क्या अच्छे दिन आ गये हैं

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-मनमोहन कुमार आर्य-

आज देश में एक वाक्य गूंज रहा है। वह वाक्य है कि अच्छे दिन आ गये हैं। 16 मई, 2014 को लोकसभा के निर्वाचन के परिणाम सामने आये हैं और देश में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अथवा बीजेपी की ओर से चुनावों में यह नारा दिया गया था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। यह नारा बहुत लोकप्रिय हुआ और इसका सार्थक परिणाम निकला। सारे समीकरण बदल गये और ऐसा कहा जा रहा है जो कि सत्य प्रतीत होता कि देश में अधिकांश लोगों ने पूर्व की भांति सकुंचित दृष्टि को छोड़ कर क्षेत्रीयता, भाषा, जाति-बिरादरी आदि से ऊपर उठकर नरेन्द्र मोदी को अपना समर्थन दिया और पूर्ण बहुमत देकर मजबूत सरकार बनाने में अपनी भूमिका अदा की। सरकार बन चुकी है और उसने अपना कार्य आरम्भ कर दिया है। अभी तक के जो संकेत नरेन्द्र मोदी जी ने दिये हैं, उससे अच्छे भविष्य की कल्पना की जा सकती है। उन्होंने अनेक पूर्व परम्पराओं को तोड़कर नई परम्पराओं का श्रीगणेश किया है। आने वाले समय में वह क्या-क्या करेंगे, इसका अभी अनुमान लगाना कठिन है। जो भी हो, उन्होंने भारतीय जनता से जो वायदे किए हैं, उन्हें पूरा करने का दृढ़संकल्प उनमें दिखाई दे रहा है। वह सफल हों, इसके लिए देश की जनता का सहयोग व शुभकामनायें उनके साथ हैं। हम तो एक नये युग की शुरूआत देख रहे हैं। देश का जनतन्त्र 67 वर्ष पूरे करने वाला है। आज जो साधन उपलब्ध हैं वह पहले नहीं थे। हर व्यक्ति के अन्दर योग्यता व अयोग्यता का सम्मिश्रण हुआ करता है। पहले भी सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री आदि कुछ नेता ऐसे हो गये हैं जिन्होंने अपने ज्ञान, बल, सामर्थ्य, देशहित की भावना, स्वार्थ से ऊपर उठकर ऐसे निर्णय लिए जिनके कारण बुद्धिजीवी समाज में उनका सर्वोपरि स्थान है। मनुष्य अपने पद से महान नहीं होता, अपितु अपने ज्ञान, देश व समाज के प्रति समर्पण, कार्य क्षमता व कार्यों का निष्पादन एवं देश व समाज हित के कार्यों के आधार पर बड़ा होता है। हम समझते हैं कि मोदीजी महर्षि दयानन्द के विचारों, सिद्धान्तों व मान्यताओं तथा इन दो महापुरूषों को अपना आदर्श बनाकर कार्य करेंगे तो देश को लाभ होगा। इसकी हम उनसे पूरी आशा करते हैं। इसके लिए देश में उठने वाले अलगाववादी आन्दोलनों को शक्ति से कुचलना, शिक्षा पद्धति में परिवर्तन कर उसे देश भक्ति व समाज हित की भावनाओं से युक्त करना तथा समान शिक्षा आदि पर ध्यान देना होगा। दूसरी ओर देश में युवकों के लिए रोजगार व व्यवसाय बढ़ाना और यह प्रयास करना कि बेरोजगारी समाप्त हो सके। मनुष्य यदि ठान ले तो करने से क्या नहीं हो सकता, असम्भव शब्द आलसी व पुरूषार्थहीन लोगों के द्वारा प्रयोग किया जाता है। मनुष्य यदि दृढ़निश्चय कर लें तो सब कुछ सम्भव है। यह भी करना पड़ सकता है कि सुविधाओं से परिपूर्ण लोगों की सुविधाओं को कुछ कम करके सुविधाहीन बन्धुओं को सुविधायें देनी पड़े, इसके लिए भी तैयार रहना चाहिये। सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार, पुरूषार्थहीनता व अकर्मण्यता को सहन नहीं किया जाना चाहिये। त्वरित कठोर दण्ड होगा तभी सुधार सम्भव है अन्यथा जैसा है वैसा रहेगा। देश की 98 से 99 प्रतिशत जनता भ्रष्टाचार से मुक्त समाज व देश चाहती है। नरेन्द्र मोदी की छवि को देखते हुए हमें लगता है कि भ्रष्टाचार पर लगाम अवश्य लगेगी और भ्रष्टाचार से सम्बन्धित कानून भी बदले जायेंगे।

जब हम अच्छे दिनों की बात करते हैं तो इसका अर्थ होता है कि सबको शिक्षा, आवास, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, सुरक्षा, व्यवसाय व भ्रष्टाचार से मुक्त समाज व देश होता है। सबके साथ निष्पक्षता व न्याय पर आधारित व्यवहार हो। आजादी के बाद से शायद ऐसा नहीं हुआ, या इस सिद्धान्त के पालन में जाने अनजाने उपेक्षा की गई। देश के आन्तरिक व बाह्य शत्रुओं के प्रति सरकार कठोर हो जिससे कोई अनुचित कार्य करना तो दूर, उसे करने के बारे में सोचने पर ही उसकी आत्मा कांप जाये। यह सम्भव है यदि हमारे राजा व राज्याधिकारी अर्थात् मंत्रीपरिषद् दृढ़इच्छाशक्ति से परिपूर्ण हो। यह सब कुछ होने के साथ सभी बालकों व विद्यार्थियों के लिए व समाज के सभी मनुष्यों के लिए षिक्षा व समाजिक जगत में आध्यात्मिक विषय की अनिवार्यता भी अनुभव करते हैं। बच्चे को पहली कक्षा में ही ईश्वर व आत्मा के बारे में वह कुछ बता देना आवश्यक है जो उसकी बुद्धि की क्षमता में है। वह ईश्वर का सही प्रकार से ध्यान करना सीखे और वायु षुद्धि व अपने व दूसरों के रोग निवारण तथा अपनी आत्मा को बलवाने बनाने के लिए हवन, यज्ञ, अग्निहोत्र, याग आदि को जाने व करे, तभी शिक्षा पूर्ण कही जा सकती है। इस विषय को साम्प्रदायिकता के क्षेत्र से बाहर निकाल कर इस पर सभी मतों व मजहबों में खुली बहस कराई जा सकती है। जो सत्य है उसे स्वीकार किया जाना चाहिये। यदि किसी मत की पुस्तक में वह बात नहीं है या उसके विपरीत है, उस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, इसलिए कि जब वह पुस्तकें अस्तित्व में आईं थी, उस समय की परिस्थितियों के कारण व उस समय की सोच व बुद्धि के कारण वैसा किया गया था। आज समय बदल चुका है और सृष्टि के नये-नये तथ्य व रहस्य सामने आयें हैं जो निष्चित रूप से पूर्वकालिक सामन्य व महापुरूषों को विदित नहीं थे या उनको उन विषयों का विपरीत ज्ञान था। हम तो यहां तक सोचते हैं कि आज पूरे देश में सभी मतों, धर्म व मजहबों में एक खुली बहस इस बात को लेकर होनी चाहिये कि मृतक शरीर का अन्त्येष्टि, दाह संस्कार, नदी के जल में समाधि देना, भूमि में समाधि देना या दफनाना, इनमें कौन की बात वैज्ञानिक दृष्टि से उचित है व देश व समाज के हित में हैं। संकीर्णता तो समाप्त करनी ही होगी, अन्यथा नई-नई समस्यायें जन्म लेंगी। वर्तमान में कुद मत व सम्प्रदायों में धार्मिक संकीर्णता चरम पर है। स्वार्थी, बुद्धिहीन, किसी एक मत के मानने वाले तो समाज सुधार के कार्यों का विरोध करेंगे ही, लेकिन क्या ऐसा करना उचित व देश व समाज के हित में है या नहीं, इन विषयों पर चर्चा करनी होगी। यदि कोई फिर भी नहीं मानता तो न माने पर अन्य बुद्धिमान, निःस्वार्थ व देशहितैषी लोग तो उन्हें माने। हम जानते हैं कि हमारे देश के सब लोगों के पूर्वज ही नहीं, सारी दुनिया के पूर्वज एक थे, एक मत, वैदिक मत को मानने वाले थे। इस तथ्य का ज्ञान हो जाने के बाद तो सबको प्रसन्न होकर वेदों के मत को, जो कि पूर्ण वैज्ञानिक और आज की परिस्थितियों के अनुकूल व सारी सृष्टि के कल्याणकारी है, उसे सहर्ष मानना चाहिये था, परन्तु विश्व, देश व समाज का दुर्भाग्य है कि कुछ लोगों के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है। इस पर सतत विचार की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिये और हम समझते हैं कि पाश्चात्य देशों में प्रचार से हमें सफलता मिल सकती है जिसका कारण कि वहां के लोगों का अधिक गुण ग्राहक होना है।

हम समझते हैं कि अच्छे दिन तभी आ सकते हैं जब प्रत्येक विषय पर देश के कर्णधार, राजनैतिक, धार्मिक, मजहबी, विद्वान, सभी व अनेक विषयों के विशेषज्ञों परस्पर चिन्तन व मनन कर निर्णय करें। किसी विषय को अनिर्णित न छोड़ें। विचार व चिन्तन से धार्मिक, सामाजिक व अन्य सभी विषयों का निर्णय किया जा सकता है। वैदिक सत्य मान्यता के अनुसार अभी इस सृष्टि का लगभग 2.36 अरब वर्षों का भोग करने का काल बचा हुआ है। क्या आज के मत, धर्म व सम्प्रदाय इतने काल तक बने रहेंगे, कदापि नहीं। भविष्य में केवल एक पूर्ण सत्य मत ही ठहर पायेगा और असत्य मत निष्चित रूप से समाप्त होंगे। इसका कारण है कि विज्ञान निरन्तर प्रगति कर रहा है। एक समय ऐसा अवश्य आयेगा और उसके आने में कुछ दशाब्दियां या शताब्दियां लग सकती हैं। तब लोग पूर्ण सत्य को जानकर सत्य को स्वीकार करेंगे। जिस मत को स्वीकार करेंगे उनमें वेदमत भी हो सकता है जिसका कारण इसका प्रादूर्भाव ईश्वर व ऋषियों से होना है। अन्य मतों की ऐसी स्थिति नहीं है। यदि इस बात को समझ सकें तो निर्णय जल्दी किया जा सकता है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह सभी को सद्बुद्धि प्रदान करें जिससे वह दिन शीघ्रातिशीघ्र आये।

नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से हम कह सकते हैं कि अच्छे दिनों की कुछ शुरूआत हो रही है। मंजिल काफी दूर है और इसमें समय लगेगा। अच्छे दिनों का मतलब है कि सबके साथ न्याय, अज्ञान व अविद्या का नाश, विद्या की वृद्धि, सत्य का ग्रहण व असत्य का त्याग, सत्य को मानना व मनवाना, वेदों के ज्ञान पढ़ना, समझना व उसे आगे बढा़ना, असत्य व अज्ञान को हटाना, भगाना व दूर करना, अभाव को दूर करना व जीवनोपयागी आवष्यक पदार्थों की सबके लिए उपलब्धता सुनिष्चित करना आदि। कुछ अच्छे दिन तो आ ही चुके हैं जिसका बुद्धिजीवियों को अनुभव हो रहा है। बहुत से कार्य करने के लिए शेष है। अच्छे दिनों में यह भी शामिल है कि सभी लोग हिन्दी सीखने व बोलने में गर्व अनुभव करें क्योंकि यह देश की सर्वाधिक लोगों की बोलचाल, व्यवहार व अध्ययन की भाषा है। लोग अधिक से अधिक भाषायें सीखें इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है, परन्तु हिन्दी का ज्ञान सभी देशवासियों के लिए अनिवार्य होना चाहिये। आज देश में पशु हिंसा का अमानवीय कार्य होता है। गोहत्या पर तो प्रतिबन्ध हो ही, हम अनुभव करते हैं कि प्रत्येक प्राणी जो हिंसक नहीं है व जिससे हमें हानि नहीं पहुंच रही है, उसकी हत्या पर प्रतिबन्ध हो और जो हत्या करे उसे कठोर दण्ड दिया जाये। देश के सभी लोग समान है। सबके लिए एक समान आचार संहिता सिविल कोड हो। किसी एक राज्य को विशेष दर्जा दिया जाने से अन्य देशवासियों का अहित होता है। यह समानता के अधिकार के भी विपरीत है। किसी एक समुदाय के लिए अलग कानून बनाना, आधुनिक, विकसित, उन्नत या प्रगतिशील समाज में उचित नहीं है। इसकी आवष्यता ही नहीं है और न होगी। हम यह भी अनुभव करते हैं कि देश में आज कुछ लोगों को विशेषाधिकार व सुविधायें मिल रही है। सबको समान सुविधायें मिलनी चाहिये। समाज में न कोई छोटा होता है और न बड़ा। सभी मिल रही सुविधाओं का अध्ययन व रिव्यू हो और जो अनुचित सुविधा किसी वर्ग विशेष या व्यक्तियों को दी जा रही हैं व जो लोग उसके पात्र न होकर उसका दुरूपयोग करते हैं, उन्हें समाप्त किया जाना चाहिये। वर्ग विषेश के लोगों को सुविधायें न देकर सभी वर्गों के पात्र लोगों को सुविधायें मिलनी चाहिये। कहा जा रहा है कि मोदी जी को लोगों ने वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर अपने मत दिये हैं। अतः मोदीजी को भी चाहिये कि वह वोट बैंक के आधार पर बांटी गई सुविधाओं पर पुनविर्चार व रिव्यू करवाकर, पात्र लोगों को ही सुविधा दिये जाने की नीति का अनुसरण करें व करवायें। किसी की नाराजगी पर ध्यान नहीं देना चाहिये क्योंकि सत्य बलवान होता है, उससे बलवान कुछ नहीं है।

वेदों में भी दुर्दिनों को दूर कर सुदिनों में बदलने की प्रार्थनायें ईश्वर से की गईं हैं। सुदिन तब ही हो सकते हैं जब वेदों को सर्वांगपूर्ण रूप में मानने वाले हमारे राजा व राज्याधिकारी हों। महर्षि दयानन्द की घोशणा है कि वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक, ग्रन्थ व षास्त्र हैं। चार वेद ज्ञान, कर्म, उपासना व विज्ञान के ज्ञान कराने की पुस्तकें है। इसमें जो शब्द अर्थ व सम्बन्ध हैं, वह सृष्टि की आदि में सृष्टि के रचयिता परमेश्वर से ऋषियों को प्राप्त हुए थे। वेदों में निहित ज्ञान ईश्वर का नित्य ज्ञान है जो कभी बदलता नहीं, कम या अधिक नहीं होता, प्रत्येक युग व कल्प में एक जैसा व समान रहता है। हमारे ऋषियों व विद्वानों ने उसी को, उसके एक-एक अक्षर, शब्द व वाक्य को उसके मूल रूप में सुरक्षित रखा है। देश का दुर्भाग्य है कि किन्ही कारणों से हमारे प्रिय सनातनी व पौराणिक बन्धु इस तथ्य को जान नहीं पा रहे हैं। यदि वह इस तथ्य को जानने का प्रयास करें तो इन तथ्यों व सत्य को जानना कठिन कार्य नहीं है। यह तो एक अज्ञ व्यक्ति भी समझ सकता है। इसको जानने व समझने पर ही देश का भला होगा व देश में सुदिन व अच्छे दिन आ सकेंगे। महर्षि दयानन्द ने सन् 1860 से सन् 1883 तक जो वेद प्रचार आदि अनेकानेक कार्य किये उनका उद्देश्य भी देश व विश्व में सुदिनों को स्थापित करने का प्रयास था। मोदीजी की सरकार देशवासियों व देश के लिए अच्छे दिन ला सकें, इसके लिए उन्हें सबकी शुभकामनायें हैं।

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