अच्छे दिनों के लिए अच्छे परिणाम

-प्रमोद भार्गव-

देश के तय हो चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए नारे ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ की कल्पना अब चुनाव परिणाम आने के बाद समाप्त हो गई है। शपथ ग्रहण होने के बाद अब अच्छे दिन लाने का सिलसिला शुरू करने की जवाबदेही केंद्र में बनने वाली नई सरकार पर है। ये चुनाव नतीजे कई दृश्टियों से ऐतिहासिक हैं, 1984 यानी तीन दशक बाद ऐसा हुआ है कि किसी एक दल भाजपा को अपने बूते सरकार बनाने का बहुमत मिला है। भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को इतनी बढ़ी जीत मिली है कि उसे संविधान में संशोधन का अधिकार भी मिल गया है। मण्डल आयोग की शर्तें लागू होने के बाद जिस जातीय उभार के बूते क्षेत्रीय क्षत्रप उभरे थे, उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। जिस सोशल इंजीनियरिंग के बूते मायावती बसपा को अखिल भारतीय उभार दे रहीं थी उसका सूपड़ा साफ उत्तर प्रदेश में ही हो गया। एबीपी न्यूज, इंडिया टीवी, आजतक, जीन्यूज और न्यूज 24 द्वारा मतदान बाद किए सर्वेक्षण सटीक नहीं बैठे, क्योंकि इन सर्वेक्षणों में राजग को 272 से 289 सीटों पर जीत जताई थीं। केवल चाणक्य द्वारा किया सर्वे हकीकत के करीब है, उसने राजग को 340 सीटें दी थीं।

सोलहवीं लोकसभा के जो परिणाम आए हैं, वे बढ़े मत प्रतिशत से संभव हुए हैं। देश के कुल 81 करोड़ मतदाताओं में से 54 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले। जिसका प्रतिशत 66.38 बैठता है। इसके पहले 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 64.01 प्रतिशत वोट पड़े थे। नतीजतन कांग्रेस को 543 में से 415 सीटें मिली थीं। जाहिर है, बीते 30 साल के भीतर जितने भी चुनाव हुए हैं, उनमें वोट का प्रतिशत इतना नहीं रहा है, इसलिए खंडित जनादेश आता रहा। वैसे बड़े वोट को बदलाव का संकेत माना जाता है। आजादी से लेकर आज तक बिहार को परिवर्तन का वाहक माना जाता है। बिहार ने इस तथ्य की पुष्टि एक बार फिर से की है। राजग से अलग होने के बाद वहां एकीकृत जनता दल का सूपड़ा साफ हो गया है। यही हश्र कांग्रेस का हुआ है। लालू किसी तरह राष्ट्रीय जनता दल की लाज बचाने में सफल रहे हैं।

इसी तरह यह मिथक फिर से स्थापित हो गया है कि उत्तर प्रदेश देश को प्रधानमंत्री देता है। मोदी प्रधानमंत्री पद के भाजपा की ओर से घोषित उम्मीदवार है और वाराणसी से उनकी जीत दर्ज हो गई है। ये दोनों ऐसे राज्य रहे हैं, जहां जाति और संप्रदाय की राजनीति का बोलवाला रहा है। मुलायम, लालू, नीतीश और मायावती इसी राजनीति की उपज हैं। लेकिन इन दोनों राज्यों से आए नतीजों ने साफ कर दिया है कि अब देश की राजनीति बदल रही है। मंडल और तुष्टीकरण की राजनीति को मतदाता ने ठेंगा दिखा दिया है। इन दोनों राज्यों में अकेली भाजपा को इतनी सीटें मिली हैं कि उसकी आधी भी पूरे देश में कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को नहीं मिलीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा को 71 और बिहार में 30 सीटें मिली हैं, जबकि संप्रग को 61 सीटें मिली हैं। तय है, जाति-पांति और धर्म के बंधन टूट रहे हैं। यही कारण है कि पश्चिमी उत्तर में जाटों ने आरक्षण का अधिकार मिलने के बावजूद राष्ट्रीय लोकदल को वोट नहीं दिए। यहां तक की अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत समेत उनके सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए। यही हश्र मायावती का हुआ है।

संघ की रणनीति, मोदी के नेतृत्व और राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में भाजपा ने इतनी कुशलता से चुनाव लड़ा कि उसने स्पश्ट बहुमत तो हासिल किया ही देशव्यापी विस्तार भी कर लिया। तमिलनाडू, केरल, पश्चिम बंगाल, असम और अरुणाचल में उसका मजबूत सांगठनिक ढांचा नहीं था, लेकिन वह इन सभी राज्यों में खाता खोलने में सफल हो गई। असम में तो उसे इतनी बड़ी जीत मिली है कि वहां के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इस्तीफा देने तक की पेशकश कर दी। ये हालात जहां कांग्रेस नेतृत्व के प्रति आक्रोश व अविश्वास के संकेत हैं, वहीं मोदी बनाम भाजपा के प्रति सार्थक विकल्प एवं आशा के रूप में उभरे हैं। राजनाथ ने सवा साल के अध्यक्षीय कार्यकाल में जिस शालीनता के साथ कुशल तालमेल का परिचय दिया है, उसने न केवल भाजपा को जोड़े रखने का काम किया, बल्कि राजग गठबंधन के सहयोगियों की संख्या बढ़ाकर उसे एक सूत्र में पिरोये रखने का भी काम किया। राजनाथ ने चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के नाम की घोषणा करके भी एक अभूतपूर्व निर्णय लिया। क्योंकि भारत नायक प्रधान देष रहा है। मसलन चेहरे के आकर्षण ने यहां मतदाता को हमेशा प्रभावित करने का काम किया है। नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे सामने रखकर ही केंद्र में सरकारें बनती रहीं हैं। कांग्रेस ने अपने नायक के रूप में राहुल गांधी को पेश किया था, लेकिन उन्हें जनता ने नकार दिया। उनकी कथनी और करनी में फर्क होने कारण मतदाता ने उन्हें नेतृत्व के लायक नहीं समझा। यही वजह रही कि कांग्रेस को आजादी के बाद सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ रहा है।

‘हां में हिंदू हूं और हिंदूत्व राष्ट्रवाद की बात करता हूं।’ मोदी ने अपनी पत्रकार वार्ताओं और आम सभाओं में इस विचार वाक्य से कभी परहेज नहीं किया। इसीलिए मोदी ने इस्लाम धर्म की प्रतीक टोपी को पहनने से साफ इनकार कर दिया था। साफ है मोदी में धर्म के स्तर पर कोई छल-छद्म नहीं है। इन अर्थों में धर्मनिरपेक्षता को भी नए अर्थों में परिभाषित करना होगा, क्योंकि मोदी देश के नागरिकों को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दायरों में बांटकर नहीं देखते। संघ, वैचारिक हिंदुत्व की जिस राजनीति का अर्से से पक्षधर रहा है, उसे मोदी का बेवाक नेतृत्व आगे बढ़ाने का काम करेगा। क्योंकि संघ ने इस चुनाव में खुले रूप में आकर जिस तरह से मतदाताओं को बाहर निकालने का काम किया है, वह अपने आप में एक मिसाल है। तय है संघ का सरकार पर दबाव रहेगा कि वह संघ के बुनियादी एजेंडे पर काम करे। इस एजेंडे में धारा 370, समान नागरिक संहिता और राम मंदिर का निर्माण शामिल हैं। चूंकि भाजपा स्पष्ट बहुमत में है और राजग सविधान में संशोधन की स्थिति में है इसलिए संघ का दबाव होगा कि मोदी सरकार इन मुद्दों का हल निकाले ?

बीते पांच साल के भीतर संप्रग का जो कार्यकाल रहा है उसमें महंगाई, भ्रष्टाचार प्रभावशील रहे हैं। सीमा पर सैनिकों के सिर कलम करने की घटना, चीनी सैनिकों की घुसपैठ, कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद और पैर पसारते नक्सलवाद ने असहाय और असुरक्षित भारत की जो तस्वीर उभार दी थी, उसके समाधान की भी मोदी से अपेक्षा है। देश में लगता ही नहीं था कि कोई गृह मंत्रालय भी है, जो अराजकताओं पर नियंत्रण के लिए काम करता है। असम समेत पूरे पूर्वोत्तर में जो जबरदस्त मतदान देखने में आया, उसमें मोदी द्वारा इस क्षेत्र में की गईं 6 रैलियों की अहम भूमिका रही है। यह पहली बार हुआ, जब किसी प्रधानमंत्री के दावेदार ने घुसपैठियों को उनके गढ़ में जाकर ललकारा। वरना कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दल वोट बैंक की राजनीति के चलते बांग्लादेशी घुसपैठियों का कार्ड खेलकर घृणास्पद देश विरोधी खेल खेलते रहे हैं।

मोदी ने सपने बहुत दिखाए हैं, इसलिए उनसे उम्मीदें भी बहुत हैं। अब मोदी और भाजपा कोई बहाना भी नहीं कर सकते, क्योंकि जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया है। लिहाजा उन्हें युवाओं को रोजगार देने के साथ आर्थिक सुधार की दिशा में अहम पहल करनी होगी। मोदी पर कालाधन लाने और पूरे देश में भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन की स्थापना करने जैसी अहम चुनौतियां हैं। जाहिर है, चुनौतियां बड़ी हैं। लेकिन मोदी दृढ़इच्छाशक्ति वाले कल्पनाशील व्यक्ति है। तय है, यही कल्पनाशीलता अच्छे दिन लाएगी।

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