंग टूटने के दोषी हैं। दोषियांे को सजा मिलनी चाहिए।’’
इंसानी प्रयास से आई एकमात्र नदी
बात घूमकर गंगा पर आई, तो स्वामी जी बोल उठे – ’’ हरेक को समझना चाहिए कि गगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं है। यह दुनिया की एकमात्र नदी है, जो कि इंसान के प्रयासों से आई। यह एक जीवित धारा है। रोगं, शोकं, तापं, पापं, हरै भगत कुमति कलापं।… अर्थात गंगा, एक ऐसा प्रवाह है, जो शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक बीमारी को हर लेता है। यदि आइसोटोप यानी रेडियोएक्टिव थैरेपी करनी हो, तो गंगाजल पीयें।’’
यूनिक और स्ट्रंेज स्ट्रक्चर है बैक्टीरियोफाॅज
मैने जानना चाहा कि स्वामी जी, बांध-बैराजों के खिलाफ क्यों हैं ? पारिस्थितिकीय दृष्टि से भागीरथी मूल के क्षेत्र को संवेदनशील घोषित किए जाने के खिलाफ स्थानीय स्तर पर विरोध-प्रदर्शन किए गये हैं; बावजूद स्वामी जी अब आगे अलकनंदा और मंदाकिनी क्षेत्र को भी पारिस्थितिकी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की मांग पर क्यों अङे हैं ? क्यों चाहते हैं कि उन पर भी कोई निर्माण न हो ? स्वामी सानंद का उत्तर था –
’’भागीरथी, मंदाकिनी और अलकनंदा के कारण ही गंगा का एक नाम तृपथा है। तीनों मंे एक सी गुणवत्ता मिली। यदि आगे गंगा में वही गुणवत्ता बनाये रखनी हो, तो अलकनंदा और मंदाकिनी क्षेत्र को भी इको संेसिटिव घोषित करना होगा। जब तक संदेह है, तो उसका निराकरण किए बगैर, तीनों धाराओं पर कोई निर्माण नहीं होना चाहिए। मैं कहता हूं कि अलकनंदा-मंदाकिनी पर कोई सिद्ध करके मुझे दिखा दे कि बांध से कोई फर्क नहीं पङेगा।
देखो, समझो कि बांध से कैसे फर्क पङेगा।
गंगा में बैक्टीरियोफाॅजेज पाये जाने के बारे मंे आपने सुना होगा। बैक्टीरियोफाॅज, हिमालय में जन्मा एक अत्यंत यूनिक…स्ट्रेंज स्ट्रक्चर है । बैक्टीरियोफाॅज न सांस लेता है, न भोजन करता है और न रेपलिकेट करता है। उसके नेचर में ही नहीं है। बैक्टीरियोफाॅज, अपने होस्ट में घुसकर क्रिया करता है। अब यदि उसे टनल में डाल दें या बैराज में बांध दे, तो क्या वह प्राॅपर्टी बचेगी ?’’
सिल्ट की प्राॅपर्टी को न भूलें
तपन चक्रवर्ती, नीरी के एक्स डायरेक्टर हैं। नीरी – जुलाई, 2011 की रिपोर्ट जो इस्टेबलिश करती है, वह है गंगा की बैक्टीरिया प्राॅपर्टी। पानी रखें, तो फाइन सिल्ट (अच्छी गाद) नीचे बैठती है। जो काॅपर और क्रोमियम से रिलीज होकर अलग हो जाता है; यह उस सिल्ट की प्राॅपर्टी है। डैम-बैराज के पीछे यह सिल्ट बैठ जाती है। इसलिए आगे के गंगाजल में यह प्राॅपर्टी नहीं रहेगी।
गंगासागर तक पहुंचे गंगा मूल का जल

स्वामी जी की बांधों से जल छोङने के प्रश्न पर तर्क दिया -’’आगे देखिए। हरिद्वार से गंगा का 90 प्रतिशत जल तो कैनाल में चला जाता है; शेष 10 प्रतिशत जो आगे जाता है, वह बिजनौर और नरोरा, राजघाट से सब डाइवर्ट हो जाता है। गंगोत्री से आई एक बूंद भी प्रयाग नहीं पहुंचती। यदि यह नहीं मालूम, तो काहे की गंगा पुत्री ! भगीरथ तो गंगा को गंगासागर तक मिलाने ले गये थे; हम यू पी, बिहार, बंगाल तक भी न ले जा पायें; यह ठीक नहीं। गंगा में से नहर के लिए कितना पानी निकालें; ताकि एक फेयर पार्ट गंगासागर तक पहुंचे। यह तय करना जरूरी है।’’
गंगा के तीर्थ
प्रश्न था कि गंगा मार्ग के केवल कुछ स्थानों ही तीर्थ क्यों हैं ?
स्वामी सानंद का कथन -’’ सूर्य और ग्रहों की स्थिति का खास समय, खास क्षेत्र और खास कोण पर खास प्रभाव होता है। एक बङा कारण यह कि ऊपर से आई सिल्ट, टोपोग्राफी के हिसाब से कुछ खास लोकेशन पर जमा होती है। इन स्थानों पर जल की गुणवत्ता भी खास होगी।’’
आर्सेनिक का प्रश्न
’’इसी तरह यदि बात करें कि गंगा घाटी में आर्सेनिक के मिलने की, तो प्रश्न है कि गंगा में आर्सेनिक कहां से आया ? स्पष्ट है कि गंगा ही लाई होगी। डेल्टा में जमा होगा। नीचे की लेयर से ऊपर आया होगा। आर्सेनिक, यदि आॅक्सीडाइज्ड है, तो पानी में नहीं घुलता। यदि आॅक्सीडाइज्ड फाॅर्म मंे नहीं है, तो पानी में घुल जाता है।
अब इसे समझिए। बंगाल में जूट-धान की खेती होती थी; होती थी न ? जूट-धान की खेती में पानी खूब भरा रहता था; वह आॅक्सीजन के संपर्क मंे ऊंचाई तक। वही नीचे बैठता था। ग्राउंड में आॅक्सीजन रहती नहीं। अतः आर्सेनिक, पानी में घुलता नहीं था। मिट्टी में पङा रहता था; नीचे कार्बन के संपर्क में, रिड्युश्ड फाॅर्म में। अब खेती बदली, तो खींचकर ऊपर आ गया; डवार्फ की जगह, लंबे धान.. यही सब वजह बनी कि अब पेयजल में भी आर्सेनिक मिल रहा है।’’
’’तिवारी जी, अब ऐसा करो कि तुम खा-पी आओ। लौटकर आओ, तो आगे बात करेंगे।’’ मैने कलम जेब में रखी और बाहर निकल गया।
संवाद जारी…
अगले सप्ताह दिनांक 29 जनवरी, 2016 को पढि़ए स्वामी सानंद गंगा संवाद श्रृंखला का दूसरा कथन

 

4 COMMENTS

  1. Dhanyavad Arun ji

    I am out of town for next 5 weeks, so bear with my Roman script.
    (1) Is this view of Swamiji limited only for Ganga?
    (2) How do we solve drinking water supply problem of our population then?
    (3) It is only because of Sardar Sarovar project in Gujarat the huge land of Kuchh is on the way to becoming fertile, producing 3 to 4 crops per year, + 24 hour drinking water supply.
    ——————————-
    YOU HAVE TO THINK OF A HOLISTIC (Whole problem) —AND NO SOLUTION OF A PART ONLY.
    ——————————-
    WANT A COMPREHENSIVE POLICY STATEMENT. AND THEN FIT YOUR PART SOLUTION INTO IT. I WOULD APPRECIATE IF YOU ASK HIM THESE QUESTIONS
    ON YOUR NEXT INTERVIEW.
    Thanks for this specific angle.
    BUT WE HAVE TO PROVIDE WATER FREE TO ALL.
    ALL THE ADVANCES HAVE TO BE –Adoption and
    Adaptions.
    Thanks

    • आदरणीय मधु जी
      प्रणाम स्वीकारें.
      रूचि दिखाने के लिए आभारी हूँ.
      कृपया गौर करें :
      १- स्वामी जी की पूरी तपस्या, गंगा को लेकर थी. यह संवाद भी गंगा, स्वामी जी की गंगा संकल्प यात्रा और जीवन को लेकर है.
      २- सभी को पानी मुहैया कराने के प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उत्तराखंड, कर्णाटक, महाराष्ट्र, गुजरात के स्वयंसेवी पानी कार्यों के साथ- साथ कभी अलवर के गांवों में तरुण भारत संघ की पहल और स्वामी जी के मार्गदर्शन में किये ग्राम कार्यों को देखने का कष्ट करेंगे, तो सर्वश्रेष्ठ उत्तर पा सकेंगे. यह मेरी विनती है.
      ३- समग्र सोच की बात आपने सही कही है, साक्षात्कार के अगले कथनों में आप इसकी झलक पाएंगे.
      ४- आप द्वारा स्वामी जी से पूछे जाने वाले प्रश्न जायज़ हैं, किन्तु उन्हें इस संवाद शृंखला में पूछना संभव नहीं है; क्योंकि यह संवाद २०१३ में ही लिया जा चूका है.
      संवाद बनाये रखें.
      आपका अपना
      अरुण

      • Majority of problems result from — specialist partial thinking.
        Holistic thinking and mutually harmonizing parts of the whole
        is unavoidable need and a keynote of all solutions.
        Of course Gains and losses both exist in all projects.
        GAINS MUST BE MORE THAN LOSS IN SUCH PROJECTS.
        They calculate Benefit/Cost ratio and it must be greater than one.
        BEING AN ENGINEER HE WILL UNDERSTAND THIS RATIO,
        Arunji Wish you well in service to Bharat Mata.
        Sincerely
        Dr. Madhusudan

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