हमारे देश में रंगा और बिल्ला नाम के दो भाई हुए थे, उनके बेटे गपोड़ी और सपोड़ी ने चुनावी मौसम का बारीकी से अध्ययन कर जान लिया कि जिस प्रकार दुनियाभर में पर्यावरण असंतुलन ने नींद उड़ा दी है, उसी तर्ज पर उनकी गपोड़ी एण्ड़ सपोड़ी बैंक खुल जाये तो वे इससे मिलने वाले मुनाफें से विश्व के कमजोर देशों को कर्ज बॉटना शुरू करेंगे। उन्होंने अच्छी तरह समझ लिया कि ठण्ड, गर्मी और बरसात के 4-4 महिने तय होने के बाद भी इन महिनों में ये मौसम लेट-लतीफ होते है जिसमें अगर शीतलहर समय पर न आये तो सारे गर्म कपड़ों के व्यापारियों का दिवाला निकल जाता है, वैसे ही गर्मी और बरसात के कारोबारियों का बुरा हाल होता था। सरकार मौसम विभाग खोलकर करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद भी मौसम वैज्ञानिक मौसम के विषय में अधिकांश भविष्यवाणिया असफल साबित हुई है। तब इन भाईयों ने किसी नये कारोबार का फैलाने का विचार कर अपने खानदानी कारोबार पर सोचविचार किया, उनके दादे-परदादे बैंकों को लूटने का काम करते थे, बीहडों में डाकू बनकर नाम कमाये थे, पर उनके पिता रंगा बिल्ला लीक से हटकर पूंजीपतियों-नामी गिरामी बड़े लोगों के बच्चों को अगुवा कर मोटी फिरोती वसूलते थे, जिसमें पकड़े जाने पर दोनों को फॉसी हो गयी।
गपोड़ी और सपोड़ी की नसों में उनके पिताओं का खून बह रहा था जो उन्हें अपहरण कर फिरौती वसूलने के लिए उकसाता था, पर उन्होंने देश के राजनेताओं के पदचिन्हों पर चलने की अपेक्षा एक घर आगे चलने का विचार किया कि अगर पूरे देश मेंं राष्ट्रीयकृत बैंकों की तरह अपने भी बैंक हो जाये तो अपने बाप-दादे रंगा बिल्ला का स्वर्ग में दबदवा हो जायेगा। वे ऐसी बैंक खोलना चाहते थे जिसमें जमा ही जमा हो, कोई निकासी वाला न हो ताकि वे विश्व की सर्वमान्य स्विस बैंक को भी पीछे धकेल सके, पर ऐसा संभव नही दिखा तब उन्होंने देश के नेताओं को अपनी अंगुली पर नचाने वाले वोटरों के वोट बैंक की सुर्खिया अखबारों में पढ़ी और तय किया कि अब सारे नेताओं और उनकी राजनैतिक पार्टियों को अपनी मुठठी में लेकर सदा के लिये अपहरण कर बैंक में जमा कर देंगे और निकलने नहीं देंगे। इन दोनों भाईयों को पता था कि इस देश में राजनीतिक पार्टियों एवं नेताओं का कोई चरित्र नहीं, कुर्सी पाने के लिये भाई-भाई का गला रेतने का मौका नहीं छोड़ता, पति, पत्नी, बाप-बेटे और सास-ससुर से लेकर समधी समधिन तक आपस में टकराने के साथ कुर्सी पाने खून को प्यासे हो जाते है। बस ये सभी स्थानीय, प्रादेशिक नेताओं को मुठठी में ले लिया जाये तो खुद सरकार में न होते हुए खुद सरकार चला सकते है। इन दोनों भाईयों को सोसल मीडिया के फेशबुक, व्हाटसअप टयूटर जैसे कारोबारियों की तरह खुद को विश्वप्रसिद्ध और विश्व के सबसे बड़े पॅूजीवाले बनने का सपना साकार करने के लिये सभी अप्रमाणित लोगों को शामिल कर एक वोट बैंक खोलने का उपाय सूझा और उन्होंने तत्काल राष्ट्रीय गपोड़ी एण्ड सपोड़ी वोट बैंक का हेडआफिस बनाकर पूरे देश में उसकी शाखाओं को चालू किरने का निर्णय लिया ताकि जिस किसी भी राजनैतिक पार्टी को जिस स्थान पर जिस जाति-कौम के जितने वोटों की डिंमाण्ड हो वे नेता उनकी बैंक से डील कर उतने वोट अपने पक्ष में करवा सकेंगे।
बस गपोड़ी ने वोट बैंक डीलिंग हेतु देश के संविधान के विपरीत जाति एवं सम्प्रदाय विशेष के सारे पढ़े लिखे, बुद्धिजीवियों को दूर रखते हुए अपनी राष्ट्रीय स्तर की ‘‘गपोड़ी एण्ड सपोड़ी वोट बैंक ‘‘ डीलिंग का काम शुरू कर दिया और समय-जरूरत को समझते हुये हर प्रदेश के नेताओं और उनकी जातियों का सर्वे कराकर उनके क्षैत्र में अपनी वोट बैंक की हर गली, वार्ड मोहल्ले, गॉव, नगर,महानगरों में स्थानीय शाखा खोल दी। गपोड़ी का बड़ा बेटा चित्तूलाल चित्तचोर महानगरों के माफिया सरगनाओं का दॉया हाथ समझा जाता था, उसे इस बैंक का सीईओ बनाया गया, जिसने माफिया जगत के दलित उपेक्षित वर्ग के लोगों को अपनी वोट बैंक में रोजगार लगाकर हर जाति-वर्ग में नियुक्तियॉ कर डाली ताकि पार्षद से लेकर सांसद तक को वोट बैंक का पता तलाशने में दिक्कत न हो और वह इस वोट बैंक से अपनी किस्मत के सितारे चमका सके और जिस पार्टी, दल, निर्दयीय प्रत्याशी विधायक का चुनाव जीतना चाहता है वह हमारी मुॅहमॉगी महॅगी सेवायें प्राप्त करें।
चित्तूलाल चित्तचोर ने देश के मुस्लिम वर्ग में सुराख अली की मजबूत पकड़ एवं रूतबे को देखकर मुस्लिम वोटों का ठेका जनाब सुराख अली एण्ड कम्पनी के नाम से दे दिया। सिखों के वोटबैंक के लिये उनके खासम खास गडडासिंह गडडा, ईसाई समाज के मिस्टर होल एवं हिन्दु समाज के अनुसूचित जाति जनजाति में गहरी एवं मजबूत पकड़ रखने वाले मिस्टर छेदीलाल छेदी को हिन्दू समाज के सभी वर्गविशेष की वोटों को डिपोजिट करने का काम सौंपा और वे इसमें सफल भी हुए जिनकी भूलभुलैया में 30 प्रतिशत वोटरों ने ऑख बंद कर अपना अनुबंध किया कि वे जब जहॉ, जिसको कहेंगे उन्हें डंके की चोट पर वोट दे दी जायेगी। इसी आश्वासन के वोट बैंक को उन नेताओं ने जो चुनाव घोषणा के बाद टिकिट से वंचित हुए दल बदलकर दूसरे दल से टिकिट पाकर अपना खोया जनाधार पाना चाहते थे, उनके द्वारा अपना ब्लेकमनी जमा किया ताकि खरीदे हुए जनाधार से रिकार्ड बहुमत से जीत सके।
गपोड़ी की वोट बैंक सरकार से अनुमति प्राप्त नहीं होने से अपने आप में रहस्यात्मक बन गयी, किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा है कि ईवीएम मशीन में या बैलेट बाक्स में डाली जाने वाली वोटों की गारंन्टी गपोड़ी कैसे ले सकता है, जबकि उसकी बैंक में वोट जमा ही नहीं होता, बल्कि उस नेता के खाते में जमा होता है जो चुनाव के समय प्रत्याशी हो और वोटर प्रत्याशी के क्षेत्र का निवासी हो। दूसरा प्रश्न इस वोट बैंक में बचत खाता नहीं होता है, फिक्स डिपाजित होता है, वह भी वोटर एवं प्रत्याशी के क्षेत्राधिकार पर निर्भर होता है, यहॉ गपोड़ी की वोट बैंक नेता या वोटर को बेबकूप नहीं बना सकती। जरा सी सुरसुरी सपोड़ी के कानों में पड़ी वह तुरन्त सपोट करने मैदान में कूद पड़ा और बोला हम अपनी वोट बैंक के कार्यक्षेत्र में अपने कर्मचारियों को पार्टियों एवं नेताओं के कार्यकर्ता के रूप में शामिल करवा कर शराब की बोतलों एवं नोट, कपड़े लत्ते आदि झुग्गी झोपडियों एवं गरीबों में बॅटवा कर जीत हेतु 20 प्रतिशत इन वोटों को फिक्स कर लेते है, बदले में कार्यकर्ताओं को जनपद पंचायतों, ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओ आदिं में सड़कें नालियों, भवनों के ठेके, परमिट, लायसेंस दिलवाने के साथ उनके चेहरे पर लाली लाने के लिये मनचाही पोस्टिंग, बच्चों के दाखिले, थाने की कृपादृष्टि आदि का लाभ सूद में दिलाते है।
आखिरी बात ‘‘गपोड़ी एण्ड सपोड़ी वोट बैंक‘‘के लिये राजनैतिक सौदेवाजी करने वाले गपोड़ी को अपनी वोट बैंक को राष्ट्रीय दर्जा दिलाये जाने के लिये सौ करोड़ रूपये की धनराशि जुटाना अनिवार्य शर्त थोप दी। हिसाब गपोड़ी की अंगुलियों पर है कि देश की एक सौ चालीस करोड़ जनता को बेबकूप नहीं बना सकते है परन्तु एक सौ आदमी में से 10 आदमियों को आराम से मूर्ख बनाया जा सकता है जिनके दम पर पलक झपकते ही उनका ‘‘गपोड़ी एण्ड सपौडी वोट बैंक की आधारशिला रखी जाकर देश के प्रत्येक वार्ड,नगर, जिले, प्रदेश को कवर करता हुआ यह बैंक राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय स्वरूप लेकर चुटकी बजाते ही वोट बैंक कारोबार चौमुखी विकास करते हुए अनेक देशों को कर्ज बॉटने की ओर अग्रसर होगा।
आत्माराम यादव