भले की भलाई की कीमत नहीं होती

विनय कुमार विनायक
जाने क्यों ईमानदार के चेहरों पर,
सदा परेशानी पसरी-पसरी रहती है!

परलोक की अप्सरा हूर लगती है,
बेईमान का चेहरा लगता नूरानी है!

क्यों सरकारी दफ्तर के अफसर से,
जनता को बड़ी डर होने लगती है?

देखते-देखते आंखें अभ्यस्त हो गई!
इसमें किसी का कोई कसूर नहीं है!

सदियों से जनता मजबूर लगती है,
कुर्सी के आगे झुकी दुबकी रहती है!

बुरे को हमेशा इज्जत मिलती रही है,
भ्रष्ट से पंगा लेने में जोखिम भरी है!

सम्मान नहीं मिलता उन्हें जो संत हैं,
प्रशंसा में सम्मान नहीं, बू षड्यंत्र की!

भले की भलाई की कीमत नहीं होती है,
भ्रष्ट का भ्रष्टाचार लाखों में बिकता है!

जान की बाजी लगा, काम आते जो,
उसे यह दुनिया कामगार समझती!!

अपने हुनर की जो कीमत वसूले हैं,
उनको सारे संसार में लोग पूजते हैं!

जो भीड़ को भेड़-बकरी समझता है,
उसकी झलक पाने कतार लगती हैं!

जो उपलब्ध होता है,हमेशा जहां में,
वह मसीहा हो सकता कभी नही है!

जो वक्त पे काम ना आवे किसी के,
वही अक्सरा बड़ा कहलाने लगता है!

जो हिकारत करे सब देख-सुन कर,
समझिए उसे, मसीहा बननेवाला है!

मसीहाई के किस्से सुन-सुनकर ही,
अक्सरा, मसीहा का जन्म होता है!

मसीहा का काम बंदिश लगाना है,
मसीहा ढेर सारी बंदिशें लगाता है!

आदमी के अक्ल में ताला लगाकर,
वे चले जाते ताउम्र गुलाम बनाकर!

जब अक्ल में पड़ जाए यहां ताला,
फिर कहां कोई ऐसे में जाननेवाला?

देश दुनिया प्यार अपनापन की बातें,
सबकी सब धरी की धरी रह जाती है!
—विनय कुमार विनायक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here