गपोड़शंख का करामाती जूता  

आत्माराम यादव पीव

थाने में दरोगा से मिलते ही गपोड़शंख फूटे की तरह फूटने लगा, हुजूर गजब हो गया मेरा एक जूता बिना मुझसे कहे कहीं भाग गया है! जूता भाग गया, क्या गजब ढाते हो, अभी तक लड़के लड़की भागते थे, जूता कैसे भागेगा, दरोगा ने डपट लगाई। गपोडशंख बोला-पता नही, हुजूर, पर ऐसा ही हुआ है। एक जूता मेरे पैर में है और एक जूता भाग गया। दरोगा गुस्से से तेज आवाज में बोले-थाने में मजाक करते शर्म नहीं आती जो ऐसी बेहूदा बातें कर रहे हो। अरे भई जूता किसी ने चुरा लिया होगा, पर जूता भाग गया, यह कैसे हो सकता है। गपोड़शंख बोला-जी हुजूर किसी ने चुराया नहीं, जूता खुद भागा है। मैंने रात को दोनों जूतों की अच्छी पालिस कर चमकाया था परन्तु दाए जुते में कम पालिस होने से उसकी चमक कम थी जिसपर बॉए पैर के जूते ने उसे ताना कसा, देख मालिक मुझे कितना चाहता है मुझे चमकाया तुम्हें यूं ही छोड दिया, उनका झगडा अलसुबह पॉच बजे ज्यादा जोर से होने लगा जिसे सुन मेरी नींद खुल गयीं। मैं बिस्तर से उठकर जूतों के पास आया तो देखता हॅू कि मेरे बॉए पैर का जूता अपने स्थान पर है और दॉए पैर का जूता वहॉ  नहीं है। घर के बाहर गली में देखने पर मुझे आभास हुआ कि मेरा जूत भागा हुआ जा रहा है, बस मैंने मैंने बॉए पैर के जूते को पैर में पहनकर उसके पीछे भाग लगायी, पर वह किसके साथ भागा जा रहा है, इसका पता नहीं चल सका।

गपोढ़शंख शहर का जाना माना खोजी जासूस ही नहीं मीड़िया का दॉया हाथ है जिसकी खबरें आये दिन अखबारों में छपती थी, जिसमें उसका जिक्र करने से पत्रकारों की नाक नीची न हो इसलिये वे गपोड़शंख की खबरों को ‘‘सूत्रों के हवाले से‘, ‘‘मिली जानकारी के अनुसार‘‘, ‘‘प्राप्त जानकारी अनुसार,‘‘आदि वैशाखियों से विस्फोटक बनाकर खूब वाहवाही बटोरते थे। इसलिये गपोड़शंख के एक जूते के घर से भाग जाने की बात पर मीडिया को सॉपसूंघ गया और दरोगा भी कोई रिस्क न लेकर मामले की गंभीरता को ध्यान में रख विवेचना के बाद ही निर्णय लेने की स्थिति में थे। गपोड़शंख ने अपने जूते का किस्सा दरोगा को सुनाना जारी रखा और बताया कि उस सुबह चमत्कारिक रूप से अपने दॉए पैर के जूते को भागता देख, मैं भी उसका पीछा करते हुये घर से निकला। गपोड़शंख दरोगा को बता रहा था मेरा जूता सतरास्ते से करबलाघाट तक जाते दिखा, आखिर करबा घाट पर रूका तो देखा कि रेत ढोकर ला रही ट्राली के पीछे जूता बॅधा है, पास जाने पर वह किसी ओर का निकला। कई ट्रालियॉ चप्पल-जूतों को ऑगे-पीछे लटकाये रेत लिये शहर से दौड रही थी, मैंने हर ट्राली का पीछा किया पर किसी में मेरा जूता नहीं दिखा, मैं हताश होकर नगर कें दो नम्बरी वार्ड में अपना जूता तलाशने लगा और विचार करने लगा, कि मेरे जैसे कितनों के जूते-चप्पलें गायब होकर डम्फरों-ट्रालियों के लिये कवच बनकर उनकी कमाई का साधन बने है पर लोग अगर अपने जूतें-चप्पलों के गायब होने से उनकी तलाश में नहीं निकले तो यह उनकी अपने जूतों से बेरूखी है, मैं इतना बेरूखा नहीं इसलिये अपने जूतों को अपने पैरों तक नहीं पहुॅचा कर उनका सम्मान न करूॅ इतना बेमतलवी नहीं हॅू।

मंदिरों की राजधानी दो नम्बरी वार्ड में जूते की तलाश में मुॅह लटकाये घूम रहे मुझ हैरान-परेशान को  ढेंचू ढेचू चिल्ला रहे एक बूढे, जख्मी, बीमार गधे ने आवाज दी मैं उसके पास पहुॅचा तब उसने अपनी बिरादरी के गधों की ओर देखते हुये लताड़ा देखों तुम कामचोर हो, मस्त हो, पर मैं बीमार होकर भी जूता तलाशने में मदद करूॅगा। गपोड़शंख ने बताया कि मैं बीमार, बूढ़े जख्मी गधे के साथ जाने लगा, तब गधे ने कहा मुझपर सवार हो जाओ, मैं तुम्हारा खोया जूता जरूर तलाश करवा दॅूगा। वह शहर के अनेक मोहल्लों के कचरेघरों, मंदिरों के बाहर जूते को देखता हुआ नर्मदा घाट पहुॅचा सीढ़ियों पर बहत सारे कुत्ते श्रद्धालुओं के स्नान के बाद पूजापाठी और प्रसादी चढ़ाते समय प्रसाद से अपना पेट भरने की जुगाड़ में दिखे। कहीं कहीं कचरों के ढेर में सुअर दिखे तो पर्यटन घाट का वह प्रसिद्ध नाला जिसे आज तक कोई सरकार बद नहींं कर सकी और उस नालें से शहर के लोगों का मलमूत्र का पानी गटर के रूप में नर्मदा में मिल कर लोगों की आस्था पर चोट करता हुआ उनके दिलों में नासूर सा चुभ रहा है एवं सरकार की अकर्मठता का जिंदा सबूत है, वहॉ भोजन की लाईन में अनेक सुअर मौजूद थे तो कुछ अपना पेट भरकर घाट पर आराम भरमाते तो कुछ गटरमस्ती करते दिखे, जिसमें मेरी मदद को आया गधा सभी ओर सूंघकर, देखते हुये मेरे जूते की तलाश में कुत्तों की कुत्ताई में अनेक घरों से मुंह में दबाकर लाये जूते-चप्पलों को तहस नहस कर बदला लेते देखते और उनमेंं मेरा जूता तलाशता रहा, जो नहीं मिला।

गपोड़शंख ने दरोगा को बताया पर्यटन घाट पर अनेक बिल्लियॉ संत बनी मिली जो चूहों के बच्चों को पालना-पोसना, उन्हें नहलाना, भोजन कराने के साथ वे दूध की रखवाली में लगी दिखी। उन बिल्लियों की मुखिया ने गधे पर तरस खाकर  एक दीपक दूध दिया जिसे  गधे के जख्मों पर लगाने पर वह स्वस्थ्य हो गया, पर ये क्या उस दीपक में से दूध का फब्बारा फूट पड़ा जिसमें पूरा घाट दूध से नहा गया। मुझे मेरा जूता नहीं मिला तब तंदुरस्त हुये गधे ने मुझे ऐसी दुलत्ती मारी की सीधा नर्मदा के तल में घूमता हुआ, पल्लेपार पहुॅचा जहॉ रेत के डंफरों में जूता तलाशता हुआ एक नामचीन नेता के डम्फर के सामने काले तांत के पक्के धागे से आगे बंधा हुआ मेरा जूता दिखा जिसमें डम्फर पर लिखा था, ‘‘लटक मत, पटक दॅूगी‘‘  तथा पीछे लिख रखा था ‘‘दम है तो क्रास कर नहीं तो बर्दाश्त कर।‘‘ दरोगा साहिब मेरा जूता मिल गया है पर जैसा कि डम्फरवालें सरकार को पैरों में रखकर प्रशासन को अपनी जूतियॉ समझते है, वैसे ही मेरे जूते को लालच देकर कि मर्द के पेरों में बहुत हुआ अब कोमल नारी के स्पर्श से तुम्हारा जीवन आनन्द से भर देंगे, मेरे जूते को बहकावे में लेकर तत्काल डम्फर को  बुरी नजर से बचाने के मेरा जूता लटका कर जूते की ऑखों में धूल झौंकते हुए लिखा कि ‘‘लटक मत पटक दॅूगी‘‘ मतलब वह विश्वास करें कि मर्द के नहीं जनाना पैरों में उसे स्थान मिला है।

गपोड़शंख रूआसा होकर दरोगा से विनती करता है कि साहब मेरा जूता मुझे पूरी दुनिया की सैर कराता था, अब मैं अपने प्रिय जूते के बिना दुखी हॅू, एक जूता मेरे पास है और एक रेत के डम्फर को अपनी पीट पर लादे सरपट भाग रहा है। आपने जगह-जगह केमरे लगाये है इसलिये ‘‘दम है तो क्रास कर, नहीं तो बर्दाश्त कर ‘‘। मुझमें इतना दम नहीं कि मैं उस डम्फरवाले से क्रास कर सकॅू और वह मेरे जूते का इस्तेमाल यू करें तो उसे भी बर्दास्त करने की मुझमे हिम्मत नहीं है अतएव धमकी देने वाले उस जूता चोर डम्फर स्वामी पर कार्यवाही की जाए एवं इस बात को भी संज्ञान में लिया जाए कि मेरे जैसे अनेक लोग है जिनके जूते-चप्पलें इन्हें बुरी नजर ही नहीं अपितु आपकी नजर से भी बचाकर इनकी काली कमाई के पहाड़ खड़ा कर रही है पर सॅख्त कार्यवाही हो। मैं गपोड़शंख खुद को ठगा महसूस करता हॅू  इसलिये अर्जी देने आया हॅू कि मेरे जूते को बहला-फुसलाकर जिस प्रकार पल्लेपार के एक बड़े नेता अपने डम्फर के गले का हार बनाकर नीचे लटकाये हर बुरी नजर से बचे है, उनसे मेरे जूते से काम लिये जाने पर हर्जा-खर्चा दिलाया जाकर जूता वापिस कराया जाये ताकि मैं अपने जूते की सेवायें खुद प्राप्त कर सकॅू। जब से गपोड़श्ांख ने थाने में अपनी यह अर्जी दी है तब से शहर के हर प्रमुख चौराहों पर लगे तेजतर्राट केमरों से ‘‘कई सालों से खुद को सीना तानकर छिपाने वाले रेत चोर टेक्टर-ट्रालियो, डम्फरों, जेबसी मशीनो आदि से काली कमाईवालों को लेकर पुलिस महकमें, जिला प्रशासन के छोटे से लेकर हर बड़े अधिकारियों के बीच सास-बहू की तरह चौबीसों घन्टे जूतिया चलना शुरू हो गयी है‘‘ और गपोड़शंख के जूते को करामाती जूते का नाम दिया जाकर सभी के दोनों हाथ घी में और मुंह कडाही में होने से वे अपनी अपनी जयकार कर रहे है।

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