हाथ की दातुन से निपट कर आखिरी फोलक को थू …. कहने ही वाले थे कि चोखी
लामा बीच में आ धमके … न दुआ न सलाम सरहद पार की फायरिंग की मानिंद सवाल
दागा … बाबू आज का अखबार देखा … अनजान बालक सा चोखी का मुखारविंद तकता रह
गया … बाबू ! १०० दिन चूक गए और मैडम ने पूछ लिया है ‘फेंकू’ से … कहाँ
हैं ‘अच्छे दिन’ . हमने भी फोलक को दांतो बीच दबा कर जवाबी फायरिंग करते
हुए सवाल दाग दिया …. मियां सब्र करो ! ६० साल उर्फ़ २१९०० दिन राज किया
है मैडम के परिवार ने … उनसे तो किसी ने नहीं पूछा … ये अच्छे ….
बगल के तीन बस्ते कंधे पर लटका कर चोखी लामा बिफर पड़े … बाबू ! आप लोग
क्या जानो गरीब की अच्छे दिन की भूख को … मैडम ने तो गरीब की भूख को जाना
भी और इंतजाम भी कर दिया था … तभी से खाद्य सुरक्षा के ये तीन बस्ते हम
बगल में दबाए भटक रहे हैं … बेडा गर्क हो मुए चुनाव आयोग का ऐन वक्त पर
अड़ंगा डाल दिया …
लामा चपलियाँ चटकाते सरकारी राशन की दुकान ‘आनंद लाल के डिपो ‘की ओर चल
दिए …. शायद आज खुला हो ?