गोरक्षा या गोरखधंधा

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गत छह अगस्त को नरेन्द्र मोदी ने अपने ‘टाउनहाल भाषण’ नामक कार्यक्रम में गोरक्षकों के संदर्भ में ‘गोरखधंधा’ और ‘गोरक्षा की दुकानें’ जैसी गंभीर टिप्पणियां की हैं। वे मानते हैं कि कुछ लोग रात में किये जाने वाले काले धंधे छिपाने के लिए दिन में गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं। उन्होंने राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि वे ऐसे लोगों के कच्चे चिट्ठे तैयार कर उन्हें समुचित दंड दें।
नरेन्द्र मोदी की इस टिप्पणी के पीछे उनकी मजबूरी समझ में आती हैं। वे देश के प्रधानमंत्री हैं। पहली बार भा.ज.पा. को उनके नेतृत्व मे पूर्ण बहुमत मिला है। उनके सामने अगली बार भी इसे बचाये रखने की चुनौती है। कुछ समय बाद उ.प्र. और पंजाब जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं। बिहार में हार के बाद वे समझ गये हैं कि यदि बड़े राज्यों में उनकी समर्थक सरकारें नहीं बनीं, तो 2019 में दिल्ली का किला जीतना कठिन होगा। यद्यपि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में मुद्दे अलग होते हैं; लेकिन राज्यों में यदि अपनी पक्षधर सरकारें हों, तो लोकसभा चुनाव में लाभ होता ही है।
भारत की राजनीति में जाति और मजहब का बहुत प्रभाव है। अतः उन मतदाता समूहों की अनदेखी नहीं की जा सकती, जो किसी के भी पक्ष या विपक्ष में एकमुश्त वोट देते हैं। मोदी को यह तो पता ही है कि मतदाताओं का एक मजहबी समूह उन्हें आसानी से वोट नहीं देगा। ऐसे में हिन्दू समाज के वंचित वर्ग को भी नाराज करना पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेने जैसा होगा। मोदी की टिप्पणी इसी संदर्भ में की गयी लगती है। यद्यपि गोरक्षा के नाम पर मारपीट के शिकार सभी धर्म, मजहब और जाति वाले होते हैं; पर मीडिया उत्तेजना फैलाने वाली बातों को अधिक महत्व देता है। इससे टी.वी. के दर्शक और अखबार की बिक्री बढ़ती है। उ.प्र. के दादरी में अखलाक की हत्या और गुजरात के ऊना में हुई निर्धन वर्ग के युवकों की पिटाई को इसी लिए अधिक उछाला गया।
modi-gorakshaभारत में केवल गाय ही नहीं, तो अन्य मृत पशुओं का निस्तारण भी एक बड़ी समस्या है। समाज का एक वर्ग उनकी खाल तथा अन्य अंगों को अलग कर अपनी आजीविका चलाता है। इनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों हैं। इस प्रकार वे पूरे गांव पर बड़ा उपकार करते हैं। अन्यथा मृत पशु दो-चार दिन में सड़ और गलकर सबको बीमार कर देगा। गिद्धों की समाप्ति के कारण यह काम अब मनुष्य के हिस्से में ही आ गया है; पर मृत गाय की खाल उतारना तथा खाल के लालच में उसे मार देना, दोनों को एक तराजू पर नहीं तोला जा सकता। यहां यह कहना भी उचित होगा कि किसी भी गोरक्षक को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। यदि वह कोई अवैध काम होते हुए देखता है, तो उसे स्वयं मारपीट करने की बजाय पुलिस को बताना चाहिए। यह भी गोरक्षा और गोसेवा ही है।
मोदी ने अपने भाषण में और भी कई बातें कहीं; लेकिन मीडिया ने गोरक्षा को लपक लिया। इसके बाद दूरदर्शन के हर चैनल पर गोरक्षा बनाम गुंडागर्दी, गोरक्षा या गोरखधंधा, गोरक्षा का काला धंधा, दिन में रक्षक रात में भक्षक, दिन में उजले रात में काले.. आदि शीर्षकों से बहस होने लगी। भा.ज.पा. और हिन्दू विरोधी लोग मोदी की बात को ही कोड़ा बनाकर गोरक्षकों पर पिल पड़े। इससे सभी गोप्रेमी स्वयं को अपमानित अनुभव कर रहे हैं।
मोदी ने गोभक्त, गोसेवक और गोरक्षक की अलग-अलग परिभाषा की। दुनिया भर में हिन्दू प्रायः गोभक्त हैं। दक्षिण या पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्र को छोड़ दें, तो प्रायः हिन्दू गोमांस नहीं खाते। खाने वालों को भी यदि समझाएं, तो वे मान जाते हैं। गोसेवक वे हैं, जो अपने घर या गोशाला में गाय की सेवा करते हैं। आजकल कुत्ता पालना आसान है; पर गाय नहीं। गोशालाओं को भी नगरों से बाहर किया जा रहा है। ऐसे में गोसेवा कैसे हो ? धनी लोग गोशाला की कुछ गायों को गोद लेकर उनके चारे आदि का प्रबन्ध कर देते हैं; पर सच्चे गोसेवक तो वे छोटे किसान हैं, जिनके घर में गाय है और जो बैलों से खेती करते हैं।
तीसरा वर्ग गोरक्षकों का है। मोदी के निशाने पर मुख्यतः यही लोग थे। भारत में गोवंश का डिब्बाबंद मांस दुनिया भर में भेजने का अरबों रु. का कारोबार है। सभी धर्म, मजहब और जाति के लोग इसमें लगे हैं। अधिकांश राज्यों में गोहत्या प्रतिबंधित है। अतः बड़ी संख्या में गोवंश बंगलादेश ले जाया जाता है। यहां कुछ हजार रु. में ली गयी वृद्ध गाय या बैल और बछड़ा वहां एक लाख रु. में बिक जाता है। उसका मांस ही नहीं, तो सींग, खुर, बाल और आंत आदि भी बिकते हैं। अतः गो-तस्करी का यह अवैध धंधा बहुत मुनाफा देता है।
कई राज्यों में बूढ़े, अपंग या बीमार गोवंश को काटना वैध है। गोमांस के व्यापारी सरकारी पशु चिकित्सकों को पैसे देकर जवान गोवंश को भी बूढ़ा, बीमार या अपंग लिखवा देते हैं। कई बार तो अपंग बनाने के लिए वे स्वयं उसकी टांग तोड़ देते हैं। अर्थात गोरखधंधा करने वाले गोरक्षक नहीं, गोहत्यारे और गाय के अवैध कारोबारी हैं। काश, मोदी जी ये भी बताते कि इनके विरुद्ध वे क्या कर रहे हैं ? आजकल गोमूत्र और गोमय से खाद के अलावा दैनिक उपयोग के सैकड़ों पदार्थ बन रहे हैं। यदि सरकार इसमें रुचि ले, तो गोवंश की हत्या स्वयं ही बंद हो जाएगी। क्या मोदी जी इस दिशा में कुछ कर रहे हैं ?
अधिकांश गोरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद या बजरंग दल जैसी किसी बड़ी संस्था से सम्बद्ध नहीं होते। गोवंश की रक्षा वे धर्म समझते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों में गोसेवा को महान पुण्य कहा गया है। श्रीराम के पूर्वज राजा दिलीप को नंदिनी गाय की सेवा से ही संतान प्राप्त हुई थी। श्रीकृष्ण के गोपाल रूप को कौन नहीं जानता ? ऐसे चरित्रों को पढ़कर जिनके मन में गोरक्षा का भाव जागता है, उन पर अभद्र टिप्पणियां करना अनुचित है। फिर गोरक्षा के नाम पर पहरा देने या तस्करों के वाहन रोकने वाले प्रायः निर्धन और वंचित वर्ग से ही होते हैं। तथाकथित ऊंची जाति या पैसे वाले लोग वाणी विलास तो कर सकते हैं; पर प्रत्यक्ष गोरक्षा तो स्वभाव से वीर और जुझारू लोग ही करते हैं। मोदी जी को याद होगा कि गोधरा कांड के बाद गुजरात में मजहबी गुंडों को उन्हीं की भाषा में सबक सिखाने वाले अधिकांश लोग इसी वर्ग के थे।
इतिहास गवाह है अत्याचार और अनाचार के विरुद्ध संघर्ष सदा निर्धन वर्ग ने ही किया है। आजकल इन्हें अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ा वर्ग आदि कहते हैं। श्रीराम के साथ रावण के विरुद्ध युद्ध करने वाले वनवासी वीर ही थे। श्रीकृष्ण ने भी ग्वाल बालों के साथ मिलकर कंस द्वारा भेजे गये राक्षसों का वध किया था। शिवाजी के अधिकांश सैनिक वीर मावले ही थे। महाराणा प्रताप के सैनिकों के वंशज आज भी ‘गाड़िया लुहार’ के रूप में गांव और शहरों में घूमते मिल जाते हैं। वासुदेव बलवंत फड़के ने अंग्रेजों को भगाने के लिए रामोशी जनजाति के युवकों को एकत्र किया था। अंग्रेज इतिहासकारों ने जिन्हें पिंडारी कहकर डाकुओं की श्रेणी में रखा, वे उनके विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करने वाले क्रांतिवीर थे। पुराने अभिलेखों में जिन्हें जरायमपेशा या अपराधी जाति कहा जाता है, वे सब विदेशी और विधर्मियों के विरुद्ध संघर्ष करने वाले योद्धा थे। पीढ़ी-दर-पीढ़ी अन्याय के विरुद्ध लड़ना उनका स्वभाव बन गया है। उन्हें मोदी जी अपराधी कह रहे हैं। ये कहां का न्याय है ?
ये ठीक है कि हर जाति, बिरादरी, वर्ग और समुदाय में अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी होते हैं। कुछ गोरक्षक भी ऐसे होंगे; पर इस कारण सभी गोप्रेमियों को अपराधी नहीं कह सकते। सैकड़ों सांसदों और विधायकों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। पहले तो बड़े अपराधी और माफिया लोग अपने संरक्षण के लिए कुछ नेताओं को चुनाव जिताने में अपनी तरह से सहयोग करते थे; पर अब वे स्वयं ही चुनाव लड़कर सांसद और विधायक बनने लगे हैं। उनमें से कई लोग जेल में भी हैं। तो क्या मोदी जी समेत सभी राजनेताओं को अपराधी मान लिया जाए ? और विजय माल्या या सहाराश्री जैसे खरबपतियों को मोदी जी क्या कहेंगे, जो अपराधी होकर भी ऐश कर रहे हैं। पुलिस-प्रशासन की सुस्ती और भ्रष्टाचार के किस्से हर दिन अखबारों में छपते हैं। यदि ये सब खराब हैं, तो मोदी जी इस तंत्र को भंग क्यों नहीं कर देते ? इसलिए किसी वर्ग को अपराधी कहने से पहले सौ बार सोचना चाहिए।
गोरक्षा एक महान पुण्य का काम है। छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविन्द सिंह जी, सद्गुरु रामसिंह कूका, गांधी जी, विनोबा भावे, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, लाला हरदेव सहाय, महात्मा रामचंद्र वीर, संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी.. आदि सैकड़ों महापुरुषों ने गोरक्षा के लिए अथक प्रयत्न किये हैं। सात नवम्बर, 1966 को दिल्ली में गोरक्षा के लिए विराट प्रदर्शन हुआ था। वहां इंदिरा सरकार की गोलियों से सैकड़ों संत तथा गोभक्त मारे गये थे। 2016 में उस घटना को 50 साल पूरे हो रहे हैं। ऐसे में मोदी जी का वक्तव्य गोभक्तों के घावों पर नमक छिड़कने वाला है। इस भूल के प्रक्षालन का एक ही उपाय है कि आगामी सात नवम्बर को वे पूरे देश में गोवंश की हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दें।

– विजय कुमार

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