नीच राजनीति की पराकाष्ठा के दौर से गुज़रे लोकसभा चुनाव 2014

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-तनवीर जाफ़री-
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16वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनावों के परिणाम जो भी निकलें, परंतु घटिया, ओछी, निम्रस्तरीय, झूठ-फरेब, मक्कारी तथा व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप के जिस दौर से यह चुनाव अभियाजन गुज़रा निश्चित रूप से भारतीय चुनावों के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। पहले तो विज्ञापनों पर अरबों रुपये खर्च कर देश की जनता को गुजरात के विकास मॉडल का सच्चा-झूठा आंकड़ा पेश कर यह समझाने की कोशिश की गई कि गुजरात देश का सबसे अधिक उन्नतिशील राज्य है। पूरे देश को गुजरात मॉडल के रूप में प्रगति के मार्ग पर लाया जाएगा। उसके पश्चात चुनाव अभियान में सांप्रदायिकता व झूठे आरोप-प्रत्यारोपों का रंग भरने की कोशिश की गई और चुनाव के अंतिम चरण में तो उस समय हद हो गई जबकि ‘नीच राजनीति’ जैसे शब्द के अर्थ को अनर्थ के रूप में प्रचारित करते हुए सबसे निचले स्तर की राजनीति करने का प्रयास किया गया। कहना गलत नहीं होगा कि बावजूद इसके कि सभी राजनैतिक दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने में, एक-दूसरे को बदनाम करने में तथा एक-दूसरे पर बढ़त हासिल करने में हर प्रकार के हथकंडे अपनाने में काफी महारत रखते हैं। परंतु इस बार के चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी की आश्चर्यचकित कर देने वाली निम्नस्तरीय चुनाव प्रचार शैली ने सभी दलों को काफी पीछे छोड़ दिया। नरेंद्र मोदी इस योजना का अकेले हिस्सा नहीं रहे बल्कि पूरी भाजपा तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार के सहयोगी संगठन उनके साथ इस योजना का हिस्सा रहे।

नरेंद्र मोदी द्वारा अमेठी में राहुल गांधी के विरुद्ध किए गए चुनाव प्रचार के बाद राजीव गांधी पर किए गए नरेंद्र मोदी के हमलों के जवाब में प्रियंका गांधी ने मोदी के भाषण का जवाब देते हुए कहा था कि मोदी ने अमेठी की धरती पर मेरे शहीद पिता का अपमान किया है। अमेठी की जनता इस हरकत को कभी माफ नहीं करेगी। इनकी ‘नीच राजनीति’ का जवाब मेरे बूथ कार्यकर्ता देंगे। अब प्रियंका के इस बयान में कहीं भी जाति शब्द का न तो संबोधन नज़र आता है न ही यह वक्तव्य किसी विशेष जाति की ओर इशारा कर रहा है। परंतु नरेंद्र मोदी जैसे चतुर नेता ने बड़ी ही चतुराई के साथ ‘नीच राजनीति’ शब्द को नीच जाति से जोड़ डाला। और इसके जवाब में बिहार में अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने लोगों की भावनाओं को भडक़ाने की गरज़ से यह कहा कि मेरा चाहे जितना अपमान करो पर मेरे नीच जाति के भाईयों का अपमान मत करो। क्या नरेंद्र मोदी का यह जवाब प्रियंका गांधी की बात का जवाब माना जा सकता है? इतना ही नहीं बल्कि मोदी ने नीची जाति संबंधी कार्ड को और आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा कि क्या नीची जाति में पैदा होना गुनाह है? जो महलों में रहते हैं वे नीची जाति का मखौल उड़ाते हैं। हालांकि प्रियंका व नरेंद्र मोदी के नीची राजनीति संबंधी बयानबाजि़यों के बीच राहुल गांधी ने बड़े ही गंभीर लहजे में यह समझाने की कोशश की कि नीच राजनीति का अर्थ आख़िर होता क्या है? राहुल ने कहा कि नीच कर्म होते हैं, सोच होती है। जाति नहीं। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी 2002 के गुजरात दंगों के बाद से लेकर अब तक सभी धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों व नेताओं के निशाने पर हैं। उनके विरुद्ध हर तरह की बातें की गई हैं व की जा रही हैं। परंतु देश के किसी भी व्यक्ति ने आज तक उन्हें नीची जाति से संबंध रखने वाला व्यक्ति कहकर संबोधित नहीं किया। जबकि मात्र वोटों के लिए उन्होंने स्वयं को नीची जाति का कहकर प्रचारित करने की कोशिश की ताकि वे दलित व पिछड़े वोट हासिल कर प्रधानमंत्री बनने के अपने सपनों को पूरा कर सकें।

नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी द्वारा की गई नीच राजनीति की व्याख्या का भी जवाब दिया। राहुल के जवाब में मोदी ने कहा कि नीच राजनीति वह कर रहे हैं जो लोग गोदामों में अनाज सड़ने दे रहे हैं। तथा राष्ट्रमंडल खेल में घोटाले कर रहे हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी अपने अभिनय रूपी अंदाज़ में तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संघ की देखरेख में आयोजित जनसभाओं में बड़े ही नाटकीय ढंग से अपनी बात को जनता तक पहुंचाकर मंच से उतरकर हैलीकॉप्टर में सवार होकर पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए बिना दूसरी जनसभा की ओर चले जाते थे। आम जनता उनकी एक पक्षीय बातों को सुनकर उनके द्वारा तैयार की गई कथित सुनामी लहर के वेग में बहकर नियोजित तरीके से मोदी-मोदी करती भी दिखाई देती थी। परंतु परिणाम जो भी हो तथा देश के दुर्भाग्यवश भले ही मोदी भारत के प्रधानमंत्री भी क्यों न बन जाएं परंतु वास्तव में नीच राजनीति करने का जो प्रदर्शन इन चुनावों में नरेंद्र मोदी व उनके सहयोगियों द्वारा किया गया है ऐसा घिनौना व ओछा चुनाव अभियान पहले कभी नहीं देखा गया। क्या एनडीए के शासनकाल में देश के अन्न भंडारों में अनाज नहीं सड़ा करते थे? अन्न भंडारों में अनाज सडऩे का मुख्य कारण गोदामों की कमी तथा स्थान का अभाव है। यह एक प्रशासनिक कमी है जिसे बड़ी गंभीरता के साथ पूरा करने की ज़रूरत है। केवल कांग्रेस या यूपीए के शासनकाल में ही अनाज नहीं सड़ते बल्कि लगभग प्रत्येक वर्ष ऐसी खबरें कहीं न कहीं से आती ही रहती हैं।

रहा सवाल राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटाले का तो निश्चित रूप से यह यूपीए सरकार के लिए एक शर्मनाक घटना कही जा सकती है। परंतु इन घोटालों में कई भाजपाई व प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल थे। दूसरी बात यह कि घोटालों के संबंध में नरेंद्र मोदी को केवल कांग्रेस या यूपीए अथवा गांधी परिवार पर निशान साधने से पहले घोटालेबाज़ों के अपने सिरमौर येदियुरप्पा, रेड्डी बंधु, श्री रामलूलू जैसे नेताओं पर भी नज़र डालनी चाहिए। स्वयं नरेंद्र मोदी के गुजरात मंत्रिमंडल में कई मंत्री तथा राज्य के कई सांसद व पार्टी पदाधिकारी ऐसे हैं जो लूट-खसोट, घोटालों, भ्रष्टाचार तथा विभिन्न गंभीर अपराधों के दोषी हैं। क्या यह सब नीच राजनीति के प्रतीक नहीं हैं? देश में एक तीसरी राजनैतिक शक्ति का उदय आम आदमी पार्टी के रूप में हो रहा है। यह पार्टी देश में व्यवस्था परिवर्तन तथा भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का दावा कर रही है। इस नवोदित राजनैतिक दल के उदय से क्या कांग्रेस तो क्या भाजपा सभी चिंतित नज़र आ रहे हैं। खासतौर पर भ्रष्टाचारियों व भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वालों की नींद हराम हो चुकी है। इसके संयोजक भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी अरविंद केजरीवाल हैं जो अपनी जान को जोखिम में डालकर देश की भ्रष्ट शासन व्यवस्था के विरुद्ध अपना परचम बुलंद किए हुए हैं। ऐसे व्यक्ति को भाजपाई कभी कांग्रेस की बी टीम का नेता बताते हैं तो कभी उसे अमेरिकी एजेंट कहकर संबोधित करते हैं। दिल्ली की सत्ता को ठोकर पर मारकर वाराणसी से नरेंद्र मोदी के विरुद्ध ताल ठोंकने का हौसला रखने वाले इस जांबाज़ व त्यागी नेता को भगौड़ा कहकर पुकारा जाता है। यह सब नीच राजनीति के हथकंडे नहीं तो और क्या हैं? स्वयं नीच राजनीति निम्नस्तरीय राजनीति तथा घटिया व ओछी राजनीति करने वाले लोग जब दूसरे चरित्रवान लोगों पर आक्रमण करने लगें खासतौर पर अपने में पाई जाने वाली कमियां उन्हें दूसरों में नज़र आने लगे, ओछी व नीच राजनीति का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है?

विक्कीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज का फ़र्ज़ी प्रमाणपत्र अपने पक्ष में प्रचारित करवाना नीच राजनीति का उदाहरण नहीं है? अमिताभ बच्चन की ओर से मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का फ़र्ज़ी प्रमाणपत्र जारी करना नीच राजनीति नहीं तो और क्या है? लालकृष्ण अडवाणी, जसवंत सिंह, मुरली मनोहर जोशी, केशुभाई पटेल, हरेन पांडया जैसे कई भाजपाई नेताओं का हश्र नीच राजनीति का परिणाम नहीं तो और क्या है?

नीच राजनीति का एक और उदाहरण देखिए। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक चुके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा गत् माह वाराणसी में संघ की सांस्कृतिक शाखा संस्कार भारती की ओर से कई नुक्कड़ नाटक आयोजित किए गए। इस आयोजन के लिए लक्ष्य नाटक कला मंच को नुक्कड़ नाटकों का जि़म्मा सौंपा गया। नमो-नमो मंत्र नामक इन नाटकों में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी को अपमानित करने की कोशिश की गई। इस नाटक हेतु एक प्रसिद्ध रंगमंच कलाकार हरीशचंद्र पाल को भी नाटक में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया था। पाल को केजरीवाल की भूमिका अदा करने का जि़म्मा सौंपा गया था। केजरीवाल की भूमिका में पाल के लिए बोला जाने वाला एक संवाद इस प्रकार था-सभा में जाने से पहले केजरीवाल रूपी किरदार पूछता है कि अंडे-टमाटर और पत्थर फेंकने वाले लड़कों की व्यवस्था हो गई है? यह तथा इस प्रकार के और कई संवाद ऐसे थे जिसे बोलने के लिए हरीशचंद्र पाल की अंतरआत्मा ने इजाज़त नहीं दी। और उन्होंने इस नाटक में काम करने से इंकार कर दिया। बाद में नाटयकर्मी पाल ने मीडिया को बताया कि वे केजरीवाल को जानते हैं इसलिए वे इस संवाद से कतई सहमत नहीं हैं। मात्र पैसों के लिए वे अपनी आत्मा को नहीं बेच सकते। इस प्रकार की और तमाम बातें इस बार चुनाव अभियान के दौरान देखी व सुनी गई हैं। जिन्हें देख व सुनकर इस निर्णय पर पहुंचा जा सकता है कि लोकसभा 2014 के चुनाव नीच राजनीति की पराकाष्ठा के दौर से गुज़रे हैं।

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